दो बहनें (उपन्यास) : रबीन्द्रनाथ टैगोर; अनुवादक : हजारी प्रसाद द्विवेदी

दो बहनें (उपन्यास) : रबीन्द्रनाथ टैगोर; अनुवादक : हजारी प्रसाद द्विवेदी

दो बहनें (उपन्यास) : रबीन्द्रनाथ टैगोर; अनुवादक : हजारी प्रसाद द्विवेदी शर्मिला स्त्रियाँ दो जाति की होती हैं, ऐसा मैंने किसी-किसी पंडित से सुना है। एक जाति प्रधानतया माँ होती है, दूसरी प्रिया। ऋतुओं के साथ यदि तुलना की जाय तो माँ होगी वर्षाऋतु यह जल देती है, फल देती है, ताप शमन करती है, …

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राजर्षि (उपन्यास) : रवींद्रनाथ टैगोर-अनुवाद : (जयश्री दत्त)  चौथा भाग 

राजर्षि (उपन्यास) : रवींद्रनाथ टैगोर-अनुवाद : (जयश्री दत्त)  चौथा भाग 

राजर्षि (उपन्यास) : रवींद्रनाथ टैगोर-अनुवाद : (जयश्री दत्त)  चौथा भाग  राजर्षि (उपन्यास) : चौथा भाग : चौंतीसवाँ परिच्छेद नक्षत्रराय सैनिकों के साथ आगे बढ़ने लगा, कहीं तिलभर भी बाधा नहीं आई। त्रिपुरा के जिस भी गाँव में उसने कदम रखा, वही गाँव उसकी राजा के रूप में अगवानी करने लगा। पग-पग पर राजत्व का आस्वाद …

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राजर्षि (उपन्यास) : रवींद्रनाथ टैगोर-अनुवाद : (जयश्री दत्त) तीसरा भाग

राजर्षि (उपन्यास) : रवींद्रनाथ टैगोर-अनुवाद : (जयश्री दत्त) तीसरा भाग

राजर्षि (उपन्यास) : रवींद्रनाथ टैगोर-अनुवाद : (जयश्री दत्त) तीसरा भाग राजर्षि (उपन्यास) : तीसरा भाग : तेईसवाँ परिच्छेद चाचा साहब के लिए क्या आनंद का दिन है। आज दिल्ल्लीश्वर के राजपूत सैनिक विजयगढ़ के अतिथि हुए हैं। प्रबल प्रतापी शाहशुजा आज विजयगढ़ का बंदी है। कार्तवीर्यार्जुन के बाद से विजयगढ़ को ऐसा बंदी और नहीं …

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राजर्षि (उपन्यास) : रवींद्रनाथ टैगोर-अनुवाद : (जयश्री दत्त) दूसरा भाग

राजर्षि (उपन्यास) : रवींद्रनाथ टैगोर-अनुवाद : (जयश्री दत्त)  दूसरा भाग

राजर्षि (उपन्यास) : रवींद्रनाथ टैगोर-अनुवाद : (जयश्री दत्त) दूसरा भाग राजर्षि (उपन्यास) : दूसरा भाग : बारहवाँ परिच्छेद जयसिंह उसके अगले दिन मंदिर में लौट कर आया। अब तक पूजा का समय निकल चुका है। रघुपति दुखी चेहरा लिए अकेला बैठा है। इसके पहले कभी ऐसा नियम भंग नहीं हुआ था। जयसिंह गुरु के निकट …

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राजर्षि (उपन्यास) : रवींद्रनाथ टैगोर-अनुवाद : (जयश्री दत्त) पहला भाग 

राजर्षि (उपन्यास) : रवींद्रनाथ टैगोर-अनुवाद : (जयश्री दत्त)  पहला भाग 

राजर्षि (उपन्यास) : रवींद्रनाथ टैगोर-अनुवाद : (जयश्री दत्त) पहला भाग  राजर्षि (उपन्यास) : सूचना राजर्षि के सम्बन्ध में कुछ कहने का अनुरोध किया गया है। कहने को विशेष कुछ नहीं है। इस बारे में मुख्य वक्तव्य यही है कि यह मेरा स्वप्न में उपलब्ध उपन्यास है। बालक पत्रिका की संपादिका ने मुझे इस मासिक की …

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आँख की किरकिरी (उपन्यास-चोखेर बाली) : रवींद्रनाथ टैगोर-अनुवाद : ( हंसकुमार तिवारी ) Part 4

आँख की किरकिरी (उपन्यास-चोखेर बाली) : रवींद्रनाथ टैगोर-अनुवाद : ( हंसकुमार तिवारी ) Part 4

आँख की किरकिरी (उपन्यास-चोखेर बाली) : रवींद्रनाथ टैगोर-अनुवाद : ( हंसकुमार तिवारी ) Part 4 आँख की किरकिरी (उपन्यास-चोखेर बाली) : चौथा भाग 37 रात के अँधेरे में बिहारी कभी अकेले ध्यान नहीं लगाता। अपने लिए अपने को उसने कभी भी आलोच्य नहीं बनाया। वह पढ़ाई-लिखाई, काम-काज, हित-मित्रों में ही मशगूल रहता। अपने बजाय अपने …

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आँख की किरकिरी (उपन्यास-चोखेर बाली) : रवींद्रनाथ टैगोर-अनुवाद : ( हंसकुमार तिवारी ) Part 3

आँख की किरकिरी (उपन्यास-चोखेर बाली) : रवींद्रनाथ टैगोर-अनुवाद : ( हंसकुमार तिवारी ) Part 3

आँख की किरकिरी (उपन्यास-चोखेर बाली) : रवींद्रनाथ टैगोर-अनुवाद : ( हंसकुमार तिवारी ) Part 3 आँख की किरकिरी (उपन्यास-चोखेर बाली) : तीसरा भाग 25 उस दिन फागुन की पहली बसंती बयार बह आई। बड़े दिनों के बाद आशा शाम को छत पर चटाई बिछा कर बैठी। मद्धिम रोशनी में एक मासिक पत्रिका में छपी हुई …

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आँख की किरकिरी (उपन्यास-चोखेर बाली) : रवींद्रनाथ टैगोर-अनुवाद : ( हंसकुमार तिवारी ) Part 2

आँख की किरकिरी (उपन्यास-चोखेर बाली) : रवींद्रनाथ टैगोर-अनुवाद : ( हंसकुमार तिवारी ) Part 2

आँख की किरकिरी (उपन्यास-चोखेर बाली) : रवींद्रनाथ टैगोर-अनुवाद : ( हंसकुमार तिवारी ) Part 2 आँख की किरकिरी (उपन्यास-चोखेर बाली) : दूसरा भाग 13 विनोदिनी जब बिलकुल ही पकड़ में न आई, तो आशा को एक तरकीब सूझी। बोली, ‘भई आँख की किरकिरी, तुम मेरे पति के सामने क्यों नहीं आती, भागती क्यों फिरती हो?’ …

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आँख की किरकिरी (उपन्यास-चोखेर बाली) : रवींद्रनाथ टैगोर-अनुवाद : ( हंसकुमार तिवारी ) Part 1

आँख की किरकिरी (उपन्यास-चोखेर बाली) : रवींद्रनाथ टैगोर-अनुवाद : ( हंसकुमार तिवारी ) Part 1

आँख की किरकिरी (उपन्यास-चोखेर बाली) : रवींद्रनाथ टैगोर-अनुवाद : ( हंसकुमार तिवारी ) Part 1 आँख की किरकिरी (उपन्यास-चोखेर बाली) : पहला भाग 1 विनोद की माँ हरिमती महेंद्र की माँ राजलक्ष्मी के पास जा कर धरना देने लगी। दोनों एक ही गाँव की थीं, छुटपन में साथ खेली थीं। राजलक्ष्मी महेंद्र के पीछे पड़ …

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गोरा (बांग्ला उपन्यास) : रबीन्द्रनाथ टैगोर – अनुवाद: अज्ञेय Part 5

गोरा (बांग्ला उपन्यास) : रबीन्द्रनाथ टैगोर – अनुवाद: अज्ञेय Part 5

गोरा (बांग्ला उपन्यास) : रबीन्द्रनाथ टैगोर – अनुवाद: अज्ञेय Part 5 अध्याय-20 अपने यहाँ बहुत दिन उत्पीड़न सहकर आनंदमई के पास बिताए हुए इन कुछ दिनों में जैसी सांत्वना सुचरिता को मिली वैसी उसने कभी नहीं पाई थी। आनंदमई ने ऐसे सरल भाव से उसे अपने इतना समीप खींच लिया कि सुचरिता यह सोच ही …

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