पहले धीरे धीरे बाद में जल्दी-जल्दी- अनन्त मिश्र
धीरे धीरे भूलते हैं नाम
भूलते जाते हैं चेहरों और नाम के
ऐक्य,
चश्मा छूटता है यहाँ-वहाँ
गायब भी होने लगते हैं
जेब में रखे पैसे,
पेनकार्ड का नंबर भूलने लगता है
खाता संख्या भी भूलती है।
आधार कार्ड का नंबर
और बिल्कुल सगों को छोड़कर
भूल जाते हैं मित्रों के मोबाइल नंबर
धीरे-धीरे दाँत टूटते हैं
कई बार गिर भी जाते हैं
धीरे-धीरे आँखों की रोशनी
गायब होती है
चेहरे की कांति तो पहले से छूटने लगती है,
पाँवों पर देर तक खड़े रहने की
ताकत धीरे-धीरे कम हो जाती है
धीरे-धीरे घर में उम्र बढ़ने के साथ
जुबान कमजोर हो जाती है
धीरे-धीरे देह में दर्द बढ़ता है
धीरे-धीरे सिर्फ अतीत रह जाता है
वर्तमान गायब हो जाता है
धीरे-धीरे डर
धीरे-धीरे कमजोरी
धीरे-धीरे धैर्य खत्म हो जाता है
धीरे-धीरे आता है वह पड़ाव,
कि आप के नहीं
आप के शव के पास
एक अलाव सुलगता है
और धीरे-धीरे लोग इकट्ठे होने लगते हैं
कितने बच्चे हैं ?
कोई पूछेगा उनमें से
और होने पर
आश्वस्त हो जाते हैं,
अब धीरे धीरे जो हो रहा था
वह जल्दी जल्दी होने लगता है
क्या धीरे धीरे का
जल्दी हो जाना परिणाम है ?
और हिंदू होने के नाते
क्या मैं कहूँ यह सत्य ही
रामनाम है।