वैशाली की नगरवधू (बौद्धकालीन ऐतिहासिक उपन्यास) : आचार्य चतुरसेन शास्त्री Part 4

वैशाली की नगरवधू (बौद्धकालीन ऐतिहासिक उपन्यास) : आचार्य चतुरसेन शास्त्री Part 4

वैशाली की नगरवधू (बौद्धकालीन ऐतिहासिक उपन्यास) : आचार्य चतुरसेन शास्त्री Part 4 31. चम्पा में : वैशाली की नगरवधू मगध-सेनापति चण्डभद्रिक ने पटमण्डप में प्रवेश करके कहा—”मित्रो, अब वैशाखी के केवल पांच ही दिन बाकी रह गए हैं। उन्हीं पांच दिनों में मागधी सेना का और चम्पा के प्राचीन राज्य के भाग्य का निपटारा होना …

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वैशाली की नगरवधू (बौद्धकालीन ऐतिहासिक उपन्यास) : आचार्य चतुरसेन शास्त्री Part 3

वैशाली की नगरवधू (बौद्धकालीन ऐतिहासिक उपन्यास) : आचार्य चतुरसेन शास्त्री Part 3

वैशाली की नगरवधू (बौद्धकालीन ऐतिहासिक उपन्यास) : आचार्य चतुरसेन शास्त्री Part 3 20. साकेत : वैशाली की नगरवधू कोसल-नरेश प्रसेनजित् साकेत में ठहरे थे, वे सेठी मृगार के पुत्र पुण्ड्रवर्धन के ब्याह में सदलबल साकेत आए थे। राजधानी श्रावस्ती यहां से छह योजन पर थी। सरयू के तट पर बसा यह नगर उस समय प्राची …

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वैशाली की नगरवधू (बौद्धकालीन ऐतिहासिक उपन्यास) : आचार्य चतुरसेन शास्त्री Part 2

वैशाली की नगरवधू (बौद्धकालीन ऐतिहासिक उपन्यास) : आचार्य चतुरसेन शास्त्री Part 2

वैशाली की नगरवधू (बौद्धकालीन ऐतिहासिक उपन्यास) : आचार्य चतुरसेन शास्त्री Part 2 11. राजगृह : वैशाली की नगरवधू अति रमणीय हरितवसना पर्वतस्थली को पहाड़ी नदी सदानीरा अर्धचन्द्राकार काट रही थी। उसी के बाएं तट पर अवस्थित शैल पर कुशल शिल्पियों ने मगध साम्राज्य की राजधानी राजगृह का निर्माण किया था। दूर तक इस मनोरम सुन्दर …

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वैशाली की नगरवधू (बौद्धकालीन ऐतिहासिक उपन्यास) : आचार्य चतुरसेन शास्त्री Part 1

वैशाली की नगरवधू (बौद्धकालीन ऐतिहासिक उपन्यास) : आचार्य चतुरसेन शास्त्री

वैशाली की नगरवधू (बौद्धकालीन ऐतिहासिक उपन्यास) : आचार्य चतुरसेन शास्त्री प्रवचन अपने जीवन के पूर्वाह्न में—सन् 1909 में, जब भाग्य रुपयों से भरी थैलियां मेरे हाथों में पकड़ाना चाहता था—मैंने कलम पकड़ी। इस बात को आज 40 वर्ष बीत रहे हैं। इस बीच मैंने छोटी- बड़ी लगभग 84 पुस्तकें विविध विषयों पर लिखीं, अथच दस …

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अहंकार (थायस : अनातोल फ्रांस) : अनुवादक प्रेमचंद

अहंकार (थायस : अनातोल फ्रांस) : अनुवादक प्रेमचंद

अहंकार (थायस : अनातोल फ्रांस) : अनुवादक प्रेमचंद अहंकार : भूमिका योरप में फ्रांस का सरस साहित्य सर्वोत्तम है। फ्रेंच साहित्य में अनातोल फ्रांस का नाम अगर सर्वोच्च नहीं तो किसी से कम भी नहीं, और ‘थायस’ उन्हीं महोदय की एक अद्भुत रचना है – हाँ, ऐसी विलक्षण साहित्यिक कृति को अद्भुत ही कहना उपयुक्त …

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आजाद-कथा (उपन्यास) : रतननाथ सरशार – अनुवादक Part 12 – प्रेमचंद

आजाद-कथा (उपन्यास) : रतननाथ सरशार – अनुवादक Part 12 – प्रेमचंद

आजाद-कथा (उपन्यास) : रतननाथ सरशार – अनुवादक Part 12 – प्रेमचंद आजाद-कथा : भाग 2 – खंड 106 आजाद सुरैया बेगम की तलाश में निकले तो क्या देखते हैं कि एक बाग में कुछ लोग एक रईस की सोहबत में बैठे गपें उड़ा रहे हैं। आजाद ने समझा, शायद इन लोगों से सुरैया बेगम के …

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आजाद-कथा (उपन्यास) : रतननाथ सरशार – अनुवादक Part 11 – प्रेमचंद

आजाद-कथा (उपन्यास) : रतननाथ सरशार – अनुवादक Part 11 – प्रेमचंद

आजाद-कथा : भाग 2 – खंड 101 आजाद पाशा को इस्कंदरिया में कई दिन रहना पड़ा। हैजे की वजह से जहाजों का आना-जाना बंद था। एक दिन उन्होंने खोजी से कहा – भाई, अब तो यहाँ से रिहाई पाना मुश्किल है। खोजी – खुदा का शुक्र करो कि बचके चले आए, इतनी जल्दी क्या है? …

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आजाद-कथा (उपन्यास) : रतननाथ सरशार – अनुवादक Part 10 – प्रेमचंद

आजाद-कथा (उपन्यास) : रतननाथ सरशार – अनुवादक Part 10 – प्रेमचंद

आजाद-कथा (उपन्यास) : रतननाथ सरशार – अनुवादक Part 10 – प्रेमचंद आजाद-कथा : भाग 2 – खंड 91 जब रात को सब लो खा-पी कर लेटे, तो नवाब साहब ने दोनों बंगालियों को बुलाया और बोले – खुदा ने आप दोनों साहबों को बहुत बचाया, वरना शेरनी खा जाती। बोस – हम डरता नहीं थ, …

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आजाद-कथा (उपन्यास) : रतननाथ सरशार – अनुवादक Part 9 – प्रेमचंद

आजाद-कथा (उपन्यास) : रतननाथ सरशार – अनुवादक Part 9 – प्रेमचंद

आजाद-कथा (उपन्यास) : रतननाथ सरशार – अनुवादक Part 9 – प्रेमचंद आजाद-कथा : भाग 2 – खंड 81 एक दिन दो घड़ी दिन रहे चारों परियाँ बनाव-चुनाव हँस-खेल रही थीं। सिपहआरा का दुपट्टा हवा के झोंकों से उड़ा जाता था। जहाँनारा मोतिये के इत्र में बसी थीं। गेतीआरा का स्याह रेशमी दुपट्टा खूब खिल रहा …

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आजाद-कथा (उपन्यास) : रतननाथ सरशार – अनुवादक Part 8 – प्रेमचंद

आजाद-कथा (उपन्यास) : रतननाथ सरशार – अनुवादक Part 8 – प्रेमचंद

आजाद-कथा (उपन्यास) : रतननाथ सरशार – अनुवादक Part 8 – प्रेमचंद आजाद-कथा : भाग 2 – खंड 71 आजाद तो साइबेरिया की तरफ रवाना हुए, इधर खोजी ने दरख्त पर बैठे-बैठे अफीम की डिबिया निकाली। वहाँ पानी कहाँ? एक आदमी दरख्त के नीचे बैठा था। आपने उससे कहा – भाईजान, जरा पानी पिला दो। उसने …

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