हमखुर्मा व हमसवाब (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद
पहला बाब-सच्ची क़ुर्बानी शाम का वक्त है। गुरुब होनेवाले आफताब की सुनहरी किरने रंगीन शीशे की आड़ से एक अग्रेजी वज़ा पर सजे हुए कमरे में झांक रही हैं जिससे तमाम कमरा बूकलूमूँ हो रहा है। अग्रेजी वजा की खूबसूरत तसवीरे जो दीवारों से लटक रही है, इस वक्त रंगीन लिबास पहनकर और खूबसूरत मालूम …