रूठी रानी (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद

रूठी रानी (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद

(रूठी रानी एक ऐतिहासिक उपन्यास है, जिसमें राजाओं की वीरता और देश भक्ति को कलम के आदर्श सिपाही प्रेमचन्द ने जीवन्त रूप में प्रस्तुत किया है। उपन्यास में राजाओं की पारस्परिक फूट और ईर्ष्या के ऐसे सजीव चित्र प्रस्तुत किये गये हैं कि पाठक दंग रह जाता है। ‘रूठी रानी’ में बहुविवाह के कुपरिणामों, राजदरबार …

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प्रेमाश्रम (उपन्यास) (भाग-6) : मुंशी प्रेमचंद

प्रेमाश्रम (उपन्यास) (भाग-6) : मुंशी प्रेमचंद

प्रेमाश्रम (उपन्यास) (भाग-6) : मुंशी प्रेमचंद 50. श्रद्धा और गायत्री में दिनों-दिन मेल-जोल बढ़ने लगा। गायत्री को अब ज्ञात हुआ कि श्रद्धा में कितना त्याग, विनय, दया और सतीत्व है। मेल-जोल से उनमें आत्मीयता का विकास हुआ, एक-दूसरी से अपने हृदय की बात कहने लगीं, आपस में कोई पर्दा न रहा। दोनों आधी-आधी रात तक …

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प्रेमाश्रम (उपन्यास) (भाग-5) : मुंशी प्रेमचंद

प्रेमाश्रम (उपन्यास) (भाग-5) : मुंशी प्रेमचंद

प्रेमाश्रम (उपन्यास) (भाग-5) : मुंशी प्रेमचंद 41. राय कमलानन्द को देखे हुए हमें लगभग सात वर्ष हो गये, पर इस कालक्षेप का उनपर कोई चिन्ह नहीं दिखाई देता। बाल-पौरुष, रंग-ढंग सब कुछ वही है। यथापूर्व उनका समय सैर और शिकार पोलो और टेनिस, राग और रंग में व्यतीत होता है। योगाभ्यास भी करते जाते हैं। …

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प्रेमाश्रम (उपन्यास) (भाग-4) : मुंशी प्रेमचंद

प्रेमाश्रम (उपन्यास) (भाग-4) : मुंशी प्रेमचंद

प्रेमाश्रम (उपन्यास) (भाग-4) : मुंशी प्रेमचंद 26. प्रभात का समय था और कुआर का महीना। वर्षा समाप्त हो चुकी थी। देहातों में जिधर निकल जाइए, सड़े हुए सन की सुगन्ध उड़ती थी। कभी ज्येष्ठ को लज्जित करने वाली धूप होती थी, कभी सावन को सरमाने वाले बादल घिर आते थे। मच्छर और मलेरिया का प्रकोप …

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प्रेमाश्रम (उपन्यास) (भाग-3) : मुंशी प्रेमचंद

प्रेमाश्रम (उपन्यास) (भाग-3) : मुंशी प्रेमचंद

प्रेमाश्रम (उपन्यास) (भाग-3) : मुंशी प्रेमचंद 16. प्रेमशंकर यहाँ दो सप्ताह ऐसे रहे, जैसे कोई जल्द छूटने वाला कैदी। जरा भी जी न लगता था। श्रद्धा की धार्मिकता से उन्हें जो आघात पहुँचा था उसकी पीड़ा एक क्षण के लिए भी शान्त न होती थी। बार-बार इरादा करते कि फिर अमेरिका चला जाऊँ और फिर …

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प्रेमाश्रम (उपन्यास) (भाग-2) : मुंशी प्रेमचंद

प्रेमाश्रम (उपन्यास) (भाग-2) : मुंशी प्रेमचंद

प्रेमाश्रम (उपन्यास) (भाग-2) : मुंशी प्रेमचंद 7. जब तक इलाके का प्रबन्धन लाला प्रभाशंकर के हाथों में था, वह गौस खाँ को अत्याचार से रोकते रहते थे। अब ज्ञानशंकर मालिक और मुख्तार थे। उनकी स्वार्थप्रियता ने खाँ साहब को अपनी अभिलाषाएँ पूर्ण करने का अवसर प्रदान कर दिया था। वर्षान्तर पर उन्होंने बड़ी निर्दयता से …

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प्रेमाश्रम (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद

प्रेमाश्रम (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद

प्रेमाश्रम (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद 1.सन्ध्या हो गई है। दिन भर के थके-माँदे बैल खेत से आ गये हैं। घरों से धुएँ के काले बादल उठने लगे। लखनपुर में आज परगने के हाकिम की परताल थी। गाँव के नेतागण दिनभर उनके घोड़े के पीछे-पीछे दौड़ते रहे थे। इस समय वह अलाव के पास बैठे हुए …

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