बाप- हिन्दी कविता -प्रो. अजहर हाशमी
बाप पर्वत – शिखर – सा बाप, है सिंधु सा गहन भी, रिश्तों को निभाता है, निभाता है वचन भी। झिड़की भी,नसीहत भी, मृदुल-मीठी डांट भी, बच्चों के लिए बाप दुआओं का चमन भी। परिवार के हित के लिए पीड़ा की पोटली, नित बाप उठाता भी है,करता है वहन भी। तूफान तनावों के मुस्कुराके झेलता, …