पतंगों से- अक्कित्तम अच्युतन नंबूदिरी-अनुवादक : कवि उमेश कुमार सिंह चौहान

पतंगों से- अक्कित्तम अच्युतन नंबूदिरी-अनुवादक : कवि उमेश कुमार सिंह चौहान

पतंगों से आग में कूदकर मरने के लिए या आग खाने की लालसा में आग की ओर समूह में दौड़े जा रहे हैं छोटे पतंगे? आग में कूद कर मर जाने ले लिए ही दुनिया में बुराइयाँ होती हैं क्या? पैदा होते ही भर गई निराशा कैसे? खाने के लिए ही है यह जलती हुई …

Read more

पिता की विवशता- अक्कित्तम अच्युतन नंबूदिरी-अनुवादक : कवि उमेश कुमार सिंह चौहान

पिता की विवशता- अक्कित्तम अच्युतन नंबूदिरी-अनुवादक : कवि उमेश कुमार सिंह चौहान

पिता की विवशता पीली, उभरी हुई, चूने जैसी आँखें घुमाते चाँदी के तारों-सी दाढ़ी मूंछे सँवारे फटे हुए वस्त्रों वाले एक बाबाजी प्रातः सूर्य की किरणों के पीछे-पीछे मेरे घर आ पहुंचे। अल्प संकोच के साथ उन्होंने एक मुस्कान फेंकी अक्षर-ज्ञान विहीन मेरे बेटे ने उनसे कुछ कहा। बेटे के हाथ की चमड़े की गेंद …

Read more

घास – अक्कित्तम अच्युतन नंबूदिरी-अनुवादक : कवि उमेश कुमार सिंह चौहान

घास – अक्कित्तम अच्युतन नंबूदिरी-अनुवादक : कवि उमेश कुमार सिंह चौहान

घास खिले पुष्पों से आच्छादित भूमि में अतीत में ही पैदा हुआ मैं घास बनकर उस वक़्त भी आवाज़ सुनी तुम्हारी बांसुरी की मधुर रोमांच से खुल गई आँखे आत्मा की आँखें खुलने पर आश्चर्य से शिथिल हो गया मैं उस रोमांच की लहर से ही तो मैं आकाश तक विस्तृत हो सका उत्तुंग मेरा …

Read more

झंकार – अक्कित्तम अच्युतन नंबूदिरी-अनुवादक : कवि उमेश कुमार सिंह चौहान

झंकार – अक्कित्तम अच्युतन नंबूदिरी-अनुवादक : कवि उमेश कुमार सिंह चौहान

झंकार – अक्कित्तम अच्युतन नंबूदिरी-अनुवादक : कवि उमेश कुमार सिंह चौहान बाँबी की शुष्क मिट्टी के अन्तः अश्रुओं के सिंचन से पहली बार विकसे पुष्प! मानव वंश की सुषुम्ना के छोर पर आनन्द रूपी पुष्पित पुष्प! हजारों नुकीली पंखुड़ियों से युक्त हो दस हजार वर्षों से सुसज्जित पुष्प! आत्मा को सदा चिर युवा बनाने वाले …

Read more

परम दु:ख- अक्कित्तम अच्युतन नंबूदिरी-अनुवादक : कवि उमेश कुमार सिंह चौहान

परम दु:ख- अक्कित्तम अच्युतन नंबूदिरी-अनुवादक : कवि उमेश कुमार सिंह चौहान

परम दु:ख कल आधी रात में बिखरी चाँदनी में स्वयं को भूल उसी में लीन हो गया मैं स्वतः ही फूट फूट कर रोया मैं नक्षत्र व्यूह अचानक ही लुप्त हो गया । निशीथ गायिनी चिड़िया तक ने कारण न पूछा हवा भी मेरे पसीने की बून्दें न सुखा पाई । पड़ोस के पेड़ से …

Read more

प्राणायाम- अक्कित्तम अच्युतन नंबूदिरी-अनुवादक : कवि उमेश कुमार सिंह चौहान

प्राणायाम- अक्कित्तम अच्युतन नंबूदिरी-अनुवादक : कवि उमेश कुमार सिंह चौहान

प्राणायाम प्रिये! ऐसा लगता है कि है किन्तु है नहीं यह ब्रह्मांड, प्रिये! है नहीं, ऐसा लगने पर भी यह ब्रह्मांड तो है ही। आँसुओं से सानकर बनाए गये एक मिट्टी के लोंदे पर ज़ोरों से पनपता है हमारे पूर्व जन्म के सौहार्द का आवेश। प्रत्येक घड़ी, प्रत्येक पल, एक नवांकुर, प्रत्येक अंकुर की शाखा …

Read more