ये समझते हैं, खिले हैं तो फिर बिखरना है -अदम गोंडवी
ये समझते हैं, खिले हैं तो फिर बिखरना है । पर अपने ख़ून से गुलशन में रंग भरना है । उससे मिलने को कई मोड़ से गुज़रना है । अभी तो आग के दरिया में भी उतरना है । जिसके आने से बदल जाए ज़माने का निज़ाम, ऐसे इंसान को इस ख़ाक से उभरना है …