गोरा (बांग्ला उपन्यास) : रबीन्द्रनाथ टैगोर – अनुवाद: अज्ञेय Part 4
गोरा (बांग्ला उपन्यास) : रबीन्द्रनाथ टैगोर – अनुवाद: अज्ञेय Part 4 अध्याय-17 आनंदमई से विनय ने कहा, “देखो माँ, मैं तुम्हें सत्य कहता हूँ, जब-जब भी मैं मूर्ति को प्रणाम करता रहा हूँ मन-ही-मन मुझे न जाने कैसी शर्म आती रही है। उस शर्म को मैंने छिपाए रखा है- बल्कि उल्टे मूर्ति-पूजा के समर्थन में …