चंद्रकांता (उपन्यास) चौथा अध्याय : देवकीनन्दन खत्री

चंद्रकांता (उपन्यास) चौथा अध्याय : देवकीनन्दन खत्री

चंद्रकांता (उपन्यास) चौथा अध्याय : देवकीनन्दन खत्री बयान – 1 वनकन्या को यकायक जमीन से निकल कर पैर पकड़ते देख वीरेंद्रसिंह एकदम घबरा उठे। देर तक सोचते रहे कि यह क्या मामला है, यहाँ वनकन्या क्यों कर आ पहुँची और यह योगी कौन हैं जो इसकी मदद कर रहे हैं? आखिर बहुत देर तक चुप …

Read more

चंद्रकांता (उपन्यास) तीसरा अध्याय : देवकीनन्दन खत्री

चंद्रकांता (उपन्यास) तीसरा अध्याय : देवकीनन्दन खत्री

चंद्रकांता (उपन्यास) तीसरा अध्याय : देवकीनन्दन खत्री बयान – 1 वह नाजुक औरत जिसके हाथ में किताब है और जो सब औरतों के आगे-आगे आ रही है, कौन और कहाँ की रहने वाली है, जब तक यह न मालूम हो जाए तब तक हम उसको वनकन्या के नाम से लिखेंगे। धीरे-धीरे चल कर वनकन्या जब …

Read more

चंद्रकांता (उपन्यास) दूसरा अध्याय : देवकीनन्दन खत्री

चंद्रकांता (उपन्यास) दूसरा अध्याय : देवकीनन्दन खत्री

चंद्रकांता (उपन्यास) दूसरा अध्याय : देवकीनन्दन खत्री बयान – 1 इस आदमी को सभी ने देखा मगर हैरान थे कि यह कौन है, कैसे आया और क्या कह गया। तेजसिंह ने जोर से पुकार के कहा – ‘आप लोग चुप रहें, मुझको मालूम हो गया कि यह सब ऐयारी हुई है, असल में कुमारी और …

Read more

चंद्रकांता (उपन्यास) पहला अध्याय : देवकीनन्दन खत्री

चंद्रकांता (उपन्यास) पहला अध्याय : देवकीनन्दन खत्री

चंद्रकांता (उपन्यास) पहला अध्याय : देवकीनन्दन खत्री बयान – 1 शाम का वक्त है, कुछ-कुछ सूरज दिखाई दे रहा है, सुनसान मैदान में एक पहाड़ी के नीचे दो शख्स वीरेंद्रसिंह और तेजसिंह एक पत्थर की चट्टान पर बैठ कर आपस में बातें कर रहे हैं। वीरेंद्रसिंह की उम्र इक्कीस या बाईस वर्ष की होगी। यह …

Read more