कंकाल (उपन्यास) चतुर्थ खंड : जयशंकर प्रसाद
कंकाल (उपन्यास) चतुर्थ खंड : जयशंकर प्रसाद (1) वह दरिद्रता और अभाव के गार्हस्थ्य जीवन की कटुता में दुलारा गया था। उसकी माँ चाहती थी कि वह अपने हाथ से दो रोटी कमा लेने के योग्य बन जाए, इसलिए वह बार-बार झिड़की सुनता। जब क्रोध से उसके आँसू निकलते और जब उन्हें अधरों से पोंछ …