बजेगी रण की भेरी- कैदी कविराय की कुण्डलियाँ (हिन्दी कविता) : अटल बिहारी वाजपेयी
बजेगी रण की भेरी दिल्ली के दरबार में, कौरव का है ज़ोर; लोक्तंत्र की द्रौपदी, रोती नयन निचोर; रोती नयन निचोर नहीं कोई रखवाला; नए भीष्म, द्रोणों ने मुख पर ताला डाला; कह कैदी कविराय, बजेगी रण की भेरी; कोटि-कोटि जनता न रहेगी बनकर चेरी।