रंगभूमि अध्याय 44 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 44 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 44 गंगा से लौटते दिन के नौ बज गए। हजारों आदमियों का जमघट, गलियाँ तंग और कीचड़ से भरी हुई, पग-पग पर फूलों की वर्षा, सेवक-दल का राष्ट्रीय संगीत, गंगा तक पहुँचते-पहुँचते ही सबेरा हो गया था। लौटते हुए जाह्नवी ने कहा-चलो, जरा सूरदास को देखते चलें, न जाने मरा या बचा; सुनती …

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रंगभूमि अध्याय 43 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 43 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 43 सोफिया के धार्मिक विचार, उसका आचार-व्यवहार, रहन-सहन, उसकी शिक्षा-दीक्षा, ये सभी बातें ऐसी थीं, जिनसे एक हिंदू महिला को घृणा हो सकती थी। पर इतने दिनों के अनुभव ने रानीजी की सभी शंकाओं का समाधान कर दिया। सोफिया अभी तक हिंदू धर्म में विधिवत् दीक्षित न हुई थी, पर उसका आचरण पूर्ण …

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रंगभूमि अध्याय 42 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 42 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 42 अदालत ने अगर दोनों युवकों को कठिन दंड दिया, तो जनता ने भी सूरदास को उससे कम कठिन दंड न दिया। चारों ओर थुड़ी-थुड़ी होने लगी। मुहल्लेवालों का तो कहना ही क्या, आस-पास के गाँववाले भी दो-चार खोटी-खरी सुना जाते थे-माँगता तो है भीख, पर अपने को कितना लगाता है? जरा चार …

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रंगभूमि अध्याय 41 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 41 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 41 प्रभु सेवक ने तीन वर्ष अमेरिका में रहकर और हजारों रुपये खर्च करके जो अनुभव और ज्ञान प्राप्त किया था, वह मि. जॉन सेवक ने उनकी संगति से उतने ही महीनों में प्राप्त कर लिया। इतना ही नहीं, प्रभु सेवक की भाँति वह केवल बतलाए हुए मार्ग पर आँखें बंद करके चलने …

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रंगभूमि अध्याय 40 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 40 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 40 मिल के तैयार होने में अब बहुत थोड़ी कसर रह गई थी। बाहर से तम्बाकू की गाड़ियाँ लदी चली आती थीं। किसानों को तम्बाकू बोने के लिए दादनी दी जा रही थी। गवर्नर से मिल को खोलने की रस्म अदा करने के लिए प्रार्थना की गई थी और उन्होंने स्वीकार भी कर …

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रंगभूमि अध्याय 39 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 39 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 39 तीसरे दिन यात्रा समाप्त हो गई, तो संधया हो चुकी थी। सोफिया और विनय दोनों डरते हुए गाड़ी से उतरे कि कहीं किसी परिचित आदमी से भेंट न हो जाए। सोफिया ने सेवा-भवन (विनयसिंह के घर) चलने का विचार किया; लेकिन आज वह बहुत कातर हो रही थी। रानीजी न जाने कैसे …

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रंगभूमि अध्याय 38 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 38 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 38 सोफिया और विनय रात-भर तो स्टेशन पर पड़े रहे। सबेरे समीप के गाँव में गए, जो भीलों की एक छोटी-सी बस्ती थी। सोफिया को यह स्थान बहुत पसंद आया। बस्ती के सिर पर पहाड़ का साया था, पैरों के नीचे एक पहाड़ी नाला मीठा राग गाता हुआ बहता था। भीलों के छोटे-छोटे …

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रंगभूमि अध्याय 37 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 37 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 37 प्रभु सेवक बड़े उत्साही आदमी थे। उनके हाथ से सेवक-दल में एक नई सजीवता का संचार हुआ। संख्या दिन-दिन बढ़ने लगी। जो लोग शिथिल और उदासीन हो रहे थे, फिर नए जोश से काम करने लगे। प्रभु सेवक की सज्जनता और सहृदयता सभी को मोहित कर लेती थी। इसके साथ ही अब …

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रंगभूमि अध्याय 36 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 36 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 36 मिस्टर जॉन सेवक ने ताहिर अली की मेहनत और ईमानदारी से प्रसन्न होकर खालों पर कुछ कमीशन नियत कर दिया था। इससे अब उनकी आय अच्छी हो गई थी, जिससे मिल के मजदूरों पर उनका रोब था, ओवरसियर और छोटे-छोटे क्लर्क उनका लिहाज करते थे। लेकिन आय-वृध्दि के साथ उनके व्यय में …

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रंगभूमि अध्याय 35 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 35 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 35 विनयसिंह आबादी में दाखिल हुए, तो सबेरा हो गया था। थोड़ी दूर चले थे कि एक बुढ़िया लाठी टेकती सामने से आती हुई दिखाई दी। इन्हें देखकर बोली-बेटा, गरीब हूँ। बन पडे, तो कुछ दे दो। धरम होगा।नायकराम-सवेरे राम-नाम नहीं लेती, भीख माँगने चल खड़ी हुई। तुझे तो जैसे रात को नींद …

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