गीत नया गाता हूँ-अनुभूति के स्वर-(हिन्दी कविता)-मेरी इक्यावन कविताएँ – अटल बिहारी वाजपेयी

गीत नया गाता हूँ-अनुभूति के स्वर-(हिन्दी कविता)-मेरी इक्यावन कविताएँ – अटल बिहारी वाजपेयी

गीत नया गाता हूँ गीत नया गाता हूँ टूटे हुए तारों से फूटे बासंती स्वर पत्थर की छाती मे उग आया नव अंकुर झरे सब पीले पात कोयल की कुहुक रात प्राची मे अरुणिम की रेख देख पता हूँ गीत नया गाता हूँ टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी अन्तर की चीर व्यथा पलकों …

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न मैं चुप हूँ न गाता हूँ-अनुभूति के स्वर-(हिन्दी कविता)-मेरी इक्यावन कविताएँ – अटल बिहारी वाजपेयी

न मैं चुप हूँ न गाता हूँ न मैं चुप हूँ न गाता हूँ सवेरा है मगर पूरब दिशा में घिर रहे बादल रूई से धुंधलके में मील के पत्थर पड़े घायल ठिठके पाँव ओझल गाँव जड़ता है न गतिमयता स्वयं को दूसरों की दृष्टि से मैं देख पाता हूँ न मैं चुप हूँ न …

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गीत नहीं गाता हूँ-अनुभूति के स्वर-(हिन्दी कविता)-मेरी इक्यावन कविताएँ – अटल बिहारी वाजपेयी

गीत नहीं गाता हूँ-अनुभूति के स्वर-(हिन्दी कविता)-मेरी इक्यावन कविताएँ – अटल बिहारी वाजपेयी

गीत नहीं गाता हूँ बेनकाब चेहरे हैं, दाग बड़े गहरे हैं, टूटता तिलस्म, आज सच से भय खाता हूँ । गीत नही गाता हूँ । लगी कुछ ऐसी नज़र, बिखरा शीशे सा शहर, अपनों के मेले में मीत नहीं पाता हूँ । गीत नहीं गाता हूँ । पीठ मे छुरी सा चाँद, राहु गया रेखा …

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पहचान-अनुभूति के स्वर-(हिन्दी कविता)-मेरी इक्यावन कविताएँ – अटल बिहारी वाजपेयी

पहचान-अनुभूति के स्वर-(हिन्दी कविता)-मेरी इक्यावन कविताएँ – अटल बिहारी वाजपेयी

पहचान आदमी न ऊंचा होता है, न नीचा होता है, न बड़ा होता है, न छोटा होता है। आदमी सिर्फ आदमी होता है। पता नहीं, इस सीधे-सपाट सत्य को दुनिया क्यों नहीं जानती है? और अगर जानती है, तो मन से क्यों नहीं मानती इससे फर्क नहीं पड़ता कि आदमी कहां खड़ा है? पथ पर …

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हरी हरी दूब पर-अनुभूति के स्वर-(हिन्दी कविता)-मेरी इक्यावन कविताएँ – अटल बिहारी वाजपेयी

हरी हरी दूब पर-अनुभूति के स्वर-(हिन्दी कविता)-मेरी इक्यावन कविताएँ – अटल बिहारी वाजपेयी

हरी हरी दूब पर हरी हरी दूब पर ओस की बूंदे अभी थी, अभी नहीं हैं। ऐसी खुशियाँ जो हमेशा हमारा साथ दें कभी नहीं थी, कहीं नहीं हैं। क्काँयर की कोख से फूटा बाल सूर्य, जब पूरब की गोद में पाँव फैलाने लगा, तो मेरी बगीची का पत्ता-पत्ता जगमगाने लगा, मैं उगते सूर्य को …

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आओ फिर से दिया जलाएँ-अनुभूति के स्वर-(हिन्दी कविता)-मेरी इक्यावन कविताएँ – अटल बिहारी वाजपेयी

आओ फिर से दिया जलाएँ-अनुभूति के स्वर-(हिन्दी कविता)-मेरी इक्यावन कविताएँ – अटल बिहारी वाजपेयी

आओ फिर से दिया जलाएँ आओ फिर से दिया जलाएँ भरी दुपहरी में अंधियारा सूरज परछाई से हारा अंतरतम का नेह निचोड़ें- बुझी हुई बाती सुलगाएँ। आओ फिर से दिया जलाएँ हम पड़ाव को समझे मंज़िल लक्ष्य हुआ आंखों से ओझल वतर्मान के मोहजाल में- आने वाला कल न भुलाएँ। आओ फिर से दिया जलाएँ। …

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अनुशासन के नाम पर- कैदी कविराय की कुण्डलियाँ (हिन्दी कविता) : अटल बिहारी वाजपेयी —

अनुशासन के नाम पर- कैदी कविराय की कुण्डलियाँ (हिन्दी कविता) : अटल बिहारी वाजपेयी —

अनुशासन के नाम पर अनुशासन के नाम पर अनुशासन का खून भंग कर दिया संघ को कैसा चढ़ा जुनून कैसा चढ़ा जुनून मातृ-पूजा प्रतिबंधित कुलटा करती केशव-कुल की कीर्ति कलंकित कह कैदी कविराय, तोड़ कानूनी कारा गूंजेगा भारत माता की जय का नारा।

धधकता गंगाजल है- कैदी कविराय की कुण्डलियाँ (हिन्दी कविता) : अटल बिहारी वाजपेयी —

धधकता गंगाजल है- कैदी कविराय की कुण्डलियाँ (हिन्दी कविता) : अटल बिहारी वाजपेयी —

धधकता गंगाजल है जे. पी. डारे जेल में, ताको यह परिणाम, पटना में परलै भई, डूबे धरती धाम। डूबे धरती धाम मच्यो कोहराम चतुर्दिक, शासन के पापन को परजा ढोवे धिक-धिक। कह कैदी कविराय प्रकृति का कोप प्रबल है, जयप्रकाश के लिए धधकता गंगाजल है।

न्यूयॉर्क- कैदी कविराय की कुण्डलियाँ (हिन्दी कविता) : अटल बिहारी वाजपेयी —

न्यूयॉर्क- कैदी कविराय की कुण्डलियाँ (हिन्दी कविता) : अटल बिहारी वाजपेयी —

न्यूयॉर्क मायानगरी देख ली, इन्द्रजाल की रात; आसमान को चूमती, धरती की बारात; धरती की बारात, रूप का रंग निखरता; रस का पारावार, डूबता हृदय उबरता; कह कैदी कविराय, बिकाऊ यहां जिंदगी; चमक-दमक में छिपी, गरीबी और गन्दगी!

पद ने जकड़ा- कैदी कविराय की कुण्डलियाँ (हिन्दी कविता) : अटल बिहारी वाजपेयी

पद ने जकड़ा- कैदी कविराय की कुण्डलियाँ (हिन्दी कविता) : अटल बिहारी वाजपेयी

पद ने जकड़ा पहले पहरेदार थे, अब भी पहरेदार; तब थे तेवर तानते, अब झुकते हर बार; अब झुकते हर बार, वक्त की है बलिहारी; नजर चढ़ाने वालों ने ही, नजर उतारी; कह कैदी कविराय, पुनः बंधन ने जकड़ा; पहले मद ने और आजकल, पद ने जकड़ा.