रंगभूमि अध्याय 24 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 24 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 24 सूरदास की जमीन वापस दिला देने के बाद सोफ़िया फिर मि. क्लार्क से तन गई। दिन गुजरते जाते थे और वह मि. क्लार्क से दूरतर होती जाती थी। उसे अब सच्चे अनुराग के लिए अपमान, लज्जा, तिरस्कार सहने की अपेक्षा कृत्रिाम प्रेम का स्वाँग भरना कहीं दुस्सह प्रतीत होता था। सोचती थी, …

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रंगभूमि अध्याय 23 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 23 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 23 अब तक सूरदास शहर में हाकिमों के अत्याचार की दुहाई देता रहा, उसके मुहल्ले वाले जॉन सेवक के हितैषी होने पर भी उससे सहानुभूति करते रहे। निर्बलों के प्रति स्वभावत: करुणा उत्पन्न हो जाती है। लेकिन सूरदास की विजय होते ही यह सहानुभूति स्पध्र्दा के रूप में प्रकट हुई। यह शंका पैदा …

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रंगभूमि अध्याय 22 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 22 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 22 सैयद ताहिर अली को पूरी आशा थी कि जब सिगरेट का कारखाना बनना शुरू हो जाएगा, तो मेरी कुछ-न-कुछ तरक्की हो जाएगी। मि. सेवक ने उन्हें इसका वचन दिया था। इस आशा के सिवा उन्हें अब तक ऋणों को चुकाने का कोई उपाय न नजर आता था, जो दिनों-दिन बरसात की घास …

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रंगभूमि अध्याय 21 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 21 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 21 सूरदास के आर्तनाद ने महेंद्रकुमार की ख्याति और प्रतिष्ठा को जड़ से हिला दिया। वह आकाश से बातें करनेवाला कीर्ति-भवन क्षण-भर में धाराशायी हो गया। नगर के लोग उनकी सेवाओं को भूल-से गए। उनके उद्योग से नगर का कितना उपकार हुआ था, इसकी किसी को याद ही न रही। नगर की नालियाँ …

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रंगभूमि अध्याय 20 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 20 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 20 मि. क्लार्क ने मोटर से उतरते ही अरदली को हुक्म दिया-डिप्टी साहब को फौरन हमारा सलाम दो। नाजिर, अहलमद और अन्य कर्मचारियों को भी तलब किया गया। सब-के-सब घबराए-यह आज असमय क्यों तलबी हुई, कोई गलती तो नहीं पकड़ी गई? किसी ने रिश्वत की शिकायत तो नहीं कर दी? बेचारों के हाथ-पाँव …

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रंगभूमि अध्याय 19 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 19 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 19 सोफ़िया अपनी चिंताओं में ऐसी व्यस्त हो रही थी कि सूरदास को बिल्कुल भूल-सी गई थी। उसकी फरियाद सुनकर उसका हृदय काँप उठा। इस दीन प्राणी पर इतना घोर अत्याचार! उसकी दयालु प्रकृति यह अन्याय न सह सकी। सोचने लगी-सूरदास को इस विपत्ति से क्योंकर मुक्त करूँ? इसका उध्दार कैसे हो? अगर …

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रंगभूमि अध्याय 18 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 18 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 18 सोफ़िया घर आई, तो उसके आत्मगौरव का पतन हो चुका था; अपनी ही निगाहों में गिर गई थी। उसे अब न रानी पर क्रोध था, न अपने माता-पिता पर। केवल अपनी आत्मा पर क्रोध था, जिसके हाथों उसकी इतनी दुर्गति हुई थी, जिसने उसे काँटों में उलझा दिया था। उसने निश्चय किया, …

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रंगभूमि अध्याय 17 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 17 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 17 विनयसिंह छ: महीने से कारागार में पड़े हुए हैं। न डाकुओं का कुछ पता मिलता है और न उन पर अभियोग चलाया जाता है। अधिकारियों को अब भी भ्रम है कि इन्हीं के इशारे से डाका पड़ा था। इसीलिए वे उन पर नाना प्रकार के अत्याचार किया करते हैं। जब इस नीति …

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रंगभूमि अध्याय 16 : मुंशी प्रेमचंद 

रंगभूमि अध्याय 16 : मुंशी प्रेमचंद 

रंगभूमि अध्याय 16 अरावली की पहाड़ियों में एक वट-वृक्ष के नीचे विनयसिंह बैठे हुए हैं। पावस ने उस जन-शून्य, कठोर, निष्प्रभ, पाषाणमय स्थान को प्रेम,प्रमोद और शोभा से मंडित कर दिया है, मानो कोई उजड़ा हुआ घर आबाद हो गया हो। किंतु विनय की दृष्टि इस प्राकृतिक सौंदर्य की ओर नहीं; वह चिंता की उस …

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रंगभूमि अध्याय 15 : मुंशी प्रेमचंद 

रंगभूमि अध्याय 15 : मुंशी प्रेमचंद 

रंगभूमि अध्याय 15 राजा महेंद्रकुमार सिंह यद्यपि सिध्दांत के विषय में अधिकारियों से जौ-भर भी न दबते थे; पर गौण विषयों में वह अनायास उनसे विरोध करना व्यर्थ ही नहीं, जाति के लिए अनुपयुक्त भी समझते थे। उन्हें शांत नीति पर जितना विश्वास था, उतना उग्र नीति पर न था, विशेषत: इसलिए कि वह वर्तमान …

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