देखो हम बढ़ते ही जाते- विविध के स्वर-(हिन्दी कविता)-मेरी इक्यावन कविताएँ – अटल बिहारी वाजपेयी

देखो हम बढ़ते ही जाते

बढ़ते जाते देखो हम बढ़ते ही जाते॥

उज्वलतर उज्वलतम होती है
महासंगठन की ज्वाला
प्रतिपल बढ़ती ही जाती है
चंडी के मुंडों की माला
यह नागपुर से लगी आग
ज्योतित भारत मां का सुहाग
उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिम
दिश दिश गूंजा संगठन राग
केशव के जीवन का पराग
अंतस्थल की अवरुद्ध आग
भगवा ध्वज का संदेश त्याग
वन विजनकान्त नगरीय शान्त
पंजाब सिंधु संयुक्त प्रांत
केरल कर्नाटक और बिहार
कर पार चला संगठन राग
हिन्दु हिन्दु मिलते जाते
देखो हम बढ़ते ही जाते ॥१॥

यह माधव अथवा महादेव ने
जटा जूट में धारण कर
मस्तक पर धर झर झर निर्झर
आप्लावित तन मन प्राण प्राण
हिन्दु ने निज को पहचाना
कर्तव्य कर्म शर सन्धाना
है ध्येय दूर संसार क्रूर मद मत्त चूर
पथ भरा शूल जीवन दुकूल
जननी के पग की तनिक धूल
माथे पर ले चल दिये सभी मद माते
बढ़ते जाते देखो हम बढ़ते ही जाते॥॥२॥

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