प्रेमा भाग 1-प्रेमा भाग 8 (प्रेमा (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद_

प्रेमा भाग 1

प्रेमा भाग 1-प्रेमा भाग 8 प्रेमा भाग 1सच्ची उदारता संध्या का समय है, डूबने वाले सूर्य की सुनहरी किरणें रंगीन शीशो की आड़ से, एक अंग्रेजी ढंग पर सजे हुए कमरे में झॉँक रही हैं जिससे सारा कमरा रंगीन हो रहा है। अंग्रेजी ढ़ंग की मनोहर तसवीरें, जो दीवारों से लटक रहीं है, इस समय …

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रंगभूमि अध्याय 50 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 50 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 50 कुँवर विनयसिंह की वीर मृत्यु के पश्चात रानी जाह्नवी का सदुत्साह दुगुना हो गया। वह पहले से कहीं ज्यादा क्रियाशील हो गईं। उनके रोम-रोम में असाधारण स्फूर्ति का विकास हुआ। वृध्दावस्था की आलस्यप्रियता यौवन-काल की कर्मण्यता में परिणत हो गई। कमर बाँधी और सेवक-दल का संचालन अपने हाथ में लिया। रनिवास छोड़ …

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रंगभूमि अध्याय 49 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 49 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 49 इधर सूरदास के स्मारक के लिए चंदा जमा किया जा रहा था, उधर कुलियों के टोले में शिलान्यास की तैयारियाँ हो रही थीं। नगर के गण्यमान्य पुरुष निमंत्रित हुए थे। प्रांत के गवर्नर से शिला-स्थापना की प्रार्थना की गई थी। एक गार्डन पार्टी होनेवाली थी। गवर्नर महोदय को अभिनंदन-पत्र दिया जानेवाला था। …

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रंगभूमि अध्याय 48 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 48 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 48 काशी के म्युनिसिपल बोर्ड में भिन्न-भिन्न राजनीतिक सम्प्रदायों के लोग मौजूद थे। एकवाद से लेकर जनसत्तावाद तक सभी विचारों के कुछ-न-कुछ आदमी थे। अभी तक धन का प्राधान्य नहीं था, महाजनों और रईसों का राज्य था। जनसत्ता के अनुयाई शक्तिहीन थे। उन्हें सिर उठाने का साहस न होता था। राजा महेंद्रकुमार की …

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रंगभूमि अध्याय 47 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 47 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 47 संधया हो गई थी। मिल के मजदूर छुट्टी पा गए थे। आजकल दूनी मजदूरी देने पर भी बहुत थोड़े मजदूर काम करने आते थे। पाँड़ेपुर में सन्नाटा छाया हुआ था। वहाँ अब मकानों के भग्नावशेष के सिवा कुछ नजर न आता था। हाँ, वृक्ष अभी तक ज्यों-के-त्यों खड़े थे। वह छोटा-सा नीम …

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रंगभूमि अध्याय 46 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 46 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 46 चारों आदमी शफाखाने पहुँचे, तो नौ बज चुके थे। आकाश निद्रा में मग्न, आँखें बंद किए पड़ा हुआ था, पर पृथ्वी जाग रही थी। भैरों खड़ा सूरदास को पंखा झल रहा था। लोगों को देखते ही उसकी आँखों से आँसू गिरने लगे। सिरहाने की ओर कुर्सी पर बैठी हुई सोफिया चिंताकुल नेत्रों …

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रंगभूमि अध्याय 45 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 45 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 45 पाँड़ेपुर में गोरखे अभी तक पड़ाव डाले हुए थे। उनके उपलों के जलने से चारों तरफ धुआँ छाया हुआ था। उस श्यामावरण में बस्ती के ख्रडहर भयानक मालूम होते थे। यहाँ अब भी दिन में दर्शकों की भीड़ रहती थी। नगर में शायद ही कोई ऐसा आदमी होगा, जो इन दो-तीन दिनों …

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रंगभूमि अध्याय 44 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 44 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 44 गंगा से लौटते दिन के नौ बज गए। हजारों आदमियों का जमघट, गलियाँ तंग और कीचड़ से भरी हुई, पग-पग पर फूलों की वर्षा, सेवक-दल का राष्ट्रीय संगीत, गंगा तक पहुँचते-पहुँचते ही सबेरा हो गया था। लौटते हुए जाह्नवी ने कहा-चलो, जरा सूरदास को देखते चलें, न जाने मरा या बचा; सुनती …

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रंगभूमि अध्याय 43 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 43 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 43 सोफिया के धार्मिक विचार, उसका आचार-व्यवहार, रहन-सहन, उसकी शिक्षा-दीक्षा, ये सभी बातें ऐसी थीं, जिनसे एक हिंदू महिला को घृणा हो सकती थी। पर इतने दिनों के अनुभव ने रानीजी की सभी शंकाओं का समाधान कर दिया। सोफिया अभी तक हिंदू धर्म में विधिवत् दीक्षित न हुई थी, पर उसका आचरण पूर्ण …

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