एक अबोध बच्ची (बर्बरता)- हिंदी कविता -अजय शोभने

एक अबोध बच्ची

(बर्बरता)

एक अबोध बच्ची ने,
अपना बचपन गुजारा,
पूजकर पत्थर के देवता को,
जिसे कभी तराश कर बनाया था,
उसके पिता ने अपने हाथों से,
और आज, उसी देवसन्तान ने,
मानवता को शर्मसार कर,
चीतकार भरे आकाश में,
पत्थरों से सिर मारती बच्ची को,
मानवता रक्तरंजित कर,
बनाया अपनी हबश का शिकार,
उसकी एक-एक साँस घुटती रही, और
वह घुट-घुट कर हर पल मरती रही,

अरे सतयुग के रावण,
तू ने सीता को छुआ नहीं,
और कायरों ने तुझे,
तुझे जलाया हजारबार,
और अब कलयुगी रावण को,
दण्डित करने के लिए,
थर-थर कांप रहीं भुजाएं,
56″ सीना वाले राम की,
भारत शर्मसार है जैसे,
युधिष्ठिरी शासकों के समझ,
द्रोपदी का चीरहरण हुआ हो,
लगता है भारत में अच्छे दिन आ गए,
राम-राज और धर्म-राज दोनों छा गए !

 

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