साइकिल- अनन्त मिश्र

साइकिल

धूप में खड़ी है साइकिल
धूप में खड़ी रहेगी साइकिल
धूप से बच नहीं सकती साइकिल ।
साइकिल खुद से चल कर
छाँव में नहीं आ सकती
गो, वह ज्यादा चलती है
चलकर ही आ खड़ी है
पर धूप में पड़ी है साइकिल ।
सड़क पर देखो
कितनी तेजी से भाग रही है
साइकिल
और वह एक बेचारी
धूप में मुतवारित खड़ी है
धूप उसे बेहद परेशान कर रही है
उसकी पीठ रही हैं
पर जब खुद से नहीं चल सकती
साइकिल
तो अपनी रफ्तार के बावजूद वह पड़ी रहेगी
दुनिया का कितना बड़ा आश्चर्य है
कि
धूप से भाग नहीं सकती साइकिल
किसी पेड़ के निचे सुस्ता नहीं सकती साइकिल
खुद से वह पहिया घुमा नहीं सकती
घंटी बजाकर
अपने मालिक तक को बुला नहीं सकती
साइकिल,
गो वह सैर करा सकती है
वक्त पर काम आने में उसका कोई जबाब नहीं
फिर भी धूप में
कितनी असहाय खड़ी है
साइकिल ।

 

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