जम्मू की पुकार
अत्याचारी ने आज पुनः ललकारा, अन्यायी का चलता है, दमन-दुधारा।
आँखों के आगे सत्य मिटा जाता है, भारतमाता का शीश कटा जाता है॥
क्या पुनः देश टुकड़ों में बँट जाएगा? क्या सबका शोणित पानी बन जाएगा?
कब तक दानव की माया चलने देंगे? कब तक भस्मासुर को हम छलने देंगे?
कब तक जम्मू को यों ही जलने देंगे? कब तक जुल्मों की मदिरा ढलने देंगे?
चुपचाप सहेंगे कब तक लाठी गोली? कब तक खेलेंगे दुश्मन खूं से होली?
प्रहलाद परीक्षा की बेला अब आई, होलिका बनी देखो अब्दुल्लाशाही।
माँ-बहनों का अपमान सहेंगे कब तक? भोले पांडव चुपचाप रहेंगे कब तक?
आखिर सहने की भी सीमा होती है, सागर के उर में भी ज्वाला सोती है।
मलयानिल कभी बवंडर बन ही जाता, भोले शिव का तीसरा नेत्र खुल जाता॥
जिनको जन-धन से मोह प्राण से ममता, वे दूर रहें अब ‘पान्चजन्य’ है बजता।
जो विमुख युद्ध से, हठी क्रूर, कादर है, रणभेरी सुन कम्पित जिन के अंतर हैं ।
वे दूर रहे, चूड़ियाँ पहन घर बैठें, बहनें थूकें, माताएं कान उमेठें
जो मानसिंह के वंशज सम्मुख आयें, फिर एक बार घर में ही आग लगाएं।
पर अन्यायी की लंका अब न रहेगी, आने वाली संतानें यूँ न कहेगी।
पुत्रो के रहते का जननि का माथा, चुप रहे देखते अन्यायों की गाथा।
अब शोणित से इतिहास नया लिखना है, बलि-पथ पर निर्भय पाँव आज रखना है।
आओ खण्डित भारत के वासी आओ, काश्मीर बुलाता, त्याग उदासी आओ॥
शंकर का मठ, कल्हण का काव्य जगाता, जम्मू का कण-कण त्राहि-त्राहि चिल्लाता।
लो सुनो, शहीदों की पुकार आती है, अत्याचारी की सत्ता थर्राती है॥
उजड़े सुहाग की लाली तुम्हें बुलाती, अधजली चिता मतवाली तुम्हें जगाती।
अस्थियाँ शहीदों की देतीं आमन्त्रण, बलिवेदी पर कर दो सर्वस्व समर्पण॥
कारागारों की दीवारों का न्योता, कैसी दुर्बलता अब कैसा समझोता ?
हाथों में लेकर प्राण चलो मतवालों, सिने में लेकर आग चलो प्रनवालो।
जो कदम बाधा अब पीछे नहीं हटेगा, बच्चा – बच्चा हँस – हँस कर मरे मिटेगा ।
वर्षो के बाद आज बलि का दिन आया, अन्याय – न्याय का चिर – संघर्षण आया ।
फिर एक बात भारत की किस्मत जागी, जनता जागी, अपमानित अस्मत जागी।
देखो स्वदेश की कीर्ति न कम हो जाये, कण – कण पर फिर बलि की छाया छा जाए।