बेचैनी की रात- कैदी कविराय की कुण्डलियाँ (हिन्दी कविता) : अटल बिहारी वाजपेयी

बेचैनी की रात

बेचैनी की रात,
प्रात भी नहीं सुहाता;
घिरी घटा घनघोर,
न कोई पंछी गाता;
तन भारी, मन खिन्न,
जागता दर्द पुराना;
सब अपने में मस्त,
पराया कष्ट न जाना;
कह कैदी कविराय,
बुरे दिन आने वाले;
रह लेंगे जैसा,
रखेगा ऊपर वाले!

Leave a Comment