तितली (उपन्यास) चतुर्थ खंड : जयशंकर प्रसाद

तितली (उपन्यास) चतुर्थ खंड : जयशंकर प्रसाद

तितली (उपन्यास) चतुर्थ खंड : जयशंकर प्रसाद 1 मधुबन और रामदीन दोनों ही, उस गार्ड की दया से, लोको ऑफिस में कोयला ढोने की नौकरी पा गए। हबड़ा के जनाकीर्ण स्‍थान में उन दोनों ने अपने को ऐसा छिपा लिया, जैसे मधु-मक्खियों के छत्ते में कोई मक्‍खी। उन्‍हें यहाँ कौन पहचान सकता था। सारा शरीर …

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तितली (उपन्यास) तृतीय खंड : जयशंकर प्रसाद

तितली (उपन्यास) तृतीय खंड : जयशंकर प्रसाद

तितली (उपन्यास) तृतीय खंड : जयशंकर प्रसाद 1 निर्धन किसानों में किसी ने पुरानी चादर को पीले रंग से रंग लिया, तो किसी की पगड़ी ही बचे हुए फीके रंग से रंगी है। आज बसंत-पंचमी है न ! सबके पास कोई न कोई पीला कपड़ा है। दरिद्रता में भी पर्व और उत्‍सव तो मनाए ही …

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तितली (उपन्यास) द्वितीय खंड : जयशंकर प्रसाद

तितली (उपन्यास) द्वितीय खंड : जयशंकर प्रसाद

तितली (उपन्यास) द्वितीय खंड : जयशंकर प्रसाद 1 पूस की चांदनी गांव के निर्जन प्रांत में हल्‍के, कुहासे के रूप में साकार हो रही थी। शीतल पवन जब घनी अमराइयों में हरहराहट उत्‍पन्न करता, तब स्‍पर्श न होने पर भी गाढ़े के कुरते पहनने वाले किसान अलावों की ओर खिसकने लगते। शैला खड़ी होकर एक …

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तितली (उपन्यास) प्रथम खंड : जयशंकर प्रसाद

तितली (उपन्यास) प्रथम खंड : जयशंकर प्रसाद

तितली (उपन्यास) प्रथम खंड : जयशंकर प्रसाद 1 क्यों बेटी! मधुवा आज कितने पैसे ले आया? नौ आने, बापू! कुल नौ आने! और कुछ नहीं? पाँच सेर आटा भी दे गया है। कहता था, एक रुपये का इतना ही मिला। वाह रे समय-कहकर बुड्ढा एक बार चित होकर साँस लेने लगा। कुतूहल से लड़की ने …

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