अलंकार (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद- (अध्याय 2)

अलंकार (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद- (अध्याय 2)

अलंकार (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद- (अध्याय 2) अलंकार अध्याय 2 थायस ने स्वाधीन, लेकिन निर्धन और मूर्तिपूजक मातापिता के घर जन्म लिया था। जब वह बहुत छोटीसी लड़की थी तो उसका बाप एक सराय का भटियारा था। उस सराय में परायः मल्लाह बहुत आते थे। बाल्यकाल की अशृंखल, किन्तु सजीव स्मृतियां उसके मन में अब …

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अलंकार (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद- (अध्याय 1)

अलंकार (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद

अलंकार (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद- (अध्याय 1) अलंकार अध्याय 1 उन दिनों नील नदी के तट पर बहुतसे तपस्वी रहा करते थे। दोनों ही किनारों पर कितनी ही झोंपड़ियां थोड़ीथोड़ी दूर पर बनी हुई थीं। तपस्वी लोग इन्हीं में एकान्तवास करते थे और जरूरत पड़ने पर एकदूसरे की सहायता करते थे। इन्हीं झोंपड़ियों के बीच …

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कायाकल्प (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद

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कायाकल्प (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद कायाकल्प (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद Part 10 September 29, 2024 by Hindi_Writer Contents1 कायाकल्प : अध्याय छप्पन2 कायाकल्प : अध्याय उपसंहार कायाकल्प (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद Part 10 पचास राजा विशालसिंह की हिंसा-वृत्ति किसी प्रकार शांत न होती थी। ज्यों-ज्यों अपनी दशा पर उन्हें दुःख होता था, उनके अत्याचार और भी बढ़ते …

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कायाकल्प (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद Part 10

कायाकल्प (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद Part 10

कायाकल्प (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद Part 10 पचास राजा विशालसिंह की हिंसा-वृत्ति किसी प्रकार शांत न होती थी। ज्यों-ज्यों अपनी दशा पर उन्हें दुःख होता था, उनके अत्याचार और भी बढ़ते थे। उनके हृदय में अब सहानुभूति, प्रेम और धैर्य के लिए जरा भी स्थान न था। उनकी संपूर्ण वृत्तियां ‘हिंसा-हिंसा !’ पुकार रही थीं। …

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कायाकल्प (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद Part 9

कायाकल्प (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद Part 9

कायाकल्प (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद Part 9 तैंतालीस अभागिनी अहिल्या के लिए संसार सूना हो गया। पति को पहले ही खो चुकी थी। जीवन का एकमात्र आधार पुत्र रह गया था, उसे भी खो बैठी। अब वह किसका मुंह देखकर जिएगी। वह राज्य उसके लिए किसी ऋषि का अभिशाप हो गया। पति और पुत्र को …

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कायाकल्प (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद Part 8

कायाकल्प (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद Part 8

कायाकल्प (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद Part 8 पैंतीस पांच साल गुजर गए, पर चक्रधर का कुछ पता नहीं। फिर वही गर्मी के दिन हैं, दिन को लू चलती है, रात को अंगारे बरसते हैं, मगर अहिल्या को न अब पंखे की जरूरत है, न खस की टट्रियों की। उस वियोगिनी को अब रोने के सिवा …

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कायाकल्प (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद Part 7

कायाकल्प (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद Part 7

कायाकल्प (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद Part 7 कायाकल्प : अध्याय पच्चीस आगरे के हिंदुओं और मुसलमानों में आए दिन जूतियां चलती रहती थीं। जरा-जरा-सी बात पर दोनों दलों के सिरफिरे जमा हो जाते और दो-चार के अंग-भंग हो जाते। कहीं बनिए ने डंडी मार दी और मुसलमनों ने उसकी दुकान पर धावा कर दिया, कहीं …

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कायाकल्प (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद Part 6

कायाकल्प (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद Part 6

कायाकल्प (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद Part 6 बाईस फागुन का महीना आया, ढोल-मंजीरे की आवाजें कानों में आने लगीं; कहीं रामायण की मंडलियां बनीं, कहीं फाग और चौताल का बाजार गर्म हुआ। पेड़ों पर कोयल कूकी, घरों में महिलाएं कूकने लगीं। सारा संसार मस्त है; कोई राग में, कोई साग में। मुंशी वज्रधर की संगीत …

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कायाकल्प (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद Part 5

कायाकल्प (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद Part 5

कायाकल्प (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद Part 5 अठारह चक्रधर को जेल में पहुँचकर ऐसा मालूम हुआ कि वह एक नई दुनिया में आ गए, जहां मुनष्य ही मनुष्य हैं, ईश्वर नहीं। उन्हें ईश्वर के दिये हुए वायु और प्रकाश के मुश्किल से दर्शन होते थे। मनुष्य के रचे हुए संसार में मनुष्य की कितनी हत्या …

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कायाकल्प (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद Part 4

कायाकल्प (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद Part 3

कायाकल्प (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद Part 3 कायाकल्प : अध्याय तेरह मुद्दत के बाद जगदीशपुर के भाग जागे। राजभवन आबाद हुआ। बरसात में मकानों की मरम्मत न हो सकती थी, इसलिए क्वार तक शहर ही में गुजारा करना पड़ा। कार्तिक लगते ही एक ओर जगदीशपुर के राजभवन की मरम्मत होने लगी, दूसरी ओर गद्दी के …

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