बुलाती तुम्हें मनाली- विविध के स्वर-(हिन्दी कविता)-मेरी इक्यावन कविताएँ – अटल बिहारी वाजपेयी

बुलाती तुम्हें मनाली

आसमान में बिजली ज़्यादा,
घर में बिजली काम।
टेलीफ़ोन घूमते जाओ,
ज़्यादातर गुमसुम॥

बर्फ ढकीं पर्वतमालाएं,
नदियां, झरने, जंगल।
किन्नरियों का देश,
देवता डोले पल-पल॥

हरे-हरे बादाम वृक्ष पर,
लाडे खड़े चिलगोज़े।
गंधक मिला उबलता पानी,
खोई मणि को खोजे॥

दोनों बांह पसार,
बुलाती तुम्हे मनाली।
दावानल में मलयानिल सी,
महकी, मित्र, मनाली॥

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