तारास बुल्बा (उपन्यास) : निकोलाई गोगोल Part 3
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शहर में किसी को मालूम नहीं था कि आधे ज़ापोरोजी तातारों का पीछा करने जा चुके हैं। शहर की मीनारों से संतरियों ने इतना जरूर देखा था कि कुछ गाडि़यां जंगलों की तरफ़ ले जायी गयी हैं लेकिन यह समझा गया कि कज़ाक घात में बैठने की तैयारियां कर रहे हैं। ¦फ्रांसीसी इंजीनियर का भी यही विचार था। इस बीच कोशेवोई की बात ठीक साबित होने लगी, शहर को फिर खाने की कमी का सामना करना पड़ा। जैसा कि पिछली सदियों में आमतौर पर होता था, फ़ौजों ने अपनी जरूरतों का सही अंदाज़ा नहीं लगाया था। उन्होंने एक बार धावा करने की कोशिश की लेकिन जिन मनचलों ने इसमें हिस्सा लिया था उनमें से आधों को कज़ाकों ने फ़ौरन ही मार गिराया था और आधों का पीछा करके उन्हें खाली हाथ वापस शहर में खदेड़ दिया था। लेकिन यहूदियों ने इस धावे का फ़ायदा उठाया और सारी बातों का पता लगा लियाः ज़ापोरोजी कहां और क्यों गये थे, उनके साथ कौन-कौन से सरदार थे, कौन-कौन से कुरेन गये थे, कितने लोग गये थे, कितने बाक़ी रह गये थे और उनके क्या इरादे थे- मतलब यह कि कुछ ही मिनटों के अंदर -अंदर शहर में सब कुछ मालूम हो चुका था। कर्नलों की हिम्मत बन गई और वे लड़ने की तैयारी करने लगे। तारास ने शहर के शोर और दौड़-धूप से इसका अंदाजा लगा लिया और फ़ौरन ही जरूरी कार्रवाई करने लगा। उसने हिदायतें और हुक्म जारी कर दिये, कुरेनों को तीन पड़ावों में बांट दिया और उनके चारों ओर गाडि़यों का घेरा डालकर मोर्चेबंदी-सी कर दी। यह एक ऐसी लड़ाई की चाल थी जो अक्सर ज़ापोरोजियों को अजेय बना चुकी थी- उसने दो कुरेनों को घात में बैठने का हुक्म दिया और मैदान के उस हिस्से में नुकीली बल्लियां, टूटी बंदूकें, तलवारों और भाले के टुकड़े गड़वा दिये जहां वह चाहता था कि अगर हो सके तो दुश्मन की घुड़सवार फ़ौज को खदेड़ दिया जाये। जब सारी तैयारियां उसकी इच्छा के अनुसार पूरी हो गयी तो वह कज़ाकों के सामने बोला। इससे उसका इरादा, उनका दिल बढ़ाना और उन्हें हिम्मत दिलाना नहीं था। वह जानता था कि इसके बग़ैर भी कज़ाक काफ़ी जोश में हैं। वह सिर्फ़ अपने दिल का बोझ हल्का करना चाहता था।
“भाइयो! मैं आप लोगों को बताना चाहता हूँ कि हमारा भाईचारा क्या चीज़ है। आप अपने बाप-दादा से सुनते आये हैं कि हमारा देश सब लोगों की आंखों में कितना ऊंचा और सम्मानित स्थान रखता आया है, उसने यूनानियों को अपने आप से परिचित कराया, उसने कुस्तुनतूनिया से कर वसूल किया, हमारे शहर दौलत से भरपूर थे और हमारे अपने गिरजे थे, हमारे अपने राजकुमार थे- असली रूसी नस्ल के राजकुमार, कैथोलिक अधर्मी नहीं। यह सब कुछ हमसे छिन गया है, सब कुछ ख़त्म हो गया है। सिर्फ़ हम, बेचारे गरीब अनाथ बाक़ी रह गये हैं, हम और हमारा दुखी देश, जो किसी बलवान पति कि विधवा की तरह है। ऐसे समय में, भाइयो, हमने भाईचारे के नाते एक-दूसरे के हाथ थाम लिये है! यह है वह चीज़ जिसकी बुनियाद पर हम एक-दूसरे के साथी हैं! साथी होने के रिश्ते से ज़्यादा पवित्र और कोई रिश्ता नहीं होता! बाप अपने बच्चे से प्यार करता है, माँ अपने बच्चे से प्यार करती है और बच्चा अपने माँ-बाप से प्यार करता है, मगर यह एक दूसरी ही बात है। जंगली जानवर भी अपने बच्चे से प्यार करता है। लेकिन ख़ून के रिश्ते की वजह से नहीं बल्कि आत्मा के रिश्ते से गै़रों से रिश्ता जोड़ना सिर्फ़ इंसान ही जानता है। दूसरे देशों में भी भाईचारे की मिसालें मिलती हैं। लेकिन उनमें कोई ऐसा नहीं है जैसी हमारी रूसी धरती पर मिलती हैं। आप में से बहुतों ने कई-कई साल विदेशों में गुज़ारे हैं, आप वहां लोगों से मिले हैं- जो खुद आप ही लोगों की तरह खुदा के बंदे हैं और आपने उनसे अपने देश के लोगों की तरह बातचीत की है, लेकिन जब दिल की बात कहने का मौक़ा आया तो आपने देख लिया कि वे अक्लमंद आदमी जरूर थे मगर आप लोगों की तरह बिल्कुल नहीं थे, वे आपकी तरह थे भी और नहीं भी थे! नहीं, भाइयो, जिस तरह एक रूसी आत्मा प्यार करती है उस तरह प्यार करना-सिर्फ दिमाग़ से या किसी और तरह से नहीं बल्कि हर उस चीज़ से जो खुदा ने इंसान को दी है- अपने तन, मन, धन से प्यार करना और…”यहां तारास ने हाथ हिलाया, अपने सिर को घुमाया और अपनी मूंछों को फड़काया और फिर आगे कहाः “नहीं, और कोई इस तरह प्यार नहीं कर सकता! मैं जानता हूँ कि हमारी धरती में शैतानी रिवाजों ने जड़ पकड़ ली हैः हमारे यहां ऐसे लोग पाये जाते हैं जो बस अपने गेहूं और सूखी घास के ढेरों के और अपने घोड़ों के गल्लों के बारे में ही सोचते है, जिन्हें बस अपने तहखानों में रखे मुंहबंद शहद की शराब के पीपों की रखवाली की फि़क्र रहती है। वे न जाने कैसे-कैसे विधर्मियों के तौर-तरीक़ों की नक़ल करते हैं। अपनी मातृभाष से घृणा करतें हैं, एक हमवतन दूसरे हमवतन से बात नहीं करता, एक हमवतन दूसरे हमवतन को ऐसे बेच डालता है जैसे बिना आत्मा के दरिंदे मंडी में बेचे जाते हैं। एक विदेशी राजा की-बल्कि राजा भी नहीं किसी पोलिस्तान रईस ही की, जो अपने पीले बूट से उनके थोबड़ों पर ठोकरें मारता है- ज़रा-सी मेहरबानी की नज़र उनको भाईचारे से ज्यादा प्यारी है। लेकिन इनमें से सबसे ज़्यादा कमीने बदमाश में भी, चाहे वह अपनी खुशामदखोरी और जूतियां चाटने की वजह से कितना ही नीच और पतित क्यों न हो गया हो, मगर, भाइयो, उसमें भी रूसी भावनाओं की चिंगारियां पायी जाती हैं। और एक दिन यह चिंगारी भड़क उठेगी तब वह नीच आदमी अपने बाल नोचेगा और हाथ मलेगा, अपनी कमीनेपन की जि़ंदगी को ज़ोर-ज़ोर से कोसेगा और तकलीफ़ और कठिनाइयां उठाकर अपनी नीचता का पश्चाताप करने के लिए तौयार हो जायेगा। दुनियावालों को दिखा दीजिये कि हमारी रूसी धरती पर साथी होने का क्या मतलब है! रही मौत- सो और कोई भी ऐसा आदमी नहीं हैं जो उस तरह मर सके जिस तरह हम मरने को तैयार हैं! कोई भी नहीं!… उनका कायर स्वभाव उनको करने नहीं देगा!”
आतामान ने इस तरह भाषण दिया और चुप हो जाने के बाद भी वह अपना सिर हिलाता रहा, जिसके बाल कज़ाकी बहादुरी के कारनामे दिखाते-दिखाते चांदी की तरह सफ़ेद हो गये थे। जो लोग वहां खड़े थे उन सब पर उसके शब्दों को बहुत असर हुआ , वे सीधे उनके दिल में उतर गये। कज़ाकी पांतों के सबसे बुजुर्ग आदमी अपने सफ़ेद बालोंवाले सिर झुकाये चुपचाप खड़े रहे। उनकी बूढ़ी आंखों में आंसू भर आये जिन्हें उन्होंने धीरे से अपनी आस्तीनों से पोंछ डाला। फिर सब लोगों ने एक साथ अपने हाथों और अपने बुद्धिमान सिरों को हिलाया। साफ़ पता चलता था कि बूढ़े तारास ने उसके अंदर की ऐसी बहुत-सी चिरपोषित और सबसे ज़्यादा प्यारी भावनाओं को झकझोर दिया था जो दुख, मेहनत और बहादुरी की ज़िंदगी बसर करने और जिंदगी की कठिनाइयों को झेलने के दौरान बुद्धिमान बनने वाले आदमी के दिल में समायी रहती है , या फिर जो ऐसे निष्कलंक नौजवान दिल में भी पायी जाती हैं जो इन सब चीज़ों को न जानने पर भी जवानी के पूरे जोश के साथ उनकी लालसा करता है, और उनकी यह चीज़ उनके बूढ़े बाप को बेहद खुशी देती है।
इसी बीच दुश्मन की फ़ौजें शहर से बाहर आनी शुरू हो गयी थीं। नगाड़े बज रहे थे, बिगुल गूंज रहे थे अमीर और लोग चारों तरफ़ अपने नौकर-चाकरों से घिरे हुए, हाथ कमर पर रखे, घोड़ों पर सवार आगे बढ़ रहे थे। हट्टे-कट्टे कर्नल ने अपने हुक्म दिये और वे लोग एक गठी हुई भीड़ की शक्ल में कज़ाक पड़ाव की ओर बढ़ने लगे। उनकी बांहें धमकी देते हुए ऊपर उठी हुई थीं, वे अपनी बंदूकों से निशाना बांधे थे। उनके पीतल के कवच जगमगा रहे थे और उनकी आंखें चमक रहीं थीं। जब कज़ाकों ने देखा कि वे गोली के निशाने पर आ चुके हैं तो उनकी लंबी नालवाली बदंूकों की गरजदार बौछारें शुरू गईं और वे बराबर गोलियां दाग़ते रहे। यह ज़ोरदार गरज मैदानों और चरागाहों में दूर-दूर तक गूंजने लगी और बढ़कर एक निरंतर दहाड़ बन गयी। सारे मैदान पर धुएं के बादल छा गये। मगर ज़ापोरोजी बिना सांस लिये बराबर गोलियां चलाते रहे । पीछे वाले लोग आगे वालों के लिए बंदूक़ें भरते रहे और इस तरह उन्होंने दुश्मनों को हक्का-बक्का कर दिया, जिसकी समझ में नहीं आ रहा था कि कज़ाक को फिर से भरे बिना कैसे गोलियां चलाते जा रहे है। धुंआ, जिसने दोनों फौजों को अपने लपेट में ले रखा था, इतना घना हो चुका था कि कोई चीज़ दिखाई नहीं दे रही थी। किसी को दिखाई नहीं दे रहा था कि पांतों में किस तरह लोग एक के बाद गिरते जा रहे थे। लेकिन पोलिस्तानी अच्छी तरह महसूस कर रहे थे कि गोलियों की बौछार कितनी ज़ोरदार थी और लड़ाई कितनी गरमा-गरम हो गयी थी और जब वे धुंए से बचने के लिए पीछे हटे और उन्होंने इधर-उधर नज़र डाली तो अपनी पांतों में बहुत से आदमी नहीं पाये मगर दूसरी तरफ़ कज़ाकों के सौ आदमियों में से बस दो या तीन ही मारे गये थे। और अब तक कज़ाक एक क्षण रुके बिना अपनी बंदूकों से गोलियां चलाये जा रहे थे। विदेशी इंजीनियर भी उनके इस दांव-पेंच पर हैरान रह गया क्योंकि ऐसे दांव-पेंच उसने पहले कभी नहीं देखे थे। उसने वहीं उसी वक़्त सबके सामने कहाः “ये ज़ापोरोजी बहुत बहादुर लोग हैं! इसी तरह दूसरे देशों में लड़ाई लड़नी चाहिये ! उसने सलाह दी कि तोप का मुंह फ़ौरन उनके पड़ाव की ओर मोड़ दिया जाना चाहिये। ढले हुए लोहे की तोपें अपने चौड़े दहानों से गरजने लगीं, धरती दूर-दूर तक कांप उठी और गूंजने लगी, और धुंआ पहले से दुगुना घना होकर पूरे मैदान पर छा गया। बारूद की गंध दूर और पास के शहरों की सड़कों और चौकों तक फैल गयी। लेकिन तोप चलानेवालों ने निशाना बहुत ऊंचा लगाया था और अंगारों जैसे दहकते गोलों की मार बहुत लंबी हो गयी थी। एक भयंकर चीख के साथ कज़ाकों के सिरों के ऊपर तेजी से गुज़रकर काली मिट्टी को तोड़ते-फोड़ते और हवा में ऊंचा उछालते हए ज़मीन में बहुत गहरे धंसते चले गये। फ्रांसीसी इंजीनियर ने हुनर की इस कमी पर अपने बाल नोच लिये और कज़ाकों की दहकती हुई गोलियों की परवाह किये बिना, जो उसके चारों ओर लगातार बरस रही थीं, उसने खुद ही तोपंे चलाने का काम संभाल लिया।
तारास ने दूर से देखा कि पूरे के पूरे नेज़ामाईका और स्तेबलिकीव्का कुरेन जानलेवा ख़तरे में पड़े हैं। वह गरजती हुई आवाज़ में चिल्लायाः “गाडि़यों से फ़ौरन दूर हट जाओ और सब अपने-अपने घोड़ों पर सवार हो जाओ! लेकिन अगर ओस्ताप घोड़े को सरपट दौड़ाता हुआ दुश्मन की पांतों में न जा घुसता तो कज़ाकों को ये दोनों काम करने का मौक़ा न मिल पाता। उसने छः तोपें चलानेवालों के हाथों से तोप के फ़लीते गिरा दिये लेकिन वह बाक़ी चार तोपों तक नहीं पहुंच सका क्योंकि पोलिस्तानियों ने उसे पीछे खदेड़ दिया। इसी बीच फ्रांसीसी इंजीनियर ने सबसे बड़ी तोप चलाने के लिए, जैसी तोप किसी कज़ाक ने इससे पहले कभी नहीं देखी थी, एक फ़लीता खुद अपने हाथ में ले लिया था। तोप का चौड़ा दहाना भयंकर रूप से खुला हुआ था और उसके अंदर से हजारों मौतें झांक रही थीं। जब वह गरजी और तीन तोपों ने उसका साथ दिया और उनके चौगुने धमाकों से धरती, न चाहते हुए भी, कांप उठी तो इन धमाकों ने बहुत तबाही फैलायी ! कितनी ही बूढ़ी कज़ाक मांएं अपने बेटों के लिए रोयी होंगी और अपने हड़ीले हाथों से अपनी सूखी छाती पीटी होंगी। और ग्लूखोव, नेमीरोव, चेर्नीगोव और दूसरे शहरों में कितनी औरतें विधवा हो गयी होंगी। इनमें से हर एक औरत रोज़ दौड़ती हुई बाज़ार जायेगी और हर राहगीर को पकड़कर उसकी आंखों में झांककर देखेगी कि उनमें से कोई उसका प्यारा तो नहीं है। बहुत-सी फौंजें शहर में से गुजरेंगी, मगर उसे उनमें अपना सबसे प्यारा आदमी कभी नहीं दिखायी देगा।
आधा नेज़ामाईका कुरेन ख़त्म हो चुका था। जिस तरह ओले किसी खेत को, जिसमें गेहूं की हर बाली सोने के सिक्के की तरह चमकती हो, अचानक बर्बाद कर देते हैं, उसी तरह वह भी बर्बाद हो गया था।
कज़ाक किस तरह गुस्से से पागल हो उठे ! वे किस ज़ोर-शोर से आगे बढ़े! किस तरह आतामान कुकूबेनको यह देखकर कि उसके कुरेन का आधे से भी ज़्यादा हिस्सा तबाह हो चुका है ग़म और गुस्से से खौल उठा! पलक झपकते में ही वह अपने बचे हुए कज़ाकों को साथ लेकर दुश्मनों की तांतों के अंदर घुसता चला गया। अपने रोष में उसने सामने आनेवाले पहले आदमी को गाजर-मूली की की तरह काटकर टुकड़े-टुकड़े कर दिया, बहुत-से सवारों और उनके घोड़ों को, अपनी बरछी से छेद-छेदकर नीचे गिरा दिया। वह तोप चलानेवालों की ओर बढ़ा और एक तोप पर कब्ज़ा करने ही वाले हैं। उसने उन्हंे वहां छोड़ा और खुद मुड़कर अपने कज़ाकों के साथ एक और जमाव की ओर बढ़ा। नेज़ामाईका कज़ाक जहां-जहां से गुज़रे अपने पीछे एक साफ़ रास्ता छोड़ते गये, वे जिस ओर मुड़े उन्होंने मौत के घाट उतारे गये पोलिस्तानियों की गली तैयार कर दी। पोलिस्तानियों की पांतें घटती दिखाई दे रही थीं, घास की तरह उनके गट्ठे के गट्ठे काट दिये गये थे। वोवतुजे़ंका गाडि़यों के पास लड़ रहा था और चेरेवीचेंको सामने की तरफ़, दूर की गाडि़यों के पास देगत्यारेंको लड़ रहा था और उसके पीछे कुरने का आतामान वेरतिख़विस्त। देगत्यारेंको ने दो सामंतों को बरछी से मार डाला था और अब एक तीसरे जिद्दी सामंत पर हमला कर रहा था। क़ीमती कवच पहने यह दुश्मन फुर्तीला और दिलेर था और उसके साथ पचास नौकर थे। उसने क्रुद्ध होकर देगत्यारेंको को पीछे धकेला और नीचे जमीन पर गिरागर उसके ऊपर तलवार घुमाते हुए चीखाः “कज़ाक, कुत्तो, तुम में से कोई मुझसे लड़ने की हिम्मत नहीं कर सकता!”
एक है जो हिम्मत कर सकता है!”मोसी शीलो ने आगे झपटते हुए कहा। वह एक हट्टा-कट्टा कज़ाक था और कई बार समुद्री मुहिमों में आतामान रह चुका था और हर तरह की कठिनाइयां झेल चुका था। तुर्कों ने एक बार शहर त्रेपज़ोद के पास उसे और इसके कज़ाकों को पकड़कर सबको जहाज़ पर काम करने वाले गु़लाम बना लिया था, उनके हाथ-पांवांे में जंजीर डाल दी थीं और हफ़्ता-हफ़्ता भर उन्हें खाने को ज्वार-बाजरा भी नहीं देते थे और पीने को सिर्फ़ खारा पानी। बेचारे गुलाम सब कुछ सहते रहे पर उन्होंने अपने कट्टरपंथी धर्म को नहीं छोड़ा। लेकिन आतामान मोसी शीलो ज्यादा दिन तक यह मुसीबत न सह सका, उसने पवित्र नियम को पांव तले रौंद डाला, अपने गुनहगार सिर पर लानती साफ़ा बांध लिया। पाशा का भरोसा हासिल कर लिया और कुंजियां रखने वाला और गुलामों का अफसर बन गया। बेचारे गु़लामों को इससे बहुत दुख पहुंचा क्योंकि वे जानते थे कि उन्हीं में से कोई आदमी अपना धर्म छोड़ देता है और उनके अत्याचारियों के साथ मिल जाता है तो उसका अत्याचार किसी भी विधर्मी के अत्याचार से ज़्यादा कड़ा और असह्य होता है। और ऐसा ही हुआ। मोसी शीलो ने तीन-तीन आदमियों को एक साथ नयी जंजीरों से बंधवाया। वह उनको बड़ी बेरहमी से रस्सियों से पिटवाता था जो हड्डी तक उनकी काट डालती थीं और उनकी गुद्दियों पर झापड़ मारता था । मगर जब तुर्क ऐसा नौकर मिलने पर खु़श होकर अपने दावतों में लग गये और उसूल को भुलाकर पी-पीकर मदहोश हो गये तो मोसी शीलो ने सारी की सारी चौसठ कुंजियां लेकर गुलामों में बांट दी। ताकि वे अपनी जंजीरे खोल डालें, बेडि़यों और जंजीरों को समुद्र में फेंक दें और उनकी जगह तलवारें हाथ में लेकर तुर्कों को काटकर रख दें। कज़ाकों ने ऐसे बहुत-सा लूट का माल हासिल किया और गौरव के साथ अपने देश लौटे। इसके बहुत दिन बाद तक बंदूरा बजानेवाले मोसी शीलो की शान में गीत गाते रहे। उसको शायद कोशेवोई चुन लिया जाता लेकिन वह अजीब आदमी था। कभी-कभी ऐसे जौहर दिखाता जो अक़्लमंद से अक़्लमंद आदमी नहीं दिखा सकता था और कभी यह कज़ाक बिल्कुल अहमक़ बन जाता था। उसने अपनी तमाम दौलत शराब-कबाब में उड़ा दी थी और वह सेच में हर आदमी का कर्जदार था। इसके अलावा मामूली चोरों की तरह चोरी भी की थी उसने। एक रात उसने एक दूसरे कुरेन से पूरा कज़ाकी लिबास और हथियार चुराकर सबकुछ एक शराबखाने के मालिक के हाथ गिरवी रख दिया। इस नीच हरकत की सज़ा में उसे बाज़ार में एक खंभे से बांध दिया गया और उसके पास एक डंडा रख दिया गया कि हर आने-जानेवाला अपनी ताक़त-भर उसको एक डंडा लगाये। लेकिन किसी ने भी उस पर डंडे का वार नहीं किया क्योंकि उसकी पुरानी सेवाएं याद थीं। इस तरह का कज़ाक था मोसी शीलो।
“यहां बहुत-से ऐसे लोग हैं जो तुम कुत्तों को मारे डालेंगे,”वह अपने ललकारने वाले पर हमला करते समय चिल्लाया। और किस तरह लड़े हैं वे दोनों! दोनों के कंधों पर लगे हुए पतरे और चार आईने उनके वारों से मुड़-मुड़ गये। शैतान पोलिस्तानी ने शीलो के जं़जीरों से बने कवच को काटकर अपनी तलवार का आगे का हिस्सा उसके शरीर में घोंप दिया। कज़ाक की कम़ीज लाल रंग में रंग गयी लेकिन शीलो ने उसकी ओर कोई ध्यान नहीं दिया। उसने अपनी गंठीली बांह ;बहुत ही ताक़तवर थी वह बांहद्ध ऊंची घुमाकर अचानक सिर पर वार किया जिससे पोलिस्तानी के होश उड़ गये। उसका पीतल का खोद टुकड़े-टुकड़े होकर उसके सिर से उड़ गया। पोलिस्तानी डगमगाया और गिर पड़ा। शीलो अपने सन्नाये हुए दुश्मन को काटता और टुकड़े-टुकड़े करता रहा। कज़ाक अपने दुश्मन का सफ़ाया करने में देर मत लगाओ, पीछे तो मुड़कर देखो! कज़ाक नहीं मुड़ा और उसके शिकार के नौकरों में से एक ने उसकी गर्दन में चाकू भोंक दिया। शीलो मुड़ा और वह अपने क़ातिल के पास पहुंचनेवाला ही था कि बारूद के धुएं में ग़ायब हो गया। हर तरफ़ तोड़ेदार बंदूकों की गरज सुनायी दी। शीलो लड़खड़ाया और उसको पता चल गया कि उसका ज़ख्म जानलेवा है। वह ज़मीन पर गिर पड़ा और उसने अपने ज़ख्म को हाथ से दबाकर अपने साथियों से कहाः “अलविदा भाइयो, मेरे साथियो, अलविदा! भगवान करे पवित्र रूसी धरती सदा बनी रहे और हमेशा उसका सम्मान हो!”और उसने अपनी धुंधलायी आंखें बंद कर लीं और उसकी कज़ाकी आत्मा अपने कठोर ढांचे में से निकल गयी। मगर ज़ादोरोज्नी अपने कज़ाकों के साथ घोड़े पर सवार आगे बढ़ता आ रहा था और वेरतिखविस्त पोलिस्तानी पांतों को तितर-बितर कर रहा था और बलाबान भी मैदान में उतर रहा था।
“क्यों भाइयो!”बुल्बा ने आतामानों को पुकारते हुए कहाः “अभी बारूददानों में बारूद बाकी है? कज़ाकी ताक़त अभी कमजोर तो नहीं पड़ी? कज़ाक हथियार तो नहीं डालते?”
“अभी बारूददानों में बारूद बाकी है, कोशेवोईः कज़ाकी ताक़त अभी कमजोर नहीं हुई! कज़ाक हथियार नहीं डालते!
और कज़ाकों ने फिर हमला किया और दुश्मन की पांतों को तितर-बितर कर दिया। छोटे कद का कर्नल बिगुल बजाकर फ़ौजों को जमा करने लगा और अपने आदमियों को जो सारे मैदान में बिखरे हुए थे इकट्ठा करने के लिए उसने आठ रंगीन झंडे ऊंचे करने का आदेश दिया। सारे पोलिस्तानी झंडे की ओर भागे मगर अभी वे अपनी लामबंदी कर भी नहीं पाये थे कि आतामान कुकूबेनको फिर अपने नेज़ामाईका कज़ाकों को लेकर उन पर बीच में हमला किया और सीधा हट्टे-कट्टे कर्नल से लड़ने लगा। कर्नल के पांव उसके सामने जमे न रह सके और उसने अपना घोड़ा मोड़कर उसे सरपट दौड़ाना शुरू दिया। कुकूबेनको ने मैदान में दूर तक उसका पीछा किया और अपनी रेजीमेंट से उसे अलग कर दिया। स्तेपान गूस्का ने अपने कुरेन से, जो बग़ल की तरफ को था, जब यह देखा तो वह हाथ में रस्सी का फंदा लिए उसको रास्ते में रोकने के लिए चल पड़ा। उसका सिर घोड़े की गर्दन से लगभग बिल्कुल सटा हुआ था। उचित अवसर ढूंढ़कर उसने पोलिस्तानी की गर्दन में फंदा डाल दिया। कर्नल का चेहरा लाल भभूका हो गया, उसने दोनों हाथों से रस्सी को पकड़कर उसे तोड़ने की कोशिश की लेकिन जबर्दस्त झटके के साथ एक बरछी उसके पेट में घुस गयी। वह उसी तरह ज़मीन में जड़ा हुआ वहां पड़ा रहा लेकिन स्तेपान गूस्का का अंत भी कुछ अच्छा नहीं रहा। कज़ाकों के जानने से पहले ही गूस्का चार बरछियों पर टिका हुआ था। उस बेचारे को बस इतना कहने का अवसर मिलाः “हमारे सारे दुश्मनो ंका नाश हो! भगवान करे रूसी धरती हमेशा-हमेशा खुशी मनाये! “
कज़ाकों ने घूमकर देखा कि एक तरफ़ मेतेलित्सा धड़ा-धड़ एक के बाद दूसरे और दूसरे के बाद तीसरे पोलिस्तानी के खोदों पर वार कर करके उन्हें बेहोश सा कर रहा था और दूसरी ओर आतामान नेवेलीचकी अपने आदमियों के साथ धावा बोल रहा था। गाडि़यों के पास ज़क्रुतीगुबा दुश्मनों की धज्जियां उड़ा रहा था और उनसे दूर खड़े गाडि़यों के पास पिसारेंको एक पूरे जत्थे को पीछे ढकेल रहा था और उससे परे बिल्कुल गाडि़यों के ऊपर दोनों तरफ के लोग आपस में गुत्थम-गुत्था हो रहे थे।
“क्यों भाइयो!”आतामान तारास घोड़े को सरपट दौड़ाता हुआ इन सब लोगों के सामने आकर बोलाः अभी बारूददानों में बारूद बाक़ी है? कज़ाकी ताक़त तो अभी कमजोर नहीं पड़ी? कज़ाक हथियार तो नहीं डालते?”
“बारूददानों में अभी बारूद बाकी है, कोशेवोई! कज़ाकी ताक़त अभी कमजोर नहीं पड़ी है! कज़ाक कभी हथियार नहीं डालते!”
बोवद्यूग अपनी गाड़ी से गिर पड़ा था। एक गोली ठीक उसके दिल के नीचे आकर लगी थी लेकिन अपनी आखिरी सांस में बूढ़ा कज़ाक बोलाः “मैं इस दुनिया से बिछड़ने पर दुखी नहीं हूँ। भगवान सबको ऐसा ही अंत दे! भगवान करे रूसी धरती हमेशा महान रहे!”और यह कहकर बोवद्यूग की आत्मा आसमान की ओर चल दी ताकि दूसरे बूढ़े लोगों को, जो कबके गुजर चुके थे, बताये कि रूसी धरती पर कितनी अच्छी तरह लड़ाई लड़ी जाती है और उससे भी ज्यादा यह कि वहां पवित्र धर्म के लिए कितनी ख़ूबी से जान दी जाती है।
बोवद्यूग के मरने के थोड़ी ही देर बाद कुरेन का आतामान बलाबान ज़मीन पर गिर पड़ा। उसको तीन जानलेवा घाव लगे थे- बरछी, गोली और भारी चौड़ी तलवार से। वह सबसे साहसी कज़ाकों में से था। वह बहुत सी समुद्री मुहिमों में आतामान रह चुका था लेकिन लेकिन सबसे महान उसका अनातोलिया के तट पर धावा था। वहां बहुत से सोने के सिक्के, कीमती तुर्की माल, कपड़े और सामान उनके हाथ लगे थे। लेकिन वापस देश आते वक़्त उनको मुसीबत ने आ घेरा था, वे बेचारे तुर्की तोपों से मारे गये थे। तुर्कों ने अपने जहाज में लगी तोपें जो दाग़नी शुरू कीं तो क़जाकों की आधे से ज़्यादा नावें डोलने और डगमगाने लगीं और अंत में उलट गयीं, इस तरह कई क़जाक डूब गये मगर नावों के बगल में बंधे हुए सरकंडों के गट्ठों ने नावों को डूबने से बचा लिया। जितनी तेजी से बलावान के चप्पू चल सके उतनी तेजी से वह नाव को खेता हुआ आगे बढ़ता गया और सिर्फ़ सूरज के सामने रुकता था ताकि तुर्क उसे देख न सकें। रात भर उन्होंने टोपियों और बाल्टियों में भर-भरकर नावों में से पानी निकाला और गोलों से जो छेद हो गये थे उसकी मरम्मत की। उन्होंने अपने चौड़े-चौड़े कज़ाकी पतलून काटकर बादबान बनाये। पूरी तेज़ी से नावों को खेते हुए वे सबसे तेज चलनेवाले तुर्की जहाज से भी आगे निकल गये। वे न सिर्फ़ बिना किसी दुर्घटना के घर पहुंच गये बल्कि कीएव के मेजीगोर्स्क मठ के सबसे बड़े पादरी के लिए कारचोबी लबादा और ज़ापोरोज्ये के पवित्र मरियम के गिरजों के लिए शुद्ध चांदी के चौखटे भी साथ लाये। बहुत दिनों तक बंदूरा बजानेवाले क़जाकी सौभाग्य के गीत गाते रहे। अब मौत की छटपटाहट में उसने अपना सिर झुकाया और धीरज से बोलाः “मैं समझता हूँ कि भाइयो कि मैं एक अच्छी मौत मर रहा हूँ। मैंने सात को तलवार से टुकड़े-टुकड़े किया है और नौ को बरछियों से छेदा है। मैंने बहुत लोगों पर घोड़े दौड़ाये हैं और कितनों को गोलियों का निशाना बनाया है यह तो मुझे भी याद नहीं रहा। खुदा करे रूसी धरती हमेशा फलती-फूलती रहे!…”और यह कहकर उसकी आत्मा सिधार गयी।
कज़ाको, कज़ाको! अपने सूरमाई के सबसे अच्छे फूलों को न गवांओ! कुकूबेनको घिर चुका है, नेजामाईका कुरेन के कुल सात आदमी बचे हैं और उनकी ताक़त भी जवाब देने ही वाली है, और कुकूबेनको के कपड़ों पर ख़ून के धब्बे पड़े हुए हैं। तारास खुद क़ुकूबेनको को आफ़त में घिरा देखकर उसकी मदद को लपका, लेकिन कज़ाक कुछ देर में पहुंचे, इससे पहले कि उसको घेरे हुए दुश्मनों को भगाया जा सकता एक बरछी की नोक ने दिल से थोड़ा ही नीचे कुकूबेनको को छेद डाला। वह कज़ाकों की बाहों में आ गिरा जिन्होंने उसे थाम लिया और उसका जवान ख़ून नदी की धार की तरह बहने लगा जैसे लापरवाह नौकर तहखाने से किसी शीशे के बर्तन में अनमोल शराब लेकर चलें और चौखट पर ठोकर खाकर क़ीमती सुराही को तोड़ डालें और शराब की आखि़री बूंद तक ज़मीन पर बह जाये और मालिक दौड़ता, बाल नोचता हुआ आये क्योंकि उसने इस शराब को अपने जीवन के सबसे ज़्यादा ख़ुशी के अवसर के लिए बचा कर रखा था- इस आशा में कि बुढ़ापे में खुदा उस, उसकी जवानी के किसी दोस्त से मिला देगा और वे दोनों साथ मिलकर उन बीते दिनों की याद में जाम उठायेंगे जब लोग दूसरे और ज़्यादा अच्छे तरीक़ों से रंगरेलियां मनाया करते थे… कुकूबेनको ने अपनी आंखें चारों तरफ़ घुमायीं और कहाः “मेरे साथियो, मैं भगवान का आभार मानता हूँ कि मैं आप सबकी आंखों के सामने मर रहा हूँ। जो लोग हमारे बाद जि़ंदा रहेंगे भगवान उन्हें हमसे अच्छा बनाये और भगवान करे हमारी रूसी धरती ईसा मसीह की प्यारी ज़मीन, हमेशा-हमेशा खू़बसूरत ही रहे!”और उसकी जवान आत्मा परलोक सिधार गयी। फ़रिश्तों ने उसे अपनी बांहों में उठा लिया और आसमान पर ले गये। वहां उसका समय बहुत अच्छा कटेगा। “तुम मेरे दायें हाथ की ओर बैठो, कुकूबेनको! “ईसा मसीह उससे कहेंगे। “तुमने अपने साथियों के साथ बेवफ़ाई नहीं की और न ही तुमने और कोई बदनामी का काम किया है, न तुमने किसी को मुसीबत के समय अकेला छोड़ा है, तुमने मेरे गिरजे की रखवाली की है और उसकी सुरक्षा का ध्यान रखा है!”कुकूबेनको की मौत ने उन सबको दुखी कर दिया। कज़ाकों की पांतें छंटती जा रही थीं, बहुत-से बहादुर मौजूद नहीं थे, फिर भी उनके पांव नहीं उखड़े थे और वे मैदान में डटे हुए थे।
“तो बोलो, साथियो,”तारास ने बचे हुए कुरेनों को बुलाकर पूछा, “अभी बारूददानों में बारूद है? तुम्हारी तलवारें कुंद तो नहीं हुई? कज़ाकी ताक़त अभी कमज़ोर तो नहीं हुई? कज़ाक हथियार तो नहीं डालेंगे!”
“अभी काफ़ी बारूद है, कोशेवोई! हमारी तलवारें अभी तेज़ हैं! कज़ाकी ताक़त अभी कमज़ोर नहीं हुई है! कज़ाक हथियार नहीं डालेंगे!”
और एक बार फिर वे आगे बढ़े, जैसे कि उन्हें कोई नुकसान ही न पहुंचा हो। अब बस तीन कुरेनों के आतामान ज़िंदा बचे थे। हर तरफ़ लाल-लाल ख़ून की नदियां बह रही थीं, कज़ाकों की और उनके दुश्मनों की लाशों के एक साथ ढेर बन गये थे जो उनके सिर के ऊपर ऊंचे-ऊंचे पुलों जैसे लग रहे थे। तारास ने आसमान पर नज़र डाली तो देखा वहां तो अभी से बाज़ों की एक लकीर आसमान के एक छोर से दूसरे छोर तक फैल चुकी थी। उनके लिए कैसी अच्छी दावत होगी! और उधर मेतेलित्सा एक बरछी की नोक पर उठाया जा रहा था,और एक तरफ़ दूसरे पिसारेंको का सिर लुढ़क रहा था और उसके पपोटे फड़क रहे थे। एक और तरफ़ ओखरिम गूस्का दोहरा हुआ और उसके बदन के टुकड़े-टुकड़े होकर वह धम से ज़मीन पर गिर पड़ा। “समय आ गया!”तारास ने कहा और अपना रूमाल लहराया। ओस्ताप ने इशारा समझ लिया और घात से दौड़ता हुआ आया और दुश्मन के घोड़ों पर जर्बदस्त वार किया। इस हमले से पालिस्तानियों के पांव उखड़ गये और ओस्ताप ने उन्हें खदेड़-खदेड़ कर मैदान के उस हिस्से तक पहुंचा दिया जहां सूलियों और बरछियों के टुकड़े पड़े थे। घोड़े ठोकर खा-खाकर गिर गये और उनके सवार उनके सिरों के ऊपर से होते हुए ज़मीन पर लुढ़क गये। उसी समय कोरसून्का कज़ाकों ने, जो गाडि़यों के पीछे सबसे दूर खड़े थे, यह देखकर कि दुश्मन गोलियों के निशाने पर आ गया है एकदम अपनी बंदूकों से गोलियों की बाछार शुरू कर दी। पोलिस्तानी गड़बड़ा गये, उनकी अक़्ल काम नहीं दे रही थी, कज़ाकों की हिम्मत बंध गयी। “जीत हमारी है!”चारों ओर से ज़ापोरोजी चिल्लाये, उन्होंने अपने बिगुल बजाये और विजय का झंडा फहरा दिया। मात खाये हुए पोलिस्तानी हर तरफ़ दौड़ रहे थे और छिप रहे थे। “नहीं, जीत अभी हमारी नहीं है!”तारास ने शहर के फाटकों की ओर देखते हुए कहा, और सचमुच उसका कहना ठीक ही था।
फाटक खुले और हुसारों की एक रेजीमेंट, जो घुड़सवार फ़ौज की जान थी, बाहर निकल पड़ी। हर आदमी एक-एक बादामी रंग के घोड़ों पर सवार था। उनके आगे सबसे बहादुर और सबसे ख़ूबसूरत सामंत घोड़ा दौड़ता चला आ रहा था। उसके पीतल के ख़ोद के नीचे से उसके काले बाल अठखेलियां कर कर रहे थे, उसकी बांह पर एक क़ीमती रूमाल लहरा रहा था जिसे सबसे ख़ूबसूरत औरत के हाथों ने काढ़ा था। तारास यह देखकर कि वह अन्द्रेई था धक से रह गया। अन्द्रेई लड़ाई की आग और गरमी से खोया हुआ था। वह अपने आपको बांह पर बंधी हुई निशानी के क़ाबिल साबित करने के लिए बेचैन था, वह एक जवान कुत्ते की तरह उड़ा जा रहा था- पूरे ग़ोल में सबसे तेज, सबसे खू़बसूरत और जवान-जो चतुर शिकारियों की ललकार से जोश में आकर आगे झपटता है यहां तक कि उसकी टांगे फैलकर सीधी लकीर में आ जाती हैं और उसका बदन एक ओर झुका होता है और वह बर्फ़ को उछालता हुआ बढ़ता ही जाता है और पीछा करने के जोश में बीसियों बार खरगोश से आगे निकल जाता है। बूढ़ा तारास रुककर देखने लगा कि वह किस तरह अपने लिए रास्ता साफ़ करता, अपने सामने के लोगों को इधर-उधर बिखेरता और काटता और दायें-बायें वार करता हुआ चला आ रहा है। तारास इस दृश्य को देख न सका और वह गरजाः “अरे, अपने ही साथी? तू अपने साथियों को कत्ल करेगा? शैतान की औलाद!”
लेकिन अन्द्रेई कुछ नहीं देख रहा था कि उसके सामने दुश्मन है या दोस्त । उसे कुछ नज़र नहीं आ रहा था सिवाय घुंघराली लटों के, लंबी-लंबी लहराती लटें और नदी के हंस की तरह सफ़ेद सीना और बफऱ् की तरह सफ़ेद गर्दन और कंधे और वह सब कुछ जो भावनाओं से उन्मत्त चुंबनों के लिए बनाया गया था।
“ऐ बच्चो! उसको घेरकर मेरे लिए उस जंगल में ले आओ!”तारास जोर से चिल्लाया। पलक झपकते तीस बहुत फुर्तीले कज़ाक उसके आदेश को पूरा करने के लिए घोड़ों पर सवार लपक पड़े, उन्होंने अपनी ऊंची टोपियों को अपने सिरों पर और मजबूती से जमा लिया और हुसारों का मुक़ाबला करने दौड़े। उन्होंने एक छोर से आगे वाले लोगों पर हमला करके उनको बौखला दिया और उनको पीछेवाली पांतों से अलग करके उन पर कुछ ज़बर्दस्त हमले किये। इसी बीच गोलोकोपीतेंको ने अन्द्रेई की पीठ पर अपनी तलवार का चपटा हिस्सा दे मारा फिर सबके सब अपनी पूरी कज़ाकी तेज़ी से हुसारों से दूर भाग गये। अन्द्रेई कितना गरमा गया था उस समय! किस तरह उसके नस-नस में एक जवान खू़न खौल उठा था! अपने घोड़ों की पसलियों में नुकीली एड़ गड़ाकर वह ज़्यादा से ज़्यादा तेजी से कज़ाकों के पीछे भागा। उसने एक बार भी पीछे मुड़कर नहीं देखा और उसे यह भी नहीं मालूम हुआ था उसके सिर्फ़ बीस आदमी ही उसके साथ आ सके थे। कज़ाक पूरी तेजी से भाग रहे थे और वे सीधे जंगल की ओर मुड़ गये। अन्द्रेई अपने घोड़ों पर बैठा आगे की ओर झपटता ही चला गया और उसने लगभग गोलोकोपीतेंको को पछाड़ ही दिया था कि एक शक्तिशाली हाथ ने उसके घोड़ों की लगाम पकड़ ली। अन्द्रेई तेजी से घूमा: उसके सामने तारास खड़ा था! वह सिर से पांव तक कांप उठा और एकदम उसके चेहरे का रंग उड़ गया…
जिस तरह कोई स्कूली लड़का, जिसने बिना सोचे-समझे अपने क्लास के लड़के को नाराज करके माथे पर पटरी की एक जोर से मार खायी हो और भड़ककर गुस्से में अपने सहमे हुए साथी का पीछा करने के लिए अपने बेंच पर से उछलकर दौड़ा हो कि उसकी बोटी-बोटी कर डाले और उसी समय क्लास में आते हुए मास्टर से उसकी टक्कर हो गयी हो, अपने अद्विग्न आदेश को दबाता है और अपने नाक़ाम गुस्से को रोकता है, उसी तरह पलक झपकते ही अन्द्रेई का गुस्सा ऐसे ग़ायब हो गया जैसे कि वह कभी गुस्सा था ही नहीं। उसको अपने सामने अपने बाप के विकराल रूप के अलावा और कुछ दिखायी नहीं दिया।
“हां, तो अब हमें क्या करना चाहिये?”तारास ने उसकी आंखों में आंखें डालकर कहा।
अन्द्रेई की समझ में आ नहीं रहा था कि क्या कहे, वह ज़मीन पर आंखें जमाये चुप खड़ा रहा।
“क्यों बेटे, पोलिस्तानियों ने तुम्हारी मदद की?”
अन्द्रेई ने कोई जवाब नहीं दिया।
“तो ग़द्दारी-अपने धर्म से ग़द्दारी? अपने साथियों से गद्दारी? अच्छा तो अपने घोड़े से नीचे उतर आओ!”
एक आज्ञाकारी बच्चे की तरह अन्द्रेई घोड़ों पर से उतर पड़ा और अधमरा-सा तारास के सामने खड़ा हो गया।
“हिलो-डुलो नहीं, चुपचाप खड़े रहो! मैंने तुम्हें पैदा किया और मैं ही तुम्हें मार डालूँगा।”तारास ने कहा और कुछ क़दम पीछे हटकर उसने अपने कंधे पर से बंदूक़ उतार ली।
अन्द्रेई उजली धुली चादर की तरह सफ़ेद खड़ा रहा, धीरे से उसके होंठ हिले और उसने एक नाम लिया, यह नाम न उसके देश का था, न उसकी मां का और न ही उसके भाई-बंधुओं का। वह तो उस सुंदर पोलिस्तानी लड़की का नाम था। तारास ने गोली चला दी।
दरांती ने कटी गेहूं की बाली की तरह, छोटे-से भेड़ के बच्चे की तरह जो अपने सीने पर जानलेवा लोहे की धार महसूस करता है अन्द्रेई ने अपना सिर एक ओर को ढलकाया और एक शब्द मुंह से निकाले बिना घास पर गिर पड़ा।
अपने बेटे का क़ातिल स्थिर खड़ा देर तक उस निर्जीव शरीर को देखता रहा। वह मौत में भी ख़ूबसूरत लग रहा थाः उसका मर्दाना चेहरा जो अभी ज़रा ही देर पहले तक ताक़त रखता था और हर औरत के लिए अत्यंत सम्मोहक और आकर्षक था, अपनी स्थिरता में भी अद्भुत और सुंदर दिखयी दे रहा था, उसकी काली मख़मल जैसी काली भवें उसके नाक-नक्शे के पीलेपन को और उभार रहे थे।
“यह कैसा अच्छा कज़ाक बन सकता था!”तारास बोला। “लंबे क़द का, काली भवोंवाला, नर्म चेहरेवाला और लड़ाई में ताक़तवर बांहवाला!”मगर वह ख़त्म हो गया, घृणित तरीक़े से ख़त्म हो गया, एक कमीने कुत्ते की तरह!”
“बात्को, यह तुमने क्या किया? क्या तुमने ही उसे मार डाला?”उसी समय घोड़े पर सवार पास आते हुए ओस्ताप से कहा।
तारास ने अपना सिर हिला दिया।
ओस्ताप ने मुर्दा आंखों को ध्यान से देखा। अपने भाई के मरने के दुख से उसका जी भर आया। उसने तुरंत कहाः
“बात्को, इसको अच्छी तरह दफ़न कर दें ताकि कोई दुश्मन इसका अपमान न कर सके। और मुर्दों को खानेवाले जानवर इसकी बोटियां न नोच सकें।”
“वे लोग हमारी मदद के बिना ही उसको दफ़न कर देंगे! “तारास ने कहा। “इसके लिए बहुत-से रोनेवाले और शोक मनानवाले होंगे! “
एक दो मिनिट के लिए उसने सोचा कि उसे भेडि़यों का शिकार करने के लिए छोड़ दे या उसके सामंती साहस का सम्मान करे, उस साहस का जिसकी एक बहादुर आदमी हर एक में इज़्ज़त करता है। उसी समय उसने गोलोकोपीतेंको को घोड़ा भगाते हुए अपनी ओर आते देखा।
“अफ़सोस हमारे हाल पर, आतामान! पोलिस्तानियों की ताक़त बढ़ गयी है। उनकी मदद के लिए ताज़ा फ़ौजें आ गयी हैं!…”
गोलोकोपीतेंको ने अभी बात छेड़ी ही थी कि वोवतुजेंको घोड़ा भागता हुआ वहां आ पहुंचा।
“अफ़सोस हमारे हाल पर, आतामान! एक नयी फ़ौज आ रही है! “
वोवतुजेंको ने अपनी बात पूरी की ही थी कि पिसारेंको दौड़ता हुआ आया।
“कहां हो, आतामान? कज़ाक तुम्हें ढूढ़ रहे हैं। आतामान नेवेलीचकी, ज़ादोरोज्नी मारे जा चुके हैं और चेरेवीचेंको भी! लेकिन कज़ाक मजबूती से जमे हुए हैं और जब तक तुम्हें देख न लें वे नहीं मरेंगे। वे चाहते हैं कि तुम उनको मौत की घड़ी में देखो! “
“फ़ौरन घोड़ों पर सवार हो जाओ, ओस्ताप! “तारास ने कहा और तेजी से अपने कज़ाकों की ओर चल पड़ा ताकि एक बार फिर उनकी सूरत देख लें और उन्हें मौत आने से पहले अपने आतामान की सूरत देख लेने दें।
मगर इससे पहले कि वे जंगल से बाहर निकल सकते, दुश्मन की फ़ौजों ने उस जंगल को चारों तरफ़ से घेर लिया और बरछों और तलवारों से लैस सवार हर जगह पेड़ों के बीच दिखायी दिये।
“ओस्ताप! ओस्ताप! हार न मानना!…”तारास चिल्लाया और अपनी तलवार म्यान से निकालकर उसने चारों तरफ़ वार करने शुरू कर दिये। छः आदमी एक साथ ओस्ताप पर टूट पड़े लेकिन उन्होंने बुरी घड़ी चुनी थीः एक का सिर उड़कर दूर जा गिरा, दूसरा पीछे गिरकर क़लाबाज़ी खा गया, एक बरछी की नोक तीसरे की पसली के पार हो गयी, चौथा आदमी, जो औरांे से ज़्यादा साहसी था, धोखा देकर गोली की मार से बच निकला और दहकती हुई गोली उसके घोड़े के सीने पर जा लगी, घोड़ा पागल-सा होकर पीछे हटा और ज़मीन पर जा गिरा और उसने अपने सवार को अपने नीचे कुचल डाला। “बहुत ख़ूब, बेटे!… शाबाश, ओस्ताप!…”तारास चिल्लाया। “मैं भी इसी तरह इनसे निपटूंगा!…”और वह अपने पर हमला करनेवालों को बराबर जवाबी हमले करके पीछे ढकेलता रहा। वह दायें-बायें वार कर रहा था और पूरे समय उसने ओस्ताप से, जो उसके सामने था, आंखें नहीं हटायीं। फिर उसने देखा कि पूरे आठ आदमियों ने ओस्ताप को घेर लिया। “ओस्ताप!।। ओस्ताप!… हार न मानना!…”मगर ओस्ताप को पराजित किया जा चुका था। अब उसकी गर्दन में एक फंदा पड़ चुका गया था, अब वे उसको बांध रहे थे-अब वे उसे ले जा रहे थे। “ओस्ताप! आह, ओस्ताप!…”तारास उसके पास पहुंचने के लिए लड़ता हुआ रास्ता बनाता, राह में आने वाले हर आदमी का क़ीमा बनाते हुए चिल्लाया। “ओस्ताप! आह, ओस्ताप!।।”लेकिन उसी समय भारी पत्थर जैसी किसी चीज़ का वार उस पर पड़ा। उसकी आंखों के सामने हर चीज़ घूम गयी और नाच उठी। एक क्षण के लिए उसके सामने सिरों, बरछियों, धुएं और आग की चिंगारियों का मिला-जुला ढेर कौंध गया और फिर-पत्तों से भरी डालों का एक साया तेजी से दिखाई दिया और ग़ायब हो गया। तारास एक कटे हुए शाहबलूत के पेड़ की तरह धम से ज़मीन पर गिर पड़ा और उसकी आंखों पर गहरा धुँधलका छा गया।
10
“मैं कितनी देर तक सोया! “तारास ने इस तरह होश में आकर कहा जैसे बहुत गहरी नशे की नींद से जागा हो और अपने आस-पास की चीज़ों को समझने की कोशिश कर रहा हो। बेहद क़मजोरी ने उसके हाथ-पांव जकड़ रखे थे। एक अनजाने कमरे की दीवारें और कोने धुंधले-धंुधले उसकी आंखों के सामने नाच रहे थे। फिर उसने देखा कि तोव्काच उसके सामने बैठा है और मालूम होता था वह उसकी हर सांस पर कान लगाये था।
“हां, तोव्काच ने सोचा, “यह हो सकता था कि तुम हमेशा के लिए सो जाते! लेकिन उसने कुछ नहीं कहा। उसने सिर्फ़ अपनी उंगली हिलाकर चुप रहने का इशारा किया।
“लेकिन मुझे बताओ कि मैं इस समय कहां हूँ?”तारास ने अपने बिखरे विचारों को समेटकर और यह याद करने की कोशिश करते हुए कि क्या घटना घटी थी, पूछा।
“शांत रहो!”उसका साथी सख्ती से चिल्लाया। “तुम और क्या जानना चाहते हो? देख नहीं रहे हो कि तुम सिर से पांव तक घायल हो?”आज दो हफ़्ते हो गये कि हम तुम्हें साथ लिये-लिये, दम साधे बुरी तरह भाग रहे हैं। तुम्हें तबसे बुख़ार चढ़ा हुआ है और ऊटपटांग बक रहे हो। आज तुम पहली बार तुम ज़रा आराम से सोये हो। अगर तुम अपने सिर पर मुसीबत नहीं लाना चाहते हो तो शांत रहो।”
मगर तारास अब भी अपने विचारों को समेटने और यह याद करने की कोशिश कर रहा था कि हुआ क्या था।
“ओहो, मुझे तो पोलिस्तानियों ने घेरकर लगभग पकड़ लिया था। मेरे लिए लड़ते हुए उस भीड़ में से निकलने का रास्ता नहीं था?”
“तुम से कहा जा रहा है कि चुप रहो, शैतान की औलाद!”तोव्काच गुस्सा होकर चिल्लाया, जैसे कि एक आया बुरी तरह तंग आकर किसी बेचैन और चुलबुल बच्चे पर चिल्लाती है। “यह जानकर तुम्हें क्या फ़ायदा होगा कि तुम किस तरह बच निकले। इतना काफ़ी है कि तुम बच गये। ऐसे लोग थे जो तुम्हें अकेला छोड़ने पर तैयार नहीं थे- तुम्हें बस इतना ही जानने की जरूरत है! हमें अभी कई और रातें कठिन सफ़र में काटनी हैं। तुम्हारा ख़्याल है कि तुम एक मामूली कज़ाक समझे जाते हो? नहीं, तुम्हारे सिर की क़ीमत उन लोगों ने दो हज़ार ड्यूकट लगायी है।”
“और ओस्ताप का क्या हुआ?”तारास अचानक चिल्लाया, उसने उठने की कोशिश की और एकदम उसे याद आया कि किस तरह ओस्ताप उसकी अपनी आंखों के सामने पकड़ा और बांधा गया था और अब वह पोलिस्तानियों के क़ब्जे में होगा।
उसका बूढ़ा दिल दुःख से भर गया। उसने अपने सारे घावों पर से पट्टियां दूर फेंक दीं। उसने कुछ कहने की कोशिश की मगर कुछ कहने के बजाए वह अनाप-शनाप बकने लगा, उसको फिर बुखार चढ़ आया और वह ऊटपटांग और निरर्थक शब्द बार-बार दोहराने लगा।
उसका वफ़ादार साथी उसके पास खड़ा रहा और उस पर झल्ला-झल्लाकर गालियों और फटकारों की बौछार करता रहा और फिर उसने तारास की बाहें और टांगे पकड़कर उसे बच्चे की तरह जकड़ दिया, उसकी सारी पट्टियां फिर से बांधी और उसे बैल की खाल में लपेट दिया, और फिर उसको अपनी ज़ीन के साथ बांधकर उसे लिये हुए सरपट घोड़ा दौड़ा दिया।
“मैं तुम्हें मुर्दा या ज़िंदा वहां पहुंचाकर ही रहूंगा! मैं पोलिस्तानियों को तुम्हारी कज़ाकी हड्डियों और कज़ाकी खूून की हँसी नहीं उड़ाने दूंगा। मैं उन्हें तुम्हारे बदन को बोटी-बोटी करके नदीं में नहीं फ़ेकने दंूगा। और अगर किसी गरुड़ को तुम्हारी खोपड़ी में से तुम्हारी आंखें निकालनी ही हैं तो वह स्तेपी का गरुड़ ही होना चाहिये, कोई पोलिस्तान गरुड़ नहीं जो पोलिस्तानी धरती से उड़कर आया हो। मुर्दा या जिंदा मैं। तुम्हें उक्राइन पहुंचाकर ही दम लूंगा।”
वफ़ादार साथी ने यह बातें कहीं। दिन-रात वह आराम किये बिना सरपट घोड़ा दौड़ाता चलता ही चला गया और तारास को, जो अब तक बेहोश था, आखिरकार ज़ापोरोजी सेच तक ले ही आया। वहां उसने वहां जड़ी-बूटियों और मरहमों से अनथक उसका इलाज किया, उसने एक होशिसार यहूदिन को ढंूढ निकाला, जिसने तारास को महीने भर तक तरह-तरह की दवाएं पिलायीं और अंत में तारास की हालत संभलने लगी। वह दवाओं की जीत थी या उसके लोहे जैसे बदन की, कि डेढ़ महीने के अंदर तारास चलने-फिरने के क़ाबिल हो गया, उसके घाव भर गये और सिर्फ़ तलवार के घावों के निशान इसकी गवाही देते थे कि बूढ़ा कज़ाक कितने ख़तरनाक तरीक़े से घायल हुआ था। लेकिन यह साफ़ पता चलता था कि वह दुखी और उदास हो गया था। तीन गहरी लकीरें हमेशा के लिए उसके माथे पर पड़ गयी थीं। अब उसने इधर-उधर देखना शुरू कियाः सेच में हर चीज़ नयी थी। उसके सारे पुराने साथी मर चुके थे। उन लोगों में से अब एक भी आदमी जि़ंदा नही था जो सच्चे उद्देश्य के लिए, धर्म और भाईचारे के लिए कमर बांधकर उठ खड़े हुए थे। और वे लोग जो कोशेवोई के साथ तातारों का पीछा करने गये थे वे भी कभी के मिट चुके थे- सबने अपनी जानें दे दी थीं। सब ख़त्म हो चुके थे- कुछ लोगों ने लड़ाई में जान दी थी, कुछ ने क्राइमिया की भूखी, बिना पानी की खारी दलदलों में और कुछ और लोगों ने शर्मनाक क़ैद में। पुराना कोशेवोई और तमाम पुराने साथी अब नहीं थे, और जो चीज़ पहले उबलती कज़ाकी ताक़त थी अब उस पर घास-फूस उग आयी थी। तारास को ऐसा लगा जैसे कोई बहुत बड़ा धूम-धड़ाके का जश्न मनाया जा रहा होः सारे बरतन चकनाचूर कर दिये गये हों, शराब की बूंद भी न बची हो, मेहमानों और नौकरों ने सारे क़ीमती प्याले और सुराहियां लूट ली हों और अब मेज़बान दुखी खड़ा सोच रहा होः “काश यह दावत न हुई होती।”लोगों ने तारास का दिल बहलाने और उसे ख़ुश करने की कोशिश की, लेकिन बेकार। लंबी सफ़ेद दाढ़ीवाले बंदूरा बजानेवालों ने दो-दो तीन-तीन की टोलियों में आकर उसके कज़ाक कारनामों का गुणगान किया, लेकिन बेकार। वह नि×ुर और क्रूर सूनी-सूनी आंखों से हर चीज़ को ताकता रहा, उसके भावशून्य चेहरे पर कभी-कभी अपार दुख छा जाता था और वह चुपचाप सिर झुकाकर कलपकर कहता थाः “मेरे बेटे! मेरे ओस्ताप!”
ज़ापोरोजी एक समुद्री छापे के लिए चले। द्नेपर पर दो सौ नावें छोड़ दी गयीं और एशिया माइनर ने कज़ाकों को उनके घुटे हुए सिरों और लंबी-लंबी चोटियों के साथ अपने फलते-फूलते तटों को आग और तलवार के हवाले करते देखा, उसने अपने आदमियों के साफ़े अनगिनत फूलों की तरह अपने खू़न में डूबे मैदानों में बिखरे हुए और अपने तट के किनारे-किनारे बहते हुए देखे। उसने बहुत-से चौड़े-चौड़े ज़ापोरोजी पतलून को तारकोल में तर-बतर देखा और बहुत-से बलवान हाथों में काले कज़ाकी चाबुक पाये। ज़ापोरोजियों ने सारे अंगूर खा डाले और सारे अंगूर के बाग़ों को तहस-नहस कर डाला। उन्होंने मस्जिदों में गोबर के ढेर लगा दिये, क़ीमती फ़ारस की शॉलों को अपने मैले-कुचैले कोटों के ऊपर पेटी की तरह बांध लिया। बहुत दिन तक इन जगहों में छोटे-छोटे ज़ापोरोजियों के पाईप पाये जा सकते थे। ज़ापोरोजी नावों में बैठकर ख़ुश-ख़ुश वापस लौटे। दस तोपोंवाले एक तुर्की ज़हाज ने उनका पीछा किया और सब तोपों के एक ही हमले में उनकी हल्की नावों में चिडि़यों की तरह बिखेर दिया। इनमें से एक तिहाई नावें तो समुद्र की तह में डूब गयीं मगर बाक़ी नावें फिर इकट्ठी हो गयीं और सेक्विनों से भरे बारह पीपे साथ लिये हुए द्नेपर के दहाने तक पहुंच गयीं। लेकिन अब इन सब बातों में तारास को कोई दिलचस्पी नहीं रही थी। वह स्तेपी के चरागाहों की ओर जाता था जैसे शिकार करने जाता हो लेकिन उसकी गोली कभी नहीं चलती थी। वह अपनी बंदूक़ एक तरफ़ रखकर गहरी व्यथा में डूबा समुद्र के किनारे बैठ जाता था। वहां वह बहुत देर तक सिर झुकाये बैठा बार-बार यही दोहराता रहता थाः “मेरे ओस्ताप! मेरे ओस्ताप!”उसके सामने काला सागर दूर तक फैला हुआ चमकता रहता था। कोई चिल्ली दूर सरकंडों में चिल्लाती रहती थी। तारास की सफ़ेद मूँछें चाँदी की तरह चमकती रहती थीं और आंसू टप-टप गिरते रहते थे।
आखिरकर तारास और ज़्यादा बर्दाश्त न कर सका। “चाहे कुछ भी हो मैं जाकर पता चलाऊंगा कि उस पर क्या बीती। वह जि़ंदा है या अपनी क़ब्र में सो रहा है? या मर गया है और बिन कफ़न-दफ़न के पड़ा है? मैं पता चलाकर रहूंगा, चाहे इसके लिए कुछ भी क़ीमत अदा करनी पड़े!”हफ़्ते के अंदर-अंदर वह शहर उमान पहुंच गया- घोड़े पर सवार और भाले और तलवार से लैस। उसकी ज़ीन पर सफ़र की पानी की बोतल और दलिये से भरा हुआ बरतन बंधा था और वह कारतूसों, घोड़े की ज़ंजीरों अैर दूसरे साज़-सामान से भी लैस था। वह सीधा एक मैली-कुचैली झोंपड़ी की तरफ़ गया जिसकी छोटी-छोटी खिड़कियां धुएं या और किसी चीज़ से इतनी काली हो चुकी थीं कि वह नज़र नहीं आती थीं, उसकी चिमनी चीथड़े ठूंसकर बंद कर दी गयी थी और उसकी छत में छेद ही छेद थे और उस पर गौरैयों का राज था। दरवाजे़ के ठीक सामने कचरे का एक ढेर पड़ा था। एक खिड़की में से एक यहूदिन का सिर निकला जिस पर एक बदरंग पोतों से टंकी टोपी रखी हुई थी।
“तुम्हारा मरद घर पर है?”बुल्बा ने घोड़े से उतरकर लगाम को दरवाजे के पास एक लोहे के कड़े से बांधते हुए पूछा।
“घर पर है,”यहूदिन ने जवाब दिया और जल्दी-से घोड़े के लिए करछुल भर गेहूं और सामंत के लिए एक बियर का प्याला लिये हुए बाहर आयी।
“कहां है तुम्हारा यहूदी?”
“वह दूसरे कमरे में प्रार्थना कर रहा है”यहूदिन ने बड़े अदब से झुककर कहा और जब बुल्बा प्याला अपने होंठों तक ले गया तो यहूदिन ने उसे सेहत और सलामती की दुआ दी।
“तुम यहीं रहो और मेरे घोड़े को दाना-पानी दो, मैं जाकर उससे अकेले में बात करता हूं। मुझे उससे काम है।”
वह यहूदी और कोई यांकेल था। वह सूदखोर और शराबखाने के मालिक की हैसियत से यहां बस गया था और धीरे-धीरे आस-पास के लगभग सारे रईस उसके चंगुल में आ गये थे और उसने धीरे-धीरे उनका तमाम रुपया निचोड़ लिया था और उस जगह अपनी यहूदी प्रकृति को अच्छी तरह महसूस करा दिया था। तीन मील के घेरे में एक भी झोंपड़ी की हालत ठीक नहीं रही थी, हर चीज़ टूटी-फूटी और पुरानी हो चुकी थी, हर चीज़ खंडहर बनी जा रही थी। सब कुछ शराब पर उड़ाया जा रहा था और ग़रीबी तथा चीथड़ों के अलावा कुछ भी बाक़ी नहीं बचा था। पूरा इलाक़ा इस तरह बरबाद हो गया था जैसे किसी बीमारी या आग से हो जाता है। और अगर यांकेल दस साल और यहां रह जाता तो ज़रूर ही सारे इलाके़ को नड्ढ कर देता। तारास कमरे में घुसा। यहूदी प्रार्थना कर रहा था। उसका सिर एक मैली-सी चादर में लिपटा था। वह अपने धर्म के रिवाज के अनुसार आखि़री बार थूकने के लिए मुड़ा ही था कि उसकी नज़र एकदम बुल्बा पर उसके पीछे खड़ा था। बुल्बा के सिर के लिए जो दो हज़ार ड्यूकट का इनाम था वह यहूदी की आंखों में सामने नाच गया, लेकिन वह अपनी लालच पर स्वयं लज्जित हो गया और उसने अपने दिल से सोने के ख़्याल को, जो वहां हमेशा बना रहता था, और जो यहूदी की आत्मा के चारों ओर केंचुए की तरह लिपटा रहता है, दबाने की कोशिश की।
“सुनो यांकेल!”तारास ने यहूदी से कहा, जिसने उसके सामने झुकना शुरू कर दिया था, और सावधानी से दरवाजे़ में ताला लगा दिया ताकि उन दोनों को कोई साथ न देख ले। “मैंने तुम्हारी जान बचायी, ज़ायोरोजी कुत्ते की तरह तुम्हारी बोटी-बोटी अलग कर देते, अब तुम्हरी बारी है- अब तुम्हें मेरा एक काम करना है!”
यहूदी का मुंह कुछ सिकुड़ गया।
“क्या काम? अगर वह कोई ऐसा काम होगा जो मेरे बस का होगा तो मैं जरूर करूंगा।”
“बातों में समय नड्ढ मत करो। मुझे वार्सा ले चलो।”
“वार्सा? वार्सा क्यों?”यांकेल ने कहा। उसके कंधे और भवें अचंभे से ऊपर उठ गयीं।
“बातों में वक़्त बर्बाद मत करो। मुझे वार्सा ले चलो। चाहे कुछ भी हो मैं एक बार फिर उसे देखना चाहता हूँ और ज़्यादा नहीं, सिर्फ़ एक बात उससे करना चाहता हूँ।”
“एक बात, किससे?”
“उससे, ओस्ताप से, अपने बेटे से!”
“लेकिन सरकार क्या आपको मालूम नहीं कि अभी से…।”
“मैं सब जानता हूँ। मेरे सिर के लिए दो हज़ार ड्यूकट का इनाम है। वे उसकी क़ीमत जानते हैं, बेवकूफ़ कहीं के! मैं तुम्हें पांच हज़ार ड्यूकट दूंगा। लो दो हज़ार तो यह रहे,”बुल्बा ने एक चमड़े के बटुए में से दो हज़ार ड्यूकट निकाले, “और बाक़ी जब मैं वापस आ जाऊंगा।”
यहूदी ने जल्दी से एक तौलिया उठाकर पैसे को उससे ढक दिया।
“ओह, कितने खू़बसूरत सिक्के हैं! ओह, सोने के सिक्के!”उसने एक ड्यूकट को अपनी उंगलियों से घुमाकर उसे दांतों से परखते हुए कहा, “मेरा ख्याल है कि हुजूर ने जिस आदमी को इन ड्यूकटों से अलग किया है वह उसके बाद एक घंटे भी जि़दा नहीं रहा होगा बल्कि इतने सुंदर सिक्के खोने के बाद सीधे नदी में जाकर डूब मरा होगा।”
“मैं तुमसे न कहता और शायद अपने आप ही वार्सा चला जाता लेकिन ऐसा हो सकता है कि कमबख्त पोलिस्तानी मुझे पहचान लें और पकड़ लें क्योंकि मैं साजि़श करने में बिल्कुल कच्चा हूँ और तुम यहूदी तो बने ही इसी के लिए हो। तुम तो खुद शैतान को भी धोखा दे सकते हो। तुम हर तरह की चालें जानते हो-इसीलिए मैं तुम्हारे पास आया हूँ! और फिर वार्सा में मैं अकेला कुछ नहीं कर सकता। अब जाकर अपनी गाड़ी तैयार कर लो और मुझे वहां ले चलो!”
“और क्या हुजूर, यह समझते हैं कि मैं बस जाकर अपनी घोड़ी को गाड़ी में जोतकर ‘टक़-टक़, भूरी चल पड़ो, शाबाश’ कहूँगा और चल पड़ूंगा? क्या हुजूर का ख्याल है कि मैं आपको बिलकुल इसी तरह बिना छिपाये ले जा सकता हूँ?”
“अच्छा, तो मुझे छिपा दो, जिस तरह चाहो छिपा दो! शायद किसी खाली पीपे में छिपा सकते हो, क्यों?”
“ओह! क्या हुजूर यह समझते हैं कि आप पीपे में छिपाये जा सकते हैं? क्या हुजूर को यह नहीं मालूम कि हर आदमी को ख्याल होगा कि पीपे में वोद्का भरी है?”
“तो क्या, समझने दो उन्हें कि इसमें वोद्का है।”
“क्या? उनको यह समझने दूं कि इसमें वोद्का है?”यहूदी ने कहा और दोनों हाथों से अपने गलमुच्छे पकड़ लिये और फिर दोनों हाथों को ऊपर उठा लिया।
“क्यों, अब तुम किस चीज़ से डर रहे हो?”
“क्या हुजूर नहीं जानते कि भगवान ने वोद्का को इसीलिए बनाया है कि हर आदमी उसे पी सके? वहां सभी लोग अच्छी चीज़ों के शौक़ीन हैं, सभी चटोरे हैं और हर रईस घंटों पीपे के पीछे दौड़ेगा, उसमें छेद कर देगा और फ़ौरन यह देख लेगा कि उसमें से कोई चीज़ नहीं बह रही है और कहेगा ‘एक यहूदी कभी खाली पीपा लेकरनहीं चलता। ज़रूर दाल में कुछ काला है। यहूदी को पकड़ लो, बांध लो, उससे सारा रुपया-पैसा छीन लो और उसे क़ैदखाने में डाले दो! क्योंकि हर बुरी बात के लिए हमेशा यहूदी को ही इलज़ाम दिया जाता है, क्योंकि सब लोग यहूदी को कुत्ता समझते हैं, क्योंकि वे सोचते हैं कि अगर कोई आदमी यहूदी है तो वह इंसान नहीं है।”
“अच्छा, तो मुझे मछलियों से भरी हुई गाड़ी में छिपा दो।”
“मैं ऐसा नहीं कर सकता, हुजूर, मैं यह भी बिल्कुल नहीं कर सकता। पूरे पोलिस्तान में लोग शिकारी कुत्तों की तरह भूखे हैं। वे सारी मछलियां चुरा लेंगे और हुजूर को देख लेंगे।”
“अच्छा तो मुझे शैतान की पीठ पर सवार कर दो मगर वहां ले ज़रूर चलो!”
“सुनिये, मेरी बात सुनिये, मेरे हुजूर!”यहूदी ने अपनी आस्तीनें चढ़ाकर और हाथ फैलाकर तारास की ओर आते हुए कहा। “मैं बताता हूँ कि हम क्या करेंगे। आजकल हर जगह कि़ले और चौकियां बनायी जा रही हैं। फ्ऱांसीसी इंजीनियर विदेश से आये हुए हैं इसलिए ढेरों ईंटें और पत्थर सड़कों के रास्ते इधर से उधर ले जाये जा रहे हैं। हुजूर गाड़ी पर लेट जायें और मैं हुजूर के ऊपर ईटें चुन दूंगा। हुजूर, खू़ब तंदुरुस्त हट्टे-कट्टे मालूम होते हैं इसलिए अगर इंटें ज़रा भारी भी हुईं तो भी हुजूर को नुक़सान नहीं पहुंचेगा। मैं नीचे एक छेद बना दूंगा जिसमें से हुजूर को खाना खिलाया जा सके।”
“किसी तरह बस मुझे वहां ले चलो!”
घंटे-भर बाद ईटों से लदी हुई एक गाड़ी जिसे दो मामूली घोड़े खींच रहे थे, शहर उमान से निकली। इनमें से एक घोड़े पर लंबा यांकेल बैठा हुआ था। वह मील के पत्थर की तरह लंबा था और जब वह घोड़े पर बैठा हुआ हिल रहा था तो उसके लंबे-लंबे घुंघराले गलमुच्छे उसकी चंदिया पर मढ़ी हुई खास तरह की यहूदी टोपी के नीचे से निकले हुए लहरा रहे थे।
11
जिस ज़माने में यह सब कुछ हो रहा था तब तक सीमाओं पर चुंगी के अफ़सरों या पहरेदारों का-जो उद्यमशील व्यक्तियों के लिए बहुत डरावनी चीज़ थे- रिवाज नहीं था और इसीलिए कोई भी आदमी जो चीज़ चाहता था सीमा के पार ले जा सकता था। अगर कोई तलाशी या निरीक्षण कर भी बैठता था तो सिर्फ़ अपनी ख़ुशी की ख़ातिर और ख़ास तौर पर उस सूरत में जबकि गाडि़यों में कोई चीज़ आंखों को अपनी ओर आकर्षित करनेवाली होती थी और जबकि उस आदमी के अपने हाथ में दम और ताक़त होती थी। लेकिन ईटों में किसी को कोई दिलचस्पी नहीं थी और वे शहर के बड़े फाटकों में से बिना किसी रुकावट के निकाल ली गयीं। अपने तंग क़ैदखाने में से बुल्बा सिर्फ़ सड़कों का शोर और कोचवानों का चिल्लाना सुन सकता था। यांकेल अपने छोटे-से धूल से अटे हुए घोड़े पर बैठा ऊपर-नीचे उछलता हुआ अपनी राह के निशानों को ध्यान से मिटाने के बाद एक तंग और अंधेरी गली में घुसा जो “गंदी सड़क”या “यहूदी सड़क”कहलाती थी क्योंकि वार्सा के लगभग सारे यहूदी इसी सड़क पर रहते थे। यह सड़क किसी के पीछे के अहाते से बहुत ज़्यादा मिलती-जुलती थी जिसे उलटकर पीछे के बजाय सामने कर दिया गया हो। लगता था कि सूरज इस पर कभी नहीं चमकता था। समय के हाथों काले पड़े लकड़ी के मकानों और खिड़कियों में से बाहर निकले हुए बहुत-से डंडों ने अंधेरे को और भी गहरा कर दिया था। यहां-वहां मकानों के बीच में लाल ईटों की कोई दीवार दिखायी दे जाती थी लेकिन वह भी जगह-जगह पर काली हो चुकी थी। कभी-कभी किसी पलस्तर की हुई दीवार का टुकड़ा ऊंचाई पर धूप में चकाचौंध कर देनेवाली सफ़ेद रोशनी से चमक जाता था। यहां हर चीज़ आंखों में खटकती थीः चिमनियां, चीथड़े, कचरा, बेकार बर्तन-भांडे। हर आदमी अपनी बेकार चीजें़ सड़क पर फेंक देता था और हर तरह की गंदगी गुज़रनेवाले लोगों की पांचों इंद्रियों को तकलीफ़ देती थी। घोड़े पर सवार कोई भी आदमी हाथ बढ़ाकर सड़क के आर-पार दो घरों के बीच टिके हुए डंडों को, जिन पर यहूदियों के मोज़े, जांघिये और कहीं-कहीं भुनी हुई बत्तखें टंगी रहती थीं, लगभग छू सकता था। कभी-कभी एक ख़ासी ख़ूबसूरत यहूदी लड़की का बदरंग मोतियों से सजा छोटा-सा चेहरा किसी बेहद पुरानी खिड़की में से झांकता था। घुंघराले बालों, मैले-कुचैले, चीथड़े पहने यहूदी छोकरों का गिरोह कीचड़ में लोटता और चीखें मारता रहता था। एक यहूदी ने जिसके वाले लाल थे, जिसके मुंह पर गौरैया के अंडों जैसी चित्तियां थीं, एक खिड़की में से झांका और फ़ौरन यांकेल से अपनी ज़बान में गिट-पिट बातें करने लगा, यांकेल ने गाड़ी एक अहाते में मोड़ दी। एक और राह-चलता यहूदी रुककर इनकी बातचीत में शामिल हो गया और जब अंत में बुल्बा ईटों के नीचे से निकला तो उसने देखा कि तीनों यहूदी बड़े जोश में बातें कर रहे थे।
यांकेल बुल्बा की तरफ़ मुड़ा और उसने बतलाया कि सब कुछ हो जायेगा। उसने कहा कि उसका ओस्ताप शहर के जेल में है। उसने यह भी कहा कि उसकी राय में जेल के संतरियों को पटाना मुश्किल होगा फिर भी उसे उम्मीद थी कि वह तारास और ओस्ताप की भंेट करा देगा।
बुल्बा तीनों यहूदियों के साथ एक कमरे में चला गया।
यहूदी बुल्बा को न समझ में आनेवाली अपनी भाषा में बातचीत करने लगे। तारास ने हर एक की तरफ़ देखा। लगता था कि किसी चीज़ ने उसको बहुत उत्तेजित कर दिया था। उसके खुरदुरे और ठोस चेहरे पर आशा की एक तेज़ लटप कौंध गयी- एक ऐसी लपट जो कभी-कभी बेहद निराश आदमी को अपनी झलक दिखा देती है और तारास का बूढ़ा दिल एक नौजवान दिल की तरह तेज़ी से धड़कने लगा।
“सुनो, ऐ यहूदियो!”उसने कहा और उसकी आवाज़ में खु़शी की खनक थी। “तुम सब कुछ कर सकते हो, यहां तक कि समुद्र की तह भी खोद सकते हो और यह बात बहुत पहले साबित हो चुकी है कि यहूदी चाहे तो अपने आप को भी चुरा सकता है। मेरे ओस्ताप को क़ैद से छुड़ा लो! शैतान के चंगुल से निकल भागने में उसकी मदद करो! इस आदमी को मैंने बारह हज़ार ड्यूकट देने का वादा किया है, मैं बारह हज़ार और बढ़ाये देता हूँ। मैं अपनी तमाम क़ीमती सुराहियां और प्याले, ज़मीन में गड़ा हुआ अपना तमाम सोना, अपना घर और अपना आखि़री लिबास तक तुमको दे दूंगा और तुमसे अपने जीवन भर के लिए समझौता कर लूंगा कि लड़ाइयों में जो कुछ मैं जीतूँ उसका आधा तुमको दे दूंगा।”
“ओह, यह नहीं हो सकता, मेरे प्यारे हुजूरः ऐसा नहीं किया जा सकता!”यांकेल ने ठंडी सांस लेकर कहा।
“नहीं, यह नहीं किया जा सकता!”एक और यहूदी बोला। तीनों यहूदियों ने एक-दूसरे की ओर देखा।
“अगर हम कोशिश करें?”तीसरे ने दूसरे दो यहूदियों को डरी-डरी नज़रों से देखते हुए कहा। “हो सकता है कि खुदा हमारी मदद कर दे।”
तीनों यहूदी जर्मन में बातचीत करने लगे। बुल्बा ने कान लगाकर सुनने की बहुत कोशिश की लेकिन वह एक शब्द भी नहीं समझ पाया, उसने सिर्फ़ एक ही शब्द बार-बार सुना, मरदोहाई।
“सुनिये हुजू़र!”यांकेल ने कहा। “हमको एक ऐसे आदमी से सलाह करनी चाहिये जिसका ऐसा दूसरा आज तक दुनिया में पैदा नहीं हुआ! ओफ़! ओह! वह तो सुलेमान की तरह बुद्धिमान है और जो काम वह नहीं कर सकता उसे दुनिया में कोई नहीं कर सकता। यहां बैठे रहिये, यह रही कुंजी, किसी को अंदर न आने दीजियेगा!”
यहूदी सड़क पर निकल गये।
तारास ने दरवाजे में ताला लगा दिया और छोटी-सी खिड़की में से यहूदियों की गंदी सड़क को देखने लगा। तीनों यहूदी सड़क के बीचोंबीच रुक गये और बहुत उत्तेजित होकर बातें करने लगे। थोड़ी ही देर में एक चौथा आदमी भी उनमें आन मिला और फिर आखिर में एक पांचवां आदमी भी आ गया। तारास ने फिर उनको बार-बार मरदोहाई कहते हुना। यहूदी बराबर सड़क की एक ओर देखते रहे यहां तक कि अंत में यहूदी जूते पहने हुए एक पांव और एक यहूदी कोट का दामन कोनेवाले टूटे-फूटे मकान के पीछे से निकलकर सामने आया। “ओह, मरदोहार्र! मरदोहार्र!”सारे यहूदी एक साथ चिल्लाये। एक दुबला-पतला यहूदी, जो यांकेल से क़द में कुछ छोटा ही था लेकिन उसके चेहरे पर यांकेल से ज़्यादा झुर्रियां थीं और जिसका ऊपर का होंठ बहुत ही मोटा था, इस बेचैन टोली की ओर आया और सारे यहूदी बड़ी उत्सुकता से उसे अपनी समस्या के बारे में जल्दी-जल्दी बताने में एक-दूसरे से होड़ करने लगे, और मरदोहाई ने इसी बीच में कई बार उस छोटी-सी खिड़की की ओर देखा जिससे तारास ने यह अनुमान लगाया कि वे लोग उसी के बारे में बातचीत कर रहे थे। मरदोहाई ने अपने हाथ हिलाये, उनकी बातें सुनीं, उनकी बात काटी, बार-बार एक तरफ़ थूका और अपने कोट का दामन उठाकर, जिससे उसकी गंदी पतलून दिखायी देने लगी, उसने जेब में हाथ डालकर उसमें से कुछ जे़वरों की तरह की छोटी-मोटी चीजे़ं निकालीं। अंत में सारे यहूदियों ने मिलकर इतना शोर मचाया कि जो यहूदी चौकीदारी कर रहा था उसे उनको चुप रहने का इशारा करना पड़ा और तारास को अपनी सुरक्षा की चिंता होने लगी लेकिन जब उसे याद आया कि यहूदी सड़क के अलावा और कहीं बात कर ही नहीं सकते और उनकी भाषा समझना खुद शैतान के भी बस की बात नहीं है, तो उसे ज़रा तसल्ली हुई।
दो-एक मिनट बाद सब यहूदी एक साथ कमरे में घुस आये। मरदोहाई बुल्बा के पास आया, उसके कंधों को थपथपाकर बोलाः “जब हम और भगवान कोई काम करने की ठान लेते हैं तो उसे पूरा करके ही रहते हैं।”
तारास ने उस सुलेमान की ओर देखा जिसका ऐसा आज तक दुनिया में पैदा नहीं हुआ था और उसका दिल एक नयी आशा से भर उठा। सचमुच, उस यहूदी की सूरत देखकर दिल को कुछ भरोसा होता थाः उसका ऊपर का होंठ तो भयानक था और ज़रूर उसकी मोटाई को कुछ ऐसे हालात ने, जो उसकी ताक़त से बाहर थे, और बढ़ा दिया होगा। इस सुलेमान की दाढ़ी में गिनती के दस-बारह बाल होंगे और सो भी सिर्फ़ बायीं तरफ़। सुलेमान के चेहरे पर उसके साहसी कारनामों के दौरान लगी हुई चोटों के इतने अनगिनत निशान थे कि वह शायद उनकी गिनती भी न जाने कब का भूल चुका था और उन्हें पैदायशी निशान समझने लगा था।
मरदोहाई अपने साथियों को, जो उसकी समझ-बूझ को सराह रहे थे, साथ लेकर चला गया। बुल्बा अकेला रहा गया। उसकी अजीब हालत हो गयी: जीवन में इससे पहले कभी उसे ऐसी चिंता ने नहीं घेरा था। उसके दिल पर बुख़ार-सा छाया था। वह पहले जैसा बुल्बा-शाहबलूत की तरह मज़बूत, इरादे का पक्का, हठीला बुल्बा नहीं रह गया था, वह बुज़दिल हो गया था, उसमें कमज़ोरी आ गयी थी। वह हर आहट पर और सड़क के नुक्कड़ पर निकलनेवाले हर यहूदी की झलक देखकर चौंक पड़ता था। इसी हालत में उसका पूरा दिन बीत गया। उसने न कुछ खाया न पिया और उसकी आंखें एक क्षण के लिए भी उस खिड़की से नहीं हटीं। अंत में शाम को काफ़ी देर में मरदोहाई और यांकेल दिखायी दिये। बुल्बा के दिल की धड़कन रुक-सी गयी।
“क्यों? सब ठीक-ठाक है न?”उसने एक जंगली घोड़े की सी बेसब्री के साथ उनसे पूछा।
लेकिन इससे पहले यहूदी कुछ जवाब देने की हिम्मत कर सकते, तारास ने देखा कि मरदोहाई की आखि़री, कनपटी के पास की लट भी ग़ायब है, जो पहले खूबसूरती से न सही फिर भी उनकी चंदिया पर मढ़ी हुई टोपी के नीचे से लहराती हुई निकली पड़ती थी। साफ़ पता चल रहा था कि वह कुछ कहना चाहता था मगर उसके बजाय वह कुछ ऐसा अनाप-शनाप बकने लगा कि तारास की समझ में कुछ भी नहीं आया। यांकेल भी बार-बार अपने मुंह को इस तरह कसकर हाथ से दबाता रहा जैसे उसे ज़ोर का जु़काम हो।
“अरे, मेरे सरकार!”यांकेल ने कहा, अब यह काम नहीं हो सकता! भगवान की क़सम, नहीं हो सकता! वे तो इतने बुरे लोग हैं कि उनके मुंह पर थूकना चाहिये! मरदोहाई भी यहीं बतायेंगे आपको। और मरदोहाई ने वह काम किया जो आज तक किसी आदमी ने न किया होगा। मगर ख़ुदा की यही मजऱ्ी थी कि हम कामयाब न हों। यहां तीन हज़ार सिपाहियों का पड़ाव है और कल सारे के सारे कै़दी मार दिये जायेंगे।
तारास ने यहूदीकी आंखों में आंखें डालकर देखा लेकिन अब उनमे ग़ुस्सा और बेचैनी नहीं थी।
“और अगर हुज़ूर उनसे मिलना ही चाहते हैं तो यह काम कल सुबह-सवेरे पौ फटने से भी पहले होना चाहिये। जेल के पहरेदार तैयार हो गये हैं और एक बड़े वार्डन ने भी वादा कर लिया है। ख़ुदा करे उन्हें अगली दुनिया में कोई खु़शी नसीब न हो! अफ़सोस! अफ़सोस! वे लोग लालची लोग हैं! हम लोगों से भी ज्यादा लालची। मैंने उनमें से हर-एक पचास ड्यूकट दिये और बड़े वार्डन को…”
“ठीक है। मुझे उसके पास ले चलो! “तारास ने दृढ़ संकल्प से उसकी बात काटते हुए कहा। उसका दिल फिर पहले की तरह मज़बूत हो गया था।
उसने यांकेल की यह सलाह मान ली कि वह एक विदेशी काउंट का भेस बदलकर जाये, इस तरह जैसे वह अभी-अभी जर्मनी से आया है और इस काम के लिए दूरंदेश यहूदी ने एक पोशक भी पहले से हासिल कर ली थी। रात हो चुकी थी। घर के मालिक ने, उसी लाल बालों और चित्तियोंदार चेहरेवाले यहूदी ने, एक पतला-सा गद्दा जिस पर छाल की चटाई बिछी थी घसीटकर बाहर निकाला और उसे बुल्बा के लिए एक बेंच पर बिछा दिया। यांकेल वैसे ही एक और गद्दे पर ज़मीन पर लेटा रहा। लाल बालोंवाले यहूदी ने किसी अकऱ् का एक छोटा-सा प्याला पिया और अपना कोट उतार दिया, वह अपने जूतों और मोजों में एक चूजों जैसा लग रहा था। अपनी यहूदिन के साथ वह एक अलमारी जैसी कोठरी में चला गया। दो छोटे-छोटे यहूदी बच्चे अलमारी के पास दो पालतू पिल्लों की तरह फ़र्श पर लेटे थे। लेकिन तारास ने पूरी रात आंखों ही आंखों में काट दी, वह बिना हिले-डुले बैठा अपनी उंगलियों से मेज़ पर तबला बजाता रहा, उसने अपना पाइप लगातार मुंह में दबाये रखा और धुआं उड़ाता रहा जिसकी वजह से यांकेल सोते-सोते छींकने लगा और उसने अपना कंबल नाक तक खींच लिया। आसमान पर ऊषा की पहली लाली छानी शुरू ही हुई थी कि तारास ने यांकेल को पांव से ठोकर मारी।
“उठो, यहूदी, और मुझे अपनी काउंटवाली पोशाक दो।”
वह मिनटों में पोशाक पहनकर तैयार हो गया। उसने अपनी मूंछों और भवों को काला किया और सिर पर छोटी-सी काली टोपी पहन ली-उसको अच्छी तरह जाननेवाला कज़ाक भी उसको नहीं पहचान सकता था। उसकी उम्र ज़्यादा से ज़्यादा पैंतीस साल की लग रही थी। उसके गालों पर एक सेहतमंद लाली चमक रही थी और उसके ज़ख़्मों के निशानों ने उसको एक दबंग रूप प्रदान कर दिया था। सुनहरी सजावट वाला लिबास उस पर बहुत फ़ब रहा था।
सड़कें अभी तक सो रही थीं। अब तक कोई भी व्यापारी हाथ में टोकरी लिए शहर में नहीं निकला था। बुल्बा और यांकेल ऐसी इमारत के पास पहुंचे जो एक बैठे हुए सारस जैसी लग रही थी। वह नीची, चौड़ी, बहुत बड़ी और काली हो चुकी थी और उसके एक तरफ़, सारस की गर्दन की तरह ऊपर उठा हुआ एक लंबी पतली-सी मीनार खड़ी थी, जिसके ऊपर छत का एक हिस्सा दिखाई दे रहा था। यह इमारत कई अलग-अलग कामों के लिए इस्तेमाल की जाती थी, इसमें बारकें थीं, एक क़ैदखाना था और यहां तक कि दीवानी अदालत भी थी। हमारे मुसाफि़र फाटक के अंदर घुस गये और उन्होंने अपने आप को एक बड़े-से कमरे या छतदार आंगन में पाया…। वहां कोई एक हज़ार आदमी पड़े सो रहे थे। उनकी नाक की सीध में एक नीचा-सा दरवाज़ा था जिसके आगे दो पहरेदार बैठे एक खेल खेल रहे थे, जिसमें एक आदमी दूसरे आदमी की हथेली पर अपनी दो उंगलियां मारता था। उन्होंने नये आने वालों की तरफ़ कोई ख़ास ध्यान नहीं दिया और अपने मुंह सिर्फ़ उसी समय पर मोड़े जब यांकेल ने कहाः
“हम हैं। सुन रहे हैं, हुज़ूर? हम लोग हैं।”
“अंदर चले जाओ,”उनमें से एक आदमी ने एक हाथ से दरवाज़ा खोलते हुए और दूसरा हाथ अपने साथी की मार के लिए उसके आगे बढ़ाते हुए कहा।
वे एक पतले अंधेरे गलियारे में घुस गये, जिसमें से गुज़रकर वे एक कमरे में पहुंचे जो पहले वाले कमरे की तरह था और उसमें ऊपर की तरफ़ छोटी-छोटी खिड़कियां थीं।
“कौन है?”कई आवाजों ने ललकारा और तारास को सिर से पांव तक हथियारों से लैस बहुत-से सिपाही दिखायी दिये। “हमें हुक्म है कि किसी को जाने न दिया जाये।”
“हम हैं!”यांकेल चिल्लाया। “क़सम खुदा की, हम हैं हुज़ूरेआला!”
मगर किसी ने उसकी बात नहीं सुनी, सौभाग्य से उसी समय एक हट्टा-कट्टा आदमी वहां आया जो देखने में वहां का अफ़सर मालूम होता था क्योंकि वह औरों से भी ज़्यादा ज़ोरों से गालियां दे रहा था।
“हुज़ूरे आला, हम लोग हैं! आप हमें पहले से जानते हैं, और हुज़ूर काउंट एक बार फिर आपका शुक्रिया अदा करना चाहते हैं।”
“इनको जाने दो। तुम्हें सौ शैतानों और शैतानों की मां का हवाला। किसी और को अंदर मत आने देना। अपनी तलवारें उतारकर कुत्तों की तरह ज़मीन पर लेटे न रहो…”
हमारे मुसाफि़रों ने इस ज़ोरदार हुक्म का अंत नहीं सुना।
“हम लोग हैं… मैं हूँ… हम दोस्त हैं!”यांकेल जो आदमी उन्हें रास्ते में मिलता उससे कहता।
“अब हम अंदर जा सकते हैं?”अंत में गलियारे के छोर पर पहुंचकर उसने एक पहरेदार से पूछा।
“हां, लेकिन मैं यह नहीं जानता कि वे लोग तुम्हें जेल के अंदर जाने देंगे या नहीं। जान अब वहां नहीं है, कोई और अब उसकी जगह है।”
“ओह, ओह!”यहूदी ने धीरे से मुंह ही मुंह में कहा। “यह तो बुरे आसार हैं, मेहरबान!”
“चलो, चलो!”तारास ने जिद्दीपन से कहा।
यहूदी ने हुक्म मान लिया…
कालकोठरी के दरवाज़े पर, जो ऊपर की तरफ़ एक मेहराब की शक्ल की थी, एक तीन-मंजि़ली मूंछोंवाला सिपाही खड़ा था, जिसकी ऊपर की मंजि़ल का रुख़ पीछे की ओर मुड़ा था, दूसरी मंजि़ल का रुख नाक की सीध में सामने था, और तीसरे का नीचे की ओर और इस तरह वह एक बिल्ले जैसा लग रहा था।
यहूदी अपनी पीठ ज़्यादा से ज़्यादा झुकाकर तिरछा-तिरछा चलता हुआ उसके पास गया।
“हुज़ूरेआला! मेरे नामी सरकार!”
“तुम मुझसे बात कर रहे हो, यहूदी?”
“जी हां, आप ही से, नामी सरकार!”
“हुँ, मगर मैं तो बिल्कुल मामूली सिपाही हूँ!”तीन मंजि़ली मूंछोंवाले ने कहा, उसकी आंखें बेहद खुशी के मारे चमक रही थीं!
“भगवान की क़सम-मैं तो समझा कि आप ही कर्नल हैं! ओह, ओह!।। “यहूदी ने सिर हिलाया और अपनी उंगलियां फैला दीं। “ओह, कितने बड़े आदमी मालूम हो रहे हैं यह! भगवान की क़सम, बिल्कुल कर्नल की तरह! बस एक बाल बराबर फ़कऱ् है, वह न हो तो यह पूरे कर्नल हों! हुज़ूर को तो मक्खी की तेज़ रफ्तार से उड़नेवाले घोड़ों पर सवार करके एक पूरी रेजीमेंट की सरदारी सुपुर्द कर देनी चाहिये!”
सिपाही ने अपनी मूंछों की निचली मंजि़ल सहलायी। उसकी आंखें और ज़्यादा ख़ुशी से चमकने लगीं।
“फ़ौजी लोग भी कितने बढि़या होते हैं!”यहूदी कहता रहा। “उफ़्फोह, कितने अच्छे लोग होते हैं! उनके लिबास की गोटें और सजावट का दूसरा साज़-सामान सूरज की तरह चमकता है! और नौजवान लड़कियां जहां कहीं भी फ़ौजियों को देखती हैं-ओह, ओह!”
यहूदी ने फिर सिर हिलाया।
सिपाही ने अपनी ऊपर की मूँछों को मरोड़ा और बंद दांतों से एक ऐसी आवाज़ निकाली जो घोड़ों की हिनहिनाहट से बिल्कुल मिलती-जुलती थी।
“मैं हुज़ूर से अर्ज़ करता हूँ कि वह हमारा एक काम कर दें,”यहूदी ने कहा। “यह एक काउंट है जो विदेश से आये हैं, और यह कज़ाकों को एक नज़र देखना चाहते हैं। इन्होंने अपनी ज़िंदगी में अभी तक यह नहीं देखा कि कज़ाक होते कैसे हैं “
विदेशी काउंट और बैरन पोलिस्तान में कोई नयी चीज़ नहीं थे, उनको अकसर सिर्फ़ यूरोप के इस अर्ध-एशियाई कोने को देखने की लालसा यहां खींच लाती थी- वह मस्कोवी और उक्राईन को एशिया का ही हिस्सा समझते थे। इसलिए सिपाही ने बहुत झुककर सलाम किया और कुछ शब्द अपनी तरफ़ से भी कहना मुनासिब समझा।
“हुजू़रेआला, मेरी समझ में नहीं आता कि आप उनको क्यों देखना चाहते हैं,”उसने कहा, “वे आदमी थोड़े ही हैं, कुत्ते हैं। और उनका मज़हब ऐसा है जिसकी कोई इज्जत नहीं करता।”
“झूठ बोलते हो तुम, शैतान की औलाद!”बुल्बा ने कहा। “तुम खुद कुत्ते हो। तुम्हें यह कहने की जुर्रत कैसे हुई कि हमारे मज़हब की कोई इज़्ज़त नहीं करता? वह तो तुम्हारा विधर्मी धर्म है, जिसकी कोई इज्जत नहीं करता!”
“ओहो! सिपाही ने कहा, मैं जानता हूँ तुम कौन हो, मेरे दोस्तः तुम भी उन्हीं लोगों में से एक हो, जिनकी मैं यहां रखवाली कर रहा हूँ। ज़रा ठहरो, मैं अपने आदमियों को अभी बुलाता हूँ, फिर देखना!”
तारास ने अपनी भूल समझ ली मगर जिद्द और झल्लाहट की वजह से वह उसे ठीक करने का तरीक़ा सोच न सका। सौभाग्य से यांकेल फ़ौरन उसकी मदद को पहुंच गया।
“नामी सरकार! यह कैसे मुमकिन है कि एक काउंट कज़ाक हो? और यह अगर कज़ाक होते तो इनके पास ऐसी पोशाक कहां से आती और इनकी ऐसी काउंट की सी सूरत कैसे हो सकती थी?”
“बस, अब झूठ नहीं चलेगा!”और सिपाही ने चिल्लाने के लिए अपना बड़ा-सा मुंह खोला।
“आली जाह! चुप रहिये! चुप रहिये! खुदा के लिए!”यांकेल चिल्ला पड़ा। “हम आपको इसका ऐसा इनाम देंगे जैसा आज तक किसी को न मिला होगाः हम आपको दो सोने के ड्यूकट देंगे!”
“बस! दो ड्यूकट! दो ड्यूकट मेरे लिए क्या चीज़ हैं! मैं तो सिर्फ़ एक तरफ़ की दाड़ी बनाने के लिए अपने नाई को दो ड्यूकट दे देता हूँ। मुझे सौ ड्यूकट दो, यहूदी।”यह कहकर सिपाही ने अपनी ऊपरी मूंछों पर ताव दिया। “अगर तुम मुझे फौरन सौ ड्यूकट नहीं दोगे तो मैं शोर मचा दूंगा!”
“आखिर इतनी बड़ी रक़म क्यों!”यहूदी का चेहरा सफ़ेद पड़ गया और उसने दुखी होकर कहा। उसने अपना चमड़े का बटुआ खोला और इस बात पर खुश हुआ कि उसमें इससे ज़्यादा रक़म थी ही नहीं और इस बात पर भी कि वह सिपाही सौ से ज़्यादा गिनना नहीं जानता था। “मेरे हुज़ूर, हमें फ़ौरन चलना चाहिये! आपने देख लिया न ये कितने ख़राब लोग हैं।”यांकेल ने कहा। वह देख रहा था कि सिपाही ड्यूकटों को अपने हाथों से उलट-पुलट रहा था और मालूम होता था कि वह पछता-सा रहा था कि उसने इससे ज़्यादा क्यों नहीं मांगे।
“यह कैसे हो सकता है, शैतान?”बुल्बा ने कहा। “तुमने पैसे तो ले लिये और अब तुम मुझे क़जाक नहीं दिखाओगे? नहीं, तुम्हें कज़ाक दिखाने होेंगे। अब चूंकि तुम पैसे ले चुके हो इसलिए तुम बिल्कुल इंकार नहीं कर सकते।”
“जाओ, दफ़ा हो जाओ यहां से! अगर तुम नहीं जाते हो तो मैं इसी दम शोर मचाता हँू, और तुम्हें… दफ़ा हो जाओ यहां से, मैं कहता हूँ।”
“हुज़ूर! हुज़ूर! भगवान के लिए चलिये! इन्हें ताऊन ले जाये! खुदा करे ये चीज़ों के सपने देखें जो इन्हें थूकने पर मजबूर कर दें,”बेचारा यांकेल चिल्लाया।
बुल्बा धीरे से मुड़ा और सिर झुकाये हुए वापस चल पड़ा। यांकेल उसके पीछे-पीछे आ रहा था और उसे भला-बुरा कहता जा रहा था क्योंकि वह यहूदी सौ ड्यूकट गवांने पर बहुत दुखी था।
“आखि़र उस पर आप क्यों झल्ला पड़े? कुत्ते को भूंकने क्यों न दिया? वे तो हैं ही ऐसे लोग जो भूंके बिना रह नहीं सकते। लानत है मुझ पर! कुछ लोगों को खुदा छप्पर फाड़कर देता है! सौ ड्यूकट सिर्फ़ हमें वहां से भगाने के लिए! और हम- वे हमारे गलमुच्छों को नोच डालते हैं और हमारे चेहरों का ऐसा कचूमर बनाते हैं कि सूरत भी नहीं देखी जाती पर हमें तो कोई सौ ड्यूकट नहीं देता! या खुदा! ऐ मेरे मेहरबान खुदा!”
लेकिन इस नाकामी का बुल्बा पर ज़्यादा गहरा असर पड़ा था जैसा कि उसकी आंखों में दहकती हुई सब कुछ भस्म कर देने वाली लपट से मालूम हो रहा था।
“चलो चलें!”उसने अचानक जैसे अपने आपको नींद से जगाते हुए कहा। “चलो, चौक में चलें। मैं यह देखना चाहता हूँ कि वे लोग उसे किस तरह सताते हैं।”
“अरे, हुज़ूरेआला! आप क्यों जाना चाहते हैं? अब हम उनकी कोई मदद नहीं कर सकते।”
“हम जायेंगे!”बुल्बा ने ढिठाई से कहा।
और यहूदी एक आया की तरह ठंडी सांसें भरता हुआ बुल्बा के पीछे अनिच्छा से चल दिया।
उस चौक को, जहां मौत की सज़ा दी जानेवाली थी, ढूंढ़ना कुछ बहुत मुश्किल नहीं थाः वहां लोगों के जमघट हर ओर से आकर जमा हो रहे थे। उस उजड्ड ज़माने में इस तरह का दृश्य सिर्फ़ आम लोगों के लिए ही नहीं बल्कि ऊंचे तबकों के लिए भी एक दिलचस्प तमाशा होता था। बहुत-सी धर्मभीरु बुढि़याएं और बहुत-सी बेहद डरपोक नौजवान लड़कियां और औरतें, जो बाद में रात-रात भर सिर्फ़ ख़ून में लिथड़ी लाशों के सपने देखती थीं, और नींद में किसी नशे में धुत्त हुसार की तरह, ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाती थीं, अपनी जिज्ञासा की तृप्ति करनेवाले ऐसे सुनहरे मौक़े को हाथ से नहीं जाने दे सकती थीं। “आह, कैसे जल्लाद हैं निर्दयी!”उनमें से बहुत-सी जैसे हिस्टिरिया के बुखार के हालत में चीखेंगी और अपनी आंखें बंद करके उधर मुंह मोड़ लेंगी लेकिन वे तमाशे के आखि़र तक वहां खड़ी ज़रूर रहेंगी। बाज़ लोग मुंह बाये और हाथ फैलाये ज़्यादा अच्छे से देख सकने के लिए अपने सामनेवालों के सिरों पर कूद पड़ने को तैयार थे। छोटे-छोटे, दुबले-पतले और मामूली सिरों की भीड़ में कभी किसी क़साई का मोटा चेहरा भी दिखाई पड़ जाता था जो पूरी काईवाई को एक पारखी की तरह देख रहा होता था और एक हथियार बनानेवाले से, जिसको वह सिर्फ़ इसलिए अपना सौतेला भाई कहता था कि वह उसके साथ छुट्टी के दिन एक ही शराबख़ाने में पीकर धुत्त हो जाता था, ‘हां’ और ‘ना’ में बातचीत करता रहता था। कुछ लोग बहुत जोर-शोर से जो कुछ देख रहे थे उस पर टिप्पणी कर रहे थे, कुछ दूसरे लोग शर्तें भी लगा रहे थे, मगर जमघट ज़्यादातर ऐसे लोगों का था जो दुनिया को और जो कुछ दुनिया में होता है उसे निश्चिंत भाव से नाक में उंगली डाले ताकते रहते हैं। सामने की तरफ़ शहर की गारद के बड़ी-बड़ी घनी मूंछोंवाले सिपाहियों के बिल्कुल पास एक शरीफ़ नौजवान-या जो अपने को शरीफ साबित करना चाहता था- फ़ौजी वर्दी पहने खड़ा था। साफ़ पता चल रहा था कि उसके कपड़ों की अलमारी में जो कुछ था वह सब उसने निकालकर पहन लिया था और घर पर बस एक फटी-पुरानी क़मीज और एक जोड़ा पुराना जूता छोड़ आया था। गर्दन में उसने एक के ऊपर एक दो जंजीरें पहन रखी थीं जिनमें ड्यूकट जैसी कोई चीज़ लटक रही थी। वह अपनी प्राणप्यारी युज़ीस्या के पास खड़ा था और हर क्षण इधर-उधर देखता जाता था कि कहीं कोई उसकी प्रेमिका के रेशमी लिबास को मैला न कर दे। वह उसको हर बात इतने विस्तार से समझा रहा था कि कोई उसमें और कुछ जोड़ ही नहीं सकता था। “ये सब लोग, जिन्हें तुम यहां देख रही हो, प्यारी युजीस्या, “वह कह रहा था, “मुजरिमों को मरते हुए देखने आये हैं। और वह आदमी, मेरी जान, जो तुम्हें हाथों में एक कुल्हाड़ी और दूसरे औज़ार थामे दिखायी दे रहा है, वही जल्लाद है और वह मुजरिमों को सख़्त तकलीफें देगा और उन्हें जान से मारेगा। जब तक वह किसी मुजरिम को पहिये में बांधकर घुमायेगा और उसे दूसरे तरीक़ों से सताता रहेगा तब तक वह मुजरिम जिंदा होगा और जब वह उसका सिर काट डालेगा, मेरी जान, तो वह फ़ौरन मर जायेगा। इससे पहले वह बहुत बुरी तरह चिल्लायेगा और हाथ-पैर पटकेगा मगर जैसे ही उसका सिर धड़ से अलग होगा वह न तो चिल्लायेगा, न ही खा-पी सकेगा क्योंकि तब, मेरी जान, उसका सिर तो होगा ही नहीं। “युज़ीस्या ने सब कुछ भय और उत्सुकता से सुना। मकानों की छतें लोगों से खचाखच भरी थीं। दुछत्तियों की खिड़कियों के पीछे से अजीब तरह की मूछोंवाले चेहरे दिखायी दे रहे थे जिनके सिरों पर औरतों की बिना कगर की टोपियों से मिलती- जुलती टोपियां थीं। शामियाने पड़ी बाल्कनियों में कुलीन लोग बैठे थे। एक हँसती हुई औरत का खू़बसूरत और शकर की तरह सफ़ेद हाथ जंगले पर रखा था। नामी रईस-जो मोटे ताजे़ लोग थे-बड़ी शान से सब कुछ देख रहे थे। एक नौकर चमकता हुआ क़ीमती लिबास पहने तरह-तरह की खाने-पीने की चीज़ें सबके सामने पेश कर रहा था। अकसर कोई काली आंखों वाली चंचल हसीना अपने लिली जैसे हाथ से केक या फल उठाकर नीचे भीड़ में फेंक देती थी। भूखे आशिक़ों का मजमा उसे लपक लेने के लिए अपनी टोपियां ऊपर उठा देता था और सबसे पहले कोई ऊंचे क़दवाला रईस जिसका क़द औरों से निकलता हुआ था और जिसके लाल कोट का रंग उड़ने लगा था और उसकी सुनहरी गोट काली पड़ने लगी थी, अपनी लंबी-लंबी बांहों की मदद से उसे उचक लेता, फिर वह अपने इस इनाम को चूमता, सीने से लगाता और उसके बाद अपने मुंह में डाल लेता। एक बाल्कनी के नीचे लटके हुए सोने के पिंजरे में बंद एक बाज भी तमाशाइयों में शामिल था। सिर को एक ओर झुकाये और अपनी एक टांग ऊपर उठाये वह भी ध्यान से भीड़ को देख रहा था। अचानक भीड़ में कुछ ज्यादा शोर होने लगा और हर तरफ़ से आवाजे़ं सुनायी देने लगींः “उन्हें लाया जा रहा है। कज़ाकों को लाया जा रहा है!…”
वे सिर और लंबी-लंबी चोटियां खोले चले आ रहे थे। वे न तो डरकर चल रहे थे और न ही उन पर उदासी छायी थी। बल्कि वे शांत गर्व से चले आ रहे थे, उनके क़ीमती कपड़े तार-तार थे और चीथड़ों की तरह लटक रहे थे। उन्होंने न भीड़ की तरफ आंख उठाकर देखा और न वे उसके सामने झुके। सबसे आगे-आगे ओस्ताप चल रहा था।
जब बुल्बा ने अपने ओस्ताप को देखा तो उस पर क्या गुज़री? उसके दिल में क्या था? बुल्बा भीड़ में से ओस्ताप को ताकता रहा और उसकी कोई भी गति उसकी नज़र से न बची। वे लोग उस जगह के पास पहुंचे, जहां मुजरिमों को क़त्ल किया जानेवाला था। ओस्ताप रुका। कड़ुवा घूंट सबसे पहले उसे पीना था। उसने अपने साथियों की तरफ़ देखा, अपना हाथ ऊपर उठाया और ऊंची आवाज़ में कहाः
“खुदा हमें हिम्मत दे कि इन विधर्मी नास्तिकों को, उन सबको जो यहां खड़े हैं, एक ईसाई की तकलीफ़ में चीख़ने की आवाज़ न सुनायी दे। भगवान करे हममें से कोई भी एक शब्द भी मुंह से न निकाले!”
यह कहने के बाद वह टिकटी की ओर बढ़ा।
“बहुत खूब कहा, बेटे! बहुत खूब!”बुल्बा ने धीरे से कहा और अपना सफ़ेद बालोंवाला सिर नीचे झुका लिया।
जल्लाद ने ओस्ताप के चीथड़े नोचकर फेंक दियेः उसके हाथ-पांव खास तौर से बनाये हुए लकड़ी के शिकंजे में जकड़ दिये गये और… लेकिन हम पढ़नेवालों को उन दर्दनाक पीड़ाओं की तस्वीर दिखाकर, जिनसे उनके रोंगटे खड़े हो जायें, तकलीफ़ नहीं पहुंचायेंगे। वे उन उजड्ड और वहशी ज़मानों की देन थी जब आदमी ख़ूनी फ़ौजी कारनामों की ज़िंदगी गुज़ारता था, जो उसके दिल को पत्थर बना देते थे और उसमें कोई भी इंसानी भावना नहीं रह जाती थी। कुछ लोगों ने, जो इस ज़माने में अपवाद थे, इन भयानक सज़ाओं का विरोध किया, लेकिन उसका कुछ नतीजा नहीं निकला। बादशाह ने, बहुत-से सूरमाओं ने जिनके दिलों और दिमाग़ में नयी जागृति की रोशनी थी, समझाया कि इतनी बेरहम सज़ाएं कज़ाकों की बदला लेने की भावना की लपटों को और भी भड़का देंगी, लेकिन बेकार। मगर राजाओं की ताक़त और समझदारों की राय देश के सत्ताधारियों की धांधली और मनमानी के आगे कुछ न थी। उन्होंने अपनी विवेकहीनता और दूरर्शिता के कल्पनातीत और घोर अभाव और अपने बचकाना दंभ और छिछोरी झूठी शान की वजह से दिएत को शासन का मज़ाक़ बना दिया था। ओस्ताप ने परामानव की तरह सारी पीड़ा और तकलीफ़ें सहीं। जब वे उसकी टांगों और बांहों की हड्डियां तोड़ रहे थे, जब सबसे ज़्यादा दूर खड़े तमाशाई को भी, भीड़ पर छायी हुई मौत की सी खामोशी में उनके चिटकने की आवाज़ सुनायी दे रही थी, जब औरतों ने अपनी आँखें दूसरी ओर फेर ली थीं उस समय भी उसके मुंह से एक चीख, एक कराह, एक फ़रियाद नहीं सुनायी दी। उसके होंठों से कराह तो कराह एक आह भी नहीं निकली, उसके चेहरे की एक बोटी भी नहीं फड़की। तारास भीड़ में सिर झुकाये खड़ा था लेकिन उसकी आंखें गर्व से ऊपर उठी हुई थीं और वह लगातार प्रशंसा करते हुए कह रहा थाः “बहुत खू़ब, बेटे! बहुत खूब!”
लेकिन जब वे ओस्ताप को घसीटकर मौत की अंतिम यातनाओं की ओर ले जाने लगे तो ऐसा लगता था कि उसकी शक्ति जवाब दे जायेगी। उसने चारों ओर देखा। हे भगवान! हर तरफ़ सिर्फ़ अनजान और अजनबी चेहरे! काश, उससे मुहब्बत करनेवाला एक भी आदमी यहां उसकी मौत के वक़्त होता! वह अपनी निर्बल मां का दुख और उसकी सिसकियां सुनना पसंद न करता और न ही बाल नोचती और अपना गोरा सीना कूटती हुई बीवी की पागल चीखें सुनना चाहता। वह उस समय एक मज़बूत मर्द का वहां होना पसंद करता जिसकी बुद्धिमान बातें उसकी मौत की घड़ी में उसे ढाढ़स बंधा सकतीं और उसको एक नयी ताक़त दे सकतीं। उसकी ताक़त जवाब दे गयी और वह अपनी आत्मा की व्यथा से पीडि़त होकर चिल्लायाः “बात्को! तुम कहां हो? क्या तुम मेरी आवाज़ सुन रहे हो?”
“मैं सुन रहा हूँ!”चारों ओर छायी ख़ामोशी में ये शब्द गूंज गये और वहां पर मौजूद लाखों आदमी एक साथ कांप गये।
घुड़सवार संतरियों की एक टुकड़ी मजमे में तलाशी लेने के लिए दौड़ पड़ी। यांकेल के चेहरे पर मुर्दनी छा गयी और ज्यों ही घुड़सवार उसके पास से होकर गुज़र गये उसने सहमकर पीछे देखा कि तारास कहां हैः लेकिन तारास अब उसके पीछे नहीं खड़ा था। उसका कहीं नाम-निशान नहीं था।
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लेकिन तारास का नामो-निशान मिटा नहीं था। उक्राइन की सीमा पर एक लाख बीस हज़ार आदमियों की कज़ाक फ़ौज आ पहुंची। और इस बार यह कोई छोटा-सा जत्था या फ़ौजी टुकड़ी नहीं थी जो लूट-मार के लिए या तातारोें का पीछा करने में इधर से उधर धावे मारती फिर रही हो। नहीं! पूरी क़ौम उठ खड़ी हुई थी क्योंकि लोगों का सब्र का प्याला भर चुका था। अपने अधिकारों के रौंदे जाने का, अपने रीति-रिवाजों के घोर अपमान का, अपने बाप-दादा के धर्म और उसकी पवित्र परंपराओं के अपवित्र किये जाने का, अपने गिरजाओं के भ्रड्ढ किये जाने का, विदेशी सामंतों और अमीरों के दमन और अत्याचार का, पोप की गुटबंदी का, ईसाई ज़मीन पर यहूदियों के अपमानजनक प्रभुत्व का-उन सब चीज़ों का बदला लेने के लिए पूरी क़ौम उठ खड़ी हुई थी जिनकी वजह से इतने दिनों से कज़ाकों के दिलों में घोर नफ़रत पनप रही थी और दिन-ब-दिन उनकी कटुता बढ़ती जा रही थी। नौजवान लेकिन शेरदिल हेटमैन ओस्त्रनित्सा¹ उस अनगिनत कज़ाक फ़ौज का सरदार था। गून्या¹¹ जो उसका पुराना और अनुभवी लड़ाई का साथी और सलाहकार था उसके साथ था। आठ कर्नल आठ रेजीमेंटों की सरदारी कर रहे थे जिनमें से हरेक में बारह हज़ार आदमी थे। दो प्रमुख येसऊल और एक सदर चोबदार हेटमैन के पीछे-पीछे घोड़ों पर चल रहे थे। प्रमुख ध्वजावाहक सबसे मुख्य ध्वजा उठाये हुए था और पीछे बहुत-सी और ध्वजाएं और झंडे और इनके अलावा डंडों में बंधी हुई घोड़ों की दुमें हवा में लहरा रही थीं। इसके अलावा पैदल और सवार रेजीमेंटों में और भी बहुत-से अफ़सर थेः सामान के रखवाले, लेफि़्टनेंट और रेजीमेंट के अरज़ी लिखनेवाले। फ़ौज में बाक़ायदा शामिल कज़ाकों के अलावा लगभग उतने ही पैदल और घुड़सवार स्वयंसेवक भी होंगे। कज़ाक हर जगह उठ खड़े हुए थे, वे चिगिरिन और पेरेयास्लाव से, बतूरिन और ग्लूखोव से, द्नेपर के किनारे के ऊपरी अैर निचले सभी हिस्सों से और उसके तमाम टापुओं से आये थे। अनगिनत घोड़े और गाडि़याँ पूरे मैदान में छायी हुई थीं। और इन सब कज़ाकों की आठों रेजीमेंटों में एक सबसे चुनी हुई रेजीमेंट थी, जिसकी अगुवाई तारास बुल्बा कर रहा था। उसकी हर चीज़ दूसरों से अलग और उनसे बढि़या थीः उसकी पक्की उम्र, उसका अनुभव, अपनी फ़ौजों की अगुवाई करने में उसका कौशल और दुश्मन के प्रति उसकी औरों से कई गुनी ज़्यादा नफ़रत। यहां तक कि खुद कज़ाकों को भी उसकी निर्मम उग्रता और उसकी बेरहमी हद से ज़्यादा मालूम पड़ती थी। फांसी पर चढ़ा देने और आग में जला देने के सिवा उसके सफ़ेद सिर का कोई दूसरा फ़ैसला ही नहीं होता था और युद्ध-परिषद में उसकी राय सिर्फ़ हर चीज़ तबाह कर देने के पक्ष में ही होती थी।
यहां उन सब लड़ाइयों का वर्णन करना ठीक नहीं होगा जिनमें कज़ाकों ने अपने जौहर दिखाये थे और न ही उस अभियान की प्रगति काः यह सब तो इतिहास के पृ×ों पर लिखा हुआ है। रूस में धर्म के लिए लड़ाई किस तरह लड़ी जाती है यह तो सब अच्छी तरह जानते हैंः धर्म से प्रबल शक्ति और कोई नहीं। वह उस चट्टान की तरह अजेय और अडिग है, जिसे इंसान के हाथों ने नहीं बनाया और जो तूफ़ानी और प्रतिक्षण परिवर्तनशील समुद्र के बीचोंबीच खड़ी रहती है। समुद्र की सबसे गहरी तह से अखंड शिला की उसकी अटूट दीवारें ऊपर को निकलती हैं। वह हर तरफ़ से दिखायी देती है, वह गुज़रती हुई लहरों की आंखों में आंखें डालकर देखती है। और उस जहाज़ का भगवान ही मालिक है जो उससे टकरा जाये! उसके कमज़ोर मस्तूल, रस्से और बल्लियां सब टुकड़े-टुकड़े हो जाते हैं, उसकी हर चीज़ कुचल और डूब जाती है और स्तब्ध वायुमंडल उसके मरते हुए मांझियों की दर्दनाक चीखों से गूंज उठता है।
इतिहास के पृष्टों में बड़े विस्तार से बताया गया है कि पोलिस्तानी शहर की रखवाली करनेवाली फ़ौजें कज़ाकों के आज़ाद किये हुए शहरों से किस तरह भागीं, सारे लालची यहूदी सूदखोर किस तरह फांसी पर चढ़ा दिये गये, शाही हेटमैन निकोलाई पोतोत्स्की अपनी अनगिनत सिपाहियों की फ़ौज के बावजूद इस अजेय शक्ति के सामने किस तरह बेबस हो गया, किस तरह टुकड़े-टुकड़े होकर और कज़ाकों से भागते हुए वह एक छोटी-सी नदी में अपनी फ़ौज का ज़्यादातर हिस्सा खो बैठा, किस तरह पोलोनोये के छोटे-से शहर में कज़ाक फ़ौजों ने, जिनका डर सब पर छाया हुआ था, उसका घेराव कर लिया और किस तरह बिल्कुल मजबूर होकर पोलिस्तानी हेटमैन ने अपने बादशाह और उसके वज़ीरों की तरफ़ से क़सम खाकर वादा कर लिया कि कज़ाकों की सारी मांगें पूरी की जायेंगी और उनके पहले के अधिकार और सुविधाएं उनको वापस मिल जायेंगी। लेकिन कज़ाक कच्ची गोलियां नहीं खेले थे, वे पोलिस्तानियों की क़सम का मूल्य जानते थे। और अगर शहर के रूसी पादरियों ने पोतोत्स्की की जान न बचायी होती तो वह फिर कभी अपने छः हज़ार ड्यूकटवाले घोड़े पर शान से न बैठ सकता और कुलीन औरतों की आंखों का आकर्षण तथा रईसों की ईर्ष्या का पात्र न बन सकता, फिर कभी वह अमीरों की संसद की शोभा न बढ़ा सकता और न ही फिर कभी वह सेनेटरों की शानदार दावतें कर सकता। बिशप की अगुवाई में, जो हाथ में सलीब लिये था और सिर पर पुरोहितोंवाला मुकुट लगाये था, जब सारे पादरी अपनी चमकीली सुनहरी पोशाकें पहनें, सलीबें और पवित्र देव-प्रतिमाएं हाथों में लिये कज़ाकों से मिलने बाहर आये तो तमाम कज़ाकों ने सिर झुका दिये और टोपियां उतार लीं। उस समय वे किसी और का, यहां तक कि खुद बादशाह का भी सम्मान न करते लेकिन उन्हें अपने ही ईसाई गिरजे के खि़लाफ़ बग़ावत करने की हिम्मत न हुई और उन्होंने अपने पादरियों का अदेश मान लिया। हेटमैन और उसके कर्नल पोतोत्स्की को आज़ाद करने पर राज़ी हो गये, बस उन्होंने पहले उससे क़सम खिलवाकर वादा करवा लिया कि वह ईसाई गिरजों को नहीं छुएगा, पुरानी दुश्मनी को भुला देगा और कज़ाक सूरमाओं को कोई हानि नहीं पहुंचायेगा। सिर्फ़ एक ही कर्नल ऐसा था जो इस सुलह पर राजी नहीं हुआ। वह था तारास। उसने अपने सिर से अपने बालों का एक गुच्छा नोचा और चिल्लायाः
“ऐ हेटमैन और कर्नलो! ऐसा औरतों जैसा काम मत करो पोलिस्तानियों पर विश्वास न करोः ये कुत्ते हमें ज़रूर दग़ा देंगे!”
और जब एक रेजीमेंट के अरज़ी लिखनेवाले ने सुलह की शर्तें हेटमैन के सामने पेश कीं और उसने उन पर अपने हाथ से दस्तखत किये तो उस समय तारास ने अपनी अमूल्य तुर्की तेग़ को, जिसमें दमिश्क के फ़ौलाद का फल लगा था, सरकंडे की तरह तोड़कर दो टुकड़े कर डाला और दोनों टुकड़ों को दो अलग दिशाओं में दूर फेंककर बोलाः
“अलविदा! जिस तरह ये दोनों आधे-आधे टुकड़े मिलकर कभी एक नहीं बनेंगे उसी तरह, साथियो, हम भी कभी इस दुनिया में एक-दूसरे से नहीं मिलेंगे। तुम लोग मेरी यह आखि़री बात याद रखना।”इस समय उसकी आवाज़ भारी और ऊंची हो गयी। उसमें एक नयी ताक़त की खनक पैदा हो गयी जो अब तक उसमें नहीं थी। सब लोग इन भविष्यसूचक शब्दों को सुनकर थर्रा गये। “मरते वक़्त तुम लोग मुझे याद करोगे। तुम समझते हो कि तुमने शांति और चैन ख़रीद लिये? तुम समझते हो कि अब तुम्हारा कहा चलेगा? बिल्कुल नहींः दूसरे तुम्हारे ऊपर राज्य करेंगे। और तुम हेटमैन, तुम्हारे सिर की खाल खिंचवाकर उसमें कूटू का चोकर भर दिया जायेगा और बहुत दिनों तक सारे मेलों-ठेलों में उसकी नुमाइश की जायेगी! और आप लोग भी अपने सिर बचा नहीं पायेंगे। अगर आपको पहले ही भेड़ों की तरह देग़ों में उबाला न गया तो आप सब सीली कालकोठरियों में, पत्थर की दीवारों के पीछे पड़े सड़ते रहेंगे! और तुम भाइयो!”उसने अपने साथियों की तरफ़ मुड़कर कहा, “तुम में से कौन-कौन स्वाभाविक मौत मरना चाहता है- अपने चूल्हों के चबूतरों पर या औरतों के बिस्तरों पर पड़े-पड़े लोटते और मस्ती करते हुए नहीं, सड़ी हुई लाश की तरह किसी बाड़ के नीचे शराबखाने के पास नशे में धुत्त पड़े हुए नहीं बल्कि एक खालिस कज़ाक मौत-जब सब कज़ाक दूल्हा-दुल्हन की तरह एक ही बिस्तर में जान दें? हो सकता है कि तुम लोग चाहो कि अपने-अपने घर लौट जाओ, नास्तिक बन जाओ और पोलिस्तानी पादरियों को अपनी पीठ पर लादे-लादे फिरो?”
“हम आपको पीछे जायेंगे, कर्नल! हम आपके पीछे जायेंगे!”बुल्बा के रेजीमेंट के सारे आदमी चिल्लाये और बहुत-से दूसरे लोग भी उनके साथ आ मिले।
“अगर ऐसा है तो मेरे पीछे आओ!”तारास ने अपनी टोपी भवों तक जमाकर पीछे रह जानेवालों को गु़स्से से घूरते हुए कहा। वह घोड़े पर सवार हो गया और अपने आदमियों से चिल्लाकर बोलाः “भगवान करे कि लोग हमें कभी बुराई से न याद करें। आओ, भाइयो, चलो! कैथोलिक लोगों से ज़रा मुलाक़ात करने चलते हैं।”
यह कहकर उसने अपने घोडे़ को चाबुक मारी और उसके पीछे सौ गाडि़यों की एक लंबी क़तार और बहुत-से पैदल और सवार कज़ाक भी चल पड़े। तारास ने मुड़कर फिर वहां रह जानेवालों को घूरा और उसकी आँखें गु़स्से से लाल थीं। उसे रोकने की हिम्मत किसी को न हुई। पूरी फ़ौज की आंखों के सामने रेजीमेंट वहां से चल दी और बहुत देर तक तारास मुड़-मुड़कर क्रोध-भरी आंखों से उधर देखता रहा।
हेटमैन और कर्नल निराश खड़े रह गये, वे सब चिंतित हो गये और बहुत देर तक चुप रहे जैसे किसी चिंताजनक पूर्वाभास ने उनको हताश कर दिया हो। तारास की भविष्यवाणी ग़लत नहीं थी। जैसा उसने कहा था वैसा ही हुआ। कुछ ही दिनों बाद, कानेव शहर के विश्वासघात के बाद हेटमैन और उसके बहुत-से बड़े अफ़सरों के सिर बल्लियों पर टंगवा दिये गये।
और तारास का क्या हुआ? तारास पोलैंड के सबसे अंदर के हिस्से तक घुसता चला गया, उसने पोप के चालीस गिरजाघर और अट्ठारह शहर जला डाले और क्रेकाओ तक जा पहुंचा। उसने बहुत-से सामंतों को मार डाला, कितने ही बेहतरीन और समृद्ध किलों को लूटा, उसके कज़ाकों ने अमीरों के तहखानों में हिफ़ाज़त से रखी हुई सौ साल पुरानी शहद की और दूसरी शराबों को खोल-खोलकर ज़मीन पर बहा दिया, उन्होंने अमूल्य चीज़ों और कपड़ों और हर उस चीज़ को जो उन्हें गोदामों में मिली टुकड़े-टुकड़े कर दिया और जलाकर राख कर दिया। “कुछ भी मत छोड़ो।”तारास बस इतना ही कहता था। कज़ाकों ने काली भवोंवाली औरतों और सफ़ेद सीनों और मोती जैसे रंग के चेहरोंवाली कन्याओं पर भी रहम नहीं खाया। वे वेदियों में छुपकर भी अपनी जानें न बचा सकींः तारास ने उनको वेदियों समेत फूंक दिया। आग की लपकती हुई लपटों में से बहुत-से बफऱ् जैसे सफ़ेद हाथ आसमान की ओर उठे और उनके साथ दर्दनाक चीखें भी उठीं जो ठंडी धरती को भी हिला सकती थीं और स्तेपी की घास को दया से झुक जाने पर मजबूर कर सकती थीं। लेकिन बेरहम कज़ाकों ने किसी भी बात की ओर ध्यान नहीं दिया। उन्होंने सड़कों पर बच्चों को अपनी बरछियों की नोकों पर उठा-उठाकर उसी आग में झोंक दिया।
“ऐ जहन्नुमी पोलिस्तानियों, यह ओस्ताप के जनाजे़ की दावत है।”तारास सिर्फ़ यही कहता। और ओस्ताप की याद में इस तरह की दावतें उसने हर शहर और गांव में कीं, यहां तक कि पोलिस्तानी सरकार को अंदाज़ा हो गया कि उसकी हरकतें मामूली लुटेरों के छापों से बढ़कर थीं। वही पोतोत्स्की पांच रेजीमेंटों के साथ किसी भी हालत में उसे पकड़ लाने के लिए भेजा गया।
छः दिन तक तो कज़ाक सफलता से अपना पीछा करनेवालों से बचते रहे। वे देहात की पगडंडियों पर भागते रहे, उनके घोड़े इस असाधारण दौड़ की थकन से चूर होकर गिरनेवाले थे लेकिन वे अपने कज़ाकों को बचाने में लगभग सफल हो गये। लेकिन इस बार पोतोत्स्की में उस काम को पूरा करने की ताक़त और भरोसा था जिसका उसने बीड़ा उठाया था। वह बिना थके लगातार उनका पीछा करता रहा और अंत में द्नेस्तर नदी के तट पर, जहां तारास ने एक सुनसान खंडहर कि़ले में आराम करने के लिए पड़ाव डाला था, उन्हें आ लिया।
द्नेस्तर के किनारे एक ढलवां चट्टान के बिलकुल सिरे पर उसे कि़ले का टूटा-फूटा परकोटा और गिरती हुई दीवारें दिखायी देती थीं। चट्टान की चोटी, जो किसी भी वक़्त गिरकर नीचे लुढ़क आने को तैयार मालूम देती थी, टूटी ईंटों और मलबे से अटी थी। यही वह जगह थी जहां उस चट्टान की मैदान की ओरवाली दो ढलानों पर शाही हेटमैन पोतोत्सकी ने बुल्बा को घेर लिया। चार दिन तक कज़ाक बराबर लड़ते रहे और पोलिस्तानियों को ईंटों और पत्थरों से खदेड़ते रहे। लेकिन अंत में उनकी ताक़त और खाने-पीने का सामान सब कुछ जवाब दे गया और तारास ने दुश्मन की पांतों में घुसकर लड़ते हुए रास्ता बनाने का फ़ैसला किया। कज़ाक उनके बीच से लड़ते हुए गुज़र जाते और शायद उनके तेज़ घोड़े एक बार फिर वफ़ादारी से उनके काम आते अगर भागने के ठीक बीच में तारास अचानक रुककर चीखने न लगताः “ठहरो! मेरा पाइप गिर पड़ा है। मैं इन जहन्नुमी पोलिस्तानियों के हाथ अपना पाइप भी नहीं लगने दूंगा!”और बूढ़ा आतामान झुककर घास में अपना पाइप खोजने लगा, जो जल और थल में, लड़ाई के समय, और घर में, हर जगह उसका निरंतर साथी था। उसी समय सिपाहियों का एक जत्था लपका और उसके मज़बूत कंधों से उसे पकड़ लिया। उसने एक झटके से अपने आपको उनकी पकड़ से छुड़ाना चाहा लेकिन अब हमेशा की तरह सिपाही उसके चारों ओर गिर नहीं पड़े। “आह, बुढ़ापा! बुढ़ापा!”तारास ने कहा और वह बूढ़ा हट्टा-कट्टा कज़ाक रो पड़ा। लेकिन वास्तव में बुढ़ापे का कोई प्रश्न नहीं था, बस इतनी सी बात थी कि एक ताक़त ने दूसरी को दबा लिया था। कम से कम तीस आदमी उसकी बांहों और टांगों से लिपटे थे। “कौवा पकड़ा गया!”पोलिस्तानी चिल्लाये। “अब हमें बस यह सोचना है कि इस कुत्ते को उसके किये का बदला कैसे दिया जाये।”अपने हेटमैन की आज्ञा से उन्होंने यह तय किया कि सबके सामने उसे जि़ंदा जला दिया जाये। पास ही एक पेड़ का ठूंठ था जिसका ऊपर का हिस्सा बिजली गिरने से जल गया था। उन्होंने उसे लोहे की ज़ंजीरों से उस पेड़ के तने के साथ जकड़ दिया और उसके हाथों में कीलें ठोंक दीं। कज़ाक को बहुत ऊंचा चढ़ा दिया गया ताकि वह दूर-दूर से दिखायी दे सके और उसके नीचे उन्होंने लकड़ी के गट्ठे जमा किये। लेकिन तारास ने उनकी ओर देखा तक नहीं और न ही उसने उस आग के बारे में सोचा जिसमें वे लोग उसे जलानेवाले थे। वह बेचारा तो उस ओर ताक रहा था जहां उसके कज़ाक अपना पीछा करनेवालों पर गोलियां चला रहे थे, उसे जिस ऊंचाई पर चढ़ा दिया गया था वहां से वह कज़ाकों को इतनी अच्छी तरह देख सकता था जैसे वे उसकी हथेली पर हों।
“जल्दी करो, भाइयो, उस पहाड़ी पर पहुंच जाओ!”वह चिल्लाया। “जंगल के उस पारवाली पहाड़ी पर, वहां वे तुम तक नहीं पहुंच पायेंगे!”
लेकिन हवा ने उसके शब्द उन तक नहीं पहंुचने दिये।
“मिट गये। तबाह हो गये। और एक ज़रा-सी चीज़ के लिए।”उसने निराशा से कहा और नीचे चमकती हुई द्नेस्तर नदी को देखा।
उसकी आंखें खुशी से चमक उठीं, उसे झाडि़यों के एक कुंज के पीछे चार नावों के आगे के सिरे निकले हुए दिखायी दिये। अपने फेफड़ों की पूरी ताक़त लगाकर वह ऊंची आवाज़ में ज़ोर से चिल्लायाः
“तट की ओर, भाइयो! तट की ओर! बायीं तरफ़ नीचे जानेवाली पगडंडी पर जाओ। किनारे के पास नावें हैं- सब ले लो, नहीं तो ये लोग तुम्हारा पीछा करेंगे!”
अब हवा दूसरी ओर से चल रही थी और तारास के सारे शब्द कज़ाकों को सुनायी दे गये। लेकिन इस सलाह के बदले में उसके सिर पर कुल्हाड़ी के पिछले हिस्से का एक ऐसा वार पड़ा कि उसकी आंखों के सामने हर चीज़ घूम गयी।
कज़ाकों ने पूरी तेज़ी से पहाड़ी के उतार पर घोड़े दौड़ा दिये लेकिन उनका पीछा करनेवाले भी उनके पीछे दौड़ पड़े और उन्होंने देखा कि पगडंडी पर बहुत मोड़ थे और वह बल खाती हुई जा रही थी जिसकी वजह से उनके भागने में रुकावट हो रही थी। “चल पड़ो, भाइयो!”उन्होंने कहा, सब क्षण भर के लिए रुके, उन्होंने अपनी चाबुकें फटकारी और सीटियां बजायीं। उनके तातारी घोड़े ज़मीन से छंलाग मारकर सांपों की तरह हवा में तन गये और खड्ड के ऊपर से उड़ते हुए द्नेस्तर में कूद पड़े। सिर्फ़ दो सवार नदी तक न पहुंच सके, वे ऊंचाई से नीचे गिरकर चट्टानों से टकरा गये और, अपने घोड़ों समेत मुंह से एक भी आवाज़ निकाले बिना वहीं के वहीं ख़त्म हो गये। लेकिन बाक़ी कज़ाक अपने घोड़ों समेत नदी में तैर रहे थे और उन्होंने नावें खोलना शुरू कर दिया था। पोलिस्तानी खड्ड के किनारे रुके, वे इस कल्पनातीत कज़ाक कारनामे से चकित थे और खुद हिचकिचा रहे थे कि नीचे कूदें कि न कूदें। एक जोशीला नौजवान कर्नल, उस सुंदर पोलिस्तानी लड़की का भाई जिसने बिचारे अन्द्रेई पर जादू किया था, ज़्यादा देर सोच-विचार के लिए नहीं रुका बल्कि उसने पूरी ताक़त से कज़ाकों के पीछे अपने घोड़े समेत छलांग लगायी और हवा में तीन बार मुड़कर अपने घोड़े के साथ पत्थरों से टकराकर चूर-चूर हो गया। नुकीले तेज़ धारवाले पत्थरों से टुकड़े-टुकड़े होकर वह इस गहरी खोह में ख़त्म हो गया और उसके खू़न से लथपथ भेजे ने खोज की पथरीली दीवारों पर उगी हुई झाडि़यों को लहू-लुहान कर दिया।
जब तारास बुल्बा को उस वार के आघात के बाद होश आया और उसने द्नेस्तर पर नज़र डाली तो कज़ाक नावों में बैठकर जा रहे थे। ऊपर से उन पर गोलियों की बौछार हो रही थी लेकिन वे उनको अपना निशाना नहीं बना पा रही थीं। बूढ़े आतामान की आंखें बेहद खु़शी से चमक उठीं।
“अलविदा, मेरे साथियो!”वह ऊपर से चिल्लाकर उनसे बोला। “मुझे याद रखना और अगले वसंत में फिर एक और शानदार धावा बोलने के लिए यहां आना! अब बताओ, जहन्नुमी पोलिस्तानियो! क्या तुम समझते हो कि दुनिया की कोई भी ताक़त किसी कज़ाक की हिम्मत पस्त कर सकती है? ठहरो! वह दिन जरूर आयेगा जब तुम्हें मालूम हो जायेगा कि कट्टरपंथी रूसी क्या होता है! क्या दूर क्या नज़दीक, हर जगह लोग अभी से भविष्यवाणी कर रहे हैंः रूस की धरती से एक ज़ार उठेगा और इस धरती पर कोई ऐसी ताक़त न होगी जो उसके सामने सिर न झुकाये!…।”
लकड़ी के गटठों से लपटें उठीं और उन्होंने उसके पांवों को पकड़ लिया और फिर वे पेड़ पर आगे बढ़ने लगीं… मगर इस दुनिया की वह कौन-सी आग है, कौन-सी यातना है, कौन-सी ताक़त है जो रूसी ताक़त पर हावी हो सके!
द्नेस्तर कोई छोटी-मोटी नदी नहीं है। उसकी बंद खाडि़या और पास-पास उगे सरकंडे, और उसके गहरे गड्ढे और उथली जगहें अनगिनत हैं। उसकी आईने जैसी सतह जगमगाती रहती है, उसके ऊपर राजहंसों की आवाज़ें सुनायी देती हैं, उस पर गर्वीली दरियाई बतखें तेज़ी से बहती रहती हैं और लाल गर्दनवाली मुर्गाबियां और दूसरे पक्षी जो उसके सरकंडों के अंदर और उसके तटों पर छुपे रहते हैं अनगिनत हैं। कज़ाक लगातार तेज़ी से अपनी दोहरे पतवारोंवाली नावों को खेते रहे, वे सावधानी से उथली जगहों से बच-बचकर निकलते और पक्षियों को चौकाते रहे और अपने आतामान के बारे में बातचीत करते रहे।
(अनुवाद: मुनीश सक्सेना)