अमर है गणतंत्र-राष्ट्रीयता के स्वर-(हिन्दी कविता)-मेरी इक्यावन कविताएँ – अटल बिहारी वाजपेयी

अमर है गणतंत्र

राजपथ पर भीड़, जनपथ पड़ा सूना,
पलटनों का मार्च, होता शोर दूना।
शोर से डूबे हुए स्वाधीनता के स्वर,
रुद्ध वाणी, लेखनी जड़, कसमसाता डर।
भयातांकित भीड़, जन अधिकार वंचित,
बन्द न्याय कपाट, सत्ता अमर्यादित।
लोक का क्षय, व्यक्ति का जयकार होता,
स्वतंत्रता का स्वप्न रावी तीर रोता।
रक्त के आँसू बहाने को विवश गणतंत्र,
राजमद ने रौंद डाले मुक्ति के शुभ मंत्र।
क्या इसी दिन के लिए पूर्वज हुए बलिदान?
पीढ़ियां जूझीं, सदियों चला अग्नि-स्नान?
स्वतंत्रता के दूसरे संघर्ष का घननाद,
होलिका आपात् की फिर माँगती प्रह्लाद।
अमर है गणतंत्र, कारा के खुलेंगे द्वार,
पुत्र अमृत के, न विष से मान सकते हार।

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