रंगभूमि अध्याय 44 : मुंशी प्रेमचंद
रंगभूमि अध्याय 44 गंगा से लौटते दिन के नौ बज गए। हजारों आदमियों का जमघट, गलियाँ तंग और कीचड़ से भरी हुई, पग-पग पर फूलों की वर्षा, सेवक-दल का राष्ट्रीय संगीत, गंगा तक पहुँचते-पहुँचते ही सबेरा हो गया था। लौटते हुए जाह्नवी ने कहा-चलो, जरा सूरदास को देखते चलें, न जाने मरा या बचा; सुनती …