अलंकार (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद- (अध्याय 5)

अलंकार (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद- (अध्याय 5)

अलंकार (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद- (अध्याय 5) अलंकार अध्याय 5 पापनाशी ने एक नौका पर बैठकर, जो सिरापियन के धमार्श्रम के लिए खाद्यपदार्थ लिये जा रही थी, अपनी यात्रा समाप्त की और निज स्थान को लौट आया। जब वह किश्ती पर से उतरा तो उसके शिष्य उसका स्वागत करने के लिए नदी तट पर आ …

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अलंकार (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद- (अध्याय 4)

अलंकार (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद- (अध्याय 4)

अलंकार (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद- (अध्याय 4) अलंकार अध्याय 4 नगर में सूर्य का परकाश फैल चुका था। गलियां अभी खाली पड़ी हुई थीं। गली के दोनों तरफ सिकन्दर की कबर तक भवनों के ऊंचेऊंचे सतून दिखाई देते थे। गली के संगीन फर्श पर जहांतहां टूटे हुए हार और बुझी मशालों के टुकड़े पड़े हुए …

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अलंकार (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद- (अध्याय 3)

अलंकार (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद- (अध्याय 3)

अलंकार (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद- (अध्याय 3) अलंकार अध्याय 3 जब थायस ने पापनाशी के साथ भोजशाला में पदार्पण किया तो मेहमान लोग पहले ही से आ चुके थे। वह गद्देदार कुरसियों पर तकिया लगाये, एक अर्द्धचन्द्राकार मेज के सामने बैठे हुए थे। मेज पर सोनेचांदी के बरतन जगमगा रहे थे। मेज के बीच में …

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अलंकार (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद- (अध्याय 2)

अलंकार (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद- (अध्याय 2)

अलंकार (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद- (अध्याय 2) अलंकार अध्याय 2 थायस ने स्वाधीन, लेकिन निर्धन और मूर्तिपूजक मातापिता के घर जन्म लिया था। जब वह बहुत छोटीसी लड़की थी तो उसका बाप एक सराय का भटियारा था। उस सराय में परायः मल्लाह बहुत आते थे। बाल्यकाल की अशृंखल, किन्तु सजीव स्मृतियां उसके मन में अब …

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अलंकार (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद- (अध्याय 1)

अलंकार (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद

अलंकार (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद- (अध्याय 1) अलंकार अध्याय 1 उन दिनों नील नदी के तट पर बहुतसे तपस्वी रहा करते थे। दोनों ही किनारों पर कितनी ही झोंपड़ियां थोड़ीथोड़ी दूर पर बनी हुई थीं। तपस्वी लोग इन्हीं में एकान्तवास करते थे और जरूरत पड़ने पर एकदूसरे की सहायता करते थे। इन्हीं झोंपड़ियों के बीच …

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