नदिया- अनिता सुधीर आख्या
नदिया- अनिता सुधीर आख्या कल-कल करके नदिया बहती। हर-पल हर-क्षण बहती रहती।। धरती की प्यास बुझाने में अपनी गाथा सबसे कहती।। ऊँचे पर्वत से आती हूँ। टेढ़ा-मेढ़ा पथ पाती हूँ।। गाँव शहर से होते-होते सागर को गले लगाती हूँ।। नही बिजूके से डरती हूँ। खेतो में पानी भरती हूँ। गेहूँ की बाली फिर झूमे सपनों …