अपना ही गणतंत्र है बंधु- हिन्दी कविता -प्रो. अजहर हाशमी

अपना ही गणतंत्र है बंधु

अपना ही गणतंत्र है बंधु!

कभी ‘गांव का ग्वाला’ जैसा,
कभी ‘शहर की बाला’ जैसा,
कभी ‘जीभ पर ताला’ जैसा,
कभी ‘शोर की शाला’ जैसा,
रुकता-चलता यंत्र है बंधु!
अपना ही गणतंत्र है बंधु!

कभी ‘पांव का छाला’ जैसा,
कभी ‘पांव का छाला’ जैसा,
कभी ‘एकदम आला’ जैसा,
‘उत्सव का उजियाला’ जैसा,
खट्टा मीठा तंत्र है बंधु!
अपना ही गणतंत्र है बंधु !

कभी ‘धनिक का माली’ जैसा,
कभी ‘श्रमिक की थाली’ जैसा,
कभी ‘भोर की लाली’ जैसा
कभी ‘अमावस काली’ जैसा,
साझे का संयंत्र है बंधु!
अपना ही गणतंत्र है बंधु!

कभी ‘जाप की माला’ जैसा,
कभी ‘प्रेम का प्याला’ जैसा,
‘बच्चन की मधुशाला’ जैसा,
‘धूमिल और निराला’ जैसा,
जन-गण-मन का मंत्र है बंधु!
अपना ही गणतंत्र है बंधु!

 

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