रंगभूमि अध्याय 34 : मुंशी प्रेमचंद 

रंगभूमि अध्याय 34 : मुंशी प्रेमचंद 

रंगभूमि अध्याय 34 प्रभु सेवक ने घर आते ही मकान का जिक्र छेड़ दिया। जान सेवक यह सुनकर बहुत प्रसन्न हुए कि अब इसने कारखाने की ओर धयान देना शुरू किया। बोले-हाँ, मकानों का बनना बहुत जरूरी है। इंजीनियर से कहो, एक नक्शा बनाएँ। मैं प्रबंधकारिणी समिति के सामने इस प्रस्ताव को रख्रूगा। कुलियों के …

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रंगभूमि अध्याय 33 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 33 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 33 फैक्टरी करीब-करीब तैयार हो गई थी। अब मशीनें गड़ने लगीं। पहले तो मजदूर-मिस्त्री आदि प्राय: मिल के बरामदों ही में रहते थे, वहीं पेड़ों के नीचे खाना पकाते और सोते; लेकिन जब उनकी संख्या बहुत बढ़ गई, तो मुहल्ले में मकान ले-लेकर रहने लगे। पाँड़ेपुर छोटी-सी बस्ती तो थी ही, वहाँ इतने …

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रंगभूमि अध्याय 32 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 32 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 32 सूरदास के मुकदमे का फैसला सुनने के बाद इंद्रदत्ता चले, तो रास्ते में प्रभु सेवक से मुलाकात हो गई। बातें होने लगी।इंद्रदत्ता-तुम्हारा क्या विचार है, सूरदास निर्दोष है या नहीं?प्रभु सेवक-सर्वथा निर्दोष। मैं तो आज उसकी साधुता पर कायल हो गया। फैसला सुनाने के वक्त तक मुझे विश्वास था कि अंधो ने …

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रंगभूमि अध्याय 31 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 31 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 31 भैरों के घर से लौटकर सूरदास अपनी झोंपड़ी में आकर सोचने लगा, क्या करूँ कि सहसा दयागिरि आ गए और बोले-सूरदास, आज तो लोग तुम्हारे ऊपर बहुत गरम हो रहे हैं, इसे घमंड हो गया है। तुम इस माया-जाल में क्यों पड़े हो। क्यों नहीं मेरे साथ कहीं तीर्थयात्रा करने चलते?सूरदास-यही तो …

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रंगभूमि अध्याय 30 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 30 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 30 शहर अमीरों के रहने और क्रय-विक्रय का स्थान है। उसके बाहर की भूमि उनके मनोरंजन और विनोद की जगह है। उसके मध्यि भाग में उनके लड़कों की पाठशालाएँ और उनके मुकद़मेबाजी के अखाड़े होते हैं, जहाँ न्याय के बहाने गरीबों का गला घोंटा जाता है। शहर के आस-पास गरीबों की बस्तियाँ होती …

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रंगभूमि अध्याय 29 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 29 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 29 मिस्टर विलियम क्लार्क अपने अन्य स्वदेश-बंधुओं की भाँति सुरापान के भक्त थे, पर उसके वशीभूत न थे। वह भारतवासियों की भाँति पीकर छकना न जानते थे। घोड़े पर सवार होना जानते थे, उसे काबू से बाहर न होने देते थे। पर आज सोफी ने जान-बूझकर उन्हें मात्रा से अधिक पिला दी थी, …

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रंगभूमि अध्याय 28 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 28 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 28 सोफिया के चले जाने के बाद विनय के विचार-स्थल में भाँति-भाँति की शंकाएँ होने लगीं। मन एक भीरु शत्रु है, जो सदैव पीठ के पीछे से वार करता है। जब तक सोफी सामने बैठी थी, उसे सामने आने का साहस न हुआ। सोफी के पीठ फेरते ही उसने ताल ठोकनी शुरू की-न …

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रंगभूमि अध्याय 27 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 27 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 27 नायकराम मुहल्लेवालों से बिदा होकर उदयपुर रवाना हुए। रेल के मुसाफिरों को बहुत जल्द उनसे श्रध्दा हो गई। किसी को तम्बाकू मलकर खिलाते, किसी के बच्चे को गोद में लेकर प्यार करते। जिस मुसाफिर को देखते, जगह नहीं मिल रही है, इधर-उधर भटक रहा है, जिस कमरे में जाता है, धक्के खाता …

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रंगभूमि अध्याय 26 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 26 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 26 अरावली की हरी-भरी झूमती हुई पहाड़ियों के दामन में जसवंतनगर यों शयन कर रहा है, जैसे बालक माता की गोद में। माता के स्तन से दूध की धारें, प्रेमोद्गार से विकल, उबलती, मीठे स्वरों में गाती निकलती हैं और बालक के नन्हे-से मुख में न समाकर नीचे बह जाती हैं। प्रभात की …

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रंगभूमि अध्याय 25 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 25 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 25 साल-भर तक राजा महेंद्रकुमार और मिस्टर क्लार्क में निरंतर चोटें चलती रहीं। पत्र का पृष्ठ रणक्षेत्र था और शृंखलित सूरमों की जगह सूरमों से कहीं बलवान् दलीलें। मनों स्याही बह गई, कितनी ही कलमें काम आईं। दलीलें कट-कटकर रावण की सेना की भाँति फिर जीवित हो जाती थीं। राजा साहब बार-बार हतोत्साह …

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