. मरे-मरे से तुम जीते हो
(जीवन जीने की कला)
मरे-मरे से तुम जीते हो, है अभी तो मौसम हरा-भरा !
जीवन जीना सीखो उनसे, जिनका जीवन संघर्ष भरा ……
ग़ुलाम बने हो क्यों अभी भी, अब तो बंधन टूट चुके हैं,
जातिवाद न पैर पसारे, मनुस्मृती के पन्ने जले पड़े हैं !
जली हुई रस्सी को सांप समझते, ये अज्ञान तुम्हारा है,
मूल मंत्र है, बाबा साहब का, शिक्षित होकर संघर्ष करो ……
मरे-मरे से तुम जीते हो, है अभी तो मौसम हरा-भरा !
जीवन जीना सीखो उनसे, जिनका जीवन संघर्ष भरा ……
देख फसल पक चुकी है, उठ चलो अब तो काट लें,
अब तो राह मिल गयी है, चले चलो मंज़िल नाप लें !
विधर्म को भी धर्म समझते, बस ये अज्ञान तुम्हारा है,
मूल मंत्र है बाबा साहब का, संगठित हो संघर्ष करो ……
मरे-मरे से तुम जीते हो, है अभी तो मौसम हरा-भरा !
जीवन जीना सीखो उनसे, जिनका जीवन संघर्ष भरा ……
विचार वदलो, तुम बदलोगे, ये संघर्ष का नारा है,
संघर्षों में जीना सीखो, ये जीवन धर्म- तुम्हारा है !
हिंसा करना संघर्ष समझते, ये अज्ञान तुम्हारा है,
मूल मंत्र है बाबा साहब का, संघर्ष करो संघर्ष करो ……
मरे-मरे से तुम जीते हो, है अभी तो मौसम हरा-भरा !
जीवन जीना सीखो उनसे, जिनका जीवन संघर्ष भरा ……