कायाकल्प (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद Part 1

कायाकल्प (उपन्यास) : मुंशी प्रेमचंद

कायाकल्प : अध्याय एक दोपहर का समय था; चारों तरफ अंधेरा था। आकाश में तारे छिटके हुए थे। ऐसा सन्नाटा छाया हुआ था, मानो संसार से जीवन का लोप हो गया हो। हवा भी बंद हो गई थी। सूर्यग्रहण लगा हुआ था। त्रिवेणी के घाट पर यात्रियों की भीड़ थी-ऐसी भीड़, जिसकी कोई उपमा नहीं …

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