घास – अक्कित्तम अच्युतन नंबूदिरी-अनुवादक : कवि उमेश कुमार सिंह चौहान
घास खिले पुष्पों से आच्छादित भूमि में अतीत में ही पैदा हुआ मैं घास बनकर उस वक़्त भी आवाज़ सुनी तुम्हारी बांसुरी की मधुर रोमांच से खुल गई आँखे आत्मा की आँखें खुलने पर आश्चर्य से शिथिल हो गया मैं उस रोमांच की लहर से ही तो मैं आकाश तक विस्तृत हो सका उत्तुंग मेरा …