कायाकल्प (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद Part 3

कायाकल्प (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद Part 3

कायाकल्प (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद Part 3 कायाकल्प : अध्याय दस मुंशी वज्रधर विशालसिंह के पास से लौटे, तो उनकी तारीफों के पुल बांध दिए। रईस हो तो ऐसा हो। आंखों में कितना शील है ! किसी तरह छोड़ते ही न थे। यों समझो कि लड़कर आया हूँ। प्रजा पर तो जान देते हैं। बेगार …

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कायाकल्प (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद Part 2

कायाकल्प (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद Part 2

कायाकल्प (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद Part 2 कायाकल्प : अध्याय आठ जगदीशपुर की रानी देवप्रिया का जीवन केवल दो शब्दों में समाप्त हो जाता था-विनोद और विलास। इस वृद्धावस्था में भी उनकी विलास वृत्ति अणुमात्र भी कम न हुई थी। हमारी कर्मेन्द्रियां भले ही जर्जर हो जाएं, चेष्टाएं तो वृद्ध नहीं होती! कहते हैं, बुढ़ापा …

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कायाकल्प (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद Part 1

कायाकल्प (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद

कायाकल्प : अध्याय एक दोपहर का समय था; चारों तरफ अंधेरा था। आकाश में तारे छिटके हुए थे। ऐसा सन्नाटा छाया हुआ था, मानो संसार से जीवन का लोप हो गया हो। हवा भी बंद हो गई थी। सूर्यग्रहण लगा हुआ था। त्रिवेणी के घाट पर यात्रियों की भीड़ थी-ऐसी भीड़, जिसकी कोई उपमा नहीं …

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वरदान (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद

वरदान (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद

वरदान (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद (‘वरदान’ दो प्रेमियों की दुखांत कथा है। ऐसे दो प्रेमी जो बचपन में साथ-साथ खेले, जिन्होंने तरुणाई में भावी जीवन की सरल और कोमल कल्पनाएं संजोईं, जिनके सुन्दर घर के निर्माण के अपने सपने थे और भावी जीवन के निर्धारण के लिए अपनी विचारधारा थी। किन्तु उनकी कल्पनाओं का महल …

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कर्मभूमि (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद (कर्मभूमि अध्याय 5)

कर्मभूमि (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद (कर्मभूमि अध्याय 5)

कर्मभूमि (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद (कर्मभूमि अध्याय 5) कर्मभूमि अध्याय 5 भाग 1 यह हमारा लखनऊ का सेंटल जेल शहर से बाहर खुली हुई जगह में है। सुखदा उसी जेल के जनाने वार्ड में एक वृक्ष के नीचे खड़ी बादलों की घुड़दौड़ देख रही है। बरसात बीत गई है। आकाश में बड़ी धूम से घेर-घार …

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कर्मभूमि (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद (कर्मभूमि अध्याय 4)

कर्मभूमि (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद (कर्मभूमि अध्याय 4)

कर्मभूमि (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद (कर्मभूमि अध्याय 4) कर्मभूमि अध्याय 4 भाग 1 अमरकान्त को ज्योंही मालूम हुआ कि सलीम यहां का अफसर होकर आया है, वह उससे मिलने चला। समझा, खूब गप-शप होगी। यह खयाल तो आया, कहीं उसमें अफसरी की बू न आ गई हो लेकिन पुराने दोस्त से मिलने की उत्कंठा को …

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कर्मभूमि (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद (कर्मभूमि अध्याय 3)

कर्मभूमि (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद (कर्मभूमि अध्याय 3)

कर्मभूमि अध्याय 3 भाग 1 लाला समरकान्त की जिंदगी के सारे मंसूबे धूल में मिल गए। उन्होंने कल्पना की थी कि जीवन-संध्यि में अपना सर्वस्व बेटे को सौंपकर और बेटी का विवाह करके किसी एकांत में बैठकर भगवत्-भजन में विश्राम लेंगे, लेकिन मन की मन में ही रह गई। यह तो मानी हुई बात थी …

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कर्मभूमि (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद (कर्मभूमि अध्याय 2)

कर्मभूमि (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद (कर्मभूमि अध्याय 2) Part 2

कर्मभूमि (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद (कर्मभूमि अध्याय 2) कर्मभूमि अध्याय 2 भाग 1 उत्तर की पर्वत-श्रेणियों के बीच एक छोटा-सा रमणीक गांव है। सामने गंगा किसी बालिका की भांति हंसती, उछलती, नाचती, गाती, दौड़ती चली जाती है। पीछे ऊंचा पहाड़ किसी वृध्द योगी की भांति जटा बढ़ाए शांत, गंभीर, विचारमग्न खड़ा है। यह गांव मानो …

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कर्मभूमि (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद (कर्मभूमि अध्याय 1) Part 2

कर्मभूमि (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद (कर्मभूमि अध्याय 1) Part 2

कर्मभूमि अध्याय 1 भाग 11 सारे शहर में कल के लिए दोनों तरह की तैयारियां होने लगीं-हाय-हाय की भी और वाह-वाह की भी। काली झंडियां भी बनीं और फलों की डालियां भी जमा की गईं, पर आशावादी कम थे, निराशावादी ज्यादा। गोरों का खून हुआ है। जज ऐसे मामले में भला क्या इंसाफ करेगा, क्या …

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कर्मभूमि (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद (कर्मभूमि अध्याय 1) Part 1

कर्मभूमि (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद (कर्मभूमि अध्याय 1)

कर्मभूमि (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद (कर्मभूमि अध्याय 1) कर्मभूमि अध्याय 1 भाग 1 हमारे स्कूलों और कॉलेजों में जिस तत्परता से फीस वसूल की जाती है, शायद मालगुजारी भी उतनी सख्ती से नहीं वसूल की जाती। महीने में एक दिन नियत कर दिया जाता है। उस दिन फीस का दाखिला होना अनिवार्य है। या तो …

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