दुर्गादास (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद

दुर्गादास (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद

दुर्गादास (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद अध्याय-1 जोधपुर के महाराज जसवन्तसिंह की सेना में आशकरण नाम के एक राजपूत सेनापति थे, बड़े सच्चे, वीर, शीलवान् और परमार्थी। उनकी बहादुरी की इतनी धाक थी, कि दुश्मन उनके नाम से कांपते थे। दोनों दयावान् ऐसे थे कि मारवाड़ में कोई अनाथ न था।, जो उनके दरबार से निराश …

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मंगलसूत्र (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद

मंगलसूत्र (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद

मंगलसूत्र (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद 1बड़े बेटे संतकुमार को वकील बना कर, छोटे बेटे साधुकुमार को बी.ए. की डिग्री दिला कर और छोटी लड़की पंकजा के विवाह के लिए स्त्री के हाथों में पाँच हजार रुपए नकद रख कर देवकुमार ने समझ लिया कि वह जीवन के कर्तव्य से मुक्त हो गए और जीवन में …

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हमखुर्मा व हमसवाब (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद

हमखुर्मा व हमसवाब (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद

पहला बाब-सच्ची क़ुर्बानी शाम का वक्त है। गुरुब होनेवाले आफताब की सुनहरी किरने रंगीन शीशे की आड़ से एक अग्रेजी वज़ा पर सजे हुए कमरे में झांक रही हैं जिससे तमाम कमरा बूकलूमूँ हो रहा है। अग्रेजी वजा की खूबसूरत तसवीरे जो दीवारों से लटक रही है, इस वक्त रंगीन लिबास पहनकर और खूबसूरत मालूम …

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रामचर्चा (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद (रामचर्चा अध्याय 5 – अध्याय 7 )

रामचर्चा (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद (रामचर्चा अध्याय 5 – अध्याय 7 )

रामचर्चा अध्याय 5 लंकादाह अशोकों के बाग से चलतेचलते हनुमान के जी में आया कि तनिक इन राक्षसों की वीरता की परीक्षा भी करता चलूं। देखूं, यह सब युद्ध की कला में कितने निपुण हैं। आखिर रामचन्द्र जी इन सबों का हाल पूछेंगे तो क्या बताऊंगा। यह सोचकर उन्होंने बाग़ के पेड़ों को उखाड़ना शुरू …

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रामचर्चा (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद (रामचर्चा अध्याय 1 – अध्याय 4 )

रामचर्चा (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद

रामचर्चा अध्याय 1 जन्म प्यारे बच्चो! तुमने विजयदशमी का मेला तो देखा ही होगा। कहींकहीं इसे रामलीला का मेला भी कहते हैं। इस मेले में तुमने मिट्टी या पीतल के बन्दरों और भालुओं के से चेहरे लगाये आदमी देखे होंगे। राम, लक्ष्मण और सीता को सिंहासन पर बैठे देखा होगा और इनके सिंहासन के सामने …

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प्रतिज्ञा (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद (अध्याय 10- अध्याय 17 )

प्रतिज्ञा (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद (अध्याय 10- अध्याय 9 )

प्रतिज्ञा (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद (अध्याय 10- अध्याय 17 ) प्रतिज्ञा अध्याय 10 आदर्श हिंदू-बालिका की भाँति प्रेमा पति के घर आ कर पति की हो गई थी। अब अमृतराय उसके लिए केवल एक स्वप्न की भाँति थे, जो उसने कभी देखा था। वह गृह-कार्य में बड़ी कुशल थी। सारा दिन घर का कोई-न-कोई काम …

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प्रतिज्ञा (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद (अध्याय 1- अध्याय 9 )

प्रतिज्ञा (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद

प्रतिज्ञा (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद (अध्याय 1- अध्याय 9 ) प्रतिज्ञा अध्याय 1 काशी के आर्य-मंदिर में पंडित अमरनाथ का व्याख्यान हो रहा था। श्रोता लोग मंत्रमुग्ध से बैठे सुन रहे थे। प्रोफेसर दाननाथ ने आगे खिसक कर अपने मित्र बाबू अमृतराय के कान में कहा – ‘रटी हुई स्पीच है।’ अमृतराय स्पीच सुनने में …

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अलंकार (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद- (अध्याय 5)

अलंकार (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद- (अध्याय 5)

अलंकार (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद- (अध्याय 5) अलंकार अध्याय 5 पापनाशी ने एक नौका पर बैठकर, जो सिरापियन के धमार्श्रम के लिए खाद्यपदार्थ लिये जा रही थी, अपनी यात्रा समाप्त की और निज स्थान को लौट आया। जब वह किश्ती पर से उतरा तो उसके शिष्य उसका स्वागत करने के लिए नदी तट पर आ …

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अलंकार (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद- (अध्याय 4)

अलंकार (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद- (अध्याय 4)

अलंकार (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद- (अध्याय 4) अलंकार अध्याय 4 नगर में सूर्य का परकाश फैल चुका था। गलियां अभी खाली पड़ी हुई थीं। गली के दोनों तरफ सिकन्दर की कबर तक भवनों के ऊंचेऊंचे सतून दिखाई देते थे। गली के संगीन फर्श पर जहांतहां टूटे हुए हार और बुझी मशालों के टुकड़े पड़े हुए …

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अलंकार (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद- (अध्याय 3)

अलंकार (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद- (अध्याय 3)

अलंकार (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद- (अध्याय 3) अलंकार अध्याय 3 जब थायस ने पापनाशी के साथ भोजशाला में पदार्पण किया तो मेहमान लोग पहले ही से आ चुके थे। वह गद्देदार कुरसियों पर तकिया लगाये, एक अर्द्धचन्द्राकार मेज के सामने बैठे हुए थे। मेज पर सोनेचांदी के बरतन जगमगा रहे थे। मेज के बीच में …

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