रंगभूमि अध्याय 4 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 4 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 4 चंचल प्रकृति बालकों के लिए अंधे विनोद की वस्तु हुआ करते हैं। सूरदास को उनकी निर्दय बाल-क्रीड़ाओं से इतना कष्ट होता था कि वह मुँह-अंधोरे घर से निकल पड़ता और चिराग जलने के बाद लौटता। जिस दिन उसे जाने में देर होती, उस दिन विपत्ति में पड़ जाता था। सड़क पर, राहगीरों …

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रंगभूमि अध्याय 3 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 3 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 3 मि. जॉन सेवक का बँगला सिगरा में था। उनके पिता मि. ईश्वर सेवक ने सेना-विभाग में पेंशन पाने के बाद वहीं मकान बनवा लिया था, और अब तक उसके स्वामी थे। इसके आगे उनके पुरखों का पता नहीं चलता, और न हमें उसकी खोज करने की विशेष जरूरत है। हाँ इतनी बात …

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रंगभूमि अध्याय 2 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि रंगभूमि अध्याय 2 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 2 सूरदास लाठी टेकता हुआ धीरे-धीरे घर चला। रास्ते में चलते-चलते सोचने लगा-यह है बड़े आदमियों की स्वार्थपरता! पहले कैसे हेकड़ी दिखाते थे, मुझे कुत्तो से भी नीचा समझा; लेकिन ज्यों ही मालूम हुआ कि जमीन मेरी है, कैसी लल्लो-चप्पो करने लगे। इन्हें मैं अपनी जमीन दिए देता हूँ। पाँच रुपये दिखाते थे, …

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