भूख के एहसास को शेरो-सुख़न तक ले चलो- अदम गोंडवी

भूख के एहसास को शेरो-सुख़न तक ले चलो- अदम गोंडवी

भूख के एहसास को शेरो-सुख़न तक ले चलो- अदम गोंडवी भूख के एहसास को शेरो-सुख़न तक ले चलो या अदब को मुफ़लिसों की अंजुमन तक ले चलो जो ग़ज़ल माशूक के जल्वों से वाक़िफ़ हो गयी उसको अब बेवा के माथे की शिकन तक ले चलो मुझको नज़्मो-ज़ब्त की तालीम देना बाद में पहले अपनी रहबरी …

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किसको उम्मीद थी जब रौशनी जवां होगी- अदम गोंडवी

किसको उम्मीद थी जब रौशनी जवां होगी- अदम गोंडवी

किसको उम्मीद थी जब रौशनी जवां होगी- अदम गोंडवी किसको उम्मीद थी जब रौशनी जवां होगी कल के बदनाम अंधेरों पे मेहरबां होगी खिले हैं फूल कटी छातियों की धरती पर फिर मेरे गीत में मासूमियत कहाँ होगी आप आयें तो कभी गाँव की चौपालों में मैं रहूँ या न रहूँ भूख मेज़बां होगी

ग़ज़ल को ले चलो अब गाँव के दिलकश नज़ारों में-  अदम गोंडवी

ग़ज़ल को ले चलो अब गाँव के दिलकश नज़ारों में-  अदम गोंडवी

ग़ज़ल को ले चलो अब गाँव के दिलकश नज़ारों में-  अदम गोंडवी ग़ज़ल को ले चलो अब गाँव के दिलकश नज़ारों में मुसल्‍सल फ़न का दम घुटता है इन अदबी इदारों में न इनमें वो कशिश होगी, न बू होगी, न रानाई खिलेंगे फूल बेशक लॉन की लंबी क़तारों में अदीबो! ठोस धरती की सतह …

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घर में ठण्डे चूल्हे पर अगर ख़ाली पतीली है-  अदम गोंडवी

घर में ठण्डे चूल्हे पर अगर ख़ाली पतीली है-  अदम गोंडवी

घर में ठण्डे चूल्हे पर अगर ख़ाली पतीली है –  अदम गोंडवी घर में ठण्डे चूल्हे पर अगर ख़ाली पतीली है । बताओ कैसे लिख दूँ धूप फागुन की नशीली है । भटकती है हमारे गाँव में गूँगी भिखारिन-सी, ये सुब‍हे-फ़रवरी बीमार पत्नी से भी पीली है । बग़ावत के कमल खिलते हैं दिल के …

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बेचता यूँ ही नहीं है आदमी ईमान को-  अदम गोंडवी

बेचता यूँ ही नहीं है आदमी ईमान को-  अदम गोंडवी

बेचता यूँ ही नहीं है आदमी ईमान को-  अदम गोंडवी बेचता यूँ ही नहीं है आदमी ईमान को, भूख ले जाती है ऐसे मोड़ पर इंसान को । सब्र की इक हद भी होती है तवज्जो दीजिए, गर्म रक्खें कब तलक नारों से दस्तरख़्वान को । शबनमी होंठों की गर्मी दे न पाएगी सुकून, पेट …

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हिन्दू या मुस्लिम के अहसासात को मत छेड़िये- अदम गोंडवी

हिन्दू या मुस्लिम के अहसासात को मत छेड़िये-  अदम गोंडवी

हिन्दू या मुस्लिम के अहसासात को मत छेड़िये- अदम गोंडवी हिन्दू या मुस्लिम के अहसासात को मत छेड़िये अपनी कुरसी के लिए जज्बात को मत छेड़िये हममें कोई हूण, कोई शक, कोई मंगोल है दफ़्न है जो बात, अब उस बात को मत छेड़िये ग़र ग़लतियाँ बाबर की थीं; जुम्मन का घर फिर क्यों जले …

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गर चंद तवारीखी तहरीर बदल दोगे- अदम गोंडवी

गर चंद तवारीखी तहरीर बदल दोगे-  अदम गोंडवी

गर चंद तवारीखी तहरीर बदल दोगे- अदम गोंडवी गर चंद तवारीखी तहरीर बदल दोगे क्या इनसे किसी कौम की तक़दीर बदल दोगे जायस से वो हिन्दी की दरिया जो बह के आई मोड़ोगे उसकी धारा या नीर बदल दोगे ? जो अक्स उभरता है रसख़ान की नज्मों में क्या कृष्ण की वो मोहक तस्वीर बदल …

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आप कहते हैं सरापा गुलमुहर है ज़िन्दगी- अदम गोंडवी

आप कहते हैं सरापा गुलमुहर है ज़िन्दगी-  अदम गोंडवी

आप कहते हैं सरापा गुलमुहर है ज़िन्दगी- अदम गोंडवी आप कहते हैं सरापा गुलमुहर है ज़िन्दगी हम ग़रीबों की नज़र में इक क़हर है ज़िन्दगी भुखमरी की धूप में कुम्हला गई अस्मत की बेल मौत के लम्हात से भी तल्ख़तर है ज़िन्दगी डाल पर मज़हब की पैहम खिल रहे दंगों के फूल ख़्वाब के साये …

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वैभव के अमिट चरण-चिह्न-न दैन्यं न पलायनम्-(हिन्दी कविता)-अटल बिहारी वाजपेयी

वैभव के अमिट चरण-चिह्न-न दैन्यं न पलायनम्-(हिन्दी कविता)-अटल बिहारी वाजपेयी

वैभव के अमिट चरण-चिह्न विजय का पर्व! जीवन संग्राम की काली घड़ियों में क्षणिक पराजय के छोटे-छोट क्षण अतीत के गौरव की स्वर्णिम गाथाओं के पुण्य स्मरण मात्र से प्रकाशित होकर विजयोन्मुख भविष्य का पथ प्रशस्त करते हैं। अमावस के अभेद्य अंधकार का— अन्तकरण पूर्णिमा का स्मरण कर थर्रा उठता है। सरिता की मँझधार में …

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कवि आज सुना वह गान रे-न दैन्यं न पलायनम्-(हिन्दी कविता)-अटल बिहारी वाजपेयी

कवि आज सुना वह गान रे-न दैन्यं न पलायनम्-(हिन्दी कविता)-अटल बिहारी वाजपेयी

कवि आज सुना वह गान रे कवि आज सुना वह गान रे, जिससे खुल जाएँ अलस पलक। नस–नस में जीवन झंकृत हो, हो अंग–अंग में जोश झलक। ये – बंधन चिरबंधन टूटें-फूटें प्रासाद गगनचुम्बी हम मिलकर हर्ष मना डालें, हूकें उर की मिट जाएँ सभी। यह भूख-भूख सत्यानाशी बुझ जाय उदर की जीवन में। हम …

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