गबन (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद (अध्याय 5)
गबन (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद (अध्याय 5) अध्याय 5 (41)रतन पत्रों में जालपा को तो ढाढ़स देती रहती थी पर अपने विषय में कुछ न लिखती थी। जो आप ही व्यथित हो रही हो, उसे अपनी व्यथाओं की कथा क्या सुनाती! वही रतन जिसने रूपयों की कभी कोई हैसियत न समझी, इस एक ही महीने …