रंगभूमि अध्याय 41 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 41 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 41 प्रभु सेवक ने तीन वर्ष अमेरिका में रहकर और हजारों रुपये खर्च करके जो अनुभव और ज्ञान प्राप्त किया था, वह मि. जॉन सेवक ने उनकी संगति से उतने ही महीनों में प्राप्त कर लिया। इतना ही नहीं, प्रभु सेवक की भाँति वह केवल बतलाए हुए मार्ग पर आँखें बंद करके चलने …

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रंगभूमि अध्याय 40 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 40 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 40 मिल के तैयार होने में अब बहुत थोड़ी कसर रह गई थी। बाहर से तम्बाकू की गाड़ियाँ लदी चली आती थीं। किसानों को तम्बाकू बोने के लिए दादनी दी जा रही थी। गवर्नर से मिल को खोलने की रस्म अदा करने के लिए प्रार्थना की गई थी और उन्होंने स्वीकार भी कर …

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रंगभूमि अध्याय 39 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 39 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 39 तीसरे दिन यात्रा समाप्त हो गई, तो संधया हो चुकी थी। सोफिया और विनय दोनों डरते हुए गाड़ी से उतरे कि कहीं किसी परिचित आदमी से भेंट न हो जाए। सोफिया ने सेवा-भवन (विनयसिंह के घर) चलने का विचार किया; लेकिन आज वह बहुत कातर हो रही थी। रानीजी न जाने कैसे …

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रंगभूमि अध्याय 38 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 38 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 38 सोफिया और विनय रात-भर तो स्टेशन पर पड़े रहे। सबेरे समीप के गाँव में गए, जो भीलों की एक छोटी-सी बस्ती थी। सोफिया को यह स्थान बहुत पसंद आया। बस्ती के सिर पर पहाड़ का साया था, पैरों के नीचे एक पहाड़ी नाला मीठा राग गाता हुआ बहता था। भीलों के छोटे-छोटे …

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रंगभूमि अध्याय 37 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 37 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 37 प्रभु सेवक बड़े उत्साही आदमी थे। उनके हाथ से सेवक-दल में एक नई सजीवता का संचार हुआ। संख्या दिन-दिन बढ़ने लगी। जो लोग शिथिल और उदासीन हो रहे थे, फिर नए जोश से काम करने लगे। प्रभु सेवक की सज्जनता और सहृदयता सभी को मोहित कर लेती थी। इसके साथ ही अब …

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रंगभूमि अध्याय 36 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 36 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 36 मिस्टर जॉन सेवक ने ताहिर अली की मेहनत और ईमानदारी से प्रसन्न होकर खालों पर कुछ कमीशन नियत कर दिया था। इससे अब उनकी आय अच्छी हो गई थी, जिससे मिल के मजदूरों पर उनका रोब था, ओवरसियर और छोटे-छोटे क्लर्क उनका लिहाज करते थे। लेकिन आय-वृध्दि के साथ उनके व्यय में …

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रंगभूमि अध्याय 35 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 35 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 35 विनयसिंह आबादी में दाखिल हुए, तो सबेरा हो गया था। थोड़ी दूर चले थे कि एक बुढ़िया लाठी टेकती सामने से आती हुई दिखाई दी। इन्हें देखकर बोली-बेटा, गरीब हूँ। बन पडे, तो कुछ दे दो। धरम होगा।नायकराम-सवेरे राम-नाम नहीं लेती, भीख माँगने चल खड़ी हुई। तुझे तो जैसे रात को नींद …

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रंगभूमि अध्याय 34 : मुंशी प्रेमचंद 

रंगभूमि अध्याय 34 : मुंशी प्रेमचंद 

रंगभूमि अध्याय 34 प्रभु सेवक ने घर आते ही मकान का जिक्र छेड़ दिया। जान सेवक यह सुनकर बहुत प्रसन्न हुए कि अब इसने कारखाने की ओर धयान देना शुरू किया। बोले-हाँ, मकानों का बनना बहुत जरूरी है। इंजीनियर से कहो, एक नक्शा बनाएँ। मैं प्रबंधकारिणी समिति के सामने इस प्रस्ताव को रख्रूगा। कुलियों के …

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रंगभूमि अध्याय 33 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 33 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 33 फैक्टरी करीब-करीब तैयार हो गई थी। अब मशीनें गड़ने लगीं। पहले तो मजदूर-मिस्त्री आदि प्राय: मिल के बरामदों ही में रहते थे, वहीं पेड़ों के नीचे खाना पकाते और सोते; लेकिन जब उनकी संख्या बहुत बढ़ गई, तो मुहल्ले में मकान ले-लेकर रहने लगे। पाँड़ेपुर छोटी-सी बस्ती तो थी ही, वहाँ इतने …

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रंगभूमि अध्याय 32 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 32 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 32 सूरदास के मुकदमे का फैसला सुनने के बाद इंद्रदत्ता चले, तो रास्ते में प्रभु सेवक से मुलाकात हो गई। बातें होने लगी।इंद्रदत्ता-तुम्हारा क्या विचार है, सूरदास निर्दोष है या नहीं?प्रभु सेवक-सर्वथा निर्दोष। मैं तो आज उसकी साधुता पर कायल हो गया। फैसला सुनाने के वक्त तक मुझे विश्वास था कि अंधो ने …

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