कायाकल्प (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद

कायाकल्प (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद

कायाकल्प (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद कायाकल्प (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद Part 10 September 29, 2024 by Hindi_Writer Contents1 कायाकल्प : अध्याय छप्पन2 कायाकल्प : अध्याय उपसंहार कायाकल्प (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद Part 10 पचास राजा विशालसिंह की हिंसा-वृत्ति किसी प्रकार शांत न होती थी। ज्यों-ज्यों अपनी दशा पर उन्हें दुःख होता था, उनके अत्याचार और भी बढ़ते …

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कायाकल्प (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद Part 10

कायाकल्प (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद Part 10

कायाकल्प (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद Part 10 पचास राजा विशालसिंह की हिंसा-वृत्ति किसी प्रकार शांत न होती थी। ज्यों-ज्यों अपनी दशा पर उन्हें दुःख होता था, उनके अत्याचार और भी बढ़ते थे। उनके हृदय में अब सहानुभूति, प्रेम और धैर्य के लिए जरा भी स्थान न था। उनकी संपूर्ण वृत्तियां ‘हिंसा-हिंसा !’ पुकार रही थीं। …

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कायाकल्प (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद Part 9

कायाकल्प (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद Part 9

कायाकल्प (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद Part 9 तैंतालीस अभागिनी अहिल्या के लिए संसार सूना हो गया। पति को पहले ही खो चुकी थी। जीवन का एकमात्र आधार पुत्र रह गया था, उसे भी खो बैठी। अब वह किसका मुंह देखकर जिएगी। वह राज्य उसके लिए किसी ऋषि का अभिशाप हो गया। पति और पुत्र को …

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कायाकल्प (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद Part 8

कायाकल्प (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद Part 8

कायाकल्प (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद Part 8 पैंतीस पांच साल गुजर गए, पर चक्रधर का कुछ पता नहीं। फिर वही गर्मी के दिन हैं, दिन को लू चलती है, रात को अंगारे बरसते हैं, मगर अहिल्या को न अब पंखे की जरूरत है, न खस की टट्रियों की। उस वियोगिनी को अब रोने के सिवा …

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कायाकल्प (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद Part 7

कायाकल्प (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद Part 7

कायाकल्प (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद Part 7 कायाकल्प : अध्याय पच्चीस आगरे के हिंदुओं और मुसलमानों में आए दिन जूतियां चलती रहती थीं। जरा-जरा-सी बात पर दोनों दलों के सिरफिरे जमा हो जाते और दो-चार के अंग-भंग हो जाते। कहीं बनिए ने डंडी मार दी और मुसलमनों ने उसकी दुकान पर धावा कर दिया, कहीं …

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कायाकल्प (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद Part 6

कायाकल्प (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद Part 6

कायाकल्प (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद Part 6 बाईस फागुन का महीना आया, ढोल-मंजीरे की आवाजें कानों में आने लगीं; कहीं रामायण की मंडलियां बनीं, कहीं फाग और चौताल का बाजार गर्म हुआ। पेड़ों पर कोयल कूकी, घरों में महिलाएं कूकने लगीं। सारा संसार मस्त है; कोई राग में, कोई साग में। मुंशी वज्रधर की संगीत …

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कायाकल्प (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद Part 5

कायाकल्प (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद Part 5

कायाकल्प (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद Part 5 अठारह चक्रधर को जेल में पहुँचकर ऐसा मालूम हुआ कि वह एक नई दुनिया में आ गए, जहां मुनष्य ही मनुष्य हैं, ईश्वर नहीं। उन्हें ईश्वर के दिये हुए वायु और प्रकाश के मुश्किल से दर्शन होते थे। मनुष्य के रचे हुए संसार में मनुष्य की कितनी हत्या …

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कायाकल्प (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद Part 4

कायाकल्प (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद Part 3

कायाकल्प (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद Part 3 कायाकल्प : अध्याय तेरह मुद्दत के बाद जगदीशपुर के भाग जागे। राजभवन आबाद हुआ। बरसात में मकानों की मरम्मत न हो सकती थी, इसलिए क्वार तक शहर ही में गुजारा करना पड़ा। कार्तिक लगते ही एक ओर जगदीशपुर के राजभवन की मरम्मत होने लगी, दूसरी ओर गद्दी के …

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कायाकल्प (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद Part 3

कायाकल्प (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद Part 3

कायाकल्प (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद Part 3 कायाकल्प : अध्याय दस मुंशी वज्रधर विशालसिंह के पास से लौटे, तो उनकी तारीफों के पुल बांध दिए। रईस हो तो ऐसा हो। आंखों में कितना शील है ! किसी तरह छोड़ते ही न थे। यों समझो कि लड़कर आया हूँ। प्रजा पर तो जान देते हैं। बेगार …

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कायाकल्प (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद Part 2

कायाकल्प (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद Part 2

कायाकल्प (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद Part 2 कायाकल्प : अध्याय आठ जगदीशपुर की रानी देवप्रिया का जीवन केवल दो शब्दों में समाप्त हो जाता था-विनोद और विलास। इस वृद्धावस्था में भी उनकी विलास वृत्ति अणुमात्र भी कम न हुई थी। हमारी कर्मेन्द्रियां भले ही जर्जर हो जाएं, चेष्टाएं तो वृद्ध नहीं होती! कहते हैं, बुढ़ापा …

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