वसंत- हिन्दी कविता -प्रो. अजहर हाशमी

 वसंत

रिश्तों में हो मिठास तो समझो वसंत है
मन में न हो खटास तो समझो वसंत है।

आँतों में किसी के भी न हो भूख से ऐंठन
रोटी हो सबके पास तो समझो वसंत है।

दहशत से रहीं मौन जो किलकारियाँ उनके
होंठों पे हो सुहास तो समझो वसंत है।

खुशहाली न सीमित रहे कुछ खास घरों तक
जन-जन का हो विकास तो समझो वसंत है।

सब पेड़-पौधे अस्ल में वन का लिबास हैं
छीनों न ये लिबास तो समझो वसंत है।

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