रंगभूमि अध्याय 14 : मुंशी प्रेमचंद 

रंगभूमि अध्याय 14 : मुंशी प्रेमचंद 

रंगभूमि अध्याय 14 सोफ़िया को होश आया तो वह अपने कमरे में चारपाई पर पड़ी हुई थी। कानों में रानी के अंतिम शब्द गूँज रहे थे-क्या यही सत्य की मीमांसा है? वह अपने को इस समय इतनी नीच समझ रही थी कि घर का मेहतर भी उसे गालियाँ देता, तो शायद सिर न उठाती। वह …

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रंगभूमि अध्याय 13 : मुंशी प्रेमचंद 

रंगभूमि अध्याय 13 : मुंशी प्रेमचंद 

रंगभूमि अध्याय 13 विनयसिंह के जाने के बाद सोफ़िया को ऐसा प्रतीत होने लगा कि रानी जाह्नवी मुझसे खिंची हुई हैं। वह अब उसे पुस्तकें तथा पत्र पढ़ने या चिट्ठियाँ लिखने के लिए बहुत कम बुलातीं; उसके आचार-व्यवहार को संदिग्ध दृष्टि से देखतीं। यद्यपि अपनी बदगुमानी को वह यथासाधय प्रकट न होने देतीं, पर सोफी …

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रंगभूमि अध्याय 12 : मुंशी प्रेमचंद 

रंगभूमि अध्याय 12 : मुंशी प्रेमचंद 

रंगभूमि अध्याय 12 प्रभु सेवक ताहिर अली के साथ चले, तो पिता पर झल्लाए हुए थे-यह मुझे कोल्हू का बैल बनाना चाहते हैं। आठों पहर तम्बाकू ही के नशे में डूबा पड़ा रहूँ, अधिकारियों की चौखट पर मस्तक रगड़ूँ, हिस्से बेचता फिरूँ, पत्रों में विज्ञापन छपवाऊँ, बस सिगरेट की डिबिया बन जाऊँ। यह मुझसे नहीं …

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रंगभूमि अध्याय 11 : मुंशी प्रेमचंद 

रंगभूमि अध्याय 11 : मुंशी प्रेमचंद 

रंगभूमि अध्याय 11 भैरों पासी अपनी माँ का सपूत बेटा था। यथासाधय उसे आराम से रखने की चेष्टा करता रहता था। इस भय से कि कहीं बहू सास को भूखा न रखे, वह उसकी थाली अपने सामने परसा लिया करता था और उसे अपने साथ ही बैठाकर खिलाता था। बुढ़िया तम्बाकू पीती थी। उसके वास्ते …

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रंगभूमि अध्याय 10 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 10 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 10 बालकों पर प्रेम की भाँति द्वेष का असर भी अधिक होता है। जबसे मिठुआ और घीसू को मालूम हुआ था कि ताहिर अली हमारा मैदान जबरदस्ती ले रहे हैं, तब से दोनों उन्हें अपना दुश्मन समझते थे। चतारी के राजा साहब और सूरदास में जो बातें हुई थीं, उनकी उन दोनों को …

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रंगभूमि अध्याय 9 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 9 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 9 सोफ़िया इस समय उस अवस्था में थी, जब एक साधारण हँसी की बात, एक साधारण आँखों का इशारा, किसी का उसे देखकर मुस्करा देना, किसी महरी का उसकी आज्ञा का पालन करने में एक क्षण विलम्ब करना, ऐसी हजारों बातें, जो नित्य घरों में होती हैं और जिनकी कोई परवा भी नहीं …

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रंगभूमि अध्याय 8 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 8 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 8 सोफ़िया को इंदु के साथ रहते चार महीने गुजर गए। अपने घर और घरवालों की याद आते ही उसके हृदय में एक ज्वाला-सी प्रज्वलित हो जाती थी। प्रभु सेवक नित्यप्रति उससे एक बार मिलने आता; पर कभी उससे घर का कुशल-समाचार न पूछती। वह कभी हवा खाने भी न जाती कि कहीं …

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रंगभूमि अध्याय 7 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 7 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 7 संध्‍या हो गई थी। किंतु फागुन लगने पर भी सर्दी के मारे हाथ-पाँव अकड़ते थे। ठंडी हवा के झोंके शरीर की हड्डियों में चुभे जाते थे। जाड़ा, इंद्र की मदद पाकर फिर अपनी बिखरी हुई शक्तियों का संचय कर रहा था और प्राणपण से समय-चक्र को पलट देना चाहता था। बादल भी …

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रंगभूमि अध्याय 6 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 6 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 6 धर्मभीरुता में जहाँ अनेक गुण हैं, वहाँ एक अवगुण भी है; वह सरल होती है। पाखंडियों का दाँव उस पर सहज ही में चल जाता है। धर्मभीरु प्राणी तार्किक नहीं होता। उसकी विवेचना-शक्ति शिथिल हो जाती है। ताहिर अली ने जब से अपनी दोनों विमाताओं की बातें सुनी थीं, उनके हृदय में …

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रंगभूमि अध्याय 5 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 4 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 5 चतारी के राजा महेंद्रकुमार सिंह यौवनावस्था ही में अपनी कार्य-दक्षता और वंश प्रतिष्ठा के कारण म्युनिसिपैलिटी के प्रधान निर्वाचित हो गए थे। विचारशीलता उनके चरित्र का दिव्य गुण थी। रईसों की विलास-लोलुपता और सम्मान-प्रेम का उनके स्वभाव में लेश भी न था। बहुत ही सादे वस्त्र पहनते, ठाठ-बाट से घृणा थी और …

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