रंगभूमि अध्याय 31 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 31 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 31 भैरों के घर से लौटकर सूरदास अपनी झोंपड़ी में आकर सोचने लगा, क्या करूँ कि सहसा दयागिरि आ गए और बोले-सूरदास, आज तो लोग तुम्हारे ऊपर बहुत गरम हो रहे हैं, इसे घमंड हो गया है। तुम इस माया-जाल में क्यों पड़े हो। क्यों नहीं मेरे साथ कहीं तीर्थयात्रा करने चलते?सूरदास-यही तो …

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रंगभूमि अध्याय 30 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 30 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 30 शहर अमीरों के रहने और क्रय-विक्रय का स्थान है। उसके बाहर की भूमि उनके मनोरंजन और विनोद की जगह है। उसके मध्यि भाग में उनके लड़कों की पाठशालाएँ और उनके मुकद़मेबाजी के अखाड़े होते हैं, जहाँ न्याय के बहाने गरीबों का गला घोंटा जाता है। शहर के आस-पास गरीबों की बस्तियाँ होती …

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रंगभूमि अध्याय 29 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 29 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 29 मिस्टर विलियम क्लार्क अपने अन्य स्वदेश-बंधुओं की भाँति सुरापान के भक्त थे, पर उसके वशीभूत न थे। वह भारतवासियों की भाँति पीकर छकना न जानते थे। घोड़े पर सवार होना जानते थे, उसे काबू से बाहर न होने देते थे। पर आज सोफी ने जान-बूझकर उन्हें मात्रा से अधिक पिला दी थी, …

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रंगभूमि अध्याय 28 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 28 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 28 सोफिया के चले जाने के बाद विनय के विचार-स्थल में भाँति-भाँति की शंकाएँ होने लगीं। मन एक भीरु शत्रु है, जो सदैव पीठ के पीछे से वार करता है। जब तक सोफी सामने बैठी थी, उसे सामने आने का साहस न हुआ। सोफी के पीठ फेरते ही उसने ताल ठोकनी शुरू की-न …

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रंगभूमि अध्याय 27 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 27 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 27 नायकराम मुहल्लेवालों से बिदा होकर उदयपुर रवाना हुए। रेल के मुसाफिरों को बहुत जल्द उनसे श्रध्दा हो गई। किसी को तम्बाकू मलकर खिलाते, किसी के बच्चे को गोद में लेकर प्यार करते। जिस मुसाफिर को देखते, जगह नहीं मिल रही है, इधर-उधर भटक रहा है, जिस कमरे में जाता है, धक्के खाता …

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रंगभूमि अध्याय 26 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 26 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 26 अरावली की हरी-भरी झूमती हुई पहाड़ियों के दामन में जसवंतनगर यों शयन कर रहा है, जैसे बालक माता की गोद में। माता के स्तन से दूध की धारें, प्रेमोद्गार से विकल, उबलती, मीठे स्वरों में गाती निकलती हैं और बालक के नन्हे-से मुख में न समाकर नीचे बह जाती हैं। प्रभात की …

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रंगभूमि अध्याय 25 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 25 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 25 साल-भर तक राजा महेंद्रकुमार और मिस्टर क्लार्क में निरंतर चोटें चलती रहीं। पत्र का पृष्ठ रणक्षेत्र था और शृंखलित सूरमों की जगह सूरमों से कहीं बलवान् दलीलें। मनों स्याही बह गई, कितनी ही कलमें काम आईं। दलीलें कट-कटकर रावण की सेना की भाँति फिर जीवित हो जाती थीं। राजा साहब बार-बार हतोत्साह …

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रंगभूमि अध्याय 24 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 24 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 24 सूरदास की जमीन वापस दिला देने के बाद सोफ़िया फिर मि. क्लार्क से तन गई। दिन गुजरते जाते थे और वह मि. क्लार्क से दूरतर होती जाती थी। उसे अब सच्चे अनुराग के लिए अपमान, लज्जा, तिरस्कार सहने की अपेक्षा कृत्रिाम प्रेम का स्वाँग भरना कहीं दुस्सह प्रतीत होता था। सोचती थी, …

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रंगभूमि अध्याय 23 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 23 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 23 अब तक सूरदास शहर में हाकिमों के अत्याचार की दुहाई देता रहा, उसके मुहल्ले वाले जॉन सेवक के हितैषी होने पर भी उससे सहानुभूति करते रहे। निर्बलों के प्रति स्वभावत: करुणा उत्पन्न हो जाती है। लेकिन सूरदास की विजय होते ही यह सहानुभूति स्पध्र्दा के रूप में प्रकट हुई। यह शंका पैदा …

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रंगभूमि अध्याय 22 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 22 : मुंशी प्रेमचंद

रंगभूमि अध्याय 22 सैयद ताहिर अली को पूरी आशा थी कि जब सिगरेट का कारखाना बनना शुरू हो जाएगा, तो मेरी कुछ-न-कुछ तरक्की हो जाएगी। मि. सेवक ने उन्हें इसका वचन दिया था। इस आशा के सिवा उन्हें अब तक ऋणों को चुकाने का कोई उपाय न नजर आता था, जो दिनों-दिन बरसात की घास …

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