जीवन में मधुसम प्रेम घोल- हिंदी कविता -अजय शोभने
(प्रकृति-प्रेम)
जीवन में मधुसम प्रेम घोल, ऊँचे स्वर में न इतना बोल,
अपने को न अधिक तोल, जीवन में मधुसम प्रेम घोल !
सूरज ने नित आकर, धरणी पर किरणें डाली,
पृथ्वी ने खुश हो, निजगोद में हरियाली पाली !
शीतल समीर संग, झूम उठी, फूलों की डाली,
रे मन तू प्रकृति संग रहके, प्रेम भरी वाणी बोल !
जीवन में मधुसम प्रेम घोल, ऊँचे स्वर में न इतना बोल,
अपने को न अधिक तोल, जीवन में मधुसम प्रेम घोल !
सागर से भर मेघों ने, हर्षित हो पानी वर्षाया,
पर्वतों ने पीला रंग त्याग, हरितवस्त्र सजाया !
नदियों का सिंधु से, क्रिड़ा हेतु मन ललचाया,
रे मन तू प्रकृति संग रहके, सुरमयी वाणी बोल !
जीवन में मधुसम प्रेम घोल, ऊँचे स्वर में न इतना बोल,
अपने को न अधिक तोल, जीवन में मधुसम प्रेम घोल !
मनुज प्राण देनी विटप, सुन्दर और सजीले,
जो पर हित देते फल, खट्टेमीठे और रसीले !
तू उन्हें क्यों काट रहा ? ओ मूढ़मनुज हठीले !
रे मन तू प्रकृति रक्षक बन, पेड़ों के संग डोल !
जीवन में मधुसम प्रेम घोल, ऊँचे स्वर में न इतना बोल,
अपने को न अधिक तोल, जीवन में मधुसम प्रेम घोल !