नदिया- अनिता सुधीर आख्या
कल-कल करके नदिया बहती।
हर-पल हर-क्षण बहती रहती।।
धरती की प्यास बुझाने में
अपनी गाथा सबसे कहती।।
ऊँचे पर्वत से आती हूँ।
टेढ़ा-मेढ़ा पथ पाती हूँ।।
गाँव शहर से होते-होते
सागर को गले लगाती हूँ।।
नही बिजूके से डरती हूँ।
खेतो में पानी भरती हूँ।
गेहूँ की बाली फिर झूमे
सपनों को पूरा करती हूँ।।
नालों का कूड़ा भरते हैं।
कब परिणामों से डरते हैं।।
गंदा पानी हो जाता तब
मुझको मैला क्यों करते हैं।।
सदियों से मैं पूजी जाती।
ऋषियों मुनियों का तप पाती।।
बाँध सरोवर मुझ पर बनते
जीवन को नित सुखी बनाती।।