रंगभूमि अध्याय 22 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 22 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 22 सैयद ताहिर अली को पूरी आशा थी कि जब सिगरेट का कारखाना बनना शुरू हो जाएगा, तो मेरी कुछ-न-कुछ तरक्की हो जाएगी। मि. सेवक ने उन्हें इसका वचन दिया था। इस आशा के सिवा उन्हें अब तक ऋणों को चुकाने का कोई उपाय न नजर आता था, जो दिनों-दिन बरसात की घास …

Read more

रंगभूमि अध्याय 21 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 21 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 21 सूरदास के आर्तनाद ने महेंद्रकुमार की ख्याति और प्रतिष्ठा को जड़ से हिला दिया। वह आकाश से बातें करनेवाला कीर्ति-भवन क्षण-भर में धाराशायी हो गया। नगर के लोग उनकी सेवाओं को भूल-से गए। उनके उद्योग से नगर का कितना उपकार हुआ था, इसकी किसी को याद ही न रही। नगर की नालियाँ …

Read more

रंगभूमि अध्याय 20 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 20 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 20 मि. क्लार्क ने मोटर से उतरते ही अरदली को हुक्म दिया-डिप्टी साहब को फौरन हमारा सलाम दो। नाजिर, अहलमद और अन्य कर्मचारियों को भी तलब किया गया। सब-के-सब घबराए-यह आज असमय क्यों तलबी हुई, कोई गलती तो नहीं पकड़ी गई? किसी ने रिश्वत की शिकायत तो नहीं कर दी? बेचारों के हाथ-पाँव …

Read more

रंगभूमि अध्याय 19 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 19 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 19 सोफ़िया अपनी चिंताओं में ऐसी व्यस्त हो रही थी कि सूरदास को बिल्कुल भूल-सी गई थी। उसकी फरियाद सुनकर उसका हृदय काँप उठा। इस दीन प्राणी पर इतना घोर अत्याचार! उसकी दयालु प्रकृति यह अन्याय न सह सकी। सोचने लगी-सूरदास को इस विपत्ति से क्योंकर मुक्त करूँ? इसका उध्दार कैसे हो? अगर …

Read more

रंगभूमि अध्याय 18 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 18 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 18 सोफ़िया घर आई, तो उसके आत्मगौरव का पतन हो चुका था; अपनी ही निगाहों में गिर गई थी। उसे अब न रानी पर क्रोध था, न अपने माता-पिता पर। केवल अपनी आत्मा पर क्रोध था, जिसके हाथों उसकी इतनी दुर्गति हुई थी, जिसने उसे काँटों में उलझा दिया था। उसने निश्चय किया, …

Read more

रंगभूमि अध्याय 17 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 17 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 17 विनयसिंह छ: महीने से कारागार में पड़े हुए हैं। न डाकुओं का कुछ पता मिलता है और न उन पर अभियोग चलाया जाता है। अधिकारियों को अब भी भ्रम है कि इन्हीं के इशारे से डाका पड़ा था। इसीलिए वे उन पर नाना प्रकार के अत्याचार किया करते हैं। जब इस नीति …

Read more

रंगभूमि अध्याय 16 : मुंशी प्रेमचंद 

रंगभूमि अध्याय 16 : मुंशी प्रेमचंद 

रंगभूमि अध्याय 16 अरावली की पहाड़ियों में एक वट-वृक्ष के नीचे विनयसिंह बैठे हुए हैं। पावस ने उस जन-शून्य, कठोर, निष्प्रभ, पाषाणमय स्थान को प्रेम,प्रमोद और शोभा से मंडित कर दिया है, मानो कोई उजड़ा हुआ घर आबाद हो गया हो। किंतु विनय की दृष्टि इस प्राकृतिक सौंदर्य की ओर नहीं; वह चिंता की उस …

Read more

रंगभूमि अध्याय 15 : मुंशी प्रेमचंद 

रंगभूमि अध्याय 15 : मुंशी प्रेमचंद 

रंगभूमि अध्याय 15 राजा महेंद्रकुमार सिंह यद्यपि सिध्दांत के विषय में अधिकारियों से जौ-भर भी न दबते थे; पर गौण विषयों में वह अनायास उनसे विरोध करना व्यर्थ ही नहीं, जाति के लिए अनुपयुक्त भी समझते थे। उन्हें शांत नीति पर जितना विश्वास था, उतना उग्र नीति पर न था, विशेषत: इसलिए कि वह वर्तमान …

Read more

रंगभूमि अध्याय 14 : मुंशी प्रेमचंद 

रंगभूमि अध्याय 14 : मुंशी प्रेमचंद 

रंगभूमि अध्याय 14 सोफ़िया को होश आया तो वह अपने कमरे में चारपाई पर पड़ी हुई थी। कानों में रानी के अंतिम शब्द गूँज रहे थे-क्या यही सत्य की मीमांसा है? वह अपने को इस समय इतनी नीच समझ रही थी कि घर का मेहतर भी उसे गालियाँ देता, तो शायद सिर न उठाती। वह …

Read more

रंगभूमि अध्याय 13 : मुंशी प्रेमचंद 

रंगभूमि अध्याय 13 : मुंशी प्रेमचंद 

रंगभूमि अध्याय 13 विनयसिंह के जाने के बाद सोफ़िया को ऐसा प्रतीत होने लगा कि रानी जाह्नवी मुझसे खिंची हुई हैं। वह अब उसे पुस्तकें तथा पत्र पढ़ने या चिट्ठियाँ लिखने के लिए बहुत कम बुलातीं; उसके आचार-व्यवहार को संदिग्ध दृष्टि से देखतीं। यद्यपि अपनी बदगुमानी को वह यथासाधय प्रकट न होने देतीं, पर सोफी …

Read more