हीराबाई वा बेहयाई का बोरका ( उपन्यास) : किशोरी लाल गोस्वामी

हीराबाई वा बेहयाई का बोरका ( उपन्यास) : किशोरी लाल गोस्वामी

Contents1 पहिला परिच्छेद : अत्याचार2 दूसरा परिच्छेद : छुटकारा3 तीसरा परिच्छेद : बहकावट4 चौथा परिच्छेद : धमकी5 पांचवां परिच्छेद : दृढ़ता6 छठवां परिच्छेद : प्रत्युपकार7 सातवां परिच्छेद : परिचय8 आठवां परिच्छेद : आत्मबलि9 नवां परिच्छेद : प्रपंच10 दसवां परिच्छेद : अन्त11 ग्यारहवां परिच्छेद : स्मृति हीराबाई वा बेहयाई का बोरका ( उपन्यास) : किशोरी लाल …

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खूनी औरत का सात खून : किशोरी लाल गोस्वामी Part 3

खूनी औरत का सात खून : किशोरी लाल गोस्वामी Part 3

Contents1 तेहरवाँ परिच्छेद : दो सज्जन2 चौदहवाँ परिच्छेद : दैवी विचित्रा गति:!3 पंद्रहवाँ परिच्छेद : खून की रात !4 सोलहवाँ परिच्छेद : बन्दिनी!5 सत्रहवाँ परिच्छेद : हाजत में खूनी औरत का सात खून : किशोरी लाल गोस्वामी Part 3 तेहरवाँ परिच्छेद : दो सज्जन उस बदजात थानेदार के जाने पर वे दोनों चौकीदार मुझसे बातचीत …

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खूनी औरत का सात खून : किशोरी लाल गोस्वामी Part 2

खूनी औरत का सात खून : किशोरी लाल गोस्वामी Part 2

Contents1 सातवाँ परिच्छेद : हितोपदेश2 आठवाँ परिच्छेद : दुर्दैव3 नवाँ परिच्छेद : प्रलोभन4 दसवाँ परिच्छेद : साया5 ग्यारहवाँ परिच्छेद : दुःख पर दुःख6 बारहवाँ परिच्छेद : हवालात खूनी औरत का सात खून : किशोरी लाल गोस्वामी Part 2 सातवाँ परिच्छेद : हितोपदेश माता मित्रं पिता चेति स्वभावात् त्रितयं हितम्। कार्यकारणतश्चान्ये भवन्ति हितबुद्धयः॥ (हितोपदेशे) यों कहकर …

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खूनी औरत का सात खून : किशोरी लाल गोस्वामी Part 1

खूनी औरत का सात खून : किशोरी लाल गोस्वामी

Contents1 प्रथम परिच्छेद : घोर विपत्ति2 द्वितीय परिच्छेद : आशा का अंकुर3 तृतीय परिच्छेद : अयाचित बन्धु4 चतुर्थ परिच्छेद : नई कोठरी5 पाँचवाँ परिच्छेद : सहायक6 छठवाँ परिच्छेद : सज्जनता खूनी औरत का सात खून : किशोरी लाल गोस्वामी Part 1 प्रथम परिच्छेद : घोर विपत्ति “आकाशमुत्पततु गच्छतु वा दिगन्त- मम्बोनिधिं विशतु तिष्ठतु वा यथेच्छम्॥ …

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कंकाल (उपन्यास) चतुर्थ खंड : जयशंकर प्रसाद

कंकाल (उपन्यास) चतुर्थ खंड : जयशंकर प्रसाद

कंकाल (उपन्यास) चतुर्थ खंड : जयशंकर प्रसाद (1) वह दरिद्रता और अभाव के गार्हस्थ्य जीवन की कटुता में दुलारा गया था। उसकी माँ चाहती थी कि वह अपने हाथ से दो रोटी कमा लेने के योग्य बन जाए, इसलिए वह बार-बार झिड़की सुनता। जब क्रोध से उसके आँसू निकलते और जब उन्हें अधरों से पोंछ …

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कंकाल (उपन्यास) तृतीय खंड : जयशंकर प्रसाद

कंकाल (उपन्यास) तृतीय खंड : जयशंकर प्रसाद

कंकाल (उपन्यास) तृतीय खंड : जयशंकर प्रसाद (1) श्रीचन्द्र का एकमात्र अन्तरंग सखा धन था, क्योंकि उसके कौटुम्बिक जीवन में कोई आनन्द नहीं रह गया था। वह अपने व्यवसाय को लेकर मस्त रहता। लाखों का हेर-फेर करने में उसे उतना ही सुख मिलता जितना किसी विलासी को विलास में। काम से छुट्टी पाने पर थकावट …

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कंकाल (उपन्यास) द्वितीय खंड : जयशंकर प्रसाद

कंकाल (उपन्यास) द्वितीय खंड : जयशंकर प्रसाद

कंकाल (उपन्यास) द्वितीय खंड : जयशंकर प्रसाद (1) एक ओर तो जल बरस रहा था, पुरवाई से बूँदें तिरछी होकर गिर रही थीं, उधर पश्चिम में चौथे पहर की पीली धूप उनमें केसर घोल रही थी। मथुरा से वृन्दावन आने वाली सड़क पर एक घर की छत पर यमुना चादर तान रही थी। दालान में …

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कंकाल (उपन्यास) प्रथम खंड : जयशंकर प्रसाद

कंकाल (उपन्यास) प्रथम खंड : जयशंकर प्रसाद

कंकाल (उपन्यास) प्रथम खंड : जयशंकर प्रसाद (1) प्रतिष्ठान के खँडहर में और गंगा-तट की सिकता-भूमि में अनेक शिविर और फूस के झोंपड़े खड़े हैं। माघ की अमावस्या की गोधूली में प्रयाग में बाँध पर प्रभात का-सा जनरव और कोलाहल तथा धर्म लूटने की धूम कम हो गयी है; परन्तु बहुत-से घायल और कुचले हुए …

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तितली (उपन्यास) चतुर्थ खंड : जयशंकर प्रसाद

तितली (उपन्यास) चतुर्थ खंड : जयशंकर प्रसाद

तितली (उपन्यास) चतुर्थ खंड : जयशंकर प्रसाद 1 मधुबन और रामदीन दोनों ही, उस गार्ड की दया से, लोको ऑफिस में कोयला ढोने की नौकरी पा गए। हबड़ा के जनाकीर्ण स्‍थान में उन दोनों ने अपने को ऐसा छिपा लिया, जैसे मधु-मक्खियों के छत्ते में कोई मक्‍खी। उन्‍हें यहाँ कौन पहचान सकता था। सारा शरीर …

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