हमारे समय में- अनन्त मिश्र

हमारे समय में- अनन्त मिश्र

हमारे समय में हमारे समय में क्रांति भी एक फैशन है सत्य, अहिंसा, करुणा और दलितोद्धार स्त्री-विमर्श और गाँव के प्रति जिम्मेदारी। हमारे समय में भक्ति भी एक फैशन है सत्संग, ईश्वर और सहविचार। प्रेम और मोह सभी फैशन की तरह यहाँ तक कि गांधीवाद यथार्थवाद अंतिम व्यक्ति की चिंता और लाचारी। हमारा समय कुछ …

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मकान – अनन्त मिश्र

मकान – अनन्त मिश्र

मकान – अनन्त मिश्र आदमी के ऊपर छत होनी ही चाहिए वह घरेलू महिला हमेशा मिलने पर कहती है उसका बंगला नया है उसके नौकर उसके लान की सोहबत ठीक करते हैं और वह अपने ड्राइंगरूम को हमेशा सजाती रहती है। मैंने नीले आसमान के नीचे खड़े हो कर अनुभव किया कि छत मेरे सिर …

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बूढ़ा देश- अनन्त मिश्र

बूढ़ा देश- अनन्त मिश्र

बूढ़ा देश बूढ़ा देश- अनन्त मिश्र बच कर निकल गई हाथ आई जिंदगी मछली जैसे पकड़ में आई-आई फिसल गई। चुप चाप मृत्यु की प्रतीक्षा में बैठा बूढ़ा आदमी कब तक नाती-पोतों का मुँह देखता रहेगा दवाई और रोग पेट की कमजोरी हड्डियों का कड़कड़ापन और अतीत का बोझ वर्तमान में रहने नहीं देता। मेरा …

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चुप रहने दो मुझे- अनन्त मिश्र

चुप रहने दो मुझे- अनन्त मिश्र

चुप रहने दो मुझे समाधि के स्वाद की तरह मौन के आस-पास शब्द छोटे-छोटे बच्चों की भाँति उधम मचाते हैं उन्हें देखने की चेष्टा में मैं असहजता का अनुभव करता हूँ , क्या कर सकता हूँ मंदिर के सामने मंगलवार के दिन पंक्तिबद्ध दरिद्रों, अपंगों, कोढ़ियों के लिए मैं कुछ भी तो नहीं कर सकता …

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कृपया धीरे चलिए- अनन्त मिश्र

कृपया धीरे चलिए- अनन्त मिश्र

कृपया धीरे चलिए मुझे किसी महाकवि ने नहीं लिखा सड़कों के किनारे मटमैले बोर्ड पर लाल-लाल अक्षरों में बल्कि किसी मामूली पेंटर कर्मचारी ने मजदूरी के बदले यहाँ वहाँ लिख दिया जहाँ-जहाँ पुल कमजोर थे जहाँ-जहाँ जिंदगी की भागती सड़कों पर अंधा मोड़ था त्वरित घुमाव था घनी आबादी को चीर कर सनसनाती आगे निकल …

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उपदेश बरक्स चुप्पी- अनन्त मिश्र

उपदेश बरक्स चुप्पी- अनन्त मिश्र

उपदेश बरक्स चुप्पी- अनन्त मिश्र वे जो उपदेश दिया करते हैं उनके ऊपर दिखता तो नहीं पर गँजा रहता है बोरे का बोरा शास्त्र, किताबों का कचरा जिसे हजम कर वे उसका सब प्रतिफल बाँट दिया करते हैं। मैं चुप रहता हूँ मुझे सूझता नहीं किनारा, लौट कर आता हूँ और धीरे-धीरे फिर से जीवन …

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आदमी और बाकी सब – अनन्त मिश्र

आदमी और बाकी सब – अनन्त मिश्र

आदमी और बाकी सब – अनन्त मिश्र झुकी हुई औरत गर्दन पर बाल खोलती है दिख गए मर्द को देखती है और अंदर भाग जाती है, औरत जब मर्द देखती है तो अंग छुपाती है मर्द जब औरत को देखता है तो सीना फुलाता है, चिड़िया जब चिड़िया को देखती है चहचहाती है, मैंने पेड़ …

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असफलता – अनन्त मिश्र

असफलता – अनन्त मिश्र

असफलता – अनन्त मिश्र लो फिर मैं छटपटाने लगा और हुआ मैं कहने को उतावला वह मैं कैसे कहूँ जो मैं कहना चाहता हूँ खोजता हूँ शब्द मैं अपनी त्वचा से आँखों से, नाक से पेट से, दिल से नब्ज में आए शब्द मिलते नहीं कहीं से। खोजता हूँ धीरे-धीरे अपने को जैसे कोई खोल …

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अखबारी आदमी – अनन्त मिश्र

अखबारी आदमी – अनन्त मिश्र

अखबारी आदमी – अनन्त मिश्र वह चीखता ऐसे है जैसे छप रहा हो और जब हँसता है तो उसे मशीन से अखबार की तरह लद-लद गिरते देखा जा सकता है, वह इकट्ठा होता है अपने वजूद में बंडल का बंडल सबसे आँख लड़ाती बेहया औरत की तरह वह इतना प्रसिद्ध होता है कि दिन भर …

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पहले और अब- अनन्त मिश्र

पहले और अब- अनन्त मिश्र

पहले और अब- अनन्त मिश्र पहले माँ के हाथ की महकते घी में चुपड़ी रोटी थी गुड़ था, पहले पीठ पर बस्ता था साथ में भेली-भूजा लड़कों का साथ था पैदल स्कूल जाते हुए मंजिल के लिए बड़े-बड़े पेड़ों के निशान थे, पहले कुआँ था पोखरा भी दोपहरी में तैरना था लौटकर आने पर पिता …

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