नये वर्ष की नई सुबह
जीभ, मधुर फुलवारी रख ।
कोमलता की क्यारी रख ।
नये वर्ष की नई सुबह
शुभता की तैयारी रख ।
सुख का साधक बन लेकिन
दुखियों से भी यारी रख ।
मातृ -भूमि के चरणों में
तन, मन, पूंजी सारी रख ।
वन है धरती की गर्दन
गर्दन पर मत आरी रख ।
मिट्टी, पंछी, नदी बचा
पुण्य-कर्म यह जारी रख ।