तारास बुल्बा (उपन्यास) : निकोलाई गोगोल Part 2
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अन्द्रेई अपने रोटियों के बोरे लादे उस पतली-सी कच्ची सुरंग के अंदर अंधेरे में टटोल-टटोलकर तातार औरत के पीछे चलने लगा।
“जल्दी ही रास्ता दिखायी देने लगेगा,”राह दिखानेवाली ने कहा। “हम उस जगह के पास आ गये हैं जहां मैं अपना चिराग छोड़ गयी थी।”
और सचमुच एक मद्विम-सा प्रकाश धीरे-धीरे अंधेरी कच्ची दीवारों को आलोकित कर रहा था। वे एक छोटी सी खुली जगह पहुंचे जो कि लगता था गिरजाघर की तरह इस्तेमाल होती थी, बहरहाल वहां दीवार के पास वेदी की तरह की एक पतली मेज़ रखी थी और उसके ऊपर कैथोलिक देवी मरियम की एक प्रतिमा थी जिसका चेहरा लगभग पूरी तरह से विड्डत हो चुका था। उस प्रतिमा के सामने लटका हुआ एक छोटा सा चांदी का चिराग जो पवित्र आत्माओं के पास रखा जाता है, उस पर हल्की सी रोशनी डाल रहा था। तातार औरत ने झुककर अपना तांबे का चिराग उठा लिया जो वह वहां ज़मीन पर छोड़ गयी थी। चिराग़ का दीवट लंबा और नाजुक-सा था और गुल झाड़ने, बत्ती संवारने और बुझाने के साधन सब जंजीरों से उसमें लटके हुये थे। उसने चिराग़ को ऊपर उठाया और पवित्र प्रतिमा के पास रखे चिराग से जला लिया। रोशनी तेज हो गयी और वे दोनों एक के पीछे एक इस तरह चलते रहे कि कभी तो वे लैंप की लौ में चमक उठते थे और कभी घटाघोप अंधेरा उन्हें निगल लेता था, जैसे जेरार्डो देल्ला नोट्टे की तस्वीरों में सूरमा का सेहत और जवानी से दमकता हुआ तरोताज़ा और खू़बसूरत चेहरा उसके साथवाली औरत के पीले और मुरझाये हुये चेहरे से बिल्कुल अलग लग रहा था। अब सुरंग कुछ चौड़ी हो गयी थी और अन्द्रेई सीधा तनकर चल सकता था। वह जिज्ञासा भरी आंखों से इन कच्ची दीवारों को देख रहा था जो उसे कीएव के भूमिगत क़ब्रिस्तान की याद दिला रहे थे। कीएव के भूमिगत क़ब्रिस्तान की तरह यहां भी दीवारों में बड़े-बड़े ताक़ बने हुए थे जिनमें से कुछ में ताबूत रखे थे और कुछ में इंसानी हड्डियां जिन पर नमी की वजह से फफूंदी जम गयी थी और गलकर झड़ी जा रही थीं। मालूम होता था यहां भी धर्मपरायण लोग दुनिया से और उसके तूफ़ानों, उसके दुःखों और उसके प्रलोभनों से भागकर शरण लेने आते थे। कहीं-कहीं तो बहुत नमी थी और कहीं तो उनके पांव के नीचे पानी आ जाता था। अन्द्रेई को थोड़ी-थोड़ी देर बाद ठहर जाना पड़ता था ताकि उसके साथ वाली औरत सुस्ता सके क्योंकि उसकी थकन तो उसे हर कदम पर साफ़ महसूस हो रही थी। रोटी का छोटा-सा टुकड़ा जो उसने खाया था उससे उसके पेट में दर्द ही हुआ था जिससे उसे बार-बार कुछ मिनट के लिए बिना हिले-डुले खड़ा रहना पड़ता था, तब कहीं जाकर वह फिर से चलने के क़ाबिल हो पाती थी। अखिरकार उनके सामने एक छोटा-सा लोहे का दरवाज़ा दिखायी दिया। “खुदा का शुक्र है, हम पहुंच गये,”तातार औरत ने कमज़ोर-सी आवाज़ में कहा और दस्तक देने के लिए हाथ ऊपर उठाया, लेकिन उसकी ताक़त जवाब दे गयी। उसके बजाये अन्द्रेई ने दरवाजे़ पर ज़ोर से दस्तक दी। एक खोखली-सी गूंज हुई जिससे यह पता चलता था कि दरवाजे के दूसरी ओर कोई बिल्कुल खुली जगह थी। फिर गंूज की गमक कुछ बदल गयी जैसे वह ऊंची-ऊंची मेहराबों से होकर वापस आ रही हो। एक या दो मिनट बाद कुंजियों की झंकार की आवाज़ आयी और ऐसा लगा जैसे कोई ज़ीने से नीचे उतर रहा हो। आखि़रकार दरवाज़ा खुला और उनके सामने एक पादरी पतले-से ज़ीने पर खड़ा हुआ था। उसके हाथ में एक मोमबत्ती और कुंजियों का गुच्छा था। एक कैथोलिक पादरी को देखकर अन्द्रेई अनायास नफ़रत से पीछे हट गया क्योंकि कैथोलिक पादरी को देखकर कज़ाकों के अंदर ऐसी घृणा और तिरस्कार की भावना जाग उठती थी कि वे उसकी बिरादरी-वालों के साथ यहूदियों से भी ज़्यादा कठोरता से काम लेते थे। पादरी ने भी जब एक ज़ापोरोजी कज़ाक को देखा तो चौंककर पीछे हटा लेकिन तातार औरत की एक दबी हुई फुसफुसाहट ने उसे आश्वस्त कर दिया। उसने उन्हें रोशनी दिखायी, दरवाज़े में ताला लगाया और उन्हें ज़ीने के रास्ते ऊपर ले गया यहां तक कि वे मठ के गिरजे की अंधेरी और ऊंची मेहराबों के नीचे पहुंच गये। एक वेदी के सामने, जिसपर लंबी-लंबी मोमबत्तियां और शमादान रखे हुए थे, एक पादरी घुटने टेके बैठा नीची आवाज़ में दुआएं पढ़ रहा था। उसके दोनों ओर दो कमउम्र गानेवाले भी घुटने टेके बैठे थे, वे बैंगनी रंग के चोग़े और सफ़ेद जाली के ऊपरी झब्बे पहने हुए थे और हाथों में धूपदान लिए थे। पादरी किसी दैवी चमत्कार की प्रार्थना कर रहा था कि शहर बच जाये, उन सबकी हिम्मत बढ़े, उनमें धीरज पैदा हो और वह लालच देकर बहकानेवाला शैतान बौखला जाएं, जिसने उनकी आत्माओं में कायरता भर दी थी और जिसने उन्हें इस दुनिया की मुसीबतों के खि़लाफ़ शिकायत करने के लिए उकसाया था। कुछ औरतें भी, जो भूतों जैसी लग रही थीं, घुटने टेके बैठी थीं और अपने सामने रखी हुई लकड़ी की काली बंेचों और कुर्सियों की पीठ का सहारा लिए हुए थीं, बल्कि बेहद थकन की वजह से वे उन पर अपने सिर भी टिकाये हुए थीं। कुछ मर्द भी शोक में डूबे हुए बग़ल की मेहराबों के खंभों का सहारा लिए घुटने टेके बैठे थे। वेदी के ऊपर रंगीन शीशोंवाली खिड़की प्रातःकाल की अरुणिम आभा से जगमगा उठी थी और हल्के नीले, पीले और जामुनी रंग की रोशनी के टुकड़े खिड़की से फ़र्श पर बिखर रहे थे और अंधेरे गिरजे को प्रकाशमान कर रहे थे। पूरी वेदी अंदर तक एकदम चमक उठी और उभरकर सामने आ गयी। धूपदान से उठते हुए धुएं के बादलांे में इंद्रधनुष के सारे रंग झलक रहे थे। अपने अंधेरे कोने से अन्द्रेई रोशनी का यह चमत्कार देखकर अनायास ही चकित हो उठा। उस वक़्त एकदम गिरजाघर के बाजे से एक शानदार गर्जन पैदा हुआ और सारे गिरजाघर में छा गया। वह ज़्यादा गहरा और ज़्यादा सुरीला होता गया और बढ़कर और फैलकर एक तूफ़ानी गूंज बन गया और फिर, एकदम से वह एक अलौकिक संगीत में बदल गया और उस संगीत के सुर जो कुंवारी कन्याओं की आवाज़ की तरह मधुर थे ऊंचे उठकर मेहराबों तक पहुंच गये। इसके बाद एक बार फिर वह एक गहरी कड़क और गरज में बदलकर शांत हो गया। लेकिन उसके बाद भी गरजदार गहरी गूंज बहुत देर तक मेहराबों में लहराती और कांपती रही। अन्द्रेई मुंह बाये इस शानदार संगीत पर आश्चर्यचकित खड़ा रहा।
और फिर उसने महसूस किया कि कोई उसके काफ़्तान का दामन खींच रहा है।
“जाने का वक़्त हो गया,”तातार औरत ने कहा। वे किसी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किये बिना गिरजे से गुज़रकर बाहर चौक में आ गये। आसमान पर सुबह की लाली देर से फैली हुई थी। हर चीज़ सूरज के निकलने की ख़बर दे रही थी। चौक, जो बिलकुल चौकोर था, ख़ाली था। बीच में अब तक कुछ लकड़ी की छोटी-छोटी दुकानें बाक़ी थीं जिनसे मालूम होता था कि शायद अभी एक हफ़्ता पहले ही यहां खाने-पीने की चीज़ों का बाज़ार था। सड़क, जो उस समय की और तमाम सड़कों की तरह कच्ची ही थी, बस सूखे कीचड़ के ढेर से ज़्यादा और कुछ न थी। चौक के चारों ओर पत्थर और मिट्टी के छोटे-छोटे एक मंजि़ला मकान खड़े थे जिनकी दीवारों में ऊपर से नीचे तक लकड़ी के चौखटे और स्तंभ दिखायी दे रहे थे। ऐसे मकान उस समय के शहरों में बहुत पाये जाते थे और आज भी पोलैंड और लिथुआनिया के कुछ हिस्सों में देखे जा सकते हैं। सबकी छतें हद से ज़्यादा ऊंची थीं। और उनमें बाहर की तरफ़ निकली हुई कई खिड़कियां और हवा जाने के लिए झरोखे बने थे। एक ओर गिरजे से लगभग मिली हुई एक ज़्यादा ऊंची इमारत थी जो और सब इमारतों से अलग ही लग रही थी- शायद यह किसी सरकारी संस्था की इमारत थी। दो मंजि़ला इमारत थी और उसके ऊपर दो मेहराबों पर एक मीनार उठा हुआ था जहां एक चौकीदार खड़ा था, छत के पास एक बड़ी-सी घड़ी का सामना दिखायी पड़ रहा था। चौक मुर्दा लग रहा था लेकिन अन्द्रेई को ऐसा लगा जैसे कोई हल्के-हल्के कराह रहा हो। उसने इधर-उधर नज़र दौड़ायी तो देखता क्या है कि सामनेवाले छोर पर दो-तीन आदमी ज़मीन पर निश्चल पड़े हुए हैं। उसने आंखें सिकोड़कर ग़ौर से देखने की कोशिश की कि वे सो रहे हैं या मरे हुए हैं और उसी वक़्त अपने पांव के पास पड़ी हुई किसी चीज़ से उसे ठोकर लगी। वह एक औरत की लाश थी- शायद कोई यहूदिन थी। वह अभी जवान ही होगी हालांकि उसके मुरझाये हुए और विड्डत चेहरे से यह पता चलाना नामुमकिन था। उसके सिर पर लाल रेशमी रूमाल बंधा था, उसका कनटोप मोतियों या पोतों की दोहरी लडि़यों से सजा था, उसके अंदर से दो-तीन लंबी-लंबी लहराती लटें उसकी सूखी गर्दन पर, जिसकी नसें तनी हुई थीं, पड़ी थीं। उसके पास एक बच्चा पड़ा था जो अपने हाथ से इस औरत की सूखी छाती पर रह-रहकर झपट रहा था और उसमें दूध न पाकर लाचारी के गु़स्से में उसे अपनी उंगलियों से मरोड़ रहा था। बच्चा अब न रो रहा था और न चिल्ला रहा था, और सिर्फ़ उसके पेट के हल्के-से उतार-चढ़ाव से ही यह पता चल सकता था कि उसने अभी दम नहीं तोड़ा है। वे एक सड़क पर मुड़े और अचानक एक पागल ने उनका रास्ता रोक लिया। अन्द्रेई के अनमोल बोझ को देखकर वह चीते की तरह उस पर झपटा और “रोटी! रोटी!”चिल्लाकर उसको नोचने-खसोटने लगा लेकिन उसकी ताक़त उसके पागलपन के बराबर नहीं थी, अन्द्रेई ने उसे ढकेल दिया और वह ज़मीन पर जा गिरा। उस पर तरस खाकर अन्द्रेई ने एक रोटी उसकी तरफ़ फेंक दी जिसे उसने लपक लिया और पागल कुत्ते की तरह नीच-नोचकर खाने लगा, इतने दिन कुछ न खाने की वजह से ज़रा-सी देर में वहीं सड़क पर उसी जगह बैठे-बैठे उसने बुरी तरह छटपटाते हुए दम तोड़ दिया। लगभग हर क़दम पर अकाल की भयंकर तबाहियां उन्हें चौंका रही थीं। ऐसा लगता था कि बहुत-से लोग अपने घरों में बैठकर इस तकलीफ़ को सह नहीं सके थे और किसी चमत्कार की उम्मीद में, ताज़ा हवा में किसी तरह की जि़ंदगी देनेवाली ताक़त पाने की आशा में सड़कों पर निकल आये थे। एक मकान के फाटक पर एक बूढ़ी औरत बैठी थी, यह बताना मुश्किल था कि वह सो रही है, बेहोश हो गयी है या मर चुकी है, कम से कम इतना साफ़ था कि वह अब न कुछ सुन सकती थी और न कुछ देख सकती थी, वह बिना हिले-डुले बैठी थी और उसका सिर सीने पर लुढ़क आया था। एक और मकान की छत से एक सूखी लाश रस्सी से लटक रही थी। यह बेचारा दुखियारा भूख की तकलीफ़ को और ज़्यादा न सह सका था और आखि़रकार उसने जान-बूझकर आत्महत्या करके अपना अंत जल्दी बुला लिया था।
इन दिल दहलानेवाले दृश्यों को देखकर, जो भुखमरी का पता दे रहे थे, अन्द्रेई ने अनायास उस तातार औरत से पूछाः
“क्या सचमुच इन लोगों के पास और जि़ंदा रहने के लिए कुछ भी नहीं रह गया था? जब आदमी पर ऐसा बुरा वक़्त आ पड़ता है तो फिर इसके सिवा क्या चारा रह जाता है कि वह वही सारी चीज़ें खाने लगे जिनके खाने से उस वक़्त तक वह इतना दूर भागता था, उस वक़्त तो आदमी हराम चीज़ भी खा सकता है- हर वह चीज़ जो खायी जा सकती हो।”
“हर चीज़ खा ली गयी है,”तातार औरत ने जवाब दिया, “सारे जानवर भी। पूरे शहर में न तो कोई घोड़ा बचा है न कुत्ता, यहां तक कि एक चूहा भी नहीं मिल सकता। इन लोगों ने शहर में कोई भी रसद जमा नहीं की थी, सब चीजें़ गांव से आती थीं।”
“मगर ऐसी दर्दनाक मौत मरते हुए भी तुम लोग शहर को बचाने की बात कैसे सोच सकते हो?”
“हां, गवर्नर ने तो हार मान भी ली होती मगर कल सुबह कर्नल ने-वह जो बुदजाक में हैं- एक बाज़ शहर में भेजा जो एक पर्चा लाया था जिसमें लिखा था कि शहर को किसी भी हालत में दुश्मन के हवाले न किया जाये और यह कि वह शहर को बचाने के लिए आ रहे हैं। वह सिर्फ़ एक और कर्नल के इंतज़ार में हैं ताकि दोनों साथ-साथ शहर कीओर कूच कर सकें। अब वे किसी भी वक़्त यहां पहुंच सकते हैं…लो, हम लोग आखि़रकार घर पहुंच गये।”
अन्द्रेई ने दूर से ही एक घर देख लिया था जो देखने में और घरों से अलग था। लगता था कि वह किसी इतालवी कारीगर का बनाया हुआ था। वह पतली-पतली खूबसूरत ईंटों से बनाया गया था और दोमंजि़ला था। नीचेवाली मंजि़ल की आगे की तरफ़ निकली हुई खिड़कियां ऊंची-ऊंची पत्थर की कार्निसों से घिरी हुई थीं। ऊपर की मंजि़ल छोटी-छोटी मेहराबों का एक सिलसिला थी जो सब मिलकर एक गलियारा-सा बनाती थीं। मेहराबों के बीच जालियां थीं जिनपर परिवार के प्रतीक-चिह्न बने थे, जिनसे इमारत के कोने भी सजे हुए थे। रंगीन ईंटोंवाला एक चौड़ा-सा ज़ीना चौक में आकर निकलता था। ज़ीने के नीचे दो चौकीदार बैठे थे जो एक-एक हाथ में फरसा लिए हुए थे और दूसरे हाथ से अपने ढलकते हुए सिरों को सहारा दिये हुए थे। वे बहुत आकर्षक और एक दूसरे की छाप लग रहे थे, आदमियों से ज़्यादा वे मूर्तियों जैसे दिखायी दे रहे थे। वे न सो रहे थे, न ही सपना देख रहे थे बल्कि ऐसा लगता था कि वे अपने आसपास की हर चीज़ से बेख़बर हैं। वे ऊपर जानेवालों की तरफ़ बिल्कुल ध्यान नहीं देते थे। ज़ीने के ऊपर उन्हें एक बहुत क़ीमती कपड़े पहने, सिर से पांव तक हथियारों से सजा हुआ सिपाही मिला जो अपने हाथ में दुआओं की एक किताब लिये था। उसने थकी-थकी आंखों से उन्हें देखा लेकिन तातार औरत ने उससे कुछ कह दिया और उसने अपनी नज़रें झुकाकर फिर दुआओं की किताब के खुले हुए पन्नों पर जमा दीं। वे पहले कमरे में घुसे जो बहुत बड़ा था अैर शायद स्वागत कक्ष या सिर्फ़ बैठक की तरह इस्तेमाल होता था। वह सिपाहियों, हरकारों, शिकारियों, आबदारों और दूसरे नौकरों से भरा हुआ था जो दीवार के सहारे तरह-तरह की मुद्राओं में बैठे हुए थे-ये सब लोग हर पोलिस्तानी रईस की शान-शौक़त के लिए ज़रूरी होते थे चाहे वह कोई फ़ौजी अफ़सर हो या ताल्लुक़ेदार अमीरों में से हो। एक बुझी हुई मोमबत्ती की बू आ रही थी और दो और मोमबत्तियां कमरे के बीचोंबीच रखे हुए दो बड़े-बड़े लगभग आदमी की ऊंचाई के फ़र्शी झाड़ों में अब तक जल रही थीं हालांकि सुबह देर से सलाखोंवाली चौड़ी खिड़की में अंदर झांक रही थी। अन्द्रेई सीधा बलूत की लकड़ी के एक चौड़े-से दरवाज़े की ओर बढ़ा जो परिवार के प्रतीक-चिह्नों और नक़्क़ाशी से सजा था लेकिन तातार औरत ने उसकी आस्तीन खींची और बग़ल की एक दीवार में खुलनेवाले छोटे-से दरवाजे़ की ओर इशारा किया। उसमें से होकर पहले तो वे एक गलियारे में से गुज़रे और फिर एक कमरे में दाखिल हुए जिसे अन्द्रेई ने ग़ौर से देखना शुरू किया। झिलमिलियों की एक दरार से अंदर घुस आनेवाली रोशनी की किरण एक बैंगनी परदे, एक सुनहरी कार्निस और दीवार पर लगी तस्वीर को चमका रही थी। यहां तातार औरत ने अन्द्रेई को ठहरने का इशारा किया और एक दूसरे कमरे का दरवाज़ा खोला जिसमें से मोमबत्ती की रोशनी की एक किरण चमक उठी। अन्द्रेई ने किसी की कानाफूसी की आवाज़ सुनी और एक मुलायम आवाज़ उसके कानों में आयी जिससे वह अंदर तक कांप उठा। अधखुले दरवाजे़ में से उसने एक शालीन नारी-आड्डति की झलक देखी जिसकी ऊपर उठी हुई एक बांह पर लंबे और घने बालों की चोटी पड़ी हुई थी। तातार औरत ने लौटकर उससे अंदर जाने को कहा। उसे यह तक याद नहीं था कि वह किस तरह अंदर गया और कैसे उसके अंदर जाने के बाद दरवाज़ा बंद हो गया। कमरे में दो मोमबत्तियां जल रही थीं। एक मूर्ति के सामने एक चिराग़ जल रहा था और उसके नीचे एक ऊंची-सी मेज़ रखी थी जिसके साथ प्रार्थना के वक़्त घुटने टेकने के लिए सीढि़यां बनी हुई थीं। लेकिन अन्द्रेई की आंखें किसी और ही चीज़ को ढूंढ रही थीं। वह दूसरी तरफ़ मुड़ा तो उसे एक औरत दिखायी दी जो ऐसा लगता था जैसे आवेगवश कुछ करते-करते सहसा जम-सी गयी हो या पथरा गयी हो। ऐसा लगता था कि उसका पूरा जिस्म अन्द्रेई की ओर लपकते हुए बीच में ही ठिठक गया हो। और अन्द्रेई भी उसके सामने ठगा-सा खड़ा था। उसने सोचा भी नहीं था कि वह उसे इस हालत में पायेगा जैसी कि वह उस वक़्त दिखायी दे रही थीः वह अब वही नहीं थी, यह वह लड़की थी ही नहीं जिसे अन्द्रेई पहले जानता था। उसकी कोई बात भी तो पहले की सी नहीं थी। अब वह पहले से दुगनी गोरी और आकर्षक हो गयी थी। उस वक़्त उसमें कोई कमी थी, कोई चीज़ अधूरी-अधूरी-सी थी, अब वह एक ऐसी अनुपम ड्डति की तरह थी जिसे कलाकार की तूलिका के अंतिम स्पर्श ने पूरी तरह निखार दिया हो। पहले वह एक चुलबुली मगर आकर्षक लड़की थी और अब वह भरपूर खिले हुए फूल जैसी सुंदर स्त्री थी। उसकी ऊपर उठी आंखें प्रौढ़ भावना से चमक रही थीं। भावना के केवल संकेत ही नहीं बल्कि भरपूर भावना। उन आंखों के आंसू अभी पूरी तरह सूखे नहीं थे और उनकी वजह से आंखों पर एक ऐसी चमकदार नमी आ गयी थी जो सीधे दिल में उतर जाती थी। उसके सीने, गर्दन और कंधे सभी पूर्ण विकास की सीमा तक पहुंच गये थे। उसके बाल जो पहले सिर्फ़ उसके चेहरे के चारों तरफ़ छोटे-छोटे घूंघरों की शक्ल में लहराते थे अब बेहद घने हो गये थे और उनका एक हिस्सा चोटी की शक्ल में सिर पर बंधा हुआ था और बाक़ी खुले हुए बाल सुंदर घूंघरों की शक्ल में उसके सीने पर से होते हुए उसकी उंगलियों के पोरांे तक आ रहे थे। मालूम होता था कि उसका चेहरा-मोहरा बदल चुका था। अन्द्रेई ने नाहक़ यह कोशिश की कि उन विशेषताओं में से, जिनकी याद उसे हमेशा सताती रहती थी, कम से कम कोई एक ही उसे नज़र आ जाये- उसे उनमें से एक भी दिखायी नहीं दी! उसके चेहरे के बेहद पीलेपन के बावजूद उसकी अनूठी सुंदरता में कोई कमी नहीं आयी थी बल्कि उसमें कोई अत्यंत आवेगपूर्ण, बरबस मोह लेनेवाली और विजयी चीज़ और जुड़ गई थी। अन्द्रेई के दिल पर उसका रौब छा गया और वह उसके सामने मंत्रमुग्ध खड़ा रह गया। वह भी कज़ाक के आ जाने से हक्का-बक्का रह गयी थी जो युवा पुरुषत्व की समस्त सुंदरता और शक्ति के साथ उसके सामने खड़ा था, जिसके बलिष्ठ अंग उस समय गतिशून्य होने के बावजूद सुगम और स्वच्छंद गतिशीलता का परिचय दे रहे थे। उसकी जमी हुई दृष्टि में एक निष्कलंक जगमगाहट की चमक थी, उसकी मखमली भवें तीखी कमान की तरह झुकी हुई थीं। उसके संवलाये हुए गाल भड़कती जवानी की लाली से दहक रहे थे, उसकी नई उगी हुई काली मूंछें रेशम की तरह चमक रही थीं।
“नहीं, दरियादिल सूरमा, मैं तुम्हारा शुक्रिया अदा नहीं कर सकती हूँ,”लड़की ने कहा। उसकी चाँदी जैसी खनकती आवाज़ कांप रही थी। “बस भगवान ही तुम्हें इसका इनाम दे सकता है। मेरे लिए, मुझ जैसी कमज़ोर औरत के लिए यह मुमकिन नहीं…”
उसने अपनी आंखें झुका लीं, उसके बर्फ़ जैसे सफ़ेद पपोटों के अर्धवृत्तों ने उसकी आंखों को ढांप लिया, जिन पर लंबी-लंबी तीर जैसी पलकों की झालर लगी थी। उसका चेहरा आगे की ओर झुक गया और उस पर लजाने की हल्की-सी लाली दौड़ गयी। शब्दों ने अन्द्रेई का साथ नहीं दिया। वह उसके सामने अपना दिल खोलकर रख देने को बेचैन था- सब कुछ उतने ही आवेग के साथ कह देना चाहता था जितनी तीव्रता से वह उसके दिल में सुलग रहा था- लेकिन वह कह नहीं सका। उसे ऐसा लगा जैसे कोई चीज़ उसकी ज़बान को रोक रही है, उसके शब्द बेआवाज़ हो गये थे, वह महसूस कर रहा था कि ऐसे शब्दों का जवाब देना धर्मपीठ में और फिर मार-काट से भरपूर खानाबदोशी की जि़ंदगी में पले-बढ़े उसके जैसे आदमी के बस की बात नहीं थी-और वह अपनी कज़ाक प्रड्डति को कोसने लगा।
उसी समय तातार औरत चुपके से कमरे में आ गयी। वह सूरमा की लायी हुई रोटी को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर सोने की थाली में रखकर लायी थी, जो उसने अपनी मालकिन के सामने रख दी थी। सुंदर लड़की ने एक नज़र उसकी ओर देखा, फिर रोटी पर नज़र डाली और फिर आंखें उठाकर अन्द्रेई को देखा। उन आंखें में भावनाओं का एक पूरा संसार था। उसकी बोलती हुई निगाहों को, जो उसकी मुसीबतों को और अपनी भावनाओं को प्रकट करने में उसकी लाचारी की कहानी सुना रही थीं, अन्द्रेई शब्दों से ज़्यादा अच्छी तरह समझ पा रहा था। अचानक उसके दिल पर से एक बोझ-सा हट गया, ऐसा लगा कि उसके अंदर हर चीज़ आज़ाद हो गयी है। उसके अंतरतम के भाव और मनोवेग जिन्हें अभी तक मानो किसी रहस्यमय हाथ ने कसकर बांध रखा था, अब मुक्त हो गय थे, बिल्कुल स्वच्छंद, और शब्दों की एक अबाध प्रबल धारा के रूप में बह निकलने को उत्सुक थे। लेकिन उस सुंदर लड़की ने अचानक तातार औरत की ओर मुड़कर चिंतित स्वर में पूछाः
“और मेरी मां? उनको भी कुछ दे आयीं?”
“वह सो रही हैं।”
“और मेरे बाप को?”
“जी हां। उन्होंने कहा कि वह खुद आकर सूरमा का शुक्रिया अदा करेंगे।”
लड़की रोटी का एक टुकड़ा उठाकर अपने होंठों तक ले गयी। अन्द्रेई बेहद खुश होकर उसे अपनी मोती जैसी सफ़ेद उंगलियों से रोटी तोड़ते और खाते हुए देखता रहा। और फिर यकायक उसे वह आदमी याद आया जो भूख से पागल हो गया था और जिसने उसकी आंखों के सामने रोटी खाते-खाते दम तोड़ दिया था। अन्द्रेई का चेहरा पीला पड़ गया, उसने लड़की का हाथ पकड़ लिया और चिल्लायाः
“बस, और मत खाओ! तुम इतने दिन से भूखी हो कि इस वक़्त तुम्हारे लिए रोटी ज़हर है!”
लड़की ने फ़ौरन अपना हाथ नीचे कर लिया और एक आज्ञाकारी बच्चे की तरह अन्द्रेई की आंखों में आंखें डालकर देखने लगी। काश, शब्द व्यक्त कर सकते-लेकिन नहीं, एक सुकुमारी की आंखों में जो कुछ दिखायी देता है उसे या उन आंखों में झांकनेवाले आदमी के भावों को व्यक्त करने की क्षमता न मूर्तिकार की छेनी में होती है, न चित्रकार की तूलिका में और न उदात्त से उदात्त और सशक्त से सशक्त शब्दों में।
“रानी!”अन्द्रेई चिल्लाया, उसके हृदय, उसकी आत्मा और उसके समस्त अस्तित्व से भावनाएं उमड़ी पड़ रही थीं। “तुम्हें क्या चाहिये? तुम्हें किस चीज़ की ज़रूरत है? मुझे हुक्म दो! मुझसे दुनिया का सबसे मुश्किल काम भी करने को कहो-मैं उसे पूरा कर दिखाऊंगा चाहे उसमें मेरी जान ही क्यों न चली जाये! हां, मैं अपनी जान दे दूंगा! तुम्हारे लिए जान देना- मैं पवित्र सलीब की क़सम खाकर कहता हूँ- मेरे लिए बहुत खुशी की बात होगी-मैं बता नहीं सकता कितनी खुशी की! तीन गांव मेरे हैं, मेरे बाप के पास जितने घोड़े हैं उनमें से आधे मेरे हैं, मेरी मां दहेज में जो कुछ लेकर आयी थीं वह सब कुछ, यहां तक कि वह भी जो उन्होंने मेरे बाप से छुपाकर जमा कर रखा है- वह सब मेरा है! किसी कज़ाक के पास मेरे जैसे हथियार नहीं हैं, सिर्फ़ मेरी तलवार की मूठ ही बेहतरीन घोड़ों का गल्ला और तीन हज़ार भेड़ें खरीदने के लिए काफ़ी है। और तुम्हारी एक बात पर, तुम्हारी काली भवों के एक हल्के-से इशारे पर मैं इन सब चीज़ों को ठुकरा सकता हूँ, फेंक सकता हूँ, जला सकता हूँ, डुबो सकता हूँ! मैं जानता हूँ कि मेरी ये बातें बेवकू़फ़ी की बातें हैं और बेवक़्त और बेमौक़ा हैं, मैं जानता हूँ कि धर्मपीठ में और ज़ापोरोजियों के बीच रहने के बाद मैं इस क़ाबिल नहीं हूँ कि बादशाहों और शहज़ादों और सबसे चुने हुए सूरमाओं की तरह बात करूं। इतना मैं समझ सकता हूँ कि तुम हम सब से अलग एक ईश्वरीय जीव हो और रईसों की सारी बहू-बेटियां तुमसे हज़ार दर्जे नीची हैं। हम तुम्हारे ग़ुलाम होने के क़ाबिल भी नहीं हैं, फ़रिश्ते ही तुम्हारी खिदमत करने के लायक़ हो सकते हैं।”
वह सुकुमारी बढ़ती हुई हैरत के साथ कान लगाकर और एक-एक शब्द पर पूरा ध्यान देकर इन जोशीली बातों को सुनती रही, जो आईने की तरह एक युवा और सशक्त आत्मा को प्रतिबिंबित कर रही थीं। इन बातों के हर सीधे-सादे शब्द में, जो उसके दिल की गहराइयों से उठती हुई आवाज़ में बोला गया था, दृढ़ता की गंूज थी। उसने अपना सुंदर चेहरा अन्द्रेई की ओर उठाया, अपनी बिखरी हुई लटों को पीछे की ओर झटका अैर मुंह खोले उसे देर तक देखती रही। तब वह कुछ कहने ही जा रही थी मगर अचानक उसने अपने आप को रोक लिया जब उसको यह याद आया कि नौजवान एक ज़ापोरोजी है, कि उसका बाप, उसके भाई-बंधु और उसका देश उसके पीछे हैं और वे बदला लेने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे, कि शहर की घेरेबंदी करनेवाले ज़ापोरोजी बहुत बेरहम हैं और जो लोग शहर में घिरे हुए हैं दर्दनाक मौत उनका इंतज़ार कर रही है…। और अचानक उसकी आंखों में आंसू डबडबा आये। उसने रेशम का एक कढ़ा हुआ रूमाल उठाकर अपने चेहरे से लगा लिया, और देखते-देखते वह एकदम भीग गया। वह बड़ी देर तक अपना खूबसूरत सिर पीछे किये और अपने बफऱ् जैसे सफ़ेद दांतों को निचले होंठ पर जमाये बेठी रही, जैसे अचानक उसने किसी ज़हरीले सांप का डसना महसूस किया हो। वह अपना रूमाल चेहरे पर रखे रही कि कहीं अन्द्रेई उसकी हृदयविदारक पीड़ा न देख ले।
“मुझसे कुछ तो बोलो,”अन्द्रेई ने कहा और उसका नर्म हाथ अपने हाथों में ले लिया। उसके स्पर्श से उसकी नसों में बिजली-सी दौड़ गयी। उसने अपने हाथ में निःस्पंद पड़े हुए हाथ को दबाया। लेकिन वह चुप रही और उसने अपने चेहरे से ज़रा-सी देर के लिए भी रूमाल नहीं हटाया और निश्चल बैठी रही।
“मगर तुम इतनी उदास क्यों हो? मुझे बताओ तुम इतनी उदास क्यों हो?”
रूमाल एक तरफ़ फेंककर, अपने लंबे-लंबे बाल उसने आंखें पर से हटाये और एक करुणा में डूबे शब्दों में कहना शुरू किया, वह धीमे शांत स्वर में बोल रही थी। बिल्कुल उसी तरह जैसे सुहानी शाम को हवा धीरे-धीरे पानी के नीचे सरकंडों के झुंड में से गुज़रती है और कोमल उदास ध्वनियां सरसराती हैं, कानाफूसी करती हैं, और खनक उठती हैं, और अज्ञात पीड़ा से राही के क़दम अनायास ही ठिठकने लगते हैं और वह इन आवाज़ों को सुनने के लिए कान लगा देता है और वह न तो डूबती हुई शाम की ओर ध्यान देता है न खेतों में फ़सल काटने के बाद घर लौटने हुए गांवलों के मस्ती से लहराते हुए गीतों की ओर और न ही दूर गुज़रती हुई गाडि़यों की खड़खड़ाहट की ओर।
“क्या मैं एक जन्म-भर तरस के क़ाबिल नहीं हूँ? क्या वह मां जिसने मुझे जन्म दिया दुखी नहीं है? क्या मेरी कि़स्मत खोटी नहीं है? ऐ मेरी ज़ालिम तक़दीर, क्या तू बेरहमी से मुझे सता नहीं रही है? तूने सबको मेरे क़दमों में ला डालाः सबसे ऊंचे अमीर और सबसे धनवान राजाओं-महाराजाओं और विदेशी सामंतों को, हमारे बांके सूरमाओं के बेहतरीन नमूनों को। सब मुझसे प्यार करते थे और इनमें से हर एक मेरा प्यार पाकर अपने को धन्य समझता। बस मेरे हाथ हिलाने की देर थी और इनमें से कोई भी-वह भी जो खू़बसूरती और ऊंचे खानदान के मामले सबसे मैं बढ़कर होता-मेरा जीवन साथी बन जाता। ऐ मेरी ज़ालिम तक़दीर, तूने उनमें से किसी का जादू मेरे दिल पर नहीं चलने दिया, और चलाया तो किसका-हमारे देश के बेहतरीन सूरमाओं में से किसी का नहीं बल्कि एक अजनबी का, हमारे दुश्मन का। ओ, ईश्वर की पवित्र मां! किस गुनाह के बदले, पवित्र देवमाता, किन पापों की सज़ा में, मैंने कौन से भारी अपराध किये हैं कि तुम मुझे इतनी बेरहमी से, इतनी कठोर सज़ा दे रही हो? मेरे दिन सुख-समृद्धि और आमोद-प्रमोद में बीते, अच्छे से अच्छा खाना और अच्छी से अच्छी मीठी शराबें सब मेरी थीं। और यह सब कुछ किसलिए था? किस के लिए? क्या इसलिए कि मैं ऐसी खौफ़नाक मौत मरूं जैसी मौत देश के सबसे कंगाल भिखारी को भी नहीं दी जाती? और यही काफ़ी नहीं है कि अपने मरने कि़स्मत इतनी भयानक है, यह भी काफ़ी नहीं है कि अपने मरने से पहले मैं अपने मां-बाप को, जिनकी खातिर मैं बीस बार खुशी से मरने को तैयार हूँ, असह्य पीड़ा से मरता देखूं। नहीं, यह सब काफ़ी नहीं है। यह भी ज़रूरी था कि मुझे अपने मरने से पहले ऐसे शब्द सुनने पड़ें और ऐसा प्यार भी देखने को मिले जिसकी मैंने कभी सपने में भी कल्पना नहीं की थी। यह भी ज़रूरी था कि उसकी बातचीत से मेरा दिल टुकड़े-टुकड़े हो जाये-मेरी फूटी हुई तक़दीर और फूट जाये, मुझे अपनी जवान जि़ंदगी पर और भी दर्दनाक तरीक़े से रोना पड़े-मेरी मौत और भी भयानक बन जाये-और मेरी ज़ालिम तक़दीर, मरते हुए मैं तुझे धिक्कारूं और-मेरा गुनाह माफ़ हो!- मैं तुम्हें भी दोष दूं, ऐ पवित्र देवमाता!”
जब वह चुप हुई तो उसके चेहरे पर घोर निराशा और बेबसी छायी हुई थी। चेहरे की हर चीज़ घुन की तरह अंदर ही अंदर खोखला कर देनेवाली पीड़ा का पता दे रही थी। और उसके व्यथा से झुके हुए माथे और झुकी हुई आंखों से लेकर उसकी हल्की-सी लाली से दमकते हुए गालों पर कांपते और सूखते हुए आंसुओं तक हर चीज़ मानो कह रही थीः “इस आत्मा को कोई सुख नसीब नहीं है!”
“ऐसी बात तो पहले कभी सुनी नहीं गयी!”अन्द्रेई चिल्लाया। “यह नहीं हो सकता, ऐसा नहीं होगा कि सबसे अच्छी और सबसे ख़ूबसूरत औरत इतनी तकलीफ़ और मुसीबत उठाये, जबकि वह इसलिए पैदा हुई थी कि दुनिया की हर अच्छी से अच्छी चीज़ उसके सामने इस तरह सिर झुकाये जैसे किसी पवित्र देवी के सामने झुकाया जाता है। नहीं, तुम नहीं मरोगी! मौत तुम्हारे लिए नहीं है! मैं अपने ऊंचे खानदान की और हर उस चीज़ की जिससे मुझे प्यार है क़सम खाकर कहता हूँ कि तुम नहीं मरोगी! लेकिन अगर ऐसा समय आये, अगर ताक़त और हिम्मत और दुआएं, कोई भी चीज़ इस बेदर्द मुक़द्दर को न बदल सके तो हम दोनों साथ मरेंगे, और मैं पहले मरूंगा, मैं तुमसे पहले मरूंगा, तुम्हारे सुंदर क़दमों में जान दे दूंगा और सिर्फ़ मौत ही हम दोनों को अलग कर सकेगी।”
“सूरमा, अपने आपको और मुझे धोखा मत दो,”उसने धीरे से अपना खू़बसूरत सिर हिलाते हुए कहा। “मैं जानती हूँ और मेरी बदनसीबी है कि कुछ ज़्यादा ही अच्छी तरह जानती हूँ कि तुम्हारे लिए मुझसे प्यार करना ठीक नहीं है, मैं तुम्हारे कर्तव्य को जानती हूँ। तुम्हारे बाप और तुम्हारे साथी और तुम्हारा देश सब तुम्हें पुकार रहे हैं और हम तुम्हारे दुश्मन हैं।”
“मेरे बाप, साथी और मेरा देश मेरे लिए क्या हैं!”अन्द्रेई ने सिर को जल्दी से झटका दिया और नदी के किनारे खड़े पोपलर के पेड़ की तरह तनकर कहाः “अगर यही बात है तो मैं किसी भी चीज़ को जानना और किसी से भी रिश्ता रखना नहीं चाहता! किसी से नहीं!”उसने उसी आवाज़ में और उसी अंदाज़ से दोहराया, जो एक कडि़यल, निडर कज़ाक में इस दृढ़ निश्चय का पता देते हैं कि वह कोई ऐसा अनसुना काम करने जा रहा है, जो कोई दूसरा नहीं कर सकता। “कौन कहता है कि उक्राइन मेरा देश है? उसको मेरा देश किसने बनाया? हमारा देश वही है जिसके लिए हमारी आत्मा लालायित रहे, जिससे हमें सबसे ज़्यादा प्यार हो। तुम, हां, तुम मेरा देश हो! और इस देश को मैं अपने दिल से लगाये रखूंगा, इसको जीवन भर दिल में बसाये रखूंगा, मैं हर कज़ाक को इसे वहां से नीचे फेंकने की चुनौती देता हूँ! इस देश के बदले में मैं अपना सब कुछ दे दूंगा, छोड़ दूंगा और बर्बाद कर दूंगा! “
थोड़ी देर के लिए एक सुंदर पत्थर की मूर्ति की तरह निश्चल बैठी वह अन्द्रेई की आंखों को ताकती रही और फिर एकदम फूट-फूटकर रोने लगी, और फिर उस सराहनीय नारीसुलभ उद्विग्नता के साथ, जिसका परिचय केवल वह निष्टपट उदार स्त्री ही दे सकती है जो हृदय के श्रेष्ठतम उद्गारों के लिए ही पैदा हुई हो वह झपटकर अन्द्रेई के गले से लिपट गयी, उसे अपनी बफऱ् जैसी सफ़ेद बांहों में जकड़ लिया और ज़ोर-ज़ोर से सिसकियां भरने लगी। उसी समय सड़क से दबी-दबी चीखें और बिगुल और नगाड़ों की आवाजंे सुनायी दीं। लेकिन अन्द्रेई ने उन्हेें नहीं सुना। उसे तो बस इस बात का आभास था कि लड़की के सुंदर होंठों ने किस तरह उसे अपनी सांसों की सुखद आंच से नहला रखा था और किस तरह उसके आंसू अन्द्रेई के चेहरे पर बह रहे थे और किस तरह उसके महकते बालों ने, जो खुलकर नीचे आ पड़े थे, उसे अपने स्याह और चमकीले रेशम में लपेट लिया था।
उसी समय तातार औरत ख़ुशी से चीखती हुई अंदर दौड़ी हुई आयी।
“बच गये! बच गये!”वह ख़ुशी से बेहाल होकर चिल्लायी। “हमारी फ़ौजें शहर में आ गयी हैं! वे गेहूं, बाजरा और आटा लेकर आयी हैं और ज़ापोरोजी कै़दी भी।”
दोनों में से किसी ने भी नहीं सुना कि किसकी फ़ौजें शहर में आयी हैं, वे अपने साथ क्या लायी हैं और ज़ापोरोजी क़ैदी कौन हैं। ऐसी नैसर्गिक भावनाओं से विभोर अन्द्रेई ने उन मीठे होंठों को चूम लिया जो उसके गालों को छू रहे थे और वे होंठ भी बेअसर नहीं रहेः उन्होंने भी प्यार का जवाब प्यार से दिया। और इस पारस्परिक चुंबन में उन दोनों ने वह चीज़ महसूस की जिसका अनुभव नश्वर मनुष्य को अपने जीवन में केवल एक बार होता है।
और कज़ाक खो गया! तमाम कज़ाकी सूरमाई के लिए उसका अस्तित्व मिट गया! वह जापोरोेज्ये को, अपने बाप के गांवों को, अपने खुदा के गिरजे को कभी नहीं देखेगा! उक्राइन भी अपने एक सबसे बहादुर बेटे को नहीं देखेगा जिसने उसकी रक्षा करने का बीड़ा उठाया था। बूढ़ा तारास अपनी चोटी में से सफ़ेद बालों की एक लट नोचकर फेंक देगा और उस दिन और उस घड़ी को कोसेगा जब उसने ऐसा बेटा पैदा किया जो उसके लिए शर्म का कारण बना।
7
ज़ापोरोजी कैंप में शोरग़ुल और हलचल मची हुई थी। शुरू में तो कोई समझ ही नहीं सका कि फ़ौजें शहर में पहुंच कैसे गयीं। बाद में मालूम हुआ कि पेरेयास्लाव कुरेन, जिसका पड़ाव शहर के बग़लवाले फाटकों के पास था, नशे में धुत्त हो गया था, इसलिए यह कोई ताज्जुब की बात नहीं थी कि उसके आधे लोग मारे गये और बाक़ी आधे, इससे पहले कि वे समझ पायें कि क्या माजरा है, बांध लिए गये थे। जब तक पासवाले दूसरे कुरेन के लोग, जो शोरगु़ल से जाग पड़े थे, अपने हथियार संभाल रहे थे, फ़ौजें फाटक केअंदर पहुंच चुकी थीं और उनकी पीछे की पांतों ने अपनी गोलियों से अधजगे और अर्ध-चेतन ज़ापोरोजियों को, जो लस्टम-पस्टम उनके पीछे दौड़ पड़े थे, पीछे खदेड़ दिया। कोशेवोई ने सबको जमा होने का हुक्म दिया और जब वे गोलाई में नंगे सिर खड़े हो गये और ख़ामोशी छा गयी तो उसने कहाः
“आपने देखा, भाइयो, आज रात क्या हुआ है। आपने देख लिया कि मदहोशी का क्या अंजाम हुआ है! आपने देख लिया कि दुश्मन ने हमें किस तरह नीचा दिखाया है! इस किस्म के लोग हैं आप कि अगर आपका वोदका दुगना कर दिया जाता है तो आप इसे चढ़ाते ही रहते हैं यहां तक कि ईसाई सिपाहियों के दुश्मन न सिर्फ़ आपके पतलून उतार लेते हैं बल्कि आपके मुंह पर छींकते हैं और आपको पता भी नहीं चलता।”
सारे कज़ाक सिर झुकाये खड़े रहे। उन्हें अपने अपराध का आभासा था। सिर्फ़ नेज़ामाईका कुरेन केआतामान कुकूबेनको ने जवाब दिया।
“ठहरिये, आतामान!”उसने कहा। “जब कोशेवोई पूरी फ़ौज के सामने बोल रहा हो तो उसको जवाब देना क़ानून के खि़लाफ़ है लेकिन बात उस तरह नहीं हुई थी जिस तरह आपने बतायी है और इसीलिए मैं बोलूंगा। आपका इस ईसाई फ़ौज को दोष देना पूरी तरह ठीक नहीं है। अगर कज़ाक कूच करते हुए या लड़ाई के दौरान या किसी कठिन और सख्त काम के बीच नशे में चूर हुए होते तो बेशक वे दोषी और गर्दन उड़ा देने के क़ाबिल होते। लेकिन हम इतने दिन से बेकार बैठे हैं और शहर के आस-पास मंडरा रहे हैं। कोई उपवास या और कोई ईसाई पर्व भी नहीं है, तो फिर बेकारी की इस हालत में आदमी पीकर मदहोश न हो जाये तो क्या करे? इसमें कोई गुनाह की बात नहीं है। आइये, अब हम इन लोगों को दिखा दें कि वे बेगुनाह लोगों पर इस तरह हमला नहीं कर सकते। हमने उन्हें पहले भी अच्छी तरह छकाया है और हम एक बार फिर उन्हें इतनी बुरी तरह हरायेंगे कि वे अपनी जान नहीं बचा सकेंगे।”
कुरने के आतामान के भाषण ने कज़ाकों का जी खुश कर दिया। उन्होंने अपने सिर ऊपर उठा लिये जो नीचे ही झुकते जा रहे थे, और उनमें से बहुतों ने प्रशंसा से सिर हिलाया और कहाः “कुकूबेनको ने अच्छी बात कही है!”और तारास बुल्बा ने, जो कोशेवोई के पास ही खड़ा था, कहाः
“अब क्या, कोशेवोई? कुकूबेनको ने, लगता है, सही बात कही है, क्यों? तुम इसके बारे में क्या कहते हो?”
“मैं क्या कहता हूँ? मैं कहता हूँ कि वह खुशकि़स्मत बाप है जिसका ऐसा बेटा हो! शिकायत के शब्द कहने के लिए ज़्यादा अक़्ल की ज़रूरत नहीं होती मगर ऐसे शब्द कहने के लिए बहुत समझदारी की जरूरत नहीं होती है जो किसी को दुख में और दुखी न करें बल्कि उसे बढ़ावा दें और उसकी हिम्मत बढ़ायें, जैसे पानी पीकर तरोताज़ा हो जाने के बाद घोड़े को एड़ लगाने से उसका हौसला बढ़ता है। मैं तुम लोगों की हिम्मत बढ़ाने के लिए कुछ शब्द कहने ही जा रहा था मगर कुकूबेनकों को यह बात मुझसे जल्दी सूझ गयी।”
“कोशेवोई ने भी ठीक ही कहा!”ज़ापोरोजियों की पांतों में ये शब्द गूंज गये। “ठीक कहा!”औरों ने हामी भरी। और सबसे बुजु़र्ग लोगों ने भी सिर हिलाया और अपनी चाँदी जैसी सफ़ेद मूंछें फड़कायीं और धीरे से बोलेः “ठीक ही कहा!”
“अब सुनिये, भाइयो!”कोशेवोई ने आगे कहा, “कि़ले को जहन्नुम में जाये वह कमबख्त-जर्मनों की तरह कमंद डालकर या नीचे सुरंग खोदकर सर करना कज़ाकों की शान के खिलाफ़ है। लेकिन तमाम बातों से जहां तक पता चलता है, दुश्मन शहर में ज़्यादा रसद लेकर दाखि़ल नहीं हुआ है, उसके पास ज़्यादा गाडि़यां नहीं थीं… शहर के लोग भूखे हैं, वे सब कुछ फ़ौरन खा-पीकर खतम कर देंगे। और रहे उनके घोड़े, तो मैं नहीं जानता कि वे लोग घास का क्या इंतज़ाम करेंगे सिवाय इसके कि उनका कोई संत आसमान से उनके लिए घास टपका दे… इसके बारे में तो भगवान ही बेहतर जानता है और उनके पादरियों को सिर्फ़ चिकनी-चुपड़ी बातें करनी आती हैं… किसी न किसी वजह से उन्हें शहर से बाहर तो निकलना ही होगा। तो आप लोग तीन टोलियों में बंट जाइये और तीनों फाटकों के सामने की तीन सड़कों पर तैनात हो जाइये। ख़ास फाटक के सामने पांच कुरेन और बाक़ी दो फाटकों के सामने तीन-तीन कुरेन रहें। द्यादकीव्का और कोरसून्का कुरेन घात में बैठेंगे। कर्नल तारास भी अपनी रेजीमेंट के साथ घात में रहेंगे। तितरेव्का और तिमोशेव्का कुरेन रिज़र्व में रहेंगे और सामान की गाडि़यों की लाइन के दाहिनी तरफ़ रहेंगे और श्चेर्बिनोव्का और ऊपरी स्तेबलिकीव्का कुरेन उसके बाईं तरफ़। और वे जांबाज़ जिनकी ज़बानें क़ैची की तरह तेज़ हैं, आगे बढ़कर दुश्मन को छेड़ेंगे और सतायेंगे! पोलिस्तानी का दिमाग़ स्वाभाव से ही ख़ाली होता है, वे आप लोगों के ताने-तिश्ने बर्दाश्त नहीं कर सकेंगे और मुमकिन है कि वे सब आज ही फाटकों से बाहर निकल पड़ें। सभी कुरेनों के आतामान अपने-अपने कुरेनों को अच्छी तरह देख लें। उनमें से जिस में लोगों की कमी हो उसे पेरेयास्लाव कुरेन के बाक़ी बचे लोगों से पूरा कर लिया जाये। हर चीज़ की देखभल एक बार फिर कर लीजिये। हर आदमी को एक-एक रोटी और एक-एक प्याला वोद्का दे दीजिये ताकि सबके दिमाग़ साफ़ हो जायें। लेकिन हर आदमी का पेट अभी तक कल ही के खाने से भरा होगा, क्योंकि सच पूछिये तो कल आप लोगों ने इतना ठूंस-ठूंसकर खाया था कि मुझे हैरत है कि रात आप में से किसी का पेट फट नहीं गया। और एक और हुक्म सुन लीजियेः अगर कोई यहूदी शराबखाने का मालिक किसी कज़ाक के हाथ वोद्का का एक प्याला भी बेचेगा तो मैं उसके माथे पर कील से सुअर का कान जड़वा दूंगा और उसे उल्टा लटकवा दूंगा। तो अब काम में जुट जाइये, भाइयो, काम में!”
ये थे कोशेवोई के हुक्म, सभी उसके सामने दोहरे होकर झुके और नंगे सिर अपनी-अपनी गाडि़यों और अपने-अपने पड़ावों की ओर चल पड़े, और काफ़ी दूर जाकर ही उन्होंने अपने सिर ढके। सब लोग तैयारियों में जुट गये, उन्होंने अपनी चौड़ी तलवारों और तेग़ों को आज़माकर देखा। बोरों से अपने-अपने सींगड़ों में बारूद उलटा, गाडि़यों को पीछे हटाकर क़ायदे से लगाया और घोड़े पसंद किये।
अपनी रेजीमेंट की तरफ़ जाते हुए पूरे वक़्त तारास सोचता और हैरान होता रहा कि अन्द्रेई कहां ग़ायब हो गया। कहीं औरों के साथ उसे भी तो साते में ही हाथ-पांव बांधकर पकड़ तो नहीं लिया गया? लेकिन नहीं, अन्द्रेई जीते-जी कै़दी बननेवाला आदमी नहीं था। लेकिन वह मारे गये कज़ाकों के बीच भी कहीं दिखायी नहीं दे रहा था। रेजीमेंट की अगुवाई करते हुए तारास अपने ख़्यालों में इतना डूबा हुआ था कि उसने सुना ही नहीं कि बहुत देर से कोई उसका नाम ले-लेकर पुकार रहा है।
“मुझसे किसे काम है?”उसने आखि़रकार चौंककर पूछा।
उसके सामने यहूदी यांकेल खड़ा था।
“कर्नल साहब!”यहूदी इतनी जल्दी-जल्दी और ऐसी लड़खड़ाती हुई आवाज़ में चिल्लाया जैसे वह कोई काफ़ी ज़रूरी बात बताना चाहता हो। “मैं शहर होकर आया हूँ, कर्नल साहब!”
तारास यहूदी को ताकने लगा और हैरान हुआ कि वह किस तरह शहर मेें घुसने और वहां से निकलने में कामयाब हो गया।
“तुम्हें वहां जाने का क्या भूत सवार हुआ था?”
“मैं अभी आपको बताता हूँ,”यांकेल बोला। “सुबह होते ही जब कज़ाक गोलियां चलाने लगे और जैसे ही मैंने यह सब शोरगु़ल सुना तो मैंने अपना काफ़्तान उठाया और उसे पहने बिना ही सरपट भागा और दौड़ते-दौड़ते ही मैंने उसकी आस्तीनों में हाथ डाले क्योंकि मैं जल्दी से जल्दी मालूम करना चाहता था कि यह शोर क्यों हो रहा है और कज़ाक इतने सवेरे से ही गोली क्यों चला रहे हैं। सो मैं दौड़ता हुआ शहर के फाटकों तक पहुंच तक पहुंच गया, उसी वक़्त फ़ौजों का पिछला हिस्सा शहर में दाखिल हो रहा था। और वहां अपनी फ़ौज के आगे-आगे झंडाबरदार गल्यान्दोविच चल रहे थे। इन साहब को मैं जानता हूँ, पिछले तीन साल से उन्हें मुझे सौ ड्यूकट देने हैं। मैं उनके पीछे इस तरह दौड़ा जैसे उनसे अपना क़र्ज़ वापस लेना चाहता हूँ और इस तरह उन लोगों के साथ-साथ शहर में घुस गया।”
“सो कैसे? तुम शहर में घुस गये क़र्ज़ वसूल करने के लिए? “तारास ने कहा। “और उसने हुक्म देकर तुम्हें कुत्ते की तरह वहीं फांसी पर लटकवा नहीं दिया? “
“भगवान की क़सम, वह सचमुच मुझे फांसी चढ़वा देना चाहते थे!”यहूदी ने जवाब दिया। “उनके नौकरों ने तो मुझे पकड़कर मेरे गले में फांसी का फंदा डाल भी दिया था लेकिन मैंने उन साहब की मिन्नत खुशामद की कि मुझे छोड़ दें और कहा कि वह क़र्ज़ जब चाहें अदा कर दें, मैं उस वक़्त तक इंतज़ार करूंगा, मैंने यह भी वादा किया कि अगर वह दूसरे सामंतों से क़र्ज़ वापस दिलाने में मेरी मदद करेंगे तो मैं उन्हें और क़र्ज़ भी दे दूंगा। असल में उन झंडाबरदार साहब की जेब में एक फूटी कौड़ी भी नहीं है- मैं आपको सब कुछ बताये देता हूँ, हालांकि उनके पास गांव और हवेलियां और चार कि़ले और इतनी बहुत-सी स्तेपी की ज़मीन है कि उसका एक सिरा क़रीब-क़रीब श्क्लोव शहर तक पहुंचता है फिर भी उसके पास एक कज़ाक से ज़्यादा पैसा नहीं हैं- एक फूटी कौड़ी भी नहीं। इस वक़्त भी अगर ब्रेस्लाव के यहूदियों ने उनके लिए सब साज़-सामान न जुटाया होता तो उनके पास लड़ाई पर जाने के लिए कुछ भी न होता। इसीलिए वह दियेत में भी नहीं जा सके……।”
“अच्छा तो तुमने शहर में क्या किया? हमारे आदमियों में से कोई वहां नजर आया?”
“हां, क्यों नहीं? वहां हमारे बहुत-से लोग हैंः आइजे़क और रहूम और सैमुएल, और हैवालोह, और यहूदी पट्टेदार…।”
“जहन्नुम में जायें वे कुत्ते!”तारास ग़ुस्से से भड़ककर चिल्लाया, “मुझे तुम्हारे यहूदियों के गिरोह से क्या वास्ता! मैं तो अपने ज़ापोरोजियों के बारे में पूछ रहा हूँ।”
“अपने ज़ापोरोजी तो मैंने देखे नहीं। मैंने तो बस हुजूर अन्द्रेई को देखा!”
“तुमने अन्द्रेई को देखा?”तारास चिल्लाया। “ठीक-ठीक बताओ, यहूदी, तुमने उसे कहां देखा? तहखानेवाले क़ैदखाने में? किसी गढ़े में? बेइज़्ज़त किया हुआ? हाथ-पांव बंधे हुए?”
“हुज़ूर अन्द्रेई के साथ-पांव बांधने की हिम्मत कौन कर सकता है! वह तो एक बहुत शानदार सूरमा बन गये हैं। भगवान की क़सम, मैंने तो उन्हें बड़ी मुश्किल से पहचाना। उनके कंधों पर लगे हुए पत्तर सोने के, उनकी बांहों के खोल सोने के, उनका चारआइना सोने का, उनका खोद सोने का और उनका कमरबंद सोने का, हर जगह हर चीज़ सोने की। वसंत में, जब बाग़ में सारे पक्षी गाते और चहचहाते हैं और घास में से एक मीठी-मीठी सुगंध उठती है, जिस तरह सूरज जगमगाता है, उसी तरह वह अब सोने में जगमग कर रहे हैं और गवर्नर ने उन्हें अपना सबसे अच्छा सवारी का घोड़ा दे दिया है, अकेले वह घोड़ा ही दो सौ ड्यूकट से कम का नहीं होगा।”
बुल्बा सन्न रह गया।
“लेकिन उसने विदेशी कवच क्यों पहना है?”
“क्योंकि वह ज़्यादा अच्छा है इसलिए पहना है… और वह घोड़े पर सवार होकर इधर-उधर फिरते हैं और दूसरे लोग भी घोड़े पर सवार इधर-उधर फिरते हैं। वह उन लोगों को सिखाते हैं और वे लोग इन्हें सिखाते हैं। बिल्कुल एक अमीर पोलिस्तानी रईस की तरह! “
“उसे किसने ऐसा करने पर मजबूर किया?”
“मैं यह नहीं कहूंगा कि किसी ने उन्हें मजबूर किया! क्या हुजूर को मालूम नहीं कि वह खुद अपनी मजऱ्ी से उन लोगों से जा मिले हैं?”
“कौन उधर जा मिला है?”
“हुज़ूर अन्द्रेई, और कौन?”
“कहां गया है?”
“उनकी तरफ़ चले गये हैं और अब पूरी तरह वह उनके आदमी हैं।”
“तुम झूठ बोलते हो, सुअर के बच्चे!”
“मैं झूठ कैसे बोल सकता हूँ? मैं बेवकूफ़ तो नहीं हूँ कि झूठ बोलूँ! क्या मैं झूठ बोलकर अपनी जान जोखिम में डालूंगा? क्या मैं नहीं जानता कि जो यहूदी किसी रईस के सामने झूठ बोलेगा उसे कुत्ते की तरह फांसी पर चढ़वा दिया जायेगा?”
“तो तुम्हारे कहने का मतलब यह हुआ कि उसने अपने देश और अपने ईमान को बेच दिया है?”
‘‘मैं यह नहीं कहता कि उन्होंने कोई चीज़ बेची है। मैं तो सिर्फ़ यह कह रहा हूं कि वह उनकी तरफ़ चले गये हैं।’’
‘‘तुम झूठ बकते हो, कमबख्त यहूदी! आज तक ईसाई धरती पर ऐसा नहीं हुआ। तुम झूठ बोलते हो, कुत्ते।’’
‘‘अगर मैं झूठ बोल रहा हूं तो भगवान करे मेरे घर की चौखट पर घास उगे। अगर मैं झूठ बोल रहा हूं तो भगवान करे हर आदमी मेरी मां और मेरे बाप और मेरे ससुर, मेरे दादा और मेरे नाना सबकी क़ब्रों पर थूके! अगर हुजूर चाहें तो मैं यह भी बता सकता हूं कि वह उनकी तरफ़ क्यों गये हैं।’’
‘‘क्यों?’’
‘‘गवर्नर की एक खूबसूरत बेटी है-भगवान किस बला की खूबसूरत है!’’
यहां पर यहूदी ने अपने चेहरे से सुंदरता का भाव प्रकट करने की भरपूर कोशिश की। उसने अपनी बांहें फैला दीं, एक आंख मींच ली और मुंह इस तरह बिचकाया जैसे उसने अभी-अभी कोई मजेदार चीज़ चखी हो।
“तो उससे क्या हुआ?”
“उन्होंने उसी की खातिर यह सब कुछ किया और उस तरफ़ चले गये। प्यार का मारा आदमी जूते के तले की तरह होेता है- उसे पानी में भिगो दो और जिस तरह चाहो तोड़-मरोड़ लो।”
बुल्बा विचारों में डूबा हुआ था, उसे याद आया कि कमजोर औरत की ताक़त बहुत ज्यादा होती है, वह न जाने कितने ताक़तवर मर्दों को तबाह कर चुकी है। अन्द्रेई का स्वभाव ही ऐसा था कि वह आसानी से औरत के जादू का शिकार हो सकता था। और बुल्बा बहुत देर तक बिना हिले-डुले खड़ा रहा जैसे उसके पांव ज़मीन में गड़कर रह गये हों।
“सुनिये, हुज़ुर, मैं हुज़ूर को सारी बात बता दूं,”यहूदी ने कहा। “जैसे ही मैंने शोरगु़ल सुना और उनको शहर के फाटकों से अंदर जाते देखा तो मैंने एक मोतियों की लड़ी उठा ली जो मेरा ख्याल था कि मेरे काम आ सकेगी, क्योंकि शहर में रईस औरतें और सुंदरियां बहुत-सी हैं। अपने दिल में सोचा कि जहां रईस औरतें सुंदरियां हों वहां मेरे मोती ज़रूर ख़रीदे जायेंगे, चाहे उनके पास खाने को कुछ न हो। सो जैसे ही झंडाबरदार के नौकरों ने मुझे छोड़ दिया वैसे ही मैं दौड़ता हुआ, अपने मोती बेचने के लिए, गवर्नर के मकान के आंगन में जा पहुंचा और वहां मुझे तातार औरत से सब कुछ मालूम हो गया। ‘जिस दम ज़ापोरोजियों को भगा दिया जायेगा उसी वक़्त यहां शादी होगी। हुज़ूर अन्द्रेई ने ज़ापोरोजियों को खदेड़ देने का वादा किया है!’ “
“और तुमने उस शैतान के बच्चे को वहीं का वहीं खत्म नहीं कर दिया?”बुल्बा गरजा।
“उन्हें खत्म क्यों कर देता? वह अपनी मजऱ्ी से उस तरफ़ गये हैं। उन्होंने क्या ग़लत बात की है? उनके लिए वहां ज़्यादा अच्छा है सो उधर चले गये।”
“और तुमने उसको बिल्कुल आमने-सामने देखा?”
“भगवान की क़सम, मैंने बिल्कुल ऐसे ही देखा! कैसा शानदार सूरमा! उन सबसे ज़्यादा शानदार! भगवान उन पर रहम करे, उन्होंने मुझे फ़ौरन पहचान लिया और जब मैं उनके पास गया तो वह मुझसे बोले…।”
“क्या कहा उसने?”
“उन्होंने कहा-नहीं, पहले उन्होंने इशारे से मुझे बुलाया और उसके बाद बोलेः ‘यांकेल!’ और मैंने कहाः ‘हुज़ूर अन्द्रेई!’ ‘यांकेल!’ मेरे बाप से, मेरे भाई से, सारे कज़ाकों से, सारे ज़ापोरोजियों से, सब से कह देना कि मेरा बाप मेरा बाप नहीं रहा, मेरा भाई मेरा भाई नहीं रहा, मेरे साथी मेरे साथी नहीं रहे और मैं उन सब से लडूंगा। इनमें से हर एक से मैं लडंूगा!”
“तुम झूठ बोल रहे हो, जहन्नुमी जूडास!”तारास गु़स्सेे से चीखा। “झूठ बोलते हो तुम, कुत्ते! तुमने मसीह को भी सूली पर चढ़ाया, भगवान की मार हो तुम पर! मैं तुम्हें जान से मार डालूंगा, शैतान! दफ़ा हो जाओ यहां से और अगर यहां ठहरे तो यहीं क़त्ल हो जाओगे!”और यह कहते हुए तारास ने अपनी तेग़ म्यान से निकाल ली।
डरा हुआ यहूदी फ़ौरन भाग खड़ा हुआ और उसकी सूखी दुबली टांगे उसे जितनी तेज़ी से ले जा सकती थीं उतनी तेज़ी से वह भागता रहा। वह बिना पीछे मुड़े कज़ाकी पड़ाव को पार करके खुले स्तेपी में पहुंचकर भी बहुत देर तक तक भागता रहा, हालांकि तारास को जब यह महसूस हो गया कि सबसे पहले सामने आ जानेवाले पर अपना गु़स्सा उतारना बेवक़ूफ़ी के सिवा और कुछ नहीं है तो उसने यहूदी का पीछा नहीं किया।
अब उसे याद आया कि पिछली रात उसने अन्द्रेई को एक औरत के साथ पड़ाव से जाते देखा था। और उसने अपना सफ़ेद बालोंवाला सिर झुका लिया हालांकि वह अब भी यह यक़ीन करने को तैयार नहीं था इतनी शर्मनाक बात हो गयी है कि उसके अपने बेटे ने अपनी आत्मा और अपने धर्म को बेच दिया।
आखिरकार वह अपनी रेजीमेंट को घात में तैनात करने के लिए ले गया और उसके साथ उस एक अकेले जंगल में जाकार ग़ायब हो गया जिसे कज़ाकों ने अभी जा तक जलाया नहीं था। इसी बीच ज़ापोरोजी पैदल और घुड़सवार तीनों फाटकों की तरफ़ जानेवाली तीन सड़कों की ओर बढ़ने लगे। सब कुरेन एक के बाद एक कूच करने लगेः उमान, पोपोविच कानेव, स्तेबलिकीव्का, नेज़ामाईका, गुरगुज़, तितरेव्का और तिमोशेव्का, सिर्फ़ पेरेयास्लाव कुरने वहां नहीं था। उसके कज़ाकों ने वोद्का कुछ ज़्यादा ही पी ली थी और उन्होंने अपनी खुशकि़स्मती को उसमें डुबो दिया था। उनमें से कुछ दुश्मन की क़ैद में हाथ-पांव बंधे हुए जागे। और कुछ कभी जागे ही नहीं बल्कि ठंडी ज़मीन पर पड़े-पड़े सोते ही सोते मौत की नींद सो गये। और खुद आतामान ख्लिब ने, जिसके सारे ऊपरी कपड़े और पतलून सब कुछ उतार लिया गया था, अपने आपको पोलिस्तानी पड़ाव में पाया।
शहर में दुश्मन की हलचल की आवाज़ें सुनायी दे रही थीं, सब लोग शहर की दीवारों पर जमा थे और कज़ाकों को जि़ंदादिली की तस्वीर दिखायी दी। एक से बढ़कर एक खूबसूरत पोलिस्तानी सूरमा फ़सील पर खड़े थे। राजहंस के सफ़ेद बुर्राक़ परों से सजे पीतल के ख़ोद अनगिनत सूरजों की तरह चमक रहे थे। और कुछ लोग गुलाबी या आसमानी रंग की छोटी-छोटी, हल्की टोपियां पहने थे जिनके ऊपर के हिस्से उन्होंने एक तरफ़ टेढ़े कर रखे थे, उन्होंने कारचोबी या लैस से सजे हुए कोट पहन रख थे जिनकी आस्तीनें उनके कंधों के पीछे लटक रही थीं। बहुतों के पास क़ीमती जड़ाऊ तलवारें और बंदूक़ें थीं जिनके लिए इन हज़रात ने बहुत ऊंची क़ीमतें दी होंगी। इसके अलावा सजावट का दूसरा सामान भी दिखायी दे रहा था। सबसे आगे बुदजाक कर्नल सुनहरी गोट की लाल टोपी पहने अकड़ा हुआ खड़ा था। वह सबसे लंबा और भारी-भरकम आदमी था और अपने क़ीमती और लंबे-चौड़े कोट में मुश्किल ही से समा पा रहा था। दूसरी ओर, बग़ल के एक फाटक पर एक और कर्नल खड़ा था- एक नाटा, सूखा, छोटा-सा आदमी, जिसकी घनी भवों के नीचे उसकी छोटी-छोटी बेधती हुई आंखों से एक तेज़ चमक निकल रही थी। वह फुर्ती से हर तरफ़ मुड़ रहा था और हुक्म देते वक़्त अपने दुबले सूखे हुए हाथ से ज़ोर-ज़ोर से इशारे करता जा रहा था। साफ़ पता चलता था कि अपने नाटे क़द के बावजूद वह लड़ाई के हुनर का उस्ताद था। उसके पास ही घनी मूंछोंवाला एक लंबा, दुबला झंडाबरदार खड़ा था, जिसके चेहरे पर तरह-तरह के रंगों की बहार थी-जो इस बात का पक्का सबूत था कि वह तेज़ शहद की शराब पीने और रंगरेलियों का शौक़ीन था। उसके पीछे और बहुत-से रईस खड़े थे जो या तो अपने पैसे से लड़ाई के सामान से लैस हुए थे या बादशाह के खज़ाने से या फिर अपने खानदानी कि़लों की हर चीज़ को यहूदियों के पास गिरवी रखकर उस पैसे से। और ऐसे मुफ़्तखोरों की गिनती भी कुछ कम न थी जो घमंडी सीनेटरों के यहां पड़े-पड़े रोटियां तोड़ते थे और जिन्हें ये हाकिम और ज़्यादा दिखावे के लिए दावतों में अपने साथ ले जाते थे और जो मेज़ों और बरतनों की अलमारियों में से चाँदी के प्याले चुराते थे और जब दिन-भर का तमाशा ख़त्म हो जाता था तो वे उसी रईस की बग्घी पर कोचवान की बग़ल में जा बैठते थे। हां, वहां तरह-तरह के लोग थे। उनमें से कुछ की जेब में एक बार की शराब के लिए भी पैसे नहीं थे मगर लड़ाई के लिए सभी ने भड़कीली पोशाकें पहन रखी थीं।
कज़ाकों की पांतें चुपचाप दीवारों के सामने खड़ी थीं। उनके लिबास में तोला-भर भी सोना नहीं था और वह सिर्फ़ कहीं-कहीं तलवारों की मूठ और बंदूक़ के दस्ते पर ही चमकता था। कज़ाक भड़कीला फ़ौजी लिबास पसंद नहीं करते थे। उनके कवच और उनकी पोशाक सब चीज़ें सीधी-सादी थीं और उनकी लाल चंदवेवाली भेड़ की खाल की काली टोपियां लड़ाई के मैदान में दूर तक हर तरफ़ छायी हुई थीं।
दो कज़ाक ज़ापोरोजियों की पांतों में से निकलकर बाहर आये। उनमें से एक काफ़ी जवान था और दूसरा कुछ बड़ी उम्र का था, दोनों ज़बान के तेज़ थे और अपने कारनामों में भी वे बुरे कज़ाक नहीं थे-उनके नाम थे ओरिव्ऱम नाश और मिकीता गोलोकोपीतेंको, उनके पीछे एक गठीला कज़ाक देमीद पोपोविच घोड़े पर सवार आ रहा था, जो बहुत समय से सेच में था और आद्रिअनोपोल में लड़ चुका था और अपनी जिंदगी में बहुत-सी मुसीबतें झेल चुका थाः उसे टिकटी से बांधकर लगभग आग में जला दिया गया था और वह इस हालत में भागकर सेच पहुंचा था कि उसका तारकोल मला हुआ सिर जलकर कोयला बन गया था और मूंछें झुलस गयी थीं। लेकिन पोपोविच फिर चंगा हो गया था, एक बार फिर वह अपनी चोटी कान पर लपेटने लगा था और उसने घनी और तारकोल जैसी काली मूछें बढ़ा ली थीं। वह भी जली-कटी बातें सुनाने में उस्ताद था।
“ओह! पूरी फ़ौज लाल जुपानों में है, लेकिन मैं दावे से कह सकता हूँ कि अंदर उनके कलेजे में कोई दम नहीं है।”
“मैं तुम्हें मज़ा चखा दूंगा,”मोटा ताज़ा कर्नल ऊपर से गरजा। “मैं तुम सबको ज़ंजीरों में बंधवा दूंगा। गु़लामो, अपने हथियार और अपने घोड़े हमारे हवाले कर दो! तुमने देखा कि मैंने तुम्हारे साथियों को किस तरह बांधा? अरे, ओ, ज़ापोरोजियों को यहां दीवार पर लाओ ताकि ये लोग भी देख सकें!”
रस्सियों में जकड़े हुए ज़ापोरोजी दीवार पर लाये गये। सबसे आगे उनके कुरेन का आतामान ख्लिब था जिसकी ऊपर की पोशाक और पतलून ग़ायब था- वह बिल्कुल इसी हालत में था जिसमें वह अपनी मदहोश नींद में क़ैद किया गया था। उसने सिर झुका लिया क्योंकि वह शर्मिंदा था कि उसके कज़ाक उसे नंगा देख रहे थे और इसलिए कि वह कुत्ते की तरह सोते में गिरफ़्तार कर लिया गया था उसके सिर के बाल एक रात में सफ़ेद हो गये थे।
“जी दुःखी मत करो, ख्लिब! हम तुम्हें आज़ाद करायेंगे!”कज़ाक नीचे से चिल्लाये।
“हिम्मत न हारो, दोस्त!”बोरोदाती ने कहा जो एक कुरने का आतामान था। “इसमें तुम्हारा कोई क़सूर नहीं है कि इन लोगों ने तुम्हें नंगा गिरफ़्तार कर लिया-किसी पर भी यह मुसीबत आ सकती है। लेकिन इन लोगों को शर्म आनी चाहिये कि ये तुम्हें नंगा ही सब के सामने दिखा रहे हैं।”
“क्या कहने! तुम कैसे बहादुर सिपाही हो कि सोये हुए आदमियों के साथ लड़ते हो!”गोलोकोपीतेंको ऊपर दीवार की तरफ़ देखकर चिल्लाया।
“ठहर तो जाओ ज़रा, हम तुम्हारी चोटियां काटकर न फेंक दें तो कहना!”ऊपरवाले चिल्लाये।
“मैं भी तो ज़रा देखूं कैसे ये हमारी चोटियां काटते हैं!”पोपोविच ने कहा। फिर घोड़े पर बैठे-बैठे ही मुड़कर उसने कज़ाकों की तरफ़ देखा और बोलाः “लेकिन क्यों नहीं? शायद पोलिस्तानी सच ही कहते हैं। वह जो मटके जैसी तोंदवाला दिखायी दे रहा है न, अगर वह इनकी सरदारी करे तो इन सबकी अच्छी हिफ़ाज़त हो सकती है।”
“तुम्हारा यह ख्याल क्यों है कि उनकी अच्छी हिफ़ाज़त होगी?”कज़ाको ने पूछा, वे जानते थे कि पोपाविच के पास यक़ीनन कोई मज़ाक़ तैयार होगा।
“इसलिए कि पूरी फ़ौज उसके पीछे छुप जायेगी और तुम लोग उसकी तोंद की वजह से किसी पर अपने भालों से वार नहीं कर सकोगे।”
सब कज़ाक हँस पड़े और उनमें से कुछ बहुत देर तक सिर हिलाते रहे और फिर बोलेः “पोपोचिव की क्या बात है? उसके शब्द ही इसके लिए काफ़ी हैं कि…”लेकिन कज़ाकों को बात पूरी करने का वक़्त नहीं मिला।
“दूर हटो, दीवारों से दूर हट जाओ!”कोशेवोई चिल्लाया क्योंकि मालूम होता था कि पोलिस्तानी इन चुभते हुए शब्दों को ज़्यादा बर्दाश्त नहीं कर सके थे और कर्नल ने हाथ से इशारा कर दिया था।
कज़ाक मुश्किल से पीछे हटे ही होंगे कि दीवारों पर से गोलियों की बौछार होने लगीं। फ़सीलों पर एक हलचल-सी मच गयी। सफ़ेद बालोंवाल गवर्नर खुद घोड़े पर निकल आया। फाटक खोल दिये गये और फ़ोजें आगे बढ़ने लगीं। हिरावल दस्ते में साफ़-सुथरी क़तारों में घोड़ों पर सवार हुसार थे, उसके बाद ज़ंजीर के कवच पहने एक दस्ता निकला, फिर कवच बर्छियों से लैस दस्ते आगे बढ़े, फिर पीतल के ख़ोद पहने एक दस्ता आया और उसके बाद सबसे ऊंचे अमीर-उमरा एक-एक करके घोड़ों पर सवार आगे बढ़े। इनमें से हर एक ने अपनी-अपनी मरज़ी के कपड़े पहन रखे थे। घमंडी सामंतों को पांतों में दूसरों के साथ घुलने-मिलने की इच्छा न थी और जिन लोगों के पास अपना कोई दस्ता नहीं था वे औरों से अलग अपने नौकरों को साथ लिये चल रहे थे। उसके बाद सिपाहियों की और पांतें आयीं और उनके पीछे झंडाबरदार घोड़े पर सवार आया, उसके पीछे फिर सिपाहियों की और पातें आगे बढ़ीं और भारी-भरकम कर्नल घोड़े पर बैठा हुआ आया और पूरी फ़ौज के पीछे घोड़े पर सवार नाटा कर्नल आगे बढ़ा।
“उन्हें पांतें मत बांधने दो,”कोशेवोई ने चीखकर कहा। “उन पर हमला करो- सारे कुरेन एकसाथ। दूसरे फाटकों से हट आओ। तितरेव्का कुरेन, दायें बाजू़ पर हमला करो। द्यादकीव्का कुरेन बायें पहलू पर! कुकूबेनको और पालिवोदा उन पर पीछे से हमला करो। उनकी पांतें तोड़ दो। उन्हें तितर-बितर कर दो!”
और कज़ाकों न चारों ओर से हमला शुरू कर दिया, पोलिस्तानी पांतों को तितर-बितर कर दिया और गड़बड़ा दिया और उन्हें तोड़कर उनके अंदर गये। उन्होंने दुश्मन को गोली चलाने का मौक़ा ही नहीं दिया। तलवारें और बर्छिया फ़ौरन चलने लगीं। वे सब एक दूसरे से गुथे हुए थे और हर आदमी को अपने जौहर दिखाने का मौक़ा था। देमीद पोपोविच ने तीन मामूली सिपाहियों को बर्छी से छेद दिया और दो सबसे बड़े सामंतों को घोड़ों पर से यह कहते हुए गिरा दियाः “घोड़े अच्छे हैं। ऐसे घोड़ों की चाह बहुत दिनों से मुझे थी।”और उसने घोड़ों को दूर मैदान में खदेड़ दिया और जो कज़ाक वहां खड़े थे उनसे घोड़ों की उसकी तरफ़ से देखभाल करने को कहा। ऐसा करके वह फिर इस घमासान लड़ाई में जुट गया और घोड़ों से गिरे हुए सामंतों पर टूट पड़ा। एक को तो उसने मार गिराया और दूसरे की गर्दन में रस्सी का फंदा डालकर उसे अपने घोड़े से बांध दिया और लड़ाई के मैदान में घसीटे फिरता रहा। उसकी पेटी से लटकता हुआ बटुआ ड्यूकटों से भरा हुआ था और क़ीमती मूठवाली तलवार तो पहले ही उसने अपने क़ब्जे़ में कर ली थी।
कोबीता भी, जो एक नौजवान और खरा कज़ाक था, एक सबसे बहादुर पोलिस्तानी सिपाही के साथ लड़ने लगा और वे दोनों बड़ी देर तक आपस में लड़ते रहे। फिर वह हाथापाई करने लगे। आखिर में कज़ाक अपने दुश्मन पर हावी हो गया और उसे नीचे पटककर अपना तेज़ तुर्की खंजर उसके कलेजे में भोंक दिया। लेकिन कज़ाक भी नहीं बच सका, उसी समय एक जलती हुई गोली उसकी कनपटी पर आ लगी। उसका क़ातिल सबसे ऊंचा सामंत और सबसे खू़बसूरत सूरमा था और वह पुराने राजघराने का सपूत था। पोपलर की तरह शानदार वह हल्के बादामी रंग के अपने तेज़ घोड़े पर इधर से उधर तीर की तरह भागता फिर रहा था और वह शाहाना सूरमाई के बहुत-से कारनामें दिखा चुका थाः उसने दो कज़ाकों के सिर धड़ से अलग कर दिये थे और फ़्योदोर कोर्ज को, जो एक अच्छा कज़ाक था, उसके घोड़े समेत मार गिराया था, घोड़े को तो उसने गोली का निशाना बना दिया और उसके नीचे गिरे हुए कज़ाक को अपने भाले से छेद डाला, वह कितने ही सिर और हाथ काट चुका था और कब कज़ाक कोबीता की कनपटी में गोली मार दी थी।
“यह एक ऐसा आदमी है जिस पर मैं अपनी ताक़त आज़माना चाहता हूँ!”नेज़ामाईका कुरेन का आतामान कुकूबेनको गरजा। अपने घोड़े को एड़ लगाकर वह पीछे की तरफ़ से इतनी ज़ोरदार चिंघाड़ के साथ उसके ऊपर झपटा कि आस-पास के सब लोग दहल उठे। पोलिस्तानी ने अपने घोड़े को मोड़कर दुश्मन का सामना करना चाहा लेकिन घोड़ा इस खौफ़नाक चीख से चौंक पड़ा और उछलकर एक तरफ़ हो गया और कुकूबेनको की बंदूक़ की गोली ने उसके सवार को घायल कर दिया। गोली उसके कंधे की हड्डी में लगी, वह घोड़े से नीचे गिर पड़ा। फिर भी उसने हथियार नहीं डाले और अपने दुश्मन पर जवाबी वार करने की कोशिश करने लगा, मगर तलवार के बोझ से उसका हाथ ढीला होकर नीचे गिर पड़ा और कुकूबेनको ने अपनी भारी चौड़ी तलवार दोनों हाथों में पकड़कर उसके पीले पड़े हुए मुंह में घुसेड़ दी। तलवार के फाल ने उसके दो चीनी जैसे सफ़ेद दांत तोड़ दिये, उसकी ज़बान के दो टुकड़े कर दिये और उसकी गर्दन को चकनाचूर करती हुई ज़मीन में बहुत गहराई तक धंसती चली गयी। इस तरह कुकूबेनको ने उस सामंत को हमेशा के लिए ठंडी ज़मीन में जड़ दिया। उसके शाही खू़न के, जो नदी के किनारे उगे हुए गुलाब की तरह लाल था, फ़व्वारे छूटने लगे, जिससे उसका पीला कारचोबी कोट लाल हो गया। कुकूबेनको तब तक उसे वहीं छोड़कर अपने सिपाहियों के साथ राह बनाता हुआ घमासान लड़ाई के किसी दूसरे हिस्से में घुस चुका था।
“अरे, इसने इतनी क़ीमती ठाट-बाट का सामान छोड़ दिया!”उमान कुरेन के आतामान बोरोदाती ने अपने सिपाहियों के पास से उस जगह की तरफ़ आते हुए कहा जहां कुकूबेनको के हाथों क़त्ल किया हुआ सामंत पड़ा था। “मैंने खुद अपने हाथ से सात सामंत मारे हैं लेकिन ऐसा ठाट-बाट का सामान तो मैंने उनमें से भी किसी के पास नहीं देखा।”
बोरोदाती ललचा गया। वह सामंत का क़ीमती कवच और हथियार उसके बदन पर से उतारने के लिए झुका और उसने जड़ाऊ तुर्की खंजर अपने क़ब्जे़ में कर लिया, उसकी पेटी से ड्यूकटों से भरा बटुआ काट लिया और उसके सीने पर से एक थैला घसीटा जिसमें खूबसूरत कपड़े, क़ीमती चाँदी की चीज़ें और बहुत सहेजकर रखी हुई प्यार की एक निशानी थी-एक लड़की के बालों की लट। लेकिन बोरोदाती ने यह नहीं देखा कि वह लाल नाकवाला झंडाबरदार जिसे उसने घोड़े से गिराकर निशानी की तौर पर एक ज़ोरदार तलवार का हाथ भी रसीद कर दिया था, पीछे से उसके ऊपर झपटनेवाला था। झंडाबरदार ने पूरी ताक़त से अपनी तलवार घुमायी और बोरोदाती की झुकी हुई गर्दन पर भरपूर वार किया। कज़ाक की लालच का नतीजा अच्छा नहीं हुआ, उसका बड़ा-सा सिर दूर जा गिरा और उसके बेसर धड़ ने नीचे गिरकर धरती को दूर-दूर तक लाल कर दिया, और उसकी कठोर कज़ाकी आत्मा, दुखी और नाराज, और इतनी जल्दी इतने हट्टे-कट्टे तन को छोड़ देने पर हैरान, परलोक सिधार गयी। झंडाबरदार ने आतामान का सिर चोटी पकड़कर अभी उठाया ही था कि उसे अपनी ज़ीन से बांध ले, कि इतने में एक बिफरा हुआ बदला लेनेवाला सामने आ गया।
जिस तरह एक बाज़ अपने ताक़तवर परों से आसमान की ऊंचाइयों पर उड़ते हुए बहुत बड़े-बड़े दायरे बनाते-बनाते एकदम रुककर हवा में लटका रहता है और फिर सड़क के किनारे बटेर पर झपट पड़ता है, इसी तरह बुल्बा का बेटा ओस्ताप झंडाबरदार पर झपट पड़ा और उसकी गर्दन में रस्सी का फंदा डाल दिया। जब वह ज़ालिम फंदा उसके गले को दबाने लगा तो झंडाबरदार का लाल मुंह नीला पड़ गया, उसने अपनी पिस्तौल हाथ में ली पर उसका अकड़ता हुआ हाथ ठीक निशाना नहीं लगा सका और गोली कहीं और जा पड़ी। और फिर ओस्ताप ने झंडाबरदार की ज़ीन से वह रेशमी डोरी खोली जो वह अपने बंदियों को बांधने के लिए साथ रखता था और उससे उसके हाथ-पांव बांधकर उसका एक सिरा अपने घोड़े की ज़ीन से बांधा और उसे पूरे मैदान में घसीटता हुआ फिरने लगा। साथ ही उसने उमान कुरेन के तमाम कज़ाकों को पुकारा कि वे आयें और अपने आतामान को अंतिम श्रद्धांजलि अर्पित करें।
ज्यों ही उमान कज़ाकों ने सुना कि उनका आतामान अब इस दुनिया में नहीं रह गया है वे लड़ाई का मैदान छोड़कर उसकी लाश को लाने के लिए दौड़े, और बिना देर किये उन्होंने यह सोचना शुरू कर दिया कि अब किसे आतामान बनाया जाये। आखिरकार वे बोलेः
“बहस की क्या ज़रूरत है? हमें नौजवान ओस्ताप बुल्बा से अच्छा आतामान नहीं मिल सकता। सच है कि वह उम्र में हम सब से कम है लेकिन वह बूढ़ों की तरह अच्छी परख रखता है।”
ओस्ताप ने अपनी टोपी उतारकर इस सम्मान के लिए सारे कज़ाक साथियों का शुक्रिया अदा किया और उसने अपनी नौजवानी या नौजवान बुद्धि की वजह से इस सम्मान को लेने से इंकार नहीं किया, क्योंकि वह जानता था कि लड़ाई के समय ऐसा करना मुनासिब नहीं था। उसने फ़ौरन अपनी अगुवाई में उनको लड़ाई के मैदान में उतार दिया और उन सबको दिखा दिया कि उन्होंने उसे आतामान चुनकर ग़लती नहीं की थी। पोलिस्तानियों ने महसूस किया कि लड़ाई उनके लिए ज़रूरत से ज़्यादा गंभीर होती जा रही थी और वे पीछे हट गये और भागते हुए, मैदान को पार करने लगे ताकि उसके अंतिम सिरे पर पहुंचकर फिर से अपनी पांतें बांध लें। नाटे क़दवाले कर्नल ने चार नयी कंपनियों को इशारा किया जो औरों से अलग फाटकों पर तैनात थीं और वहां से कज़ाकों की भीड़ पर गोलियों की बौछार होने लगी। लेकिन इससे कोई ख़ास नतीजा नहीं निकला क्योंकि गोलियां सिर्फ़ कज़ाकों के बैलों को ज़ख्मी कर रही थीं जो सहमे हुए आंखें फाड़े लड़ाई को ताक रहे थे। बैल डर से हकारने लगे और गाडि़यों को तोड़-फोड़कर और बहुत-से लोगों को अपने पैरों तले रौंदकर कज़ाकी पड़ाव की तरफ़ मुड़े। लेकिन उसी समय तारास घात से निकलकर खुद अपने आपको और अपनी दहाड़ती हुई रेजीमेंट को उनके रास्ते में ले आया। बैलों का पगलाया हुआ झंुड शोरगु़ल से घबराकर फिर मुड़ा और पोलिस्तानी रेजीमेंटों पर टूट पड़ा। उसने घुड़सवारों को गिराकर कुचल डाला और उन सबको तितर-बितर कर दिया।
“बैलो, शुक्रिया!”ज़ापोरोजी चिल्लाये। “तुमने कूच के दौरान हमारी खिदमत की और अब तुम लड़ाई के वक़्त भी हमारे काम आ रहे हो!”और उन्होंने एक नयी ताक़त के साथ दुश्मन पर हमला किया।
दुश्मन के बहुत-से लोग मारे गये। बहुत-से कज़ाकों ने वीरगति पायी जैसे मेतेलित्सा, शीलो, दोनों पिसारेंको, वोवतुजे़ंको और बहुत-से दूसरे कज़ाक। यह देखकर कि हालात उनके लिए ठीक नहीं हैं पोलिस्तानियों ने एक झंडा फहराया और शहर के फाटक खुलवाने के लिए चीखे। लोहे की मज़बूत पट्टियों में जकड़े हुए फाटक चरचराहट की आवाज़ के साथ खुल गये और उन्होंने गर्द से अटे हुए थके-मांदे सवारों को, जो बाड़े में जमा होती हुई भेड़ों की तरह चले आ रहे थे, अपने अंदर ले लिया। काफ़ी ज़ापोरोजी उनका पीछा करने के लिए लपके मगर ओस्ताप ने अपने उमान कुरेन को यह कहकर रोक लियाः “दीवारों से दूर रहो! दीवारों से दूर, भाइयो! उनके पास जाना ठीक नहीं है।”उसने सच ही कहा था क्योंकि दीवारों पर दुश्मन के जो लोग थे उन्होंने कज़ाकों पर गोली चला दी और जो भी चीज़ उनके हाथ लगी नीचे फेंकने लगे और इस तरह हमला करनेवालों में से बहुत से लोगों ने नुक़सान उठाया। तब कोशेवोई आगे बढ़ा और उसने ओस्ताप की प्रशंसा करते हुए कहाः “देखो, यह नया आतामान है लेकिन एक अनुभवी आतामान की तरह अपने कुरेन की अगुवाई करता है!”बूढ़ा बुल्बा यह देखने के लिए मुड़ा कि नया आतामान कौन है और उसने देखा कि उमान कुरेन के आगे-आगे ओस्ताप अपनी टोपी तिरछी किये घोड़े पर सवार चला आ रहा था, और उसके हाथ में आतामान का चोब था। “यह है असली मर्द!”तारास ने उसकी तरफ़ देखकर अपने आप से कहा, बूढ़ा कज़ाक बहुत खुश हुआ और उसके बेटे को जो सम्मान दिया गया था उसके लिए उसने उमान कज़ाकों का शुक्रिया अदा किया।
कज़ाक अपने पड़ाव की ओर वापस जानेवाले ही थे कि पोलिस्तानी फिर शहर की दीवार पर दिखायी दिये मगर अब उनके कपड़े फटे थे और बहुत-से क़ीमती कोटों पर खू़न के छींटे थे और खू़बसूरत पीतल के खोदों पर धूल जमी हुई थी।
“बांध लिया हमें तुमने?”ज़ापोरोजियों ने नीचे से उनसे चिल्लाकर पूछा।
“मैं तुम्हें मज़ा चखा दूंगा!”हट्टे-कट्टे कर्नल ने ऊपर से अपनी पहली धमकी दोहरायी और एक रस्सी दिखायी।
लेकिन अब भी धूल से अटे और थके-मांदे सिपाही एक दूसरे को धमकियां देते रहे और दोनों तरफ़ के ज़्यादा सिरफिरे लोग एक दूसरे पर फब्तियां कसते रहे।
आखिरकार सब वापस चले गये। कुछ लोग जो लड़ाई में थककर चूर हो गये थे आराम करने के लिए लेट गये। कुछ लोग अपने जख्मों पर मिट्टी छिड़कने लगे और मरे हुए दुश्मनों के तन पर से उतारे हुए क़ीमती लिबासों और रूमालों को फाड़-फाड़कर पट्टियां बनाने लगे। कुछ और लोगों ने, जो सबसे कम थके थे, मरे हुए लोगों की लाशें जमा करके उन्हें अंतिम श्रद्धांजलि अर्पित की। चौड़ी तलवारों और बर्छियों से क़ब्रें खोदी गयीं, मिट्टी टोपियों और कोट के दामनों में भर-भरकर ले जायी गयी, लड़ाई के मैदान में मारे गये कज़ाकों को सम्मान के साथ क़ब्र में लिटा दिया गया और उन्हें ताज़ी मिट्टी से ढक दिया गया ताकि बेहरम कौए और उक़ाब उनकी आंखें नोच-नोचकर न निकाल ले जायें। लेकिन पोलिस्तानियों की दर्जनों लाशें बेदर्दी से जंगली घोड़ों की दुमों में बांध दी गयीं और उनके पीछे भागते हुए और उन्हें चाबुकें मारकर कज़ाकों ने उन्हें स्तेपी में हंका दिया। घोड़े मानो पागल होकर पहाडि़यों पर और खड्डों में, और नदी-नालों के पार बुरी तरह दौड़ने लगे और उनके साथ-साथ पोलिस्तानियों की मिट्टी और गर्द से अटी ख़ून में लथपथ लाशें ज़मीन पर घिसटती रहीं।
फिर सब कुरेन घेरे बनाकर रात का खाना खाने बैठे और देर तक अपनी लड़ाइयों और कारनामों की चर्चा करते रहे, जिनका उनमें से हर एक को मौक़ा मिला था और जिनका आनेवाली पीढि़यां अनंत काल तक बखान करेंगी। वे बड़ी देर तक बैठे रहे और सबसे ज़्यादा देर तक तारास बुल्बा बैठा रहा और दुश्मन के सिपाहियों में अन्द्रेई के न होने के बारे में सोचता रहा। क्या इस ग़द्दार को अपने लोगों के मुक़ाबले पर आने से शर्म आ गयी या फिर यहूदी झूठ बोला था और अन्द्रेई सिर्फ़ गिरफ़्तार कर लिया गया था? लेकिन फिर उसे याद आया कि अन्द्रेई के दिल पर औरत की बातों का जादू बहुत आसानी से चल जाता था। तारास व्यथा से बेचैन हो उठा और उसने प्रतिज्ञा की कि वह उस पोलिस्तानी से बदला लेगा जिसने उसके बेटे पर जादू किया था। और वह अपनी प्रतिज्ञा ज़रूर पूरी करता, वह उसकी सुंदरता को न देखता, वह उसकी खूबसूरत घनी चोटी पकड़कर उसे सारे कज़ाकों के बीच मैदान में घसीटता। पहाड़ों की चोटियों पर जमी हुई कभी न पिघलनेवाली बफऱ् जैसे सफ़ेद और चमकदार उसकी खू़बसूरत छातियां और कंधे ज़मीन से रगड़ खाते और धूल और खून में लिथड़ जाते, तारास उसके सुंदर लचीले जिस्म के टुकड़े-टुकड़े कर देता। लेकिन उसे यह मालूम नहीं था कि कल भगवान क्या करनेवाला है। पहले तो वह ऊंघ गया और फिर आखिरकार वह बिल्कुल सो गया।
कज़ाक अब तक आपस में बातचीत कर रहे थे और होशियार और चौकस संतरी पूरी रात अलाव के पास खड़े बड़ी सतर्कता से हर तरफ़ नज़र रख रहे थे।
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सूरज अभी आसमान के बीच तक भी नहीं पहुंचा था कि सारे ज़ापोरोजियों को सभा के लिए इकट्ठा किया गया। सेच से ख़बर आयी थी कि कज़ाकों के वहां न होने पर तातारों ने वहां छापा मारा था, कज़ाकों के छुपे हुए खज़ानों का पता लगा लिया था और उन सब लोगों को जो वहां रह गये थे जान से मार डालने या क़ैदी बनाने के बाद वे मवेशियों के सारे रेवड़ों में और घोड़ों के गल्लों पर क़ब्ज़ा करके उन्हें लेकर सीधे पेरेकोप की तरफ़ चल दिये थे। बस एक कज़ाक, मक्सीम गोलोदूखा, रास्ते में तातारों के हाथों से बचकर निकल भागा था, उसने मिजऱ्ा को क़त्ल कर दिया था, उसकी पेटी से लटकी हुई सेक्विनों की थैली ले ली थी और तातारी घोड़े पर बैठकर और तातारी कपड़ों में डेढ़ दिन और दो रात पीछा करनेवालों से भागता रहा था। उसने घोड़े को इतना थकाया कि आखिर को वह मर गया। फिर वह दूसरे घोड़े पर सवार हुआ, वह भी मर गया और तब वह एक तीसरे घोड़े पर बैठकर ज़ापोरोजी पड़ाव तक पहुंचा था क्योंकि उसने रास्ते में सुन लिया था कि ज़ोपोरोजी शहर दुबनो के पास थे। वह सिर्फ़ उन लोगों को इतना ही बता सका था कि यह मुसीबत आ पड़ी थी लेकिन यह सब कैसे हुआ- कि कज़ाकी आदत से मजबूर बाक़ी बचे ज़ापोरोज़ी इतने मदहोश तो नहीं हो गये थे कि इसी हालत में क़ैद कर लिये गये थे और तातारों ने उस जगह का भेद किस तरह पाया जहां फ़ौज का खज़ाना छुपा हुआ था- इसके बारे में उसने कुछ नहीं बताया। उसकी ताक़त जवाब दे चुकी थी, उसका पूरा जिस्म सूज गया था और उसका चेहरा हवा के थपेड़ों से जला और झुलसा हुआ था, सो वह उसी जगह खड़े-खड़े गिर पड़ा और फ़ौरन गहरी नींद सो गया।
ऐसी हालत में कज़ाकों का क़ायदा था कि वे फ़ौरन ही लुटेरों का पीछा करने के लिए चल खड़े होते थे और रास्ते ही में उनको पकड़ने की कोशिश करते थे, क्योंकि क़ैदियों को जल्दी ही एशिया माइनर, स्मर्ना या क्रीट के टापू की ग़ुलामों की मंडियों में भेज दिया जाता और फिर खुदा जाने कहां-कहां कज़ाकी चोटियाँ नज़र आतीं। यही वजह थी कि इस समय ज़ापोराजी इकट्ठा हुए थे। हर आदमी टोपी पहने खड़ा था क्योंकि वे अपने आतामानों के हुक्म सुनने नहीं आये थे बल्कि बराबरवालों की तरह आपस में सलाह-मशविरा करने जमा हुए थे।
“पहले सरदारों को मशविरा देने दो!”भीड़ में से कोई चिल्लाया।
“कोशेवोई हमें सलाह दो!”दूसरों ने कहा।
और कोशेवोई ने अपनी टोपी उतार ली क्योंकि वह कज़ाकों के सरदार की हैसियत से नहीं बल्कि उनके साथी की हैसियत से बोल रहा था। उसने इस सम्मान के लिए कज़ाकों का शुक्रिया अदा किया और बोलाः
“हमारे बीच बहुत-से लोग उम्र और बुद्धि में मुझसे बड़े हैं लेकिन चूंकि आप लोगों ने मुझे यह इज़्ज़त बख्शी है तो मेरी सलाह यह है कि साथियो, ज़रा भी समय बर्बाद न कीजिये और फ़ौरन तातारों का पीछा करने के लिए चल पडि़ये क्योंकि आप लोग खुद जानते हैं कि तातार किस तरह का होता है। तातार हमारे पहुंचने का इंतज़ार नहीं करेगा, वह अपना लूट का माल पलक झपकते उड़ा डालेगा और उसका कोई नामो-निशान नहीं छोड़ेगा। सो मेरी राय यह है कि हम चल पड़ें। यहां हमने काफ़ी शिकार कर लिया। पोलिस्तानी अब जान गये हैं कि कज़ाक कौन हैं। हमने अपनी हद भर अपने धर्म की बेइज़्ज़ती का बदला ले लिया है और अब फ़ाक़ों से मरता हुआ शहर बेकार-सी चीज़ है। सो मेरी सलाह यही है कि हम चल पड़ें।”
“चलो, चल पड़ें!”सारे कुरेन ज़ोर से चिल्लाये।
लेकिन ये शब्द तारास बुल्बा को बिल्कुल पसंद नहीं आये और उसने अपनी सिकुड़ी हुई भूरी भवों को आंखों पर और भी झुका लिया, उसकी भवें पहाड़ की ऊंची चोटी पर उगी हुई उन काली-काली झाडि़यों की तरह थीं जिन पर जगह-जगह सुई की तरह नुकीला पाला पड़ा हो।
“नहीं, तुम्हारी राय ठीक नहीं है,”उसने कहा, “तुम ऐसा नहीं कह सकते। मालूम होता है कि तुम भूल गये हो कि अभी हमारे क़ैद साथी यहां पोलिस्तानियों के हाथों में पड़े हैं। मालूम होता है तुम चाहते हो कि हम भाईचारे के पहले और सबसे पवित्र नियम को भूल जायें और अपने कज़ाकी भाइयों को यहां छोड़ जायें ताकि उनकी जीते जी खाल खींची जाये, उनके जिस्म के टुकड़े-टुकड़े किये जायें और उनको गाडि़यों में डालकर गांवों गांवों और शहरों में घुमाया जाए और जैसा कि उक्राइन में हेटमैन और बेहतरीन रूसी सामंतों के साथ किया गया था। क्या उन्होंने हर उस चीज़ को, जिसे हम पवित्र समझते हैं, काफ़ी अपवित्र नहीं किया जो अब इसकी कसर रह गयी है? मैं आपसे पूछता हूँ कि हम किस तरह के लोग हैं? वह किस तरह के कज़ाक है जो अपने साथी को मुसीबत में घिरा हुआ छोड़ दे, जो उसे परदेस में कुत्ते की मौत मरने के लिए छोड़ दे? अब अगर यह नौबत आ गयी है कि कोई कज़ाक अपनी इज़्ज़त की क़द्र और क़ीमत नहीं समझता और खुद अपनी दुर्गत करवाने के लिए और अपनी सफ़ेद मूंछों पर थुकवाने के लिए तैयार है तो मुझे कोई इलज़ाम न दे। मैं अकेला ही यहां ठहरूंगा।”
सारे ज़ापोरोजी डगमगा गये।
“तुम शायद यह भूल गये हो, बहादुर कर्नल,”कोशेवोई ने कहा, हमारे साथी तातारों की कै़द में भी हैं और अगर हम उनको रिहा नहीं करायेंगे तो वे सारी उम्र के लिए विधर्मियों के हाथों गुलामों की हैसियत से बेच दिये जायेंगे, जो सबसे भयानक मौत से भी बुरा अंजाम है? क्या तुम यह भूल गये हो कि इस समय तातार हमारे सारे खज़ाने पर क़ब्जा किये हुए हैं जो ईसाइयों के ख़ून की कमाई है? “
कज़ाक यह सुनकर सोच में पड़ गये, उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें। कोई आदमी अपने माथे पर कलंक का टीका लगवाने को तैयार नहीं था। तब कासियान बोवद्यूग, जो ज़ापोरोजी फ़ौज का सबसे ज़्यादा बूढ़ा आदमी था, आगे बढ़ा। सारे कज़ाक उसका आदर करते थे। वह दो बार कोशेवोई बन चुका था और लड़ाई के मामले में भी बहुत अच्छे कज़ाकों में गिना जाता था, लेकिन वह बहुत बूढ़ा हो चुका था और उसने लड़ाई की मुहिमों में हिस्सा लेना छोड़ दिया था। और यों भी वह बूढ़ा सिपाही किसी को सलाह देने का शौक़ीन नहीं था, उसे तो कज़ाकों के बीच करवट के बल लेटकर लड़ाई और जांबाज़ी की कहानियां सुनने में मज़ा आता था। वह उनकी बातों में कभी हिस्सा नहीं लेता था, लेकिन एक-एक शब्द ध्यान से सुनता था और साथ ही अपने छोटे पाइप की, जो उसके मुंह से कभी अलग नहीं होता था, राख को उँगली से दबा-दबाकर अंदर करता रहता था। वह बहुत देर तक इसी तरह अधखुली आंखों के साथ बैठा रहता था और इसीलिए कज़ाकों को कभी पता नहीं चलता था कि वह सो रहा है, या उनकी बातें सुन रहा है और लड़ाई के समय तो वह घर पर ही रहता था लेकिन इस बार बूढ़े कज़ाक से नहीं रहा गया, उसने कज़ाकी अंदाज में अपने हाथ हिलाये और बोला: “जो हो सो हो, मैं तुम्हारे साथ जाऊंगा! हो सकता है मैं अभी कज़ाक बिरादरी के कुछ काम आ सकूं! “
जैसे ही वह सभा के सामने आया सब कज़ाक चुप हो गये। उसको बोलते उन्होंने बहुत दिनों से नहीं सुना था। सब लोग जानना चाहते थे कि बोवद्यूग क्या कहना चाहता है।
“भाइयो, समय आ गया है कि मैं अपनी बात कहूं!”उसने कहना शुरू किया। “बच्चो, इस बूढे़ की बात सुनो। कोशेवोई ने अक्लमंदी की बात कही है। कज़ाक फौज के सरदार की हैसियत से, जिसे फौज की रखवाली करना और खजाने को बनाये रखना है, वह इससे ज्यादा समझदारी की बात कह ही नहीं सकता था। यह सच बात है! सो यह तो हुई मेरी पहली बात! और अब मेरी दूसरी बात सुनो। मेरी दूसरी बात यह हैः कर्नल तारास ने जो कुछ कहा उसमें भी सच्चाई है-खुदा उसकी उम्र बढ़ाये और उक्राइन को उस जैसे और कर्नल नसीब हों! एक कज़ाक का पहला फर्ज और उसकी पहली आन यह है कि वह भाईचारे के उसूल को पूरा करे। अपनी इतनी लंबी ज़िंदगी में मैंने कभी नहीं सुना कि किसी कज़ाक ने अपने किसी साथी को छोड़ा हो या उसके साथ धोखेबाज़ी की हो! जहां जो कज़ाक है वे भी और सेच में जो कैद हुए वे भी हमारे साथी हैं। इससे कोई फ़कऱ् नहीं पड़ता कि कहां कम हैं और कहां ज्यादा। सभी हमारे साथी हैं, सभी हमारे प्यारे हैं। सो मैं यह कहता हूँः जिन लोगों को तातारों के कै़दी ज्यादा प्यारे हैं वे तातारों का पीछा करें और जिनकों पोलिस्तानियों के कैदी ज्यादा प्यारे हैं और जो एक सच्चे मकसद से मुंह नहीं मोड़ना चाहते वे यहां रह जायें। कोशेवोई को अपना फर्ज पूरा करने दो और आधे कज़ाकों को अपनी अगुवाई में तातारों का पीछा करने दो और बाकी आधे कज़ाक सहायक कोशेवाई चुन लें। और अगर आप लोग एक सफे़द बालोंवाले बूढ़े की बात माने तो सहायक कोशेवोई के लिए कोई आदमी तारास बूल्वा से ज्यादा ठीक नहीं है। हम में से कोई बहादुरी में इसका मुकाबला नहीं कर सकता!”
वोवद्यूग इतना कहकर चुप हो गया। सारे कज़ाक इस बात से बहुत खु़श हुए कि बूढ़े कज़ाक ने उन्हें इतनी समझदारी की सलाह दी। सब अपनी टोपियां उछालकर चिल्लायेः
“अच्छी बात कही है, शुक्रिया! तुम एक अरसे से चुप थे लेकिन आखि़रकार तुम बोले। तुमने कज़ाक बिरादरी के काम आने का वादा यूं ही नहीं किया था-तुम सचमुच उसके काम आये हो।”
“तो तुम सब लोगों को यह मंजूर है?”कोशेवोई ने पूछा।
“हां, हम राजी हैं!”कज़ाक चिल्लाये।
“तो रादा खत्म हो गयी?”
“हां, खत्म हो गयी!”कज़ाक फिर चिल्लाये।
“तो बच्चों मेरे हुक्म सुनो! “कोशेवोई ने आगे बढ़कर अपनी टोपी पहनते हुए कहा और बाक़ी तमाम ज़ापोरोजियों ने अपनी-अपनी टोपियां उतार लीं और आंखें ज़मीन पर गड़ाकर नंगे सिर खड़े हो गये जैसा कि कज़ाकों का हमेशा का क़ायदा था जब कोई सरदार बोलता था।
“भाइयो, आप अब दो हिस्सों में बंट जाइये ! जो जाना चाहता है वह दायीं तरफ़ चला जाये, जो रहना चाहता है, वह बायीं तरफ़। कुरेल के ज़्यादा लोग जिस ओर जायेंगे उसी तरफ उस कुरेन के आतामान को भी जाना होगा,और थोड़े बचे लोग कुरेनों के साथ मिल जायेंगे।”
सब लोग दायें या बायें जाने लगे । जिधर किसी कुरेन के ज़्यादा लोग गये उधर ही उसका आतामान भी चला गया और बाकी बचे लोग दूसरे कुरेनों के साथ मिल गये। आखिर में यह हुआ कि दोनों तरफ क़रीब-करीब बराबर लोग थे। जो लोग रहना चाहते थे उनमें नेजामाईका कुरेन के लगभग सभी लोग, पूरे के पूरे कानेव और उमान कुरेन के लगभग और पोपाविच, स्तेबलिकीव्का और तिमोशेेव्का के कुरेनों के आधे से ज़्यादा लोग शामिल थे। बाक़ी सब लोगों ने तातारों का पीछा करना पसंद किया। दोनों ही तरफ़ बहुत-से बहादुर और साहसी कज़ाक थे। उन लोगों में जिन्होंने तातारों का पीछा करना शुरू किया था एक बड़ा अच्छा बूढ़ा कज़ाक चेरेवाती, पोकोतीपोल्ये, लेमिश और ख़ोमा प्रोकोपोविच शामिल थे। देमीद पोपोविच भी उन्हीं की तरफ़ गया क्योंकि वह एक बेचैन स्वभाव का कज़ाक था जो बहुत दिनों तक एक जगह नहीं ठहर सकता था। उसने पोलिस्तानियों की लड़ाई देख ली थी और अब वह तातारों से लोहा लेना चाहता था। कुरेनों के आतामान नोस्त्युगान, पोक्रोश्का और नेवेलीचकी भी उन्हीं में थे , बहुत-से दूसरे बहादुर और नामी कज़ाक भी तातारों के खि़लाफ़ लड़ाई में अपनी ताक़त और तलवारों को आज़माना चाहते थे। और जो लोग वहीं रहना चाहते थे उनमें भी बहुत-से लायक़ कज़ाक शामिल थे: कुरेनों के आतामान देमित्रोविच, कुकूबेनको, वेरतिख़विस्त, बलाबान और ओस्ताप बूल्वा और बहुत-से दूसरे ताक़तवार और प्रसिद्ध कज़ाक जैसे वोवतुजेंकों, चेरेवीचेंको, स्तेपान गूस्का, ओखरिम गूस्का, मिकोला गुस्ती, ज़ादोरोज्नी, मेतेलित्सा, इवान ज़क्रुतीगुबा, मोसी शीलो, देगत्यारेंको, सिदोरेंको, पिसारेंको, दूसरा पिसारेंको और एक और पिसारेंको और कई दूसरे बेहतरीन कज़ाक। वे सब बहुत दूर-दूर तक घूमे हुए थेः वे अनातोलिया के तटों पर घूम चुके थे, क्राइमिया की खारी दलदलों को पार कर चुके थे और स्तेपी को भी। वे द्नेपर से जा मिलने वाली सब छोटी-छोटी नदियों और उसकी खाडि़यों के किनारे और टापुओं में घूम चुके थे, वे मोलदाविया, ग्रीस और तुर्की के इलाक़ों का सफ़र कर चुके थे। वे अपनी दो पतवारोंवाली कज़ाकी नावों में बैठकर काले सागर के हर हिस्से में जा चुके थे। वे पचास नावों के बेड़े की मदद से बड़े-बड़े और दौलत से भरपूर जहाज़ांे पर हमला कर चुके थे, वे तुर्की के कई बादबानी जहाज़ों को डूबो चुके थे और अपने ज़माने में बहुत, बहुत ही ज़्यादा बारूद का इस्तेमाल कर चुके थे। एक बार नहीं, कई बार उन्होंने कीमती मखमल और रेशम फाड़कर अपने पैरों के लिए पट्टियां बनायी थीं। एक बार नहीं, कई बार उन्होंने अपनी पेटियों से लटकते हुए बटुओं को चमकदार सेक्विनों से भरा था। यह अंदाजा लगाना बहुत मुश्किल था कि उन्होंने कितनी दौलत-जो औरों के लिए पूरी जिंदगी ऐश और आराम से काटने के लिए काफी होती-पीने-पिलाने और दावतों में ख़र्च कर दी थी। उन्होंने हर खास और आम की दावतें करके और गानेवालों को किराये पर बुला-बुलाकर ताकि पूरी दुनिया ख़ुशी से भर जाये असली कज़ाकी अंदाज़ से यह सारी दौलत उड़ा दी थी। अब उन में से कुछ ही के पास थोड़ा-बहुत खज़ाना-प्याले, चांदी के जाम और चूडि़यां द्नेपर के टापुओं में सरकंडों के बीच छिपा हुआ था ताकि अगर इत्तिफ़ाक से तातार सेच पर अचानक धावा बोल दें तो वह उनके हाथ न लग सके। तातारों के लिए इस ख़जाने को पाना जरूर कठिन था क्योंकि अब तो खुद उसके मालिक भी भूलते जा रहे थे कि उन्होंने उसे कहां गाड़ा था। ऐसे थे वे कज़ाक जो वहां रहना और पोलिस्तानियों से अपने वफ़ादार साथियों और ईसाई धर्म के लिए बदला लेना चाहते थे! बूढ़े कज़ाक बोवद्यूग ने भी उनके साथ रहने का इरादा कर लिया। उसने कहा: मेरी उम्र ऐसी नहीं है कि मैं तातारों का पीछा करू और यह जगह ऐसी है जहां मैं क़ायदे की कज़ाकी मौत मर सकता हूं।मैं बहुत दिनों से खुदा से यही मना रहा था कि जब मेरी मौत का वक़्त आये तो मैं पवित्र ईसाई धर्म के लिए लड़ते हुए जान दूं। और अब उसका मौक़ा आया है। एक बूढ़े कज़ाक को इससे ज्यादा इज्जत की मौत और कहां मिल सकती है।”
जब सब अलग-अलग बंटकर कुरेनों के हिसाब से दो पंक्तियों में खड़े हो गये तो कोशेवोई उनके बीच से गुजरा और उनसे पूछा: “हां, भाइयो, तो दोनों तरफ़ के लोग एक दूसरे से खुश है?”
“हम सब खुश हैं, आतामान!”कज़ाकों ने जवाब दिया।
“अच्छा, तो एक दूसरे को चूमो और एक दूसरे से विदा हो लो क्योंकि भगवान के अलावा और कोई नहीं जानता कि तुम एक दूरे से फिर कभी मिलोगे भी या नहीं। अपने आतामानों की बात सुनना मगर करना वही जो ठीक हो, जो तुम्हारी मर्यादा के अनुकूल हो।
सारे कज़ाक एक दूसरे को चूमने लगे। आतामानों ने पहल की, अपनी सफ़ेद मूछों पर हाथ फेरते हुए उन्होंने एक-दूसरे केे गालों को तीन-तीन बार चूमा और फिर एक-दूसरे से हाथ मिलाया और बहुत देर तक भींचकर हाथ पकड़े रहे। हर एक दूसरे से यह पूछने को बेचैन था: “भाई साहब, क्या हम कभी मिलेंगे या नहीं?”लेकिन वे चुप रहे और दोनों सफ़ेद बालांेवाले सोच में खो गये। जबकि उनके चारों तरफ़ सब कज़ाक एक दूसरे से विदा हो रहे थे यह जानते हुए कि दोनों तरफ़ के लोगों के सामने बहुत कठिन काम था। लेकिन उन्होंने फै़सला किया कि फ़ौरन अलग न हों बल्कि अंधेरा होने का इंतजार करें ताकि पोलिस्तानियों को कज़ाकी फ़ौज के घट जाने का पता न चल सके। फिर वे सब अपने-अपने कुरेनों में खाना खाने चले गये।
खाने के बाद वे लोग जिन्हें जाना था लंबी और गहरी नींद सो गये, जैसे उन्हें पहले से ही मालूम हो गया हो कि इतनी सुखद सुरक्षा में उनकी यह आखि़री नींद होगी। वे सूरज डूबने तक सोते रहे और जब सूरज बिल्कुल डूब गया और अंधेरा छा गया तो उन्होंने गाडि़यों पर तारकोल लगाना शुरू किया। जब सब तैयारियां खत्म हो गयीं तो उन्होंने गाडि़यों को तो रवाना कर दिया और खुद धीरे-धीरे गाडि़यों के पीछे जाने से पहले एक बार फिर अपने साथियों को टोपियाँ उतारकर सलाम किया। पैदल फौ़ज के पीछे घुड़सवार फ़ौज हल्के-हल्के क़दमों से एक भी चीख या सीटी की आवाज निकाले बिना चल पड़ी और थोड़ी ही देर में सब लोग अंधेरे में खो गये। घोड़ों की टापों की खोखली सी धप-धप और किसी पहिए की चरचराहट के सिवा, जिसने अभी अच्छी तरह काम करना शुरू नहीं किया था जिस पर अंधेरे में अच्छी तरह तारकोल लग नहीं सका था, या कोई आवाज़ सुनायी नहीं दे रही थी।
अपने जिन साथियों को वे छोड़े जा रहे थे वे बहुत देर तक उनके पीछे हाथ हिलाते रहे, हालांकि अब उन्हंे कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। और जब पीछे छूट जानेवाले मुड़कर अपनी-अपनी जगहों पर वापस गये और तारों की रोशनी मे, जो अब खूब चमक रहे थे, उन्होंने देखा कि आधी गाडि़याँ जा चुकी हैं और उनके बहुत से साथी उनके बीच नहीं रहे तो उनके दिल भर आये और सब लोगों ने मस्त रहने वाले सिरांे को झुका लिया और सब सोंच में डूब गये ।
तारास ने देखा कि कज़ाकी पांतों पर मातम छा गया था और दुख ने जो बहादुरों की शान के खि़लाफ़ था, कज़ाकी सिरों को झुका दिया थाः मगर वह चुप रहा क्योंकि वह चाहता था कज़ाक अपने साथियों के बिछुड़ने के दुःख के आदी हो जायें और इस बीच उसने चुप-चाप इसकी तैयारी शुरू कर दी कि उनको ऊंची आवाज में कज़ाकों के लड़ाई के नारों के जरिये एकदम ललकारा जाये ताकि एक बार फिर हर आदमी की हिम्मत बंध जाये और हर एक में पहले से ज़्यादा ताक़त पैदा हो जाये। जो कि सिर्फ़ एक स्लाव के व्यापक और शक्तिशाली स्वभाव में ही पायी जा सकती है- क्योंकि वे दूसरे के मुकाबले में ऐसे ही हैं जैसे समुद्र नदियों के मुकाबले में होता है। जब मौसम तूफ़ानी हो तो समुद्र गरजता और दहाड़ता है और इतनी ऊंची-ऊंची आकाश को छूनेवाली लहरें पैदा करता है जो कमजोर नदी-नाले कभी नहीं कर सकते। लेकिन जब हवा नहीं चलती और मौसम शांत होता है तो सारी नदियों से ज्यादा साफ़ और शीशे की तरह चमकदार उसका अनंत जल-विस्तार जहां तक नज़र जाये फैला होता है और आंखों को अपार हर्ष प्रदान करता है।
तारास ने अपने नौकरों को एक गाड़ी से सामान निकालने की आज्ञा दी जो दूसरी गाडि़यों से कुछ दूर खड़ी थी। वह कज़ाकी सामान की गाडि़यों में सबसे ज़्यादा मजबूत और बड़ी थी। उसके बड़े और भारी पहियों पर लोहे के दोहरे हाल चढ़े थे। वह ऊपर तक सामान से लदी थी। उसके ऊपर घोड़ों को ओढ़ाने का कपड़ा और बेलों की खालें पड़ी थीं और वह तारकोल में भीगी-भीगी रस्सियों से कसकर बंधी थीं। उसमें बढि़या पुरानी शराब के पीपे भरे थे जो तारास के तहखाने में बहुत दिनों से जमा थी। बूल्वा इसे किसी ख़ास अवसर की उम्मीद में साथ ले आया था ताकि अगर कोई ऐसा महान क्षण आये जब आनेवाली पीढ़यों को धरोहर में देने क़ाबिल लड़ाई उनके सामने हो तो हर एक कज़ाक इतने दिन तक बचा-बचाकर रखी हुई शराब के घूंट पी सके ताकि एक महान क्षण में हर आदमी के दिल में एक महान भवनाएं उभर आयें। कर्नल का हुक्म सुनते ही उसके नौकर गाड़ी की ओर दौड़े और उन्होंने अपनी चौड़ी तलवारों से उसकी मजबूत रस्सियां काट डालीं, बैलों की मोटी खालों और कपड़े की पाखरों को चीर डाला और गाड़ी में से पीपे उतार लिये।
“सब निकाल लो,”बूल्वा ने कहा, “जितने भी हों और तुम्हारे पास जो कुछ भी हो- करछी, घोड़ों को पानी पिलाने की बाल्टी, दस्ताना या टोपी, जो कुछ भी हो ले आओ, और अगर कुछ न हो तो चुल्लू ही से पीना शुरू कर दो!”
सब के सब कज़ाक जो वहां थे करछी या घोेड़ों को पानी पिलाने की बाल्टी या दस्ताने या टोपी से लैस हो गये और जिनके पास इनमें से कोई चीज नहीं थी उन्होंने चुल्लू बांध लिये। बुल्बा के नौकर-चाकर उनके बीच जा-जाकर पीपों में से शराब उड़ेलने लगे। लेकिन तारास ने कज़ाकों को हुक्म दिया जब तक वह सबको एक साथ पीने का इशारा न करे तब तक वे पीना शुरू न करें। साफ़ पता चलता है कि वह कुछ कहनेवाला था। तारास अच्छी तरह जानता था कि बढि़या पुरानी शराब कितनी ही तेज और मनुष्य की आत्मा में जोश और उभार पैदा करने वाली क्यों न हो, लेकिन अगर उसके साथ एक-आध मौके़ के अनुसार कुछ ठीक चुने हुये शब्द भी कह दिये जायें तो शराब और आत्मा दोनों की शक्ति दुगुनी हो जाती है।
“भाई साहबो, मैं आपकी दावत इसलिए नहीं कर रहा हूं कि आप लोगों ने मुझे अपना आतामान बनाया है, जब कि वह मेेरे लिए बड़ा सम्मान है,”बूल्वा ने इस तरह अपना भाषण शुरू किया। “और न ही अपने साथियों से बिछुड़ने की वजह से। नहीं, किसी और वक़्त इन दोनों बातों के लिए दावत देना ठीक होता मगर यह उसके लिए सही मौक़ा नहीं है। हमारे सामने जो लड़ाई है उसमें कज़ाकों को बहुत मेहनत करनी पड़ेगी और बहुत कज़ाकी बहादुरी दिखानी पड़ेगी! सो आइये, साथियो, साथियो हम सब एक साथ मिलकर पियें और सबसे पहले अपने पवित्र कट्टरपंथी धर्म के नाम पर शराब पियें, इसलिए पियें कि एक ऐसा दिन आये जब सारी दुनिया में यह धर्म फैल जाये, इसलिए पियें कि दुनिया भर में एक ही पवित्र धर्म हो और सारे विधर्मी ईसाई बन जायें! और आइये, हम सेच के नाम पर शराब पियें कि वह बहुत समय तक क़ायम रहे और विधर्मियों के लिए परेशानी की वजह बना रहे, इसलिए पियें कि सेच हर साल नये-नये एक से एक अच्छे और खू़बसूरत सिपाही भेजता रहे। और फिर, आइये, हम सब एक साथ मिलकर अपनी आन-बान के लिए पियें ताकि हमारे पोते और परपोते कह सकें कि कभी दुनिया में ऐसे लोग भी थे, जिन्होंने भाईचारे के नाम पर कलंक का टीका नहीं लगाया और जिन्होंने मुसीबत के वक़्त अपने दोस्तों को अकेला नहीं छोड़ा। सो आइये, भाइयो, अपने धर्म के नाम पर पियें, धर्म के नाम पर! “
“धर्म के नाम पर!”सबसे पासवाली पांतों में खड़े लोग जोर से चिल्लाये।
“धर्म के नाम पर!”पिछली पांतों के लोगों ने भी साथ दिया और बूढ़ों और जवानों ने धर्म के नाम पर शराब पी।
“सेच के नाम पर!”तारास ने कहा और अपना हाथ सिर से बहुत ऊंचा उठा लिया।
“सेच के नाम पर!”अगली पांतवालों ने गूंजती आवाज में जवाब दिया। “सेज के नाम पर!”बूढ़े लोगों ने अपनी सफ़ेद मूंछें फड़काकर धीरे से कहा और नौजवान कज़ाकों ने बाज़ के बच्चों की तरह अपने आप को जगाते और उभारते हुए उनके पीछे-पीछे दोहरायाः “सेच के नाम पर!”
और स्तेपी ने दूर-दूर तक कज़ाकों को अपने सेच को सलाम करते हुए सुना।
“साथियो, अब आखरी घूंट हमारी आन-बान के नाम पर और दुनियाभर के तमाम ईसाइयों के नाम पर!”
हर एक कज़ाक ने जो वहां मैदान में मौजूद था, अपनी आनबान और दुनियाभर के तमाम ईसाइयों के नाम पर आखिरी घूंट पिया। कुरेनों की पांतों में बड़ी देर तक यह ज़ोरदार नारा गूंजता रहा:
“दुनिया के तमाम ईसाइयों के नाम पर!”
कज़ाकों के प्याले ख़ाली हो चुके थे लेकिन वे अब तक अपने हाथ ऊपर उठाये खड़े थे हालांकि शराब की वजह से उनकी आंखों में खु़शी की चमक पैदा पैदा हो गयी थी फिर भी वे बहुत गहरी चिंता में डूबे हुए थे। अब वे लड़ाई में हासिल किये गये फ़ायदों और लूट के माल के बारे में नहीं सोच रहे थे। न वे उन खुशकिस्मत लोगों के बारे में सोच रहे थे जो ड्यूकटों, क़ीमती हथियारों, कढ़े हुए काफ्तानों और चेर्केसी घोड़ों पर कब्जा कर सकेंगे। नुकीली पहाड़ी चोटियों पर बैठे हुए उकाबों की तरह-जहां से अनंत समुद्र फैला हुआ दिखायी दे सकता है जिस पर बादबानी और दूसरे तरह के जहाज नन्ही-नन्ही चिडि़यों की तरह बिखरे रहते हैं और जिसके चारों तरफ़ बिल्कुल धुंधले और मुश्किल से दिखायी देनेवाले तट हैं, जहां शहर बौनों के शहरों से बड़े नहीं हैं और जंगल नीची-नीची घास की ऊंचाई के हैं- ऐसे उकाबों की तरह वे अपने आस-पास के पूरे स्तेपी को और दूर फ़ासले पर अंधेरे होते हुए अपने भाग्य को ताक रहे थे। एक समय आयेगा जब पूरा का पूरा मैदान, उसके बंजर हिस्से और उसकी सड़कें उनके ख़ून से सिंची होंगी, सब पर उनकी सफ़ेद हड्डियां बिखरी होंगी और सब चकनाचूर गाडि़यों और टूटे हुए भालों और तलवारों से ढक जायेंगी। उनके सिर, अपनी मुड़ी-तुड़ी खू़न में सनी चोटियों और नीचे लटकी हुई मूंछोें के साथ जहां-तहां बिखरे हुए होंगे। और उकाब नीचे झपट-झपटकर उनकी आंखों को नोच-नोचकर निकालेंगे। मगर उस चौड़े और हड्डियों से अटे मौत के पड़ाव की महिमा बहुत ऊंची होगी! एक भी शेरदिल कारनामा बेकार नहीं जायेगा और कज़ाकी महिमा बंदूक़ की नाल से निकले हुए मुट्ठी-भर बारूद की तरह मिट नहीं जायेगी। एक समय आयेगा जब कोई बंदूरा बजानेवाला, जिसकी सफ़ेद दाड़ी उसके सीने पर बिखरी होगी और जो अपने बुढ़ापे और सफ़ेद बालों के बावजूद शायद उस समय तक अपने मर्दाना ताक़त से भरपूर होगा, और साथ ही एक पैगंबराना तबीयत भी रखता होगा, गंभीर और शानदार शब्दों में इनके बारे में गीत गायेगा। और उनकी महानता तमाम दुनिया में फैल जायेगी और आनेवाली पीढि़यां उनकी चर्चा किया करेंगी, क्योंकि ऐसी घंटी के पीतल की झंकार की तरह एक जोरदार शब्द बहुत दूर तक पहुंचता है जिस घंटी में कारीगर ने शुद्ध और कीमती चांदी की बहुुत काफ़ी मिलावट कर रखी हो ताकि उसकी मधुर खनखनाहट बहुत दूर-दूर तक, शहरों और गांवों में, महलों और झोपड़ों में, यहां तक कि हर तरफ़ फैलकर सब लोगों को एक ही तरह प्रार्थना के लिए पुकारे।